“वासुदेवकृतं कृष्ण स्तोत्र” एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसकी रचना स्वयं भगवान वसुदेव ने अपने पुत्र श्रीकृष्ण की दिव्य महिमा का स्तवन करते हुए की थी। यह स्तोत्र श्रीकृष्ण के निर्गुण और सगुण, दोनों रूपों का वर्णन करता है और उन्हें परम ब्रह्म, अनंत, अव्यक्त, अदृश्य, तथा प्रकृति से परे परमात्मा के रूप में प्रस्तुत करता है।
इस स्तोत्र में भगवान वसुदेव स्वीकार करते हैं कि स्वयं सरस्वती, ब्रह्मा, शिव, गणेश और यहां तक कि ऋषि-मुनि और योगीजन भी श्रीकृष्ण की पूर्ण स्तुति करने में असमर्थ हैं, क्योंकि वे सभी गुणों से परे, अखंड और अकल्पनीय हैं।
शास्त्रों में वर्णित है कि जो साधक इस स्तोत्र का तीनों संध्याओं (प्रातः, मध्याह्न और संध्या) में श्रद्धा के साथ पाठ करता है, उसे न केवल भगवत भक्ति, बल्कि दास्य भाव, संकटों से मुक्ति, और श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है।
यह स्तोत्र ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का अद्भुत संगम है और हर भक्त के लिए श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पण भाव से ओतप्रोत एक दिव्य साधना का मार्ग है।
वासुदेवकृत कृष्ण स्तोत्र (Vasudevkrit Krishna Stotra)
॥ श्री गणेशाय नमः ॥
वसुदेव उवाच –
त्वामतीन्द्रियमव्यक्तमक्षरं निर्गुणं विभुम्
ध्यानासाध्यं च सर्वेषां परमात्मानमीश्वरम् ॥ १ ॥
स्वेच्छामयं सर्वरूपं स्वेच्छारूपधरं परम्
निर्लिप्तं परमं ब्रह्म बीजरूपं सनातनम् ॥ २ ॥
स्थूलात्स्थूलतरं प्राप्तमतिसूक्ष्ममदर्शनम्
स्थितं सर्वशरीरेषु साक्षिरूपमदृश्यकम् ॥ ३ ॥
शरीरवन्तं सगुणमशरीरं गुणोत्करं
प्रकृतिं प्रकृतीशं च प्राकृतं प्रकृतेः परम् ॥ ४ ॥
सर्वेशं सर्वरूपं च सर्वान्तकरमव्ययम्
सर्वाधारं निराधारं निर्व्यूहं स्तौमि किं विभुम् ॥ ५ ॥
अनन्तः स्तवनेऽशक्तोऽशक्ता देवी सरस्वती
यं वा स्तोतुमशक्तश्च पञ्चवक्त्रः षडाननः ॥ ६ ॥
चतुर्मुखो वेदकर्ता यं स्तोतुमक्षमः सदा
गणेशो न समर्थश्च योगीन्द्राणां गुरोर्गुरुः ॥ ७ ॥
ऋषयो देवताश्चैव मुनीन्द्रमनुमानवाः
स्वप्ने तेषामदृश्यं च त्वामेवं किं स्तुवन्ति ते ॥ ८ ॥
श्रुतयः स्तवनेऽशक्ताः किं स्तुवन्ति विपश्चितः
विहायैवं शरीरं च बालो भवितुमर्हसि ॥ ९ ॥
वसुदेवकृतं स्तोत्रं त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः
भक्तिं दास्यमवाप्नोति श्रीकृष्णचरणाम्बुजे ॥ १० ॥
विशिष्टं पुत्रं लभते हरिदासं गुणान्वितम्
सङ्कटं निस्तरेत्तूर्णं शत्रुभीतेः प्रमुच्यते ॥ ११ ॥
॥ इति श्री वासुदेवकृतं कृष्ण स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
श्री वासुदेवकृतं कृष्ण स्तोत्र — हिंदी अनुवाद सहित (Shri Vasudevakritam Krishna Stotra – with Hindi translation)
॥ श्री गणेशाय नमः ॥
वसुदेव बोले —
1.
हे प्रभो! आप इंद्रियों की पहुँच से परे, अव्यक्त, अक्षर (अविनाशी), निर्गुण, सर्वव्यापक, ध्यान से प्राप्त होने योग्य, समस्त प्राणियों के परमात्मा और ईश्वर हैं।
2.
आप अपनी ही इच्छा से सभी रूप धारण करने वाले हैं, स्वेच्छारूप में स्थित परम तत्व हैं, सभी सांसारिक गुणों से रहित, परब्रह्म हैं, बीजस्वरूप (सृष्टि के मूल कारण) और सनातन (शाश्वत) हैं।
3.
आप स्थूल से भी स्थूलतर हैं, फिर भी अत्यंत सूक्ष्म हैं, देखने में नहीं आते। आप सभी शरीरों में साक्षी रूप से स्थित हैं, लेकिन अदृश्य हैं।
4.
आप शरीरयुक्त भी हैं, गुणों से युक्त हैं, और फिर भी शरीररहित तथा गुणों से परे हैं। आप प्रकृति हैं, प्रकृति के स्वामी भी हैं, और प्रकृति से परे भी हैं।
5.
आप सर्वेश्वर, सभी रूपों के धारक, सबका अन्त करने वाले, अविनाशी, समस्त आधारों के आधार हैं, स्वयं बिना आधार के हैं — ऐसे आप विभु (सर्वव्यापक) की मैं स्तुति कैसे करूं?
6.
आपकी स्तुति करने में देवी सरस्वती भी असमर्थ हैं, पाँच मुखों वाले शिव और छह मुखों वाले कार्तिकेय भी आपकी स्तुति नहीं कर पाते।
7.
चार मुखों वाले ब्रह्मा जो वेदों के कर्ता हैं, वे भी आपकी स्तुति करने में अक्षम हैं। भगवान गणेश भी समर्थ नहीं हैं, और योगियों के गुरु का भी आप गुरु हैं।
8.
ऋषि, देवता, महर्षि और मनुष्य — सभी आपके स्वप्न में भी दर्शन नहीं कर सकते, तो फिर वे आपकी स्तुति कैसे कर सकते हैं?
9.
श्रुतियाँ (वेद) भी आपकी स्तुति में असमर्थ हैं, तो ज्ञानीजन किस प्रकार आपकी पूर्ण स्तुति कर सकते हैं? इसलिए हे प्रभो, आप यह मान लीजिए कि अब आप एक बालक रूप में प्रकट हो जाएं।
10.
जो पुरुष इस वसुदेवकृत स्तोत्र का तीनों संध्याओं में पाठ करता है, उसे भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में भक्ति और सेवाभाव सहज प्राप्त होता है।
11.
ऐसा साधक एक श्रेष्ठ, गुणवान पुत्र प्राप्त करता है, संकटों से तुरंत मुक्त हो जाता है, और शत्रु भय से सदा के लिए छुटकारा पा जाता है।
॥ इति श्री वासुदेवकृतं कृष्ण स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
श्री वासुदेवकृतं कृष्ण स्तोत्र के लाभ (Benefits):
- श्रीकृष्ण चरणों में भक्ति और दास्य भाव की प्राप्ति:
इस स्तोत्र का पाठ साधक को भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में स्थिर भक्ति और सेवा का सौभाग्य प्रदान करता है। - श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति:
फलश्रुति में स्पष्ट कहा गया है कि इसका पाठ करने वाले को गुणों से युक्त, भाग्यशाली और धर्मपरायण संतान प्राप्त होती है। - संकटों से त्वरित मुक्ति:
जो व्यक्ति कठिन समय, मानसिक तनाव या शत्रु भय से ग्रस्त है, उसके लिए यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावी है। - शत्रु भय और विपत्तियों से रक्षा:
स्तोत्र के नित्य पाठ से शत्रुओं का प्रभाव समाप्त होता है और साधक निर्भय जीवन जीता है। - आध्यात्मिक उन्नति और शांति:
यह स्तोत्र श्रीकृष्ण के सगुण-निर्गुण दोनों रूपों का ध्यान कराता है, जिससे साधक के भीतर ईश्वरीय चेतना जागृत होती है।
पाठ विधि (Vidhi):
- स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
सफेद या पीले वस्त्र अधिक शुभ माने जाते हैं। - पूर्व दिशा की ओर मुख करके शांत स्थान पर बैठे।
- भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक और धूप जलाएं।
- संकल्प लें – अपनी मनोकामना या भक्ति भाव को मन में रखें।
- “श्री गणेशाय नमः” बोलकर स्तोत्र का पाठ आरंभ करें।
- पाठ के अंत में श्रीकृष्ण को प्रणाम करें और फलश्रुति अवश्य पढ़ें।
- यदि संभव हो तो तुलसी पत्र या माखन-मिश्री अर्पित करें।
जाप का उपयुक्त समय (Best Time for Jaap):
🔸 त्रिसंध्या काल में पाठ करना विशेष फलदायक है —
- प्रातः काल (सुबह 4:30 – 6:30 बजे)
- मध्यान्ह काल (दोपहर 12 बजे के आसपास)
- सायंकाल (शाम 6 – 7:30 बजे)
विशेष दिन:
- गुरुवार, एकादशी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, पूर्णिमा पर यह पाठ करना अत्यधिक फलदायी होता है।