“श्री सरस्वती रहस्य स्तोत्रम्” एक दिव्य एवं गूढ़ स्तोत्र है जो देवी सरस्वती की महिमा, स्वरूप, शक्ति और ज्ञानस्वरूपता का रहस्यमय वर्णन करता है। यह स्तोत्र न केवल देवी की स्तुति है, बल्कि उनके ब्रह्मरूप, अद्वैत स्वरूप और आत्मज्ञान की उच्चतम स्थिति की ओर इशारा करता है। इसमें माँ सरस्वती को वेदों की शक्ति, वाणी की अधिष्ठात्री, श्रद्धा, मेधा और समस्त ज्ञान का मूल बताया गया है।
इस स्तोत्र में कुल 20 श्लोक हैं, जो सरस्वती देवी की रूप-माधुरी, गुण, शक्तियाँ और उपासना से प्राप्त होने वाले फलों का वर्णन करते हैं। इसे नित्य श्रद्धा, भक्ति और एकाग्रता से पढ़ने वाले साधक को विद्या, वाणी में प्रभाव, कविता में सहजता, और आत्मिक शांति की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र उन विद्यार्थियों, लेखकों, वक्ताओं, गायकों और साधकों के लिए विशेष रूप से फलदायक है जो जीवन में सद्ज्ञान, सर्वोत्तम वाणी, और बौद्धिक तेज की कामना रखते हैं।
श्री सरस्वती रहस्य स्तोत्रम्
नीहारहारघनसारसुधाकराभां
कल्याणदां कनकचम्पकदामभूषाम् ।
उत्तुङ्गपीनकुचकुंभमनोहराङ्गीं वाणीं
नमामि मनसा वचसा विभूत्यै ॥ १ ॥
या वेदान्तार्थतत्त्वैकस्वरूपा परमेश्वरी ।
नामरूपात्मना व्यक्ता सा मां पातु सरस्वती ॥ २ ॥
या साङ्गोपाङ्गवेदेषु चतुर्ष्वेकैव गीयते ।
अद्वैता ब्रह्मणः शक्तिः सा मां पातु सरस्वती ॥ ३ ॥
या वर्णपदवाक्यार्थस्वरूपेणैव वर्तते ।
अनादिनिधनानन्ता सा मां पातु सरस्वती ॥ ४ ॥
अध्यात्ममधिदैवं च देवानां सम्यगीश्वरी ।
प्रत्यगास्ते वदन्ती या सा मां पातु सरस्वती ॥ ५ ॥
अन्तर्याम्यात्मना विश्वं त्रैलोक्यं या नियच्छति ।
रुद्रादित्यादिरूपस्था सा मां पातु सरस्वती ॥ ६ ॥
या प्रत्यग्दृष्टिभिर्जीवैर्व्यजमानानुभूयते ।
व्यापिनी ज्ञप्तिरूपैका सा मां पातु सरस्वती ॥ ७ ॥
नामजात्यादिभिर्भेदैरष्टधा या विकल्पिता ।
निर्विकल्पात्मना व्यक्ता सा मां पातु सरस्वती ॥ ८ ॥
व्यक्ताव्यक्तगिरः सर्वे वेदाद्या व्याहरन्ति याम् ।
सर्वकामदुघा धेनुः सा मां पातु सरस्वती ॥ ९ ॥
यां विदित्वाखिलं बन्धं निर्मथ्याखिलवर्त्मना ।
योगी याति परं स्थानं सा मां पातु सरस्वती ॥ १० ॥
नामरूपात्मकं सर्वं यस्यामावेश्य तां पुनः ।
ध्यायन्ति ब्रह्मरूपैका सा मां पातु सरस्वती ॥ ११ ॥
चतुर्मुखमुखाम्भोजवनहंसवधूर्मम ।
मानसे रमतां नित्यं सर्वशुक्ला सरस्वती ॥ १२ ॥
नमस्ते शारदे देवि काश्मीरपुरवासिनि ।
त्वामहं प्रार्थये नित्यं विद्यादानं च देहि मे ॥ १३ ॥
अक्षसूत्राङ्कुशधरा पाशपुस्तकधारिणी ।
मुक्ताहारसमायुक्ता वाचि तिष्ठतु मे सदा ॥ १४ ॥
कम्बुकण्ठी सुताम्रोष्ठी सर्वाभरणभूषिता ।
महासरस्वती देवी जिह्वाग्रे सन्निवेश्यताम् ॥ १५ ॥
या श्रद्धा धारणा मेधा वाग्देवी विधिवल्लभा ।
भक्तजिह्वाग्रसदना शमादिगुणदायिनी ॥ १६ ॥
नमामि यामिनीनाथलेखालंकृतकुन्तलां ।
भवानीं भवसन्तापनिर्वापणसुधानदीम् ॥ १७ ॥
यः कवित्वं निरातन्कं भुक्तिमुक्ती च वाञ्छति ।
सोऽभ्यर्च्यैनां दशश्लोक्या नित्यं स्तौति सरस्वतीम् ॥ १८ ॥
तस्यैवं स्तुवतो नित्यं समभ्यर्च्य सरस्वतीं ।
भक्तिश्रद्धाभियुक्तस्य षण्मासात्प्रत्ययो भवेत् ॥ १९ ॥
ततः प्रवर्तते वाणी स्वेच्छया ललिताक्षरा ।
गद्यपद्यात्मकैः शब्दैरप्रमेयैर्विवक्षितैः ।
अश्रुतो बुध्यते ग्रन्थः प्रायः सारस्वतः कविः ॥ २० ॥
॥ इति श्री सरस्वती रहस्य स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्री सरस्वती रहस्य स्तोत्रम् (हिंदी अनुवाद) (Sri Saraswati Rahasya Stotram (Hindi translation))
जो नीहार (कोहरे), चंदन, अमृत और चंद्रमा के समान आभा वाली हैं,
कल्याणदायिनी हैं, स्वर्ण के समान चम्पा पुष्पों की माला से सुशोभित हैं,
जिनका शरीर उन्नत, विशाल और सुंदर उरोजों से युक्त है,
ऐसी वाणी स्वरूपा देवी को मैं मन, वचन और समस्त विभूतियों से नमन करता हूँ ॥ १ ॥
जो वेदान्त के अर्थ और तत्त्व की एकमात्र स्वरूपा, परामेश्वरी हैं,
जो नाम और रूप के रूप में प्रकट होती हैं,
वही सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें ॥ २ ॥
जो वेदों के चारों भागों में अंग और उपांग सहित एकमात्र गायी जाती हैं,
जो ब्रह्म की अद्वैत शक्ति हैं,
वही सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें ॥ ३ ॥
जो वर्ण, पद और वाक्य के अर्थ में ही स्वरूप रूप से स्थित हैं,
जो अनादि, अनंत और अविनाशी हैं,
वही सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें ॥ ४ ॥
जो आध्यात्मिक, दैविक और देवताओं की भी सम्यक रूप से ईश्वरी हैं,
जिन्हें आत्मतत्त्व के ज्ञानी प्रत्यगात्मा कहकर वर्णन करते हैं,
वही सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें ॥ ५ ॥
जो अंतर्यामी आत्मा के रूप में सम्पूर्ण सृष्टि और तीनों लोकों को नियंत्रित करती हैं,
जो रुद्र, आदित्य आदि के रूपों में विराजती हैं,
वही सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें ॥ ६ ॥
जो जीवों द्वारा अंतर्मुखी दृष्टि से अनुभव की जाती हैं,
जो एकमात्र ज्ञानस्वरूपा, सर्वव्यापिनी हैं,
वही सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें ॥ ७ ॥
जो नाम, जाति आदि के आठ प्रकार के भेदों से कल्पना की जाती हैं,
फिर भी जो निर्विकल्प रूप से प्रकट हैं,
वही सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें ॥ ८ ॥
जिन्हें वेद आदि प्रकट और अप्रकट वाणी में वर्णन करते हैं,
जो सब कामनाओं को पूर्ण करने वाली कामधेनु हैं,
वही सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें ॥ ९ ॥
जिनका ज्ञान प्राप्त कर योगी सम्पूर्ण बंधनों को नष्ट करके
सभी मार्गों को पार कर परम स्थान को प्राप्त करता है,
वही सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें ॥ १० ॥
जिनमें सम्पूर्ण नाम और रूप समाहित होकर पुनः उसी में लीन हो जाते हैं,
जिनका ध्यान योगी केवल ब्रह्मरूपा जानकर करते हैं,
वही सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें ॥ ११ ॥
जो चतुर्मुख ब्रह्मा के कमलमुख की वाणी और वनहंस की वधू हैं,
वह सर्वश्वेत वस्त्रधारी सरस्वती सदा मेरे मन में रमण करें ॥ १२ ॥
हे शारदा देवी! हे कश्मीरपुरी में निवास करने वाली!
मैं आपको नित्य प्रणाम करता हूँ,
कृपया मुझे विद्या का दान दें ॥ १३ ॥
जो हाथों में अक्षसूत्र, अंकुश, पाश और पुस्तक धारण करती हैं,
जो मोतियों की माला से युक्त हैं,
वे सदा मेरी वाणी में स्थित रहें ॥ १४ ॥
जो शंख के समान सुंदर गला और सुंदर लाल होठों वाली हैं,
सभी आभूषणों से भूषित हैं,
वे महासरस्वती देवी मेरी जिह्वा पर निवास करें ॥ १५ ॥
जो श्रद्धा, धारणा, मेधा, वाग्देवी और विधिवल्लभा हैं,
जो भक्त की जिह्वा पर निवास करती हैं और शमादि गुणों को देती हैं,
उनको मैं नमन करता हूँ ॥ १६ ॥
जो रात्रिनाथ चंद्रिका की रेखा से अलंकृत बालों वाली हैं,
जो भवसागर के ताप को शांत करने वाली अमृत नदी हैं,
ऐसी भवानी को मैं नमन करता हूँ ॥ १७ ॥
जो व्यक्ति निष्कलंक कवित्व, भोग और मोक्ष की इच्छा करता है,
वह इस स्तोत्र की दस श्लोकों से सरस्वती की नित्य पूजा करे ॥ १८ ॥
जो इस प्रकार नित्य भक्ति और श्रद्धा से सरस्वती की स्तुति करता है,
उसे छः माह के भीतर निश्चित फल की प्राप्ति होती है ॥ १९ ॥
तब उसके मुख से वाणी स्वयं प्रस्फुटित होती है,
जो सुंदर और मनोहर अक्षरों से युक्त होती है,
उसकी रचना गद्य और पद्य दोनों में होती है,
और वह अद्भुत सारस्वत कवि बन जाता है,
जिसकी रचनाएं बिना पढ़े ही समझ में आ जाती हैं ॥ २० ॥
॥ इस प्रकार श्री सरस्वती रहस्य स्तोत्र समाप्त हुआ ॥
श्री सरस्वती रहस्य स्तोत्रम् के लाभ (Labh / Benefits):
- विद्या और बुद्धि की प्राप्ति:
विद्यार्थी, शोधकर्ता और ज्ञान-साधक को तीव्र स्मरण शक्ति, गहरी समझ और बौद्धिक तीव्रता प्राप्त होती है। - वाणी में प्रभाव:
वक्ता, लेखक, कवि, संगीतज्ञ और कलाकारों की वाणी मधुर, प्रभावशाली और आकर्षक बनती है। - कवित्व और लेखन की शक्ति:
जो इसे श्रद्धा से पढ़ता है, वह बिना सीखे भी सारगर्भित रचनाएँ कर सकता है। - आध्यात्मिक उन्नति:
ब्रह्मज्ञान की ओर अग्रसर करता है और साधक की अंतरात्मा को प्रकाशित करता है। - कंठ और वाणी रोगों से मुक्ति:
जिनकी वाणी रुकती है या बोलने में संकोच होता है, उन्हें आश्चर्यजनक लाभ मिलता है। - विद्या और लक्ष्मी दोनों की प्राप्ति:
सरस्वती देवी की कृपा से विद्या के साथ जीवन में सुख-शांति और समृद्धि भी आती है।
पाठ विधि (Vidhi / Method of Recitation):
- स्थान:
स्वच्छ, शांत और एकाग्रता-युक्त स्थान पर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें। - शुभ दिन:
गुरुवार, शुक्रवार, या बसंत पंचमी (सरस्वती पूजा) के दिन से प्रारंभ करें। - स्नान व शुद्धता:
स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें, विशेषकर सफेद वस्त्र। - सरस्वती की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक, धूप और सफेद पुष्प अर्पित करें।
- आरंभ में “ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः” मंत्र का 11 या 21 बार जप करें।
- फिर श्री सरस्वती रहस्य स्तोत्र का पाठ करें – एक बार या तीन बार।
- अंत में प्रार्थना करें – “हे माँ! मुझे ज्ञान, वाणी और विवेक का वरदान दो।”
जप का समय (Jaap Time):
समय | फल |
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प्रातःकाल | श्रेष्ठ – स्मरण शक्ति, ध्यान और वाणी सिद्धि के लिए उत्तम। |
सायंकाल | भी लाभकारी – कल्याण, कंठ शुद्धि और मानसिक शांति के लिए। |
रात्रि में | विशेषकर विद्यार्थी परीक्षा के समय – गहन स्मृति के लिए। |
नित्य एक बार पाठ करने से 6 माह में शुभ संकेत प्राप्त होते हैं।
यदि कोई कठिन लक्ष्य हो, तो 40 दिनों तक नित्य पाठ करें।