
दिव्य तेज, अद्भुत साहस और अनुपम सौंदर्य के प्रतीक — भगवान कार्तिकेय!
वे न केवल भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं, बल्कि सम्पूर्ण देवलोक के सेनापति भी हैं।
उनकी कथा जितनी रहस्यमयी है, उतनी ही प्रेरणादायक भी। दक्षिण भारत में वे ‘मुरुगन’, ‘स्कंद’ और ‘सुब्रमण्य’ के नाम से पूजे जाते हैं, जबकि उत्तर भारत में उन्हें ‘कार्तिकेय’ के रूप में जाना जाता है।
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जन्म कथा : छह चिंगारियाँ और कृतिका देवियाँ
कहते हैं, जब राक्षस ताड़कासुर का आतंक तीनों लोकों में फैल गया, तब ब्रह्मा ने वरदान दिया था कि उसका वध केवल शिव पुत्र ही कर सकता है।
देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की, और उनके तीसरे नेत्र से छह दिव्य चिंगारियाँ निकलीं। ये चिंगारियाँ पवित्र सरवन नामक झील में गिरीं, जहाँ छः कृतिका देवियों ने उन्हें अपने स्नेह से पाला।
इन छह चिंगारियों से छः सुंदर बालकों का जन्म हुआ। बाद में माता पार्वती ने अपने वात्सल्य से इन सबको एक शरीर में मिला दिया — और जन्म हुआ षडानन (छः मुख वाले) दिव्य बालक कार्तिकेय का।
यही कारण है कि वे ‘कृतिकाओं के पुत्र’ कहलाए और नाम पड़ा — कार्तिकेय।
श्री कार्तिकेय स्तोत्रं (Sri Kartikeya Stotram)
देवताओं के सेनापति : ताड़कासुर का अंत
जन्म से ही कार्तिकेय असाधारण शक्ति और तेज से संपन्न थे। देवताओं ने उन्हें अपना सेनापति नियुक्त किया।
उन्होंने अपने दिव्य भाले (वलय) और मोरवाहन के साथ देवसेना का नेतृत्व करते हुए दैत्यराज ताड़कासुर का वध किया।
इस युद्ध में उनकी वीरता और रणनीति देखकर स्वयं इंद्र भी चकित रह गए।
कार्तिकेय ने न केवल ताड़कासुर का अंत किया, बल्कि धर्म और सत्य की रक्षा के लिए देवताओं को पुनः विजय दिलाई।
उनके छह मुखों का रहस्य
भगवान कार्तिकेय के छः मुख केवल सौंदर्य का प्रतीक नहीं, बल्कि छह दिव्य शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं —
- ज्ञान
- वैराग्य
- यश
- कीर्ति
- ऐश्वर्य
- बल
इसी कारण उन्हें षडानन या षण्मुख कहा जाता है। उनके छह मुख समस्त दिशाओं की रक्षा करते हैं और प्रत्येक मुख दिव्यता का स्रोत है।
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मुरुगन – दक्षिण भारत का प्रिय देवता
दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को मुरुगन के रूप में पूजा जाता है।
तमिलनाडु, श्रीलंका, मलेशिया और सिंगापुर में उनके भव्य मंदिर हैं।
इनमें पलानी मुरुगन मंदिर, तिरुचेंदूर मंदिर, स्वामिमलाई मंदिर, थिरुथनी मंदिर और पझमुदिरचोलै मंदिर विशेष प्रसिद्ध हैं — जिन्हें आरण्य (छः निवास) कहा जाता है।
हर साल यहाँ लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं और “वेल वेल मुरुगन” के जयकारे से वातावरण गूंज उठता है।
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आध्यात्मिक अर्थ और महत्व
भगवान कार्तिकेय केवल युद्ध के देवता नहीं, बल्कि ज्ञान, आत्मबल और कुंडलिनी शक्ति के प्रतीक भी हैं।
उनका भाला “वेल” अज्ञान के अंधकार को भेदकर ज्ञान का प्रकाश फैलाता है।
भक्त मानते हैं कि उनकी उपासना से व्यक्ति के भीतर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और आत्मबल में वृद्धि होती है।
वे गुरु तत्व के भी प्रतीक हैं — जो हमें सही मार्ग दिखाते हैं और आत्मजागृति की ओर ले जाते हैं।
निष्कर्ष
भगवान कार्तिकेय की कथा हमें सिखाती है कि साहस, बुद्धि और भक्ति का संगम ही सच्ची विजय दिलाता है।
वे हर उस व्यक्ति के आदर्श हैं जो जीवन में चुनौतियों से लड़ते हुए धर्म और सत्य की राह पर चलता है।
उनकी आराधना से व्यक्ति को शक्ति, ज्ञान और सफलता की प्राप्ति होती है।
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