
हिंदू धर्म में भगवान गणेश को विघ्नहर्ता, सिद्धिदाता और बुद्धि-विवेक के देवता के रूप में पूजा जाता है। हर शुभ कार्य की शुरुआत उनके नाम से होती है। लेकिन उनके स्वरूप में एक रहस्य छिपा है — वे केवल एक दांत वाले क्यों हैं?
भगवान गणेश के “एकदंत” कहलाने के पीछे दो अद्भुत और सच्ची पौराणिक कथाएँ हैं — एक परशुराम जी से जुड़ी और दूसरी महाभारत के लेखन से।
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परशुराम और गणेश जी का युद्ध — जब भक्ति और कर्तव्य आमने-सामने आए (The Battle Between Parashurama and Ganesha — When Devotion and Duty Collided)

एक बार भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी अपने गुरु भगवान शिव से मिलने कैलाश पर्वत पहुँचे। उस समय भगवान शिव माता पार्वती के साथ ध्यान में लीन थे, और द्वार की रक्षा गणेश जी कर रहे थे।
परशुराम जी ने अंदर जाने की अनुमति मांगी, परंतु गणेश जी ने माता पार्वती के आदेश का पालन करते हुए कहा — “भगवान विश्राम कर रहे हैं, कृपया प्रतीक्षा करें।”
परशुराम जी ने कई बार आग्रह किया, लेकिन गणेश जी अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटे। अंततः परशुराम जी को क्रोध आ गया और उन्होंने गणेश जी को युद्ध की चुनौती दे दी। गणेश जी ने भी माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हुए युद्ध स्वीकार किया।
दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ। परशुराम जी ने अपने फरसे से प्रहार किया — वह फरसा भगवान शिव का दिया हुआ था। गणेश जी जानते थे कि यह उनके पिता का शस्त्र है, इसलिए उन्होंने उसका सम्मान करते हुए वार को सीधे अपने एक दांत पर झेल लिया।
फरसे का प्रहार इतना शक्तिशाली था कि गणेश जी का एक दांत टूट गया।
जब माता पार्वती को यह बात पता चली, तो वे क्रोधित हो उठीं और परशुराम जी को श्राप देने ही वाली थीं, लेकिन भगवान शिव ने बीच में आकर समझाया —
“यह सब तुम्हारे पुत्र के संयम और मेरे शस्त्र के प्रति सम्मान का प्रतीक है।”
उस दिन से भगवान गणेश “एकदंत” कहलाने लगे — जिनका एक ही दांत है।
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एक अन्य प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब महर्षि वेद व्यास महाभारत की रचना कर रहे थे, तो उन्होंने भगवान गणेश से कहा कि वे उनके द्वारा बोले गए श्लोकों को लिखें।
गणेश जी ने सहमति दी, लेकिन शर्त रखी — “आप बिना रुके श्लोक कहते रहेंगे।”
वेद व्यास ने भी कहा — “आप भी तब तक नहीं लिखेंगे, जब तक हर श्लोक का अर्थ पूरी तरह समझ न लें।”
फिर लेखन शुरू हुआ। वेद व्यास इतनी तेज़ी से श्लोक बोल रहे थे कि गणेश जी की कलम बार-बार टूटने लगी। ताकि लेखन रुके नहीं, गणेश जी ने अपना एक दांत तोड़ लिया और उसे कलम की तरह इस्तेमाल किया।
इस प्रकार भगवान गणेश ने अपने ही दांत से महाभारत लिखी।
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‘एकदंत’ नाम का गहरा अर्थ (The Deeper Meaning of the Name ‘Ekadanta’)
“एकदंत” शब्द केवल उनके रूप का वर्णन नहीं, बल्कि उनके त्याग और समर्पण का प्रतीक है।
यह हमें सिखाता है कि —
- अपने कर्तव्य के प्रति समर्पण सर्वोच्च धर्म है।
- माता-पिता और गुरु के आदेश का पालन सच्ची भक्ति है।
- कठिन परिस्थितियों में भी संयम और सम्मान बनाए रखना चाहिए।
आध्यात्मिक संदेश (Spiritual Message)
भगवान गणेश का एकदंत रूप यह दर्शाता है कि सच्चा ज्ञान उसी के पास है जो धैर्यवान, विनम्र और निष्ठावान है।
उनका एक दांत टूटना केवल एक घटना नहीं, बल्कि यह बताता है कि त्याग और सम्मान से बढ़कर कुछ नहीं।
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निष्कर्ष (Conclusion)
भगवान गणेश का “एकदंत” रूप हमें यह सिखाता है कि बुद्धि और भक्ति के मार्ग में विनम्रता सबसे बड़ा शस्त्र है।
उन्होंने जो खोया, वह त्याग का प्रतीक बना; और जो पाया, वह अमरता का सम्मान।
“एकदंताय नमः” — यह मंत्र केवल एक नाम का उच्चारण नहीं, बल्कि ज्ञान, श्रद्धा और समर्पण की गूंज है।
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