“आदित्य हृदय स्तोत्र” एक अत्यंत शक्तिशाली और पावन स्तोत्र है, जिसकी रचना महर्षि अगस्त्य ने की थी। यह स्तोत्र भगवान राम को युद्धभूमि में रावण से लड़ाई के समय ज्ञान और आत्मबल देने के लिए बताया गया था। इसमें भगवान सूर्य (आदित्य) की महिमा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है और उन्हें समस्त जीवों के जीवनदाता, शक्ति के स्रोत, और समस्त विघ्नों के नाशक के रूप में पूजित किया गया है।
इस स्तोत्र के पाठ से न केवल मानसिक, शारीरिक और आत्मिक बल की प्राप्ति होती है, बल्कि यह जीवन के संघर्षों, शत्रुओं और विघ्नों का नाश करके विजय की प्राप्ति भी कराता है। यह स्तोत्र वेदमूलक, सनातन ज्ञान से युक्त, और शिवस्वरूप परमात्मा सूर्य की उपासना का एक अद्भुत माध्यम है।
सूर्य आदित्य हृदय स्तोत्र (Surya Aditya Stotra)
।। ॐ घृणि: सूर्याय आदित्या नम: ।।
विनियोग:
ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्य अगस्त्य ऋषिरनुष्टुप् छन्दः, आदित्ये हृदयभूतो, भगवान् ब्रह्मा देवता, निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।
ऋष्यादि न्यासः –
ॐ अगस्त्य ऋषये नमः शिरसि ।
अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे ।
आदित्यहृदयभूतब्रह्मदेवतायै नमः हृदि ।
ॐ बीजाय नमः गुह्ये ।
रश्मिमते शक्तये नमः पादयोः ।
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं… गात्रेषु ॥
कर न्यासः –
ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ विवस्वते अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादि न्यासः –
ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः ।
ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा ।
ॐ देवासुरनमस्कृताय शिखायै वषट् ।
ॐ विवस्वते कवचाय हुम् ।
ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट् ।
आदित्य हृदय स्तोत्रम् (संस्कृत श्लोक):
- ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥ - दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ।
उपगम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवान् ऋषिः ॥ - राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि ॥ - आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥ - सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिन्ताशोकप्रशमनमायुः पुञ्यं च वर्धनम् ॥ - रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥ - सर्वदेवतमको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणान् लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥ - एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥ - पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वह्निः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥ - आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः ॥ - हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्ड अंशुमान् ॥ - हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनः अहर्करो रविः ।
अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥ - व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः ॥ - आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः ॥ - नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥ - नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥ - जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ।
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥ - नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥ - ब्रह्मेशानाच्युतेषाय सूर्यायादित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥ - तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥ - तप्तचामीकराभाय हर्षाय विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥ - नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥ - एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥ - देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमेश्वरः ॥ - एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥ - पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥ - अस्मिन्क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥ - एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥ - आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ।
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥ - रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥ - अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितननाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥
॥ इति आदित्यहृदयस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
मुख्य तत्व:
- इसका विनियोग युद्ध में विजय, विघ्न नाश और ब्रह्मविद्या की सिद्धि हेतु किया जाता है।
- इसमें सूर्य के विविध नाम जैसे भास्कर, मार्तण्ड, रवि, दिवाकर आदि द्वारा उनकी व्यापकता का वर्णन है।
- यह स्तोत्र रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण दोनों में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
विशेष मान्यता:
कहा जाता है कि इस स्तोत्र के नियमित जप से:
- भय, शोक और चिंता का नाश होता है।
- आत्मविश्वास और साहस में वृद्धि होती है।
- मन स्थिर होता है और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
- शत्रुओं पर विजय, रोग नाश और दीर्घायु का लाभ प्राप्त होता है।
आदित्य हृदय स्तोत्र के लाभ (लाभ / फायदे):
- शत्रुओं पर विजय:
यह स्तोत्र युद्धभूमि में राम को रावण पर विजय दिलाने हेतु बताया गया था। इसका पाठ शत्रु बाधा, कोर्ट केस, विरोधियों से रक्षा आदि में अत्यंत लाभदायक है। - मानसिक शक्ति और आत्मबल में वृद्धि:
यह स्तोत्र आत्मबल, आत्मविश्वास, साहस और धैर्य प्रदान करता है। निराशा और डर को दूर करता है। - स्वास्थ्य लाभ:
सूर्य देव आयु, तेज, और स्वास्थ्य के कारक हैं। इस स्तोत्र के नियमित जप से रोगों का नाश होता है, विशेष रूप से हृदय, रक्त, नेत्र और त्वचा से संबंधित रोगों में। - दीर्घायु और आयुष वृद्धि:
यह स्तोत्र दीर्घायु, आरोग्यता और जीवन शक्ति को बढ़ाने वाला है। - चिंता, शोक और भय का नाश:
मन में चल रही चिंता, दुःख या भविष्य की अनिश्चितता से मुक्ति मिलती है। - कर्म सिद्धि और सफलता:
यह स्तोत्र किसी भी महत्वपूर्ण कार्य या परीक्षा से पहले सफलता हेतु बहुत शुभ माना जाता है। - पापों का नाश और पुण्य की वृद्धि:
नियमित जप से आत्मशुद्धि होती है और पूर्वजन्म व वर्तमान के पाप भी नष्ट होते हैं।
पाठ / जप की विधि (Vidhi):
- स्थान और समय:
प्रातःकाल सूर्योदय से पहले या ठीक सूर्योदय के समय पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। - स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
सफेद या पीले वस्त्र उत्तम माने जाते हैं। - सूर्य देव को जल अर्पण करें (अर्घ्य दें):
तांबे के लोटे में स्वच्छ जल, लाल फूल, अक्षत और रोली मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। - संकल्प लें:
मन में भगवान सूर्य से अपने उद्देश्य हेतु स्तोत्र पाठ का संकल्प लें। - दीपक जलाएं:
गाय के घी या तिल के तेल का दीपक पूर्व दिशा की ओर जलाएं। - आसन पर बैठकर ध्यानपूर्वक स्तोत्र का पाठ करें।
स्तोत्र का पाठ शांत मन और एकाग्रता से करें। इसे बोलकर या मौन मन में भी पढ़ सकते हैं। - जप की समाप्ति पर सूर्य देव को प्रणाम करें और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।
जप का उचित समय (Best Time for Jaap):
- प्रमुख समय:
प्रातःकाल (सूर्योदय के समय) — सर्वोत्तम माना गया है। - वैकल्पिक समय:
संध्याकाल (सूर्यास्त के समय) — विशेष रूप से यदि प्रातः संभव न हो। - विशेष दिनों पर लाभदायक:
- रविवार (सूर्य देव का वार)
- संक्रांति, रवि पुष्य योग, सूर्य ग्रहण से पहले
- विशेष कार्य, परीक्षा, नौकरी, कोर्ट केस आदि से पहले
- जप संख्या (यदि मंत्र रूप में जप करें):
1 बार, 3 बार, या 11 बार पाठ करना शुभ माना जाता है। इच्छानुसार 108 बार माला से “ॐ घृणि: सूर्याय नम:” का जप भी कर सकते हैं।