
भारतीय संस्कृति में देवी-देवताओं की पूजा केवल आस्था का विषय नहीं है, बल्कि इसमें जीवन जीने की गहरी सीख भी छिपी होती है। हर देवी-देवता के पूजन में कुछ नियम और परंपराएँ तय होती हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं। इन्हीं परंपराओं में से एक है संतोषी माता की पूजा में खट्टी वस्तुओं का निषेध।
संतोषी माता, संतोष और शांति की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। यह विश्वास है कि माता की कृपा से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और संतुलन प्राप्त होता है। लेकिन उनके पूजन में खटाई चढ़ाना वर्जित है। आखिर ऐसा क्यों? इसके पीछे धार्मिक कथा, प्रतीकात्मक संदेश और आध्यात्मिक कारण छिपे हैं।
33 कोटि का वास्तविक अर्थ और पौराणिक दृष्टिकोण
संतोषी माता का स्वरूप और पूजा (Form and worship of Santoshi Mata)
संतोषी माता को “संतोष की देवी” कहा जाता है। उनका स्वरूप सादगी और मधुरता का प्रतीक है। भक्त मानते हैं कि माता की पूजा करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और परिवार में समृद्धि आती है।
शुक्रवार का दिन माता की आराधना के लिए विशेष माना जाता है। इस दिन व्रत और कथा करने की परंपरा है। व्रत के दौरान खटाई का सेवन नहीं किया जाता और घर में भी खट्टी वस्तुओं का परहेज़ रखा जाता है।
पूजा में माता को गुड़ और चने का भोग चढ़ाया जाता है, जिसे प्रसाद के रूप में परिवार और भक्तों में बाँटा जाता है। यह प्रसाद सरलता, संतुलन और संतोष का प्रतीक माना जाता है।
सन्तोषी माता आरती (Santoshi Mata Aarti)
धार्मिक मान्यता (Religious Affiliation)
लोककथाओं के अनुसार, एक स्त्री ने जब पहली बार संतोषी माता का व्रत रखा तो उसकी जेठानियों ने जलनवश उसके बच्चों को खटाई खाने के लिए दे दी। इससे उसका व्रत भंग हो गया और जीवन में दुख आने लगे। जब स्त्री ने माता से प्रार्थना की, तो माता ने बताया कि मेरे व्रत में खट्टी वस्तुएँ वर्जित हैं। तभी से यह नियम परंपरा के रूप में प्रचलित हो गया।
‘संतोष’ और ‘खट्टापन’ का प्रतीकात्मक संबंध (The symbolic relationship between ‘satisfaction’ and ‘sourness’)
आध्यात्मिक दृष्टि से ‘खटाई’ जीवन की कटुता, असंतोष और कलह का प्रतीक है। संतोषी माता का संबंध संतोष, मधुरता और संतुलन से है। उनके पूजन में खटाई का त्याग इस बात का संदेश है कि साधक को अपने जीवन से कटुता और असंतोष को दूर कर देना चाहिए। जब हम खट्टापन त्यागते हैं, तो हम मन और वाणी में मधुरता लाने का संकल्प लेते हैं।
श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र (Shiva Panchakshara Stotra)
आयुर्वेदिक और पारंपरिक कारण (Ayurvedic and traditional reasons)
आयुर्वेद कहता है कि खट्टी वस्तुएँ शरीर में उत्तेजना, चिड़चिड़ापन और असंतुलन बढ़ाती हैं। जबकि उपवास और व्रत का उद्देश्य मन और शरीर को शांत रखना होता है। इसीलिए संतोषी माता की पूजा में खटाई को छोड़कर गुड़ और चने का प्रसाद चढ़ाया जाता है, जो सात्त्विक, संतुलित और ऊर्जा प्रदान करने वाला होता है।
सानन्दमानन्द-वने वसन्तं मंत्र(Sanand Manand Vane Vasantam Mantra)
सामाजिक और सांस्कृतिक कारण (Social and cultural reasons)
भारतीय समाज में हर पूजा का संबंध सामाजिक जीवन से भी होता है। संतोषी माता का संदेश है कि जीवन को सरल और संतुलित बनाना चाहिए। गुड़ और चने जैसे साधारण पदार्थ प्रसाद में इसलिए चुने गए हैं क्योंकि ये आसानी से उपलब्ध होते हैं और सादगी का प्रतीक हैं। खट्टी वस्तुओं से परहेज़ करने का संदेश यह है कि इंसान को विलासिता और उत्तेजना से दूर रहकर संतोषपूर्ण जीवन जीना चाहिए।
निष्कर्ष (Conclusion)
संतोषी माता की पूजा में खट्टी वस्तुओं का निषेध केवल परंपरा नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन की गहरी सीख देता है। यह नियम हमें याद दिलाता है कि सच्चा सुख संतोष में है, कटुता और असंतोष से दूर रहना ही शांति का मार्ग है।
गुड़-चना का प्रसाद हमें यह संदेश देता है कि सादगी और संतुलन ही जीवन को सुंदर बनाते हैं। इसी कारण संतोषी माता के व्रत और पूजा में खटाई को वर्जित माना गया है और उनकी जगह सात्त्विक, सरल और मधुर प्रसाद अर्पित किया जाता है।
बगलामुखी मूल मंत्र (Baglamukhi Mool mantra):