
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ, आरती या किसी धार्मिक आयोजन के आरंभ में शंख बजाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। जब भी मंदिरों में आरती शुरू होती है या किसी देवता की पूजा होती है, तो शंखनाद की गूंज वातावरण में फैल जाती है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर शंख क्यों बजाया जाता है?
क्या इसका केवल धार्मिक महत्व है या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण भी छिपा है?
आइए जानते हैं इसके दोनों पहलुओं को विस्तार से।
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धार्मिक महत्व (Dharmik Mahatva)
1. भगवान विष्णु का प्रिय आयुध

शंख भगवान विष्णु का प्रिय आयुध है। विष्णु जी के चार हाथों में से एक हाथ में शंख होता है, जो “पाञ्चजन्य” नाम से प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि शंख बजाने से विष्णु और लक्ष्मी जी दोनों की कृपा प्राप्त होती है और घर में धन-समृद्धि आती है।
2. अशुभ शक्तियों का नाश
शास्त्रों में वर्णित है कि शंखनाद से वातावरण में मौजूद नकारात्मक शक्तियाँ और दुष्ट ऊर्जाएँ नष्ट हो जाती हैं।
गरुड़ पुराण में कहा गया है —
“शंखनादं तु यः कुर्यात् तस्य पापं विनश्यति।”
अर्थात जो व्यक्ति शंख बजाता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं और चारों ओर पवित्रता फैल जाती है।
3. शुभारंभ का संकेत
किसी भी पूजा, हवन या आरती के प्रारंभ में शंख बजाना शुभ संकेत माना जाता है। यह देवताओं को आमंत्रित करने का एक तरीका है कि “हे देव, अब आपकी पूजा प्रारंभ होने जा रही है।”
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4. मंत्र शक्ति में वृद्धि
शंख की ध्वनि में ऐसी विशेष कंपन शक्ति होती है जो मंत्रों की शक्ति को कई गुना बढ़ा देती है। इसलिए जब शंख बजने के साथ मंत्रोच्चारण होता है, तो पूजा का प्रभाव अधिक गहरा होता है।
वैज्ञानिक महत्व (Scientific Mahatva)
1. ध्वनि तरंगों से वातावरण की शुद्धि
शंख बजाने पर जो ध्वनि उत्पन्न होती है, उसकी तरंगें वातावरण में व्याप्त हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करती हैं।
यह ध्वनि लगभग 417 से 528 हर्ट्ज़ (Hz) की होती है, जो “ॐ” के कंपन के समान होती है। यही कारण है कि शंख की आवाज़ सुनते ही मन में शांति और ऊर्जा का अनुभव होता है।
2. शरीर के लिए लाभदायक
शंख फूंकने के लिए फेफड़ों की पूरी क्षमता का उपयोग होता है। इससे फेफड़े, श्वसन तंत्र और हृदय मजबूत होते हैं।
नियमित रूप से शंख फूंकने से रक्त संचार सुधरता है और गले के रोगों में भी राहत मिलती है।
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3. मानसिक संतुलन और ध्यान शक्ति
शंख की ध्वनि से उत्पन्न कंपन मस्तिष्क के दोनों भागों को संतुलित करता है, जिससे एकाग्रता, स्मरणशक्ति और मानसिक शांति बढ़ती है। यही कारण है कि साधक लोग ध्यान से पहले या बाद में शंख बजाते हैं।
4. ऊर्जा चक्रों (Chakras) को सक्रिय करना
शंख की ध्वनि से शरीर का नाभि चक्र (Solar Plexus) सक्रिय होता है। यह आत्मविश्वास, साहस और सकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा होता है। शंखनाद करने से व्यक्ति के भीतर नई शक्ति और उत्साह का संचार होता है।
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ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
प्राचीन ग्रंथों में भी शंख का उल्लेख युद्ध और विजय के प्रतीक के रूप में हुआ है।
महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने पाञ्चजन्य शंख, अर्जुन ने देवदत्त, भीम ने पौण्ड्र, और युधिष्ठिर ने अनंतविजय शंख बजाए थे।
इन शंखनादों की गूंज से न केवल रणभूमि में उत्साह फैला, बल्कि दुष्ट शक्तियाँ भी भयभीत हो उठीं।
निष्कर्ष
शंख बजाना केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रूप से लाभदायक साधना है।
यह वातावरण को शुद्ध करता है, शरीर को स्वस्थ रखता है, और मन को शांति प्रदान करता है।
इसलिए जब भी पूजा या आरती करें, श्रद्धा से शंखनाद अवश्य करें —
क्योंकि यह न केवल भगवान को प्रसन्न करता है, बल्कि हमें ऊर्जा, संतुलन और सकारात्मकता भी प्रदान करता है।
“शंखनाद केवल आवाज़ नहीं, यह दिव्यता की पुकार है।”