“श्री चामुण्डेश्वरी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्” देवी चामुण्डा के 108 दिव्य नामों का अत्यंत पवित्र स्तोत्र है।
यह स्तोत्र देवी चामुण्डेश्वरी (महाकाली का उग्र रूप) को समर्पित है, जो महिषासुर, शुंभ, निशुंभ, मधु–कैटभ जैसे असुरों का संहार करने वाली शक्ति हैं।
इनके नामों में देवी के सभी रूपों का वर्णन है —
महाकाली, महालक्ष्मी, महावाणी, दुर्गा, पार्वती, अन्नपूर्णा, भैरवी, ललिता त्रिपुरसुंदरी, कामेश्वरी आदि।
देवी चामुण्डा को श्रीचक्र की अधिष्ठात्री, विन्ध्याचलवासिनी, और ब्रह्मांड की मूल प्रकृति कहा गया है।
यह स्तोत्र देवी के सौंदर्य, शक्ति, करुणा, और उग्रता — चारों पहलुओं का समन्वय है।
श्री चामुण्डेश्वरी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रं (Shri Chamundeshwari Ashtottara Shatanama Stotram)
श्रीचामुण्डा माहामाया श्रीमत्सिंहासनेश्वरी ।
श्रीविद्यावेद्यमहिमा श्रीचक्रपुरवासिनी ॥ १ ॥
श्रीकण्ठदयिता गौरी गिरिजा भुवनेश्वरी ।
महाकाली महालक्ष्मीः महावाणी मनोन्मनी ॥ २ ॥
सहस्रशीर्षसम्युक्ता सहस्रकरमण्डिता ।
कौसुम्भवसनोपेता रत्नकञ्चुकधारिणी ॥ ३ ॥
गणेशस्कन्दजननी जपाकुसुमभासुरा ।
उमा कात्यायनी दुर्गा मन्त्रिणी दण्डिनी जया ॥ ४ ॥
कराङ्गुलिनखोत्पन्ननारायणदशाकृतिः ।
सचामररमावाणीसव्यदक्षिणसेविता ॥ ५ ॥
इन्द्राक्षी बगला बाला चक्रेशी विजयाम्बिका ।
पञ्चप्रेतासनारूढा हरिद्राकुङ्कुमप्रिया ॥ ६ ॥
महाबलाद्रिनिलया महिषासुरमर्दिनी ।
मधुकैटभसंहर्त्री मथुरापुरनायिका ॥ ७ ॥
कामेश्वरी योगनिद्रा भवानी चण्डिका सती ।
चक्रराजरथारूढा सृष्टिस्थित्यन्तकारिणी ॥ ८ ॥
अन्नपूर्णा ज्वलज्जिह्वा कालरात्रिस्वरूपिणी ।
निशुम्भशुम्भदमनी रक्तबीजनिषूदिनी ॥ ९ ॥
ब्राह्म्यादिमातृकारूपा शुभा षट्चक्रदेवता ।
मूलप्रकृतिरूपाऽऽर्या पार्वती परमेश्वरी ॥ १० ॥
बिन्दुपीठकृतावासा चन्द्रमण्डलमध्यगा ।
चिदग्निकुण्डसम्भूता विन्ध्याचलनिवासिनी ॥ ११ ॥
हयग्रीवागस्त्यपूज्या सूर्यचन्द्राग्निलोचना ।
जालन्धरसुपीठस्था शिवा दाक्षायणीश्वरी ॥ १२ ॥
नवावरणसम्पूज्या नवाक्षरमनुस्तुता ।
नवलावण्यरूपाढ्या ज्वलद्द्वात्रिंशतायुधा ॥ १३ ॥
कामेशबद्धमाङ्गल्या चन्द्ररेखाविभूषिता ।
चराचरजगद्रूपा नित्यक्लिन्नाऽपराजिता ॥ १४ ॥
ओड्याणपीठनिलया ललिता विष्णुसोदरी ।
दंष्ट्राकरालवदना वज्रेशी वह्निवासिनी ॥ १५ ॥
सर्वमङ्गलरूपाढ्या सच्चिदानन्दविग्रहा ।
अष्टादशसुपीठस्था भेरुण्डा भैरवी परा ॥ १६ ॥
रुण्डमालालसत्कण्ठा भण्डासुरविमर्दिनी ।
पुण्ड्रेक्षुकाण्डकोदण्डा पुष्पबाणलसत्करा ॥ १७ ॥
शिवदूती वेदमाता शाङ्करी सिंहवाहना ।
चतुःषष्ट्युपचाराढ्या योगिनीगणसेविता ॥ १८ ॥
वनदुर्गा भद्रकाली कदम्बवनवासिनी ।
चण्डमुण्डशिरश्छेत्री महाराज्ञी सुधामयी ॥ १९ ॥
श्रीचक्रवरताटङ्का श्रीशैलभ्रमराम्बिका ।
श्रीराजराजवरदा श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी ॥ २० ॥
[* अधिकश्लोकं –
शाकम्भरी शान्तिदात्री शतहन्त्री शिवप्रदा ।
राकेन्दुवदना रम्या रमणीयवराकृतिः ॥
*]
श्रीमच्चामुण्डिकादेव्या नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।
पठन् भक्त्याऽर्चयन् देवीं सर्वान् कामानवाप्नुयात् ॥ २१ ॥
इति श्री चामुण्डेश्वरी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् ॥
लाभ (Benefits):
श्री चामुण्डेश्वरी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र के पाठ से अनेक अद्भुत फल प्राप्त होते हैं —
- 🕉 रक्षा और निर्भयता:
देवी अपने भक्तों की सभी दिशाओं से रक्षा करती हैं और भय, रोग, शत्रु व तंत्र-बाधाओं को नष्ट करती हैं। - संपत्ति और सिद्धि:
यह स्तोत्र धन, समृद्धि, और इच्छित कार्यों की सिद्धि प्रदान करता है। - आध्यात्मिक उन्नति:
साधक की चेतना को उच्च बनाकर उसे श्रीविद्या तत्त्व की अनुभूति होती है। - गृहशांति और शुभता:
घर में इस स्तोत्र का पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और वातावरण शुद्ध व मंगलमय बनता है। - देवी कृपा की प्राप्ति:
नियमित पाठ करने से देवी चामुण्डा की कृपा से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
विधि (Puja Vidhi – पाठ विधि):
1. शुद्धि:
सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
2. आसन और संकल्प:
लाल आसन पर बैठकर, माँ चामुण्डा का स्मरण करें और अपनी मनोकामना का संकल्प लें।
3. पूजन सामग्री:
- लाल फूल, चंदन, दीपक, धूप
- नैवेद्य (फल या गुड़-चने का भोग)
- यदि संभव हो तो श्रीचक्र या देवी का चित्र सामने रखें
4. ध्यान मंत्र (Dhyan Mantra):
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।
5. पाठ:
“श्री चामुण्डेश्वरी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र” का श्रद्धापूर्वक पाठ करें।
हर नाम के साथ देवी को मानसिक रूप से पुष्प अर्पित करने की भावना रखें।
6. समाप्ति (Namaskar):
पाठ के अंत में माँ से क्षमा याचना करें और उनकी कृपा के लिए धन्यवाद दें।
विशेष दिन:
- मंगलवार, शुक्रवार और अष्टमी तिथि को पाठ अत्यंत फलदायी होता है।
- नवरात्रि में प्रतिदिन इसका पाठ करने से संपूर्ण वर्ष शुभ रहता है।














































