“त्रिपुर भैरवी स्तोत्र” एक शक्तिशाली और दिव्य स्तोत्र है, जो देवी त्रिपुर भैरवी को समर्पित है। यह स्तोत्र देवी के अद्वितीय रूप, शक्ति, सौंदर्य, करुणा और ब्रह्मांडीय स्वरूप का सजीव चित्रण करता है। त्रिपुर भैरवी दशमहाविद्याओं में एक प्रमुख महाविद्या हैं और उन्हें शक्ति स्वरूपा, काल की अधिष्ठात्री तथा ब्रह्मांड की जननी माना जाता है।
इस स्तोत्र में देवी को सूक्ष्म और स्थूल दोनों रूपों में वर्णित किया गया है — वह एक ओर समस्त वाणी की जननी हैं तो दूसरी ओर नवयौवना, सौंदर्य की मूर्ति, करुणा और ज्ञान का सागर हैं। उनके शरीर का वर्णन कुंकुमवर्णा, तारहार से सुशोभित, त्रिनेत्रधारी, विद्याओं की अधिष्ठात्री तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश को भी प्रेरणा देने वाली देवी के रूप में किया गया है।
यह स्तोत्र न केवल देवी के ललित सौंदर्य का गायन करता है, बल्कि उनके तत्वज्ञान, ब्रह्मांड की सृष्टि, पालन और संहार में उनकी भूमिका को भी उजागर करता है। अंतिम श्लोकों में, जो भी इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करता है, उसे वाक्-सिद्धि (वाणी में प्रभाव), परा लक्ष्मी (श्रेष्ठ ऐश्वर्य), और देवी की कृपा सहज रूप से प्राप्त होती है।
यह स्तोत्र तांत्रिक साधकों, शक्ति उपासकों, वाणी सिद्धि चाहने वालों और आत्मिक उन्नति की इच्छा रखने वालों के लिए अत्यंत फलदायक है। इसमें देवी की आराधना गुप्ततम और पंचांग रूप में कही गई है, जिसे गोपनीयता के साथ साधना में लाना चाहिए।
संक्षेप में, त्रिपुर भैरवी स्तोत्र न केवल एक स्तुति है, बल्कि यह साधक के लिए एक गहन आध्यात्मिक साधना का द्वार है, जो उसे देवी की कृपा से आत्मज्ञान, वाणी शक्ति और सिद्धि प्रदान करता है।
त्रिपुर भैरवी स्तोत्र
ब्रह्मादयस्स्तुति शतैरपि सूक्ष्मरूपं
जानन्तिनैव जगदादिमनादिमूर्तिम् ।
तस्मादमूं कुचनतां नवकुङ्कुमास्यां
स्थूलां स्तुवे सकलवाङ्मयमातृभूताम् ॥ १ ॥
सद्यस्समुद्यत सहस्र दिवाकराभां
विद्याक्षसूत्रवरदाभयचिह्नहस्तां ।
नेत्रोत्पलैस्त्रिभिरलङ्कृतवक्त्रपद्मां
त्वां तारहाररुचिरां त्रिपुरां भजामः ॥ २ ॥
सिन्दूरपूररुचिरां कुचभारनम्रां
जन्मान्तरेषु कृतपुण्य फलैकगम्यां ।
अन्योन्य भेदकलहाकुलमानभेदै
र्जानन्तिकिञ्जडधिय स्तवरूपमन्ये ॥ ३ ॥
स्थूलां वदन्ति मुनयः श्रुतयो गृणन्ति
सूक्ष्मां वदन्ति वचसामधिवासमन्ये ।
त्वांमूलमाहुरपरे जगताम्भवानि
मन्यामहे वयमपारकृपाम्बुराशिम् ॥ ४ ॥
चन्द्रावतंस कलितां शरदिन्दुशुभ्रां
पञ्चाशदक्षरमयीं हृदिभावयन्ती ।
त्वां पुस्तकञ्जपपटीममृताढ्य कुम्भां
व्याख्याञ्च हस्तकमलैर्दधतीं त्रिनेत्राम् ॥ ५ ॥
शम्भुस्त्वमद्रितनया कलितार्धभागो
विष्णुस्त्वमम्ब कमलापरिणद्धदेहः ।
पद्मोद्भवस्त्वमसि वागधिवासभूमि
रेषां क्रियाश्च जगति त्रिपुरेत्वमेव ॥ ६ ॥
आश्रित्यवाग्भव भवाम्श्चतुरः परादीन्
भावान्पदात्तु विहितान्समुदारयन्तीं ।
कालादिभिश्च करणैः परदेवतां त्वां
संविन्मयीं हृदिकदापि नविस्मरामि ॥ ७ ॥
आकुञ्च्य वायुमभिजित्यच वैरिषट्कं
आलोक्यनिश्चलधिया निजनासिकाग्रां ।
ध्यायन्ति मूर्ध्नि कलितेन्दुकलावतंसं
त्वद्रूपमम्ब कृतिनस्तरुणार्कमित्रम् ॥ ८ ॥
त्वं प्राप्यमन्मथरिपोर्वपुरर्धभागं
सृष्टिङ्करोषि जगतामिति वेदवादः ।
सत्यन्तदद्रितनये जगदेकमातः
नोचेद् शेषजगतः स्थितिरेवनस्यात् ॥ ९ ॥
पूजांविधायकुसुमैः सुरपादपानां
पीठेतवाम्ब कनकाचल कन्दरेषु ।
गायन्तिसिद्धवनितास्सहकिन्नरीभिः
रास्वादितामृतरसारुणपद्मनेत्राः ॥ १० ॥
विद्युद्विलास वपुषः श्रियमावहन्तीं
यान्तीमुमांस्वभवनाच्छिवराजधानीं ।
सौन्दर्यमार्गकमलानिचका सयन्तीं
देवीं भजेत परमामृत सिक्तगात्राम् ॥ ११ ॥
आनन्दजन्मभवनं भवनं श्रुतीनां
चैतन्यमात्र तनुमम्ब तवाश्रयामि ।
ब्रह्मेशविष्णुभिरुपासितपादपद्मं
सौभाग्यजन्मवसतिं त्रिपुरे यथावत् ॥ १२ ॥
सर्वार्थभाविभुवनं सृजतीन्दुरूपा
यातद्बिभर्ति पुनरर्कतनुः स्वशक्त्या ।
ब्रह्मात्मिकाहरतितं सकलम्युगान्ते
तां शारदां मनसि जातु न विस्मरामि ॥ १३ ॥
नारायणीति नरकार्णवतारिणीति
गौरीति खेदशमनीति सरस्वतीति ।
ज्ञानप्रदेति नयनत्रयभूषितेति
त्वामद्रिराजतनये विबुधा पदन्ति ॥ १४ ॥
ये स्तुवन्ति जगन्मातः
श्लोकैर्द्वादशभिः क्रमात् ।
त्वामनु पाप्र्य वाक्सिद्धिं
प्राप्नुयुस्ते परां श्रियम् ॥ १५ ॥
इतिते कथितं देवि पञ्चाङ्गं भैरवीमयं ।
गुह्याद्गोप्यतमङ्गोप्यं गोपनीयं स्वयोनिवत् ॥ १६ ॥
॥ इति त्रिपुर भैरवी स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
त्रिपुर भैरवी स्तोत्र (हिंदी अनुवाद सहित) (Tripura Bhairavi Stotra Hindi translation)
ब्रह्मा आदि देवता भी सौ स्तुतियों से इस सूक्ष्मरूपा का पूर्णतः ज्ञान नहीं प्राप्त कर सके, जो जगत की आदि व अनादि मूर्ति हैं।
इसलिए मैं नवकुंकुम जैसे मुख वाली, सुडौल स्तनों वाली, स्थूल रूप वाली, सम्पूर्ण वाणी की जननी देवी की स्तुति करता हूँ। ॥१॥
जो सहस्र सूर्यों के समान प्रकाशमान हैं, जिनके हाथों में विद्या की माला, वर व अभय का चिह्न है,
जिनका मुख कमल के समान है और तीन नेत्रों से शोभायमान है, और जो मोतियों की माला से सुशोभित हैं — हम उन त्रिपुरा देवी की आराधना करते हैं। ॥२॥
जो सिन्दूर के समान वर्ण वाली हैं, स्तनों के भार से झुकी हुई हैं,
जो अनेक जन्मों के पुण्य के फलस्वरूप प्राप्त होती हैं,
जिन्हें केवल मूढ़ बुद्धि वाले ही आपसी भेद और कलह से भ्रमित होकर स्तुति के रूप में जानते हैं। ॥३॥
कुछ मुनि उन्हें स्थूल कहते हैं, कुछ वेद उनकी महिमा गाते हैं,
कुछ लोग उन्हें वाणी में स्थित मानते हैं, और कुछ उन्हें समस्त जगत की उत्पत्ति का कारण कहते हैं —
हम उन्हें असीम कृपा की सागरस्वरूपा मानते हैं। ॥४॥
जो चन्द्रमा से सुशोभित हैं, शरद पूर्णिमा जैसे उज्जवल हैं,
पचास अक्षरों की स्वरूपिणी हैं, जिनका हृदय में ध्यान किया जाता है,
जो पुस्तक, जपमाला, अमृत से भरे कलश और व्याख्या की पुस्तक अपने हाथों में धारण करती हैं,
जो त्रिनेत्रा हैं — ऐसी देवी की हम आराधना करते हैं। ॥५॥
हे अम्बे! तुम ही वह शक्ति हो, जो शिव के अर्ध भाग में स्थित हैं,
तुम ही विष्णु की शक्ति हो, जो लक्ष्मी रूप में उनके साथ हैं,
तुम ही ब्रह्मा की वाणी में स्थित हो —
इस संसार की सभी क्रियाएं तुम्हारे माध्यम से ही होती हैं, हे त्रिपुरा! ॥६॥
जो वाणी के विभिन्न रूपों को आश्रय लेकर,
विचारों को प्रकट करती हैं और उन्हें स्पष्ट रूप देती हैं,
जो काल और अन्य कारणों से परे होकर भी
परम देवता रूप में हृदय में स्थित हैं — मैं उन्हें कभी नहीं भूलता। ॥७॥
जो साधक वायु को नियंत्रित कर, शत्रुओं को जीतकर,
स्थिर बुद्धि से अपनी नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि रखते हुए
मस्तक में चन्द्रकलायुक्त तुम्हारे रूप का ध्यान करते हैं,
वे महान साधक तुम्हारे तेजस्वी रूप का ध्यान करते हैं, हे अम्बे! ॥८॥
हे अम्बे! तुम वह हो जो कामदेव के शत्रु (शिव) के अर्ध भाग को प्राप्त कर,
जगत की सृष्टि करती हो — यह वेदों का मत है।
हे पर्वतराज की पुत्री! यदि तुम न होतीं तो
यह समस्त जगत की स्थिति संभव न होती। ॥९॥
हे अम्बे! तुम्हारी पूजा देव वृक्षों के पुष्पों से
सुवर्ण पर्वत की गुफाओं में स्थित तुम्हारे पीठों में होती है।
जहाँ सिद्ध स्त्रियाँ किन्नरियों के साथ तुम्हारा भजन करती हैं,
जिनकी आँखें अमृत रस के स्वाद से लाल हो जाती हैं। ॥१०॥
जो विद्युत के समान तेजस्वी हैं, जो श्री (सौंदर्य और ऐश्वर्य) प्रदान करती हैं,
जो कैलाश में स्थित शिव के भवन की ओर जाती हैं,
जो सौंदर्य मार्ग में कमल पुष्पों को स्पर्श करती हुई जाती हैं —
ऐसी परम अमृत से सिंचित देवी की उपासना करनी चाहिए। ॥११॥
हे अम्बे! तुम ही आनन्द की जन्मभूमि हो, तुम वेदों का आश्रय हो,
तुम चैतन्यस्वरूपा हो —
तुम्हारे चरण कमलों की पूजा ब्रह्मा, विष्णु और शिव करते हैं।
हे त्रिपुरा! तुम सौभाग्य की जन्मदात्री हो — मैं तुम्हें आश्रय मानता हूँ। ॥१२॥
तुम चन्द्र रूपा हो, जो सभी लोकों की सृष्टि करती हो,
तुम्हारी सूर्य रूपा शक्ति उन्हें धारण करती है,
और युगों के अंत में तुम ब्रह्मस्वरूपा होकर संहार करती हो —
ऐसी शारदा देवी को मैं अपने मन से कभी विस्मृत नहीं करता। ॥१३॥
देवगण तुम्हें नारायणी, नरक से तारने वाली, गौरी,
संताप को नष्ट करने वाली, सरस्वती,
ज्ञानदायिनी, तीन नेत्रों से सुशोभित कहकर स्तुति करते हैं —
हे पर्वतराजकुमारी! तुम्हीं सब देवियों की अधिष्ठात्री हो। ॥१४॥
जो भक्त इन बारह श्लोकों से क्रम से
जगन्माता की स्तुति करते हैं,
वे वाणी सिद्धि प्राप्त करते हैं और
उच्चतम श्री (संपत्ति/ऐश्वर्य) को प्राप्त करते हैं। ॥१५॥
हे देवी! यह जो भैरवीमय पाँच अंगों वाला स्तोत्र बताया गया है,
यह अत्यंत गोपनीय है —
जैसे स्वयम्भू योनि गोपनीय होती है, वैसे ही यह स्तोत्र भी। ॥१६॥
॥ इति त्रिपुर भैरवी स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥लाभ (Benefits) of Tripura Bhairavi Stotra:
सभी विद्याओं में प्रगति: यह स्तोत्र वाणी, विद्या, लेखन, संगीत, गायन, कला, ज्योतिष आदि सभी विद्याओं में उन्नति के लिए सहायक है।
वाक्-सिद्धि (Speech Power): इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से वाणी में प्रभावशीलता आती है, व्यक्ति जो बोले वह सत्य और प्रभावकारी हो जाता है।
तांत्रिक सिद्धि एवं आध्यात्मिक जागृति: त्रिपुर भैरवी दस महाविद्याओं में प्रमुख हैं। यह स्तोत्र साधक को तांत्रिक मार्ग पर उन्नति, ध्यान में सफलता और दिव्य अनुभूतियाँ देता है।
दुर्भाग्य नाश और सौभाग्य प्राप्ति: जीवन में यदि बार-बार असफलता, कलह, अपमान या दुर्भाग्य हो रहा हो, तो यह स्तोत्र उन सभी दोषों को हरता है और सौभाग्य, समृद्धि एवं सौंदर्य प्रदान करता है।
भय, रोग, शत्रु और मानसिक कमजोरी से मुक्ति: देवी भैरवी की कृपा से साधक को आंतरिक शक्ति और आत्म-संयम प्राप्त होता है।
विधि (Vidhi) — पाठ की विधि:
- शुद्धि: प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। स्थान और शरीर की पवित्रता रखें।
- आसन: लाल या काले रंग के आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- देवी का पूजन: त्रिपुर भैरवी की मूर्ति/चित्र/यंत्र को लाल पुष्प, लाल वस्त्र, कुमकुम, दीपक, धूप से पूजन करें।
- पाठ प्रारंभ:
- सबसे पहले “ॐ श्री त्रिपुर भैरव्यै नमः” का 11 बार उच्चारण करें।
- फिर स्तोत्र का श्रद्धा पूर्वक पाठ करें।
- नैवेद्य: गुड़, मिश्री, नारियल या अनार का भोग अर्पित करें।
- अंत में प्रार्थना: अपनी इच्छाओं, परेशानियों या साधना के उद्देश्य को देवी के चरणों में रखें।
जाप का समय (Jaap Time):
- प्रातःकाल (Brahma Muhurat – सुबह 4:00 से 6:00 बजे के बीच): यह सबसे श्रेष्ठ समय माना गया है आध्यात्मिक लाभ और सिद्धि हेतु।
- रात्रि काल (विशेषतः अष्टमी, नवमी या पूर्णिमा की रात): तांत्रिक या गुप्त साधना के लिए यह उपयुक्त समय होता है।
- नियमित जाप: प्रतिदिन एक बार पाठ करना आरंभ करें। विशेष रूप से मंगलवार, शुक्रवार, और नवरात्रि में करना अत्यंत शुभ होता है।