भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्णु और महेश – का संयुक्त स्वरूप माना गया है। वे सदैव साधकों और भक्तों के दुःख हरने वाले, ज्ञान देने वाले और जीवन को सुख-समृद्धि से भर देने वाले देवता हैं। दत्तात्रेय भगवान को समर्पित अनेक स्तोत्र और प्रार्थनाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से “सर्वसौख्यकर स्तोत्र” अत्यंत प्रसिद्ध और चमत्कारी स्तोत्र माना जाता है।
जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है –
“सर्वसौख्यकर” अर्थात् वह स्तोत्र जो जीवन में सभी प्रकार का सुख प्रदान करने वाला है।
इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से –
- रोग, शोक, दरिद्रता और दुःख दूर होते हैं।
- मृत्यु का भय मिट जाता है और शत्रु भी मित्रवत हो जाते हैं।
- मानसिक अशांति, दुःस्वप्न और नकारात्मक शक्तियाँ पास नहीं आतीं।
- जीवन में स्वास्थ्य, शांति और समृद्धि का वास होता है।
शास्त्रों में कहा गया है कि सायंकाल इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से फलदायी होता है। यही कारण है कि भक्त इसे नित्य श्रद्धा और विश्वास से पढ़ते हैं और भगवान दत्तात्रेय से कृपा प्राप्त करते हैं।
सर्वसौख्यकर स्तोत्रं (Sarvasaukhyakara Stotram)
यस्य नामश्रुतेः सद्यः मृत्युर्दूरात् पलायते ।
दुःखवार्ता विलीयेत दत्तात्रेय नमोऽस्तु ते ॥१॥
शोको नन्दाय कल्पेत दैन्यं दारिद्र्यहेतवे ।
रोगः स्वगतये सम्यक् दिगम्बर नमोऽस्तु ते ॥२॥
परयन्त्रादिकं किञ्चित् प्रभवेन्नेव सूरिषु ।
कर्ता कृतेन बध्येत अवधूत नमोऽस्तु ते ॥३॥
कायिकं वाचिकं वापि मानसं वा तथैव च ।
पापं तापश्च दह्येत कालकाल नमोऽस्तु ते ॥४॥
विषबाधा भवेन्नेव भूतादि विप्लवः कुतः ।
शत्रवो मित्रतामियुर्वैद्यराज नमोऽस्तु ते ॥५॥
दुर्बुद्धिः साधुतामेति शठः शाठ्यं जहात्यरम् ।
पीत्वा यन्नाम पीयूषं सिद्धराज नमोऽस्तु ते ॥६॥
भयं दिक्षु प्रधावेत चिन्ता चुल्लिमियाद् द्रुतम् ।
वैषम्यं विपिनं गच्छेद्योगिराज नमोऽस्तु ते ॥७॥
दुःस्वप्न दुःखदावाग्निं ग्रहातिघ्नं ह्यनुत्तमम् ।
संसारभेषजं सौम्यं मृत्युंजय नमामि तम् ॥८॥
रोगाभिसकुले देहे निःसारे भेषजे सति ।
औषधं नार्मदं वारि दत्तो धन्वन्तरिः स्वयं ॥९॥
भेषजं निष्फलं विद्धि दत्तमेकं विहाय यत् ।
जन्ममृत्युजराहन्त्री दत्तनामामृतं महत् ॥१०॥
य इदं पठति स्तोत्रं रंगरोगार्तिनाशनम् ।
सर्वसौख्यकरं नृणां सायंकाले विशेषतः ॥११॥
त्रिसप्तं स्वापकाले तु मन्दवारे सुसंयतः ।
तस्य रोगभयं नास्ति त्रिःसत्यं नात्र संशयः ॥१२॥
सर्वसौख्यकर स्तोत्र – हिंदी अनुवाद
१.
जिसके नाम का श्रवण होते ही मृत्यु दूर भाग जाती है,
और दुःखदायी वार्ताएँ मिट जाती हैं —
ऐसे दत्तात्रेय भगवान को मेरा नमन है।
२.
जिसका स्मरण करने से शोक प्रसन्नता में बदल जाता है,
दारिद्र्य दूर हो जाता है और रोग नष्ट हो जाते हैं —
ऐसे दिगम्बर दत्तात्रेय को मेरा प्रणाम है।
३.
जिसके भक्तों पर किसी भी प्रकार का मंत्र, तंत्र या जादू प्रभाव नहीं डाल सकता,
और जिसका स्मरण करने से कर्मज बंधन कट जाते हैं —
ऐसे अवधूत को मेरा नमस्कार है।
४.
जिसके नाम का जप करने से शरीर, वाणी और मन से किए गए पाप तथा ताप जलकर नष्ट हो जाते हैं —
ऐसे कालकाल (समय के भी नियंता) को मेरा प्रणाम है।
५.
जिसके स्मरण से विष का कोई प्रभाव नहीं होता,
भूत-प्रेत और ग्रह बाधाएँ पास नहीं आतीं,
और शत्रु भी मित्र बन जाते हैं —
ऐसे वैद्यराज (सर्वोत्तम चिकित्सक) दत्तात्रेय को मेरा प्रणाम है।
६.
जिसके नाम-रूपी अमृत को पीने से दुष्ट बुद्धि वाला व्यक्ति भी सज्जन बन जाता है,
और पाखंडी व्यक्ति अपनी कपटता छोड़ देता है —
ऐसे सिद्धराज को मेरा प्रणाम है।
७.
जिसके नाम का स्मरण करते ही भय सभी दिशाओं से भाग जाता है,
चिंता शीघ्र समाप्त हो जाती है,
और जीवन के सभी वैषम्य दूर हो जाते हैं —
ऐसे योगिराज को मेरा नमस्कार है।
८.
जो दुःस्वप्न, दुःख, दावानल (भीषण पीड़ा), ग्रहदोष का नाश करने वाला,
संसार रूपी रोग का सर्वोत्तम औषधि,
और मृत्यु पर भी विजय दिलाने वाला है —
ऐसे सौम्य दत्तात्रेय को मैं प्रणाम करता हूँ।
९.
जब शरीर रोगों से पीड़ित और निरर्थक हो जाता है,
तो भी भगवान दत्तात्रेय ही धन्वंतरि स्वरूप होकर नर्मदा जल जैसा दिव्य औषधि प्रदान करते हैं।
१०.
संसार की सभी औषधियाँ निष्फल हो सकती हैं,
परंतु दत्तात्रेय का नाम —
जन्म, मृत्यु और बुढ़ापे का हरण करने वाला अमृत है।
११.
जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करता है,
उसके सभी रोग और दुख दूर हो जाते हैं।
यह स्तोत्र विशेष रूप से संध्या के समय पढ़ना सर्वाधिक फलदायी है।
१२.
जो व्यक्ति इसे रात्रि में सोने से पहले २१ (त्रिसप्तक) बार पाठ करता है,
वह सभी रोग भय से मुक्त हो जाता है।
यह तीन बार सत्य है, इसमें कोई संदेह नहीं है।
सर्वसौख्यकर स्तोत्र के लाभ (Benefits of Sarvasaukhyakara Stotra)
🔹 इस स्तोत्र के पाठ मात्र से मृत्यु का भय दूर हो जाता है और दुखों का नाश होता है।
🔹 रोग, शोक, दरिद्रता और विपत्ति से पीड़ित व्यक्ति को शांति और सुख की प्राप्ति होती है।
🔹 यह स्तोत्र विशेष रूप से दत्तात्रेय भगवान की कृपा प्राप्त करने का साधन है।
🔹 शत्रु मित्रवत व्यवहार करने लगते हैं और मनुष्य को सुख, समृद्धि और सौभाग्य मिलता है।
🔹 मानसिक अशांति, भय, चिंता और दुःस्वप्न से मुक्ति मिलती है।
🔹 रोग और स्वास्थ्य संबंधी कष्टों से छुटकारा मिलता है।
🔹 संसारिक दुखों का नाश कर यह स्तोत्र मनुष्य को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
स्तोत्र पाठ की विधि (Vidhi of Chanting)
- प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- घर या मंदिर में पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- सामने भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर या मूर्ति रखें।
- दीपक, अगरबत्ती और पुष्प अर्पित करें।
- फिर ध्यानपूर्वक सर्वसौख्यकर स्तोत्र का पाठ करें।
- यदि संभव हो तो 108 बार “ॐ द्रां दत्तात्रेयाय नमः” का जप भी करें।
- अंत में भगवान से सुख, शांति और स्वास्थ्य की प्रार्थना करें।
स्तोत्र जप का समय (Best Time to Chant)
- सायंकाल (Evening Time): शास्त्रों में कहा गया है कि इस स्तोत्र का पाठ संध्या काल में विशेष फल देता है।
- रात्रि में सोने से पहले (Before Sleep): 27 बार या 3, 7, 11 बार जपने से दुःस्वप्न और भय दूर होता है।
- रोग निवारण हेतु (For Health Issues): सुबह और शाम दोनों समय इसका पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।
- विशेष नियम: यदि कोई रोगी व्यक्ति इसे 21 या 40 दिनों तक प्रतिदिन पढ़े तो निश्चित ही कष्ट दूर होते हैं।