“श्रीविष्णु कृतं गणेश स्तोत्र” एक प्राचीन, शक्तिशाली और श्रद्धापूर्वक गाया जाने वाला स्तोत्र है, जिसकी रचना स्वयं भगवान विष्णु ने गणेश जी की महिमा का गुणगान करने हेतु की थी। यह स्तोत्र “ब्रह्मवैवर्त पुराण” में वर्णित है और इसमें भगवान गणेश को ब्रह्मस्वरूप, सर्वव्यापक, सगुण-निर्गुण, सिद्धिदाता एवं धर्म का मूल आधार बताया गया है।
भगवान विष्णु स्वयं स्वीकार करते हैं कि ब्रह्मा, शिव, सरस्वती और यहाँ तक कि वेद भी गणपति की महिमा का संपूर्ण वर्णन करने में असमर्थ हैं। इस स्तोत्र में गणेश जी के ज्ञान, सिद्धि, धैर्य, धर्म, तथा भक्ति के मार्गदर्शक रूप का भावपूर्ण वर्णन किया गया है।
यह स्तोत्र पाठ करने से सभी प्रकार के विघ्नों का नाश होता है, शुभ कार्यों में सफलता प्राप्त होती है और जीवन में स्थिरता, लक्ष्मी का वास एवं मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है। इसके अंत में यह भी बताया गया है कि इस स्तोत्र का नित्य पाठ करने वाला मनुष्य यज्ञ, तीर्थ और महान दानों के समान फल प्राप्त करता है।
यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है, बल्कि यात्रा, परीक्षा, नई शुरुआत या किसी भी कार्य के आरंभ में विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
श्रीविष्णु कृतं गणेश स्तोत्र
॥ श्रीविष्णुरुवाच ॥
ईश त्वां स्तोतुमिच्छामि ब्रह्मज्योतिः सनातनम्।
निरुपितुमशक्तोऽहमनुरुपमनीहकम्॥ 1 ॥
प्रवरं सर्वदेवानां सिद्धानां योगिनां गुरुम्।
सर्वस्वरुपं सर्वेशं ज्ञानराशिस्वरुपिणम्॥ 2 ॥
अव्यक्तमक्षरं नित्यं सत्यमात्मस्वरुपिणम्।
वायुतुल्यातिनिर्लिप्तं चाक्षतं सर्वसाक्षिणम्॥ 3 ॥
संसारार्णवपारे च मायापोते सुदुर्लभे।
कर्णधारस्वरुपं च भक्तानुग्रहकारकम्॥ 4 ॥
वरं वरेण्यं वरदं वरदानामपीश्वरम्।
सिद्धं सिद्धिस्वरुपं च सिद्धिदं सिद्धिसाधनम्॥ 5 ॥
ध्यानातिरिक्तं ध्येयं च ध्यानासाध्यं च धार्मिकम्।
धर्मस्वरुपं धर्मज्ञं धर्माधर्मफलप्रदम्॥ 6 ॥
बीजं संसारवृक्षाणामङ्कुरं च तदाश्रयम्।
स्त्रीपुत्रपुंसकानां च रूपमेतदतीन्द्रियम्॥ 7 ॥
सर्वाद्यमग्रपूज्यं च सर्वपूज्यं गुणार्णवम्।
स्वेच्छया सगुणं ब्रह्म निर्गुणं चापि स्वेच्छया॥ 8 ॥
स्वयं प्रकृतिरुपं च प्राकृतं प्रकृतेः परम्।
त्वां स्तोतुमक्षमोऽनन्तः सहस्त्रवदनेन च॥ 9 ॥
न क्षमः पञ्चवक्त्रश्च न क्षमश्चतुराननः।
सरस्वती न शक्ता च न शक्तोऽहं तव स्तुतौ।
न शक्ताश्च चतुर्वेदाः के वा ते वेदवादिनः॥ 10 ॥
इत्येवं स्तवनं कृत्वा सुरेशं सुरसंसदि।
सुरेशश्च सुरैः सार्द्धं विरराम रमापतिः॥ 11 ॥
इदं विष्णुकृतं स्तोत्रं गणेशस्य च यः पठेत्।
सायं प्रातश्च मध्याह्ने भक्तियुक्तः समाहितः॥ 12 ॥
तद्विघ्ननिघ्नं कुरुते विघ्नेशः सततं मुने।
वर्धते सर्वकल्याणं कल्याणजनकः सदा॥ 13 ॥
यात्राकाले पठित्वा तु यो याति भक्तिपूर्वकम्।
तस्य सर्वाभीष्टसिद्धिर्भवत्येव न संशयः॥ 14 ॥
तेन दृष्टं च दुःस्वप्नं सुस्वप्नमुपजायते।
कदापि न भवेत्तस्य ग्रहपीडा च दारुणा॥ 15 ॥
भवेद् विनाशः शत्रूणां बन्धूनां च विवर्धनम्।
शाश्वद्विघ्नविनाशश्च शाश्वत् सम्पद्विवर्धनम्॥ 16 ॥
स्थिरा भवेद् गृहे लक्ष्मीः पुत्रपौत्रविवर्धिनी।
सर्वैश्वर्यमिह प्राप्य ह्यन्ते विष्णुपदं लभेत्॥ 17 ॥
फलं चापि च तीर्थानां यज्ञानां यद् भवेद् ध्रुवम्।
महतां सर्वदानानां श्रीगणेशप्रसादतः॥ 18 ॥
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते श्रीविष्णुकृतं गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
श्रीविष्णु कृतं गणेश स्तोत्र – हिंदी अनुवाद (Shri Vishnu Kritam Ganesh Stotra – Hindi translation)
॥ श्रीविष्णुरुवाच ॥
हे ईश्वर! मैं तुम्हारी स्तुति करना चाहता हूँ, जो ब्रह्मज्योति और सनातन स्वरूप हो। परंतु मैं तुम्हारे अनुरूप, इच्छा रहित रूप का वर्णन करने में असमर्थ हूँ। (1)
तुम समस्त देवताओं, सिद्धों और योगियों के गुरु हो। तुम ही समस्त स्वरूपों के स्वामी और ज्ञान के स्रोत हो। (2)
जो अव्यक्त, अक्षर, नित्य और सत्य आत्मस्वरूप है; जो वायु के समान निर्लिप्त और सर्व साक्षी है। (3)
इस संसार रूपी समुद्र को पार करने में जो दुर्लभ माया-पोत है, उसमें तुम ही कर्णधार के रूप में भक्तों पर कृपा करते हो। (4)
तुम उत्तम, वरेण्य, वर देने वाले और वरों के भी स्वामी हो। तुम सिद्ध रूप, सिद्धि देने वाले और सिद्धि का साधन हो। (5)
जो ध्यान से परे, फिर भी ध्यान में ध्येय हैं; जो धर्मस्वरूप, धर्म को जानने वाले और धर्म-अधर्म का फल देने वाले हैं। (6)
जो संसार रूपी वृक्ष का बीज, अंकुर और आधार हैं, और स्त्री, पुरुष तथा संतान के लिए उनका रूप इंद्रियों से परे है। (7)
जो सर्वप्रथम पूजनीय, गुणों के सागर और इच्छानुसार सगुण-निर्गुण ब्रह्म स्वरूप हैं। (8)
जो स्वयं प्रकृति के रूप में हैं, प्रकृति से परे हैं और जिनकी स्तुति अनंत मुखों से भी नहीं की जा सकती। (9)
न शिव, न ब्रह्मा, न सरस्वती और न ही वेद तुम्हारी पूर्ण स्तुति करने में सक्षम हैं, तो मैं कैसे कर सकूँ? (10)
इस प्रकार विष्णु जी ने देवताओं की सभा में गणेश जी की स्तुति की, और फिर लक्ष्मीपति शांत हो गए। (11)
जो कोई इस स्तोत्र का पाठ श्रद्धा से सुबह, दोपहर और संध्या करता है, उसे विघ्नेश्वर की कृपा प्राप्त होती है। (12)
हे मुनि! विघ्नेश भगवान उसके समस्त विघ्नों का नाश करते हैं और कल्याण में वृद्धि करते हैं। (13)
जो यात्री इस स्तोत्र को यात्रा के समय भक्तिपूर्वक पढ़ता है, उसकी सारी इच्छाएं निश्चित रूप से पूर्ण होती हैं। (14)
जो बुरे स्वप्न देखता है, उसे शुभ स्वप्न आने लगते हैं और ग्रहों की पीड़ा भी समाप्त हो जाती है। (15)
शत्रुओं का नाश होता है, बंधुओं की वृद्धि होती है; विघ्नों का नाश और धन-संपत्ति में निरंतर वृद्धि होती है। (16)
उसके घर में लक्ष्मी स्थायी रूप से निवास करती हैं, पुत्र-पौत्रों की वृद्धि होती है और अंत में विष्णुपद की प्राप्ति होती है। (17)
जैसा फल तीर्थ, यज्ञ और महान दानों से मिलता है, वैसा ही श्रीगणेश की कृपा से इस स्तोत्र का पाठ करने से प्राप्त होता है। (18)
॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते श्रीविष्णुकृतं गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
श्रीविष्णु कृतं गणेश स्तोत्र के लाभ (Benefits)
- सभी विघ्नों का नाश – यह स्तोत्र विघ्नहर्ता गणेश जी की विशेष कृपा दिलाता है। जीवन के सभी कार्य बिना रुकावट के संपन्न होते हैं।
- यात्रा में सफलता और सुरक्षा – यात्रा के दौरान पाठ करने से यात्रा सफल, सुरक्षित और शुभफलदायी होती है।
- शुभ कार्यों में सफलता – विवाह, परीक्षा, नौकरी, व्यवसाय आदि के आरंभ में इसका पाठ करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।
- दु:स्वप्न और ग्रह दोष का नाश – इसका नियमित पाठ करने से अशुभ स्वप्न समाप्त होते हैं और ग्रह दोष दूर होता है।
- धन-वैभव और समृद्धि की प्राप्ति – घर में स्थायी लक्ष्मी का वास होता है और धन, संतान, सुख-संपत्ति में वृद्धि होती है।
- शत्रुनाश और बंधु-वृद्धि – शत्रुओं का नाश होता है और परिवार में प्रेम, सहयोग और वृद्धि होती है।
- मोक्ष की प्राप्ति – अंत में विष्णुपद (मोक्ष) की प्राप्ति संभव होती है।
- तीर्थ, यज्ञ और दान के बराबर फल – इसका पाठ तीर्थ यात्रा, यज्ञ और हजारों दान करने के तुल्य फल प्रदान करता है।
पाठ विधि (Vidhi)
- स्थान: घर के पूजन स्थल, मंदिर या शांत वातावरण में बैठें।
- शुद्धि: स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- दीप और धूप जलाएं, गणेश जी की मूर्ति/चित्र के सामने।
- संकल्प लें – “मैं श्रीविष्णु कृतं गणेश स्तोत्र का पाठ समस्त विघ्नों के नाश और मंगल कार्यों की सिद्धि हेतु कर रहा/रही हूँ।”
- श्रीगणेश का ध्यान करें – “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र से आरंभ करें।
- फिर पूरे स्तोत्र का श्रद्धा और एकाग्रता से पाठ करें।
जप या पाठ का समय (Jaap Time)
- प्रातःकाल (सुबह) – सर्वश्रेष्ठ समय माना जाता है।
- मध्याह्न (दोपहर) – कार्यों की सफलता हेतु।
- सायंकाल (शाम) – दिनभर की शुद्धि और शांति हेतु।
- विशेष रूप से यात्रा पर जाने से पहले, इसका पाठ अवश्य करें।
- नित्य या हर बुधवार/चतुर्थी को नियमित पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होता है।