“श्रीलक्ष्मी द्वादश नाम स्तोत्रम्” एक दिव्य स्तोत्र है जिसमें माँ लक्ष्मी के बारह पावन नामों का वर्णन किया गया है। ये नाम न केवल देवी लक्ष्मी के स्वरूप और गुणों को प्रकट करते हैं, बल्कि साधक के जीवन में धन, ऐश्वर्य, स्वास्थ्य और शुभता की वर्षा भी करते हैं।
यह स्तोत्र वैष्णव परंपरा में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और इसका नियमित जप करने से जीवन में स्थिर समृद्धि और सौभाग्य का संचार होता है। इसमें लक्ष्मी जी को श्रीदेवी, कमला, विष्णुपत्नी, वैष्णवी, हरिवल्लभा, श्रीहरिप्रिया आदि नामों से पुकारा गया है। यह दर्शाता है कि लक्ष्मी जी केवल धन की देवी नहीं, अपितु सम्पूर्ण जगत की पालनकर्ता हैं।
मान्यता है कि जो भक्त त्रिकाल (प्रातः, मध्यान्ह और सायं) इस स्तोत्र का श्रद्धा से पाठ करता है, उसे दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य, ऐश्वर्य और पुण्य की प्राप्ति होती है। दो माह तक पाठ करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं, छह माह तक पाठ करने से राज्य तुल्य वैभव प्राप्त होता है, और वर्षभर पाठ करने से लक्ष्मी जी की कृपा निरंतर बनी रहती है।
संक्षेप में, यह स्तोत्र साधक के जीवन को आध्यात्मिक उन्नति और भौतिक समृद्धि दोनों से परिपूर्ण करता है। यह स्तुति भक्त को लक्ष्मी माँ से जुड़ने का एक सशक्त माध्यम प्रदान करती है।
श्रीलक्ष्मी द्वादश नाम स्तोत्रम्
Srilakshmi Dwadasa Nama Stotram
श्रीदेवी प्रथमं नाम द्वितीयं अमृत्तोद्भवा
तृत्तीयं कमला प्रोक्ता चतुर्थं लोकसुन्दरी
पञ्चमं विष्णुपत्नी च षष्ठं स्यात् वैष्णवी
तथा सप्ततं तु वरारोहा अष्टमं हरिवल्लभा
नवमं शार्गिंणी प्रोक्ता दशमं देवदेविका
एकादशं तु लक्ष्मीः स्यात् द्वादशं श्रीहरिप्रिया ।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः,
आयुरारोग्यमैश्वर्यं तस्य पुण्यफलप्रदम् ।।
द्विमासं सर्वकार्याणि षण्मासाद्राज्यमेव च,
संवत्सरं तु पूजायाः श्रीलक्ष्म्याः पूज्य एव च ।।
लक्ष्मीं क्षीरसमुद्रराजतनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीं,
दासीभूत समस्त देववनितां लोकैक दीपांकुराम् ।।
श्रीमन्मन्दकटाक्ष लब्ध विभव ब्रह्मेन्द्र गंगाधरां,
त्वां त्रैलोक्य कुटुंबिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम् ।।
।। इति श्रीलक्ष्मी द्वादश नाम स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ।।
श्रीलक्ष्मी द्वादश नाम स्तोत्रम् का हिंदी अनुवाद (Hindi translation of Sri Lakshmi Dwadash Naam Stotram)
श्रीदेवी प्रथमं नाम द्वितीयं अमृत्तोद्भवा।
तृत्तीयं कमला प्रोक्ता चतुर्थं लोकसुन्दरी।।
पहला नाम है — श्रीदेवी,
दूसरा — अमृत से उत्पन्न हुई,
तीसरा — कमला (कमल पर निवास करने वाली),
और चौथा — संपूर्ण लोकों की सुंदरी कहलाती हैं।
पञ्चमं विष्णुपत्नी च षष्ठं स्यात् वैष्णवी।
तथा सप्ततं तु वरारोहा अष्टमं हरिवल्लभा।।
पाँचवाँ नाम — भगवान विष्णु की पत्नी,
छठा — वैष्णवी (विष्णु से संबंधित),
सातवाँ — श्रेष्ठ रूप वाली,
आठवाँ — हरि (विष्णु) की प्रिय कहलाती हैं।
नवमं शार्गिंणी प्रोक्ता दशमं देवदेविका।
एकादशं तु लक्ष्मीः स्यात् द्वादशं श्रीहरिप्रिया।।
नवाँ नाम — शार्गिंणी (विष्णु के धनुष “शारंग” की धारिणी),
दसवाँ — देवताओं की देवी,
ग्यारहवाँ — लक्ष्मी,
और बारहवाँ नाम — श्रीहरि (विष्णु) की प्रिय है।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः।
आयुरारोग्यमैश्वर्यं तस्य पुण्यफलप्रदम्।।
जो मनुष्य इन बारह नामों का पाठ दिन में तीन बार करता है —
उसे दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और ऐश्वर्य प्राप्त होता है,
और वह पुण्य का फल प्राप्त करता है।
द्विमासं सर्वकार्याणि षण्मासाद्राज्यमेव च।
संवत्सरं तु पूजायाः श्रीलक्ष्म्याः पूज्य एव च।।
दो महीने तक इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं,
छह महीने तक पाठ करने से राज्य (संपूर्ण ऐश्वर्य) की प्राप्ति होती है,
और एक वर्ष तक श्रीलक्ष्मी की पूजा करने से लक्ष्मी सदा पूज्य बनी रहती हैं।
लक्ष्मीं क्षीरसमुद्रराजतनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीं।
दासीभूत समस्त देववनितां लोकैक दीपांकुराम्।।
मैं लक्ष्मी देवी की वंदना करता हूँ —
जो क्षीरसागर के राजा की कन्या हैं,
जो श्रीरंग धाम की अधिष्ठात्री हैं,
जिनके चरणों में समस्त देवांगनाएँ दासी के रूप में हैं,
और जो समस्त लोकों में प्रकाश प्रदान करने वाली दीपशिखा हैं।
श्रीमन्मन्दकटाक्ष लब्ध विभव ब्रह्मेन्द्र गंगाधरां।
त्वां त्रैलोक्य कुटुंबिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम्।।
हे देवी! तुम्हारी कृपा की दृष्टि मात्र से ब्रह्मा, इंद्र और शिव समृद्धि को प्राप्त करते हैं।
मैं उस पद्म (कमल) पर विराजमान लक्ष्मी को नमन करता हूँ,
जो तीनों लोकों की मातृरूपिणी और मुकुंद (भगवान विष्णु) की प्रिय हैं।
।। इस प्रकार श्रीलक्ष्मी द्वादश नाम स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ।।
लाभ (Benefits):
श्रीलक्ष्मी द्वादश नाम स्तोत्र के नियमित पाठ से साधक को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
- धन-समृद्धि की प्राप्ति:
माँ लक्ष्मी के इन बारह नामों का जप आर्थिक बाधाओं को दूर करता है और सुख-समृद्धि प्रदान करता है। - स्वास्थ्य और आयु में वृद्धि:
त्रिसंध्या (तीन समय) पाठ करने से उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त होती है। - सभी कार्यों में सफलता:
दो माह तक पाठ करने से रुके हुए कार्य बनने लगते हैं। - राज्य-वैभव की प्राप्ति:
छह माह तक जप करने से राजा के समान ऐश्वर्य और मान-सम्मान प्राप्त होता है। - लक्ष्मी की स्थायी कृपा:
एक वर्ष तक नियमित पाठ करने से लक्ष्मीजी सदा प्रसन्न रहती हैं और घर में कभी दरिद्रता नहीं आती।
विधि (पाठ की विधि):
- स्थान और समय:
शांत और स्वच्छ स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। सुबह के समय श्रेष्ठ माना गया है। - स्नान और शुद्धता:
स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मन और वातावरण की शुद्धता बनाए रखें। - दीप और पूजा सामग्री:
माँ लक्ष्मी के चित्र या मूर्ति के समक्ष दीपक (घी या तिल के तेल का), अगरबत्ती, कमल का फूल या गुलाब अर्पित करें। - आसन:
कंबल या कुस़ की बनी हुई चटाई पर बैठें। लाल या पीले रंग का आसन शुभ होता है। - संकल्प:
पाठ प्रारंभ करने से पहले मन में श्रद्धा पूर्वक संकल्प लें कि आप लक्ष्मी माता की कृपा हेतु यह पाठ कर रहे हैं। - पाठ विधि:
पूरे स्तोत्र का शुद्ध उच्चारण के साथ पाठ करें। चाहें तो इसे कमल गट्टे की माला से भी जप सकते हैं। - आरती और प्रार्थना:
पाठ के बाद लक्ष्मी आरती करें और परिवार व समस्त विश्व की समृद्धि की प्रार्थना करें।
जप का समय (Jaap Timing):
समय | लाभ |
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प्रातःकाल (सुबह 5-7 बजे) | दिनभर सुख, शांति और सफलता के लिए सर्वोत्तम समय। |
मध्याह्न (दोपहर 12 बजे के आसपास) | व्यापार/नौकरी में वृद्धि और कार्य सिद्धि हेतु उपयुक्त। |
सायं (शाम 6-8 बजे) | धन-संपत्ति और पारिवारिक समृद्धि के लिए विशेष फलदायी। |
त्रिसंध्या जप (सुबह, दोपहर, शाम तीनों समय) करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।