“श्री कृष्णाष्टकम्” एक भक्ति-प्रधान स्तोत्र है जो भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं, स्वरूप, सौंदर्य और महिमा का वर्णन करता है। “अष्टकम्” का अर्थ है “आठ पदों वाला” — इस स्तोत्र में श्रीकृष्ण के गुणों की आठ श्लोकों के माध्यम से स्तुति की गई है। यह स्तोत्र श्रद्धालु भक्तों द्वारा विशेष रूप से प्रातःकाल में पाठ करने के लिए अनुशंसित है।
इसका रचना काल अति प्राचीन माना जाता है और इसे कई संतों द्वारा अपनाया गया है। यह श्रीकृष्ण को “जगद्गुरु”, अर्थात सम्पूर्ण संसार के गुरु के रूप में स्वीकार करता है।
लाभ (Benefits)
- पापों का नाश – जो व्यक्ति इसका नित्य पाठ करता है, उसके करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
- मानसिक शांति और भक्ति – श्रीकृष्ण के रूप और लीलाओं का चिंतन करने से मन में शांति और भक्ति की भावना उत्पन्न होती है।
- रोग, भय और संकट से मुक्ति – यह स्तोत्र भय, रोग, क्लेश, और मानसिक तनाव से मुक्ति देने में सहायक है।
- भक्ति और वैराग्य में वृद्धि – यह श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और आत्मसमर्पण की भावना को प्रबल करता है।
- बाल-रूप से लेकर चक्रधारी रूप तक दर्शन – इसमें श्रीकृष्ण के विविध दिव्य रूपों का वर्णन है, जिससे एक संपूर्ण दर्शन होता है।
श्री कृष्णाष्टकम् – वसुदेव सुतं देवंकंस (Shri Krishnashtakam):
॥ अथ श्री कृष्णाष्टकम् ॥
वसुदेव सुतं देवंकंस चाणूर मर्दनम् ।
देवकी परमानन्दंकृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥१॥
अतसी पुष्प सङ्काशम्हार नूपुर शोभितम् ।
रत्न कङ्कण केयूरंकृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥२॥
कुटिलालक संयुक्तंपूर्णचन्द्र निभाननम् ।
विलसत् कुण्डलधरंकृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥३॥
मन्दार गन्ध संयुक्तंचारुहासं चतुर्भुजम् ।
बर्हि पिञ्छाव चूडाङ्गंकृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥४॥
उत्फुल्ल पद्मपत्राक्षंनील जीमूत सन्निभम् ।
यादवानां शिरोरत्नंकृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥५॥
रुक्मिणी केलि संयुक्तंपीताम्बर सुशोभितम् ।
अवाप्त तुलसी गन्धंकृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥६॥
गोपिकानां कुचद्वन्द्वकुङ्कुमाङ्कित वक्षसम् ।
श्रीनिकेतं महेष्वासंकृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥७॥
श्रीवत्साङ्कं महोरस्कंवनमाला विराजितम् ।
शङ्खचक्रधरं देवंकृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥८॥
कृष्णाष्टक मिदं पुण्यंप्रातरुत्थाय यः पठेत् ।
कोटिजन्म कृतं पापंस्मरणेन विनश्यति ॥
॥ इति श्री कृष्णाष्टकम् सम्पूर्णम् ॥
श्री कृष्णाष्टकम् का भावार्थ सहित हिंदी अनुवाद — सेपरेटर लाइन के बिना, सुंदर और सरल भाषा में:
॥ श्री कृष्णाष्टकम् ॥
(भगवान श्रीकृष्ण के आठ श्लोक)
1.
वसुदेव सुतं देवं, कंस चाणूर मर्दनम्।
देवकी परमानन्दं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
जो वसुदेव के पुत्र हैं, कंस और चाणूर का वध करने वाले हैं,
जो देवकी को परम आनंद देने वाले हैं — ऐसे जगत के गुरु श्रीकृष्ण को मैं वंदन करता हूँ।
2.
अतसी पुष्प संकाशं, हार नूपुर शोभितम्।
रत्न कंकण केयूरं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
जो अतसी फूल के समान श्यामवर्ण हैं,
गले में हार, पैरों में नूपुर,
हाथों में रत्नजटित कंगन और बाजूबंद धारण किए हैं —
ऐसे श्रीकृष्ण को मैं वंदन करता हूँ।
3.
कुटिलालक संयुक्तं, पूर्णचन्द्र निभाननम्।
विलसत् कुण्डलधरं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
जिनके बाल घुंघराले हैं,
चेहरा पूर्णचंद्र के समान है,
और कानों में चमकते हुए कुण्डल हैं —
ऐसे श्रीकृष्ण को मैं वंदन करता हूँ।
4.
मन्दार गन्ध संयुक्तं, चारुहासं चतुर्भुजम्।
बर्हि पिञ्छाव चूडाङ्गं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
जो मंदार फूल की सुगंध से सुगंधित हैं,
मनमोहक मुस्कान वाले हैं,
चार भुजाओं वाले हैं और सिर पर मोरपंख धारण किए हुए हैं —
ऐसे श्रीकृष्ण को मैं वंदन करता हूँ।
5.
उत्फुल्ल पद्म पत्राक्षं, नील जीमूत सन्निभम्।
यादवानां शिरोरत्नं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
जिनकी आँखें खिले हुए कमल के पत्रों के समान हैं,
जो मेघों के समान नीलवर्णी हैं,
और जो यदुवंश के मुकुटमणि हैं —
ऐसे श्रीकृष्ण को मैं वंदन करता हूँ।
6.
रुक्मिणी केली संयुक्तं, पीताम्बर सुशोभितम्।
अवाप्त तुलसी गन्धं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
जो रुक्मिणी जी के साथ प्रेमपूर्ण लीला में लीन हैं,
पीतांबर पहनकर शोभा पा रहे हैं,
और जिनसे तुलसी की सुगंध आती है —
ऐसे श्रीकृष्ण को मैं वंदन करता हूँ।
7.
गोपिकानां कुचद्वन्द्व कुङ्कुमाङ्कित वक्षसम्।
श्रीनिकेतं महेष्वासं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
जिनका वक्षस्थल गोपियों के कुंकुम से सुशोभित है,
जो लक्ष्मी के निवास स्थान हैं,
और महान धनुषधारी हैं —
ऐसे श्रीकृष्ण को मैं वंदन करता हूँ।
8.
श्रीवत्साङ्कं महोरस्कं, वनमाला विराजितम्।
शङ्खचक्रधरं देवं, कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥
जिनके वक्ष पर श्रीवत्स का चिन्ह है,
जो विशाल छाती वाले हैं,
जिनके गले में वनमाला है,
और जो शंख व चक्र धारण करते हैं —
ऐसे श्रीकृष्ण को मैं वंदन करता हूँ।
फलश्रुति (पाठ का फल)
कृष्णाष्टकमिदं पुण्यं, प्रातरुत्थाय यः पठेत्।
कोटिजन्म कृतं पापं, स्मरणेन विनश्यति॥
जो मनुष्य इस पवित्र कृष्णाष्टक का
प्रातःकाल उठकर पाठ करता है,
उसके करोड़ों जन्मों के पाप
केवल स्मरण करने से ही नष्ट हो जाते हैं।
॥ इति श्री कृष्णाष्टकम् सम्पूर्णम् ॥
॥ Shri Krishna Ashtakam ॥
(An Eight-Verse Hymn to Lord Krishna)
1.
Vasudeva sutam devam, Kansa Chaanura mardanam,
Devaki paramanandam, Krishnam vande jagadgurum.
I bow to Lord Krishna, the teacher of the world,
The son of Vasudeva, the divine one,
The slayer of Kansa and Chanura,
And the source of supreme joy to Devaki.
2.
Atasi pushpa sankasham, Hara noopura shobhitam,
Ratna kankana keyuram, Krishnam vande jagadgurum.
I bow to Krishna, the teacher of the world,
Whose complexion is like the Atasi flower (bluish),
Adorned with garlands and anklets,
Wearing gem-studded bangles and armlets.
3.
Kutilaalaka samyuktam, Purna chandra nibhananam,
Vilasat kundala dharam, Krishnam vande jagadgurum.
I bow to Krishna, the teacher of the world,
With curly locks adorning his head,
A face shining like the full moon,
And earrings that swing with charm.
4.
Mandara gandha samyuktam, Charu haasam chaturbhujam,
Barhi pinchhavatamsakam, Krishnam vande jagadgurum.
I bow to Krishna, the teacher of the world,
Who is fragrant with Mandara flowers,
Smiling sweetly with four arms,
And crowned with a peacock feather.
5.
Utphulla padma patraaksham, Neela jeemoota sannibham,
Yadavaanaam shiroratnam, Krishnam vande jagadgurum.
I bow to Krishna, the teacher of the world,
With lotus-petal-like blossomed eyes,
Dark like a rain-filled cloud,
And the crest jewel of the Yadava clan.
6.
Rukmini keli samyuktam, Peetaambara shobhitam,
Avaapta tulasi gandham, Krishnam vande jagadgurum.
I bow to Krishna, the teacher of the world,
Engaged in pastimes with Rukmini,
Gracefully clothed in yellow garments,
Fragrant with the scent of Tulsi (holy basil).
7.
Gopikaanaam kucha-dvandva-kunkumaankita vakshasam,
Shree niketam maheshaasam, Krishnam vande jagadgurum.
I bow to Krishna, the teacher of the world,
Whose chest is marked with kumkum from the gopis’ bosoms,
The abode of Goddess Lakshmi,
And the wielder of great weapons.
8.
Shrivatsaankam mahoraskam, Vanamaala viraajitam,
Shankha chakra dharam devam, Krishnam vande jagadgurum.
I bow to Krishna, the teacher of the world,
With the Srivatsa mark on His broad chest,
Adorned with a forest garland,
Holding the conch and discus (shankha and chakra).
Phalashruti (Benefit of Reciting)
Krishnashtakam idam punyam, pratarutthaaya yah pathhet,
Koti janma kritam paapam, smaranena vinashyati.
Whoever recites this sacred Krishna Ashtakam
Early in the morning with devotion,
All the sins of millions of births
Are destroyed just by remembering Him.
॥ Thus ends the sacred Shri Krishna Ashtakam ॥