
भारत त्योहारों की भूमि है — यहाँ हर पर्व अपने साथ एक नई आशा, एक नई ऊर्जा और एक पवित्र संदेश लेकर आता है। इन्हीं त्योहारों में से एक है धनतेरस, जो दीपावली के भव्य उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है। यह दिन न केवल सोने-चांदी की चमक से जगमगाता है, बल्कि इसमें विश्वास, आस्था और समृद्धि का अनोखा संगम भी देखा जाता है।
धनतेरस का नाम सुनते ही हर किसी के मन में दीयों की रोशनी, नए बर्तनों की खनक और खरीदारी की रौनक जाग उठती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस दिन के पीछे का रहस्य क्या है? क्यों माना जाता है कि इस दिन की गई खरीदारी आने वाले पूरे वर्ष के लिए शुभफल देती है? वास्तव में धनतेरस केवल धन अर्जन का पर्व नहीं, बल्कि यह हमें सिखाता है कि सच्चा धन स्वास्थ्य, सकारात्मकता और ईश्वर में आस्था है।
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धनतेरस का रहस्यमयी अर्थ (The mysterious meaning of Dhanteras)
“धनतेरस” दो शब्दों से मिलकर बना है — धन अर्थात् समृद्धि, और तेरस अर्थात् कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि। इस दिन भगवान धन्वंतरि, जो चिकित्सा और आयुर्वेद के देवता माने जाते हैं, समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन को स्वास्थ्य, दीर्घायु और समृद्धि का पर्व कहा जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि धन केवल पैसा नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, मानसिक शांति और परिवार का सुख भी असली संपत्ति है।
समुद्र मंथन से जुड़ी दिव्य कथा (The divine story of the churning of the ocean)

हजारों वर्ष पहले देवताओं और असुरों ने अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया था। उस मंथन से अनेक रत्न निकले — लक्ष्मी जी, कौस्तुभ मणि, ऐरावत हाथी, और अंत में भगवान धन्वंतरि, जो अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। तभी से इस दिन को “धन्वंतरि जयंती” के रूप में भी मनाया जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, राजा हेम के पुत्र की मृत्यु का योग त्रयोदशी की रात को था। उसकी पत्नी ने पति को बचाने के लिए अपने घर के दरवाजे पर दीपक जलाकर पूरी रात उजाला फैलाया, ताकि यमराज अंदर प्रवेश न कर सकें। जब यमराज आए, तो उन्होंने उस उजाले और नारी की श्रद्धा को देखकर उसका जीवन बख्श दिया। तभी से इस दिन दीपदान का महत्व बढ़ गया, जो यमराज से रक्षा का प्रतीक है।
धनतेरस पर सोना और बर्तन क्यों खरीदे जाते हैं (Why are gold and utensils bought on Dhanteras?)
धनतेरस पर लोग परंपरागत रूप से सोना, चांदी या पीतल के बर्तन खरीदते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह वस्तुएँ माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर का स्वागत करती हैं। कहावत है – “धनतेरस पर जो खरीदे धन, वो बढ़ता है कई गुना।” लोग विश्वास करते हैं कि इस दिन की गई खरीदारी पूरे साल धन, सौभाग्य और उन्नति लाती है। यही कारण है कि बाजारों में इस दिन रौनक छा जाती है, हर दुकान जगमगाती है और हर घर में लक्ष्मी का आगमन होता है।
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धनतेरस की पूजा विधि (Dhanteras Puja Rituals)
शाम के समय घर की सफाई करके उत्तर-पूर्व दिशा में पूजा स्थल सजाया जाता है। भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और कुबेर देव की मूर्तियाँ या चित्र स्थापित किए जाते हैं। घी या तेल का दीपक जलाया जाता है, पुष्प, धूप, फल और मिठाई अर्पित की जाती है। “ॐ धन्वंतरये नमः” मंत्र का 108 बार जाप किया जाता है, ताकि स्वास्थ्य और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त हो। साथ ही घर के बाहर दक्षिण दिशा में यमराज के नाम का दीप जलाना शुभ माना जाता है, जिससे अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है।
स्वास्थ्य ही सच्चा धन (Health is true wealth)
धनतेरस हमें यह सिखाता है कि सच्चा धन सोना या रुपया नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और संतुलित जीवन है। भगवान धन्वंतरि के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि हमें अपने शरीर और मन दोनों की शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि बिना स्वास्थ्य के कोई भी संपत्ति मूल्यहीन है।
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रोशनी और विश्वास की रात (Night of Light and Faith)
धनतेरस की रात जब हर घर दीपों की पंक्तियों से जगमगा उठता है, तो वातावरण में एक दिव्यता और पवित्रता फैल जाती है। ऐसा लगता है मानो हर दीपक कह रहा हो — “अंधकार चाहे कितना भी गहरा हो, एक छोटी सी लौ भी उसे मिटा सकती है।” यह पर्व केवल रोशनी का नहीं, बल्कि विश्वास और आस्था का उत्सव है, जो हमें भीतर की रोशनी को जगाने की प्रेरणा देता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
धनतेरस केवल खरीदारी का दिन नहीं, बल्कि यह सकारात्मक सोच, स्वास्थ्य और समृद्धि का संदेश देने वाला पर्व है। यह हमें सिखाता है कि जीवन में प्रकाश फैलाने के लिए बाहरी दीपक से अधिक जरूरी है — भीतर का दीपक, जो आशा, प्रेम और विश्वास से भरा हो।
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