“श्री राधा कृष्ण स्तोत्र” एक अत्यंत सुंदर एवं भक्तिपूर्ण स्तोत्र है, जो भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराधारानी के दिव्य प्रेम, स्वरूप और महिमा का स्तवन करता है। यह स्तोत्र राधा-कृष्ण की एकात्मता, परस्पर प्रेम और भगवत्ता को समर्पित है, जिसमें श्रीकृष्ण को राधा के अधार (आधार) और राधा को उनके हृदय की अधिष्ठात्री के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
इस स्तोत्र में श्रीकृष्ण को नवघनश्याम (घनघोर मेघ के समान श्याम वर्ण), पीताम्बरधारी, परम सुंदर, निर्मल एवं प्रकृति से परे परमात्मा बताया गया है, वहीं श्रीराधा को उनके हृदय की रानी, उनकी आज्ञाओं की पूर्तिकर्त्री और शुद्ध प्रेम की प्रतिमूर्ति के रूप में चित्रित किया गया है।
श्लोकों के माध्यम से यह भी वर्णन किया गया है कि योगीजन, सिद्ध पुरुष, तथा ज्ञानी महापुरुष भी श्रीराधा-कृष्ण का ध्यान करते हैं, और यह जो भी स्तोत्र को श्रद्धापूर्वक पढ़ता है, वह इस जीवन में ही मुक्ति और परमगति को प्राप्त करता है।
इस स्तोत्र की रचना गन्धर्वों द्वारा मानी जाती है, और इसका नित्य पाठ करने वाला भक्त हरिभक्ति, दास्य भाव, गोलोक धाम और भगवान के पार्षद पद की प्राप्ति करता है — यह स्तोत्र परम प्रेम, भक्ति और शरणागति का अद्भुत उदाहरण है।
श्री राधा कृष्ण स्तोत्र
Shri Radhakrishna Stotram
वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम् ।
सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम् ॥ १ ॥
राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं वल्लवीसुतम् ।
राधासेवितपादाब्जं राधावक्षस्थलस्थितम् ॥ २ ॥
राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम् ।
राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम् ॥ ३ ॥
राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम् ।
राधासहचरं शश्वत् राधाज्ञापरिपालकम् ॥ ४ ॥
ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम् ।
तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम् ॥ ५ ॥
निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम् ।
नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम् ॥ ६ ॥
यः सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम् ।
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ॥ ७ ॥
बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम् ।
वेदवेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम् ॥ ८ ॥
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ।
गन्धर्वेण कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।
इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम् ॥ ९ ॥
हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोकं च निरामयम् ।
पार्षदप्रवरत्वं च लभते नात्र संशयः ॥ १० ॥
॥ इति श्री राधा कृष्ण स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
श्री राधा कृष्ण स्तोत्र (हिंदी अनुवाद सहित)
मैं नवमेघ के समान श्यामवर्ण श्रीकृष्ण को वंदन करता हूँ, जो पीताम्बरधारी, आनंदमयी, सुंदर, शुद्ध स्वरूप वाले हैं, और प्रकृति से परे परमेश्वर हैं। ॥ १ ॥
जो राधा के स्वामी हैं, राधिका के प्राणप्रिय हैं, गोपियों के नायक हैं, जिनके चरण कमलों की राधा सेवा करती हैं, और जो राधा के वक्षस्थल में निवास करते हैं — उन्हें प्रणाम करता हूँ। ॥ २ ॥
जो राधा के अनुगामी हैं, राधा को प्रिय हैं, राधा ने जिनका चित्त चुरा लिया है; जो राधा के अधार (आधार), संसार के अधार, और सम्पूर्ण जगत के अधार हैं — उन्हें नमस्कार करता हूँ। ॥ ३ ॥
जो राधा के हृदयकमल में शुभ रूप में सदा निवास करते हैं, राधा के सहचर हैं, और राधा की आज्ञा का पालन करने वाले हैं — ऐसे प्रभु को मैं नमन करता हूँ। ॥ ४ ॥
जिनका ध्यान योगीजन, सिद्धजन और सिद्धेश्वरगण भी करते हैं, उन शुद्ध, सनातन भगवान का हमें सदा ध्यान करना चाहिए। ॥ ५ ॥
जो निर्लिप्त (कर्मों से परे), निःस्पृह, परमात्मा और ईश्वर हैं; जो नित्य, सत्य और परम तत्त्वस्वरूप भगवान हैं — उन्हें मैं प्रणाम करता हूँ। ॥ ६ ॥
जो सृष्टि के आदि हैं, समस्त बीजस्वरूप एवं सबसे श्रेष्ठ परम तत्त्व हैं — योगीजन उन सनातन भगवान की शरण में जाते हैं। ॥ ७ ॥
जो सभी अवतारों के मूल बीज हैं, सभी कारणों के कारण हैं, वेदों द्वारा जानने योग्य हैं, वेदस्वरूप हैं और वेदों के भी कारण हैं — ऐसे भगवान को मैं नमन करता हूँ। ॥ ८ ॥
योगीजन उन सनातन भगवान की शरण ग्रहण करते हैं। जो कोई यह स्तोत्र, जिसे गंधर्व ने रचा है, पवित्र होकर श्रद्धा से पढ़ता है, वह इसी जीवन में मुक्त हो जाता है और परम गति को प्राप्त करता है। ॥ ९ ॥
उसे श्रीहरि की भक्ति, श्रीहरि की सेवा, गोलोक जैसे शुद्ध धाम की प्राप्ति तथा भगवत पार्षदों में श्रेष्ठता प्राप्त होती है — इसमें कोई संदेह नहीं। ॥ १० ॥
॥ इस प्रकार श्री राधा कृष्ण स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥
लाभ (Benefits):
1. जीवन्मुक्ति और परमगति की प्राप्ति:
जो भक्त श्रद्धा और पवित्रता के साथ इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह इस जीवन में ही मोक्ष (जीवन्मुक्ति) को प्राप्त करता है और अंततः परमगति (गोलोकधाम) को प्राप्त होता है।
2. हरिभक्ति एवं दास्य भाव की प्राप्ति:
यह स्तोत्र श्रीहरि की प्रेममयी भक्ति, सेवा भाव (दास्य) और भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण को जाग्रत करता है।
3. गोलोक धाम और पार्षद पद की प्राप्ति:
इस स्तोत्र का प्रभाव इतना महान है कि यह साधक को भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य धाम गोलोक और उनके पार्षदों में स्थान प्रदान करता है।
4. मन, बुद्धि और चित्त की शुद्धि:
पाठ से साधक का मन निर्मल होता है, मोह-माया समाप्त होती है और भगवतचिंतन में स्थिरता आती है।
5. योग, ध्यान और ज्ञान की वृध्दि:
यह स्तोत्र योगियों, सिद्धों और ज्ञानियों के भी ध्यान का विषय है — इसके पाठ से आध्यात्मिक उन्नति अत्यंत तीव्र होती है।
पाठ विधि (Vidhi):
1. शुद्धता एवं संकल्प:
प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें, शांत वातावरण में बैठें, और भगवान राधा-कृष्ण का ध्यान करके पाठ का संकल्प लें।
2. आसन व दिशा:
कुश या ऊन के आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
3. पूजन सामग्री (वैकल्पिक):
दीपक, अगरबत्ती, पुष्प, जल का पात्र तथा राधा-कृष्ण का चित्र या विग्रह रखें।
4. पाठ क्रम:
- दीप प्रज्वलन करें
- श्री राधा-कृष्ण का ध्यान करें
- पूरे मन से स्तोत्र का पाठ करें
- पाठ के अंत में प्रणाम करें और मंगल कामना करें
5. पाठ की संख्या:
नित्य कम से कम 1 बार पढ़ें। विशेष तिथियों पर 11 या 21 बार पाठ करने से विशेष फल मिलता है।
जाप का श्रेष्ठ समय (Best Time to Chant):
समय | विशेषता |
---|---|
प्रातः ब्रह्ममुहूर्त (4 से 6 बजे) | मन शुद्ध और एकाग्र होता है, यह समय अत्यंत शुभ माना गया है। |
संध्याकाल (5 से 7 बजे) | दीप-प्रज्वलन के साथ भक्तिपूर्ण वातावरण में पाठ अत्यधिक फलदायी होता है। |
विशेष पर्व / तिथियाँ | राधाष्टमी, जन्माष्टमी, एकादशी, पूर्णिमा आदि पर पाठ करना अत्यंत शुभ होता है। |