“त्रिपुर भैरवी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्” देवी त्रिपुर भैरवी के 108 दिव्य और प्रभावशाली नामों का एक पवित्र स्तोत्र है, जिसे भगवान शिव ने स्वयं देवी पार्वती को बताया था। यह स्तोत्र शक्ति उपासना के परम साधकों के लिए अत्यंत गोपनीय, लेकिन उतना ही फलदायक माना गया है।
त्रिपुर भैरवी दस महाविद्याओं में से एक हैं और उन्हें काल की अधिष्ठात्री, तपोमयी शक्ति, और महाविनाशिनी के रूप में जाना जाता है। इस स्तोत्र में देवी के 108 नामों के माध्यम से उनके भिन्न-भिन्न रूपों, शक्तियों, और गुणों का वर्णन किया गया है। प्रत्येक नाम साधक के जीवन में एक विशेष ऊर्जा या सिद्धि उत्पन्न करने की क्षमता रखता है।
शास्त्रों में वर्णित है कि जो साधक श्रद्धा और नियमपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह अद्भुत सिद्धियाँ प्राप्त करता है, सारे संकटों से मुक्त होता है और भैरवी माँ की कृपा से उसकी आत्मा जाग्रत होती है।
यह स्तोत्र विशेष रूप से उन साधकों के लिए उपयोगी है:
- जो तांत्रिक साधना या महाविद्या उपासना कर रहे हों,
- जिन्हें जीवन में मुक्ति, भोग और शक्ति तीनों की प्राप्ति चाहिए,
- अथवा जो दुर्भाग्य, रोग, शत्रु या दरिद्रता से मुक्ति चाहते हों।
इस स्तोत्र का पाठ गुप्त रूप से, योग्य गुरु से आज्ञा लेकर, ध्यान और नियम के साथ करना चाहिए। यह केवल मंत्र न होकर एक सम्पूर्ण साधना मार्ग है, जो साधक को गणेश के समान शक्तिशाली, विघ्नहर्ता और ब्रह्मज्ञानी बना सकता है।
त्रिपुर भैरवी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्
॥ श्रीदेव्युवाच ॥
कैलासवासिन् भगवन् प्राणेश्वर कृपानिधे ।
भक्तवत्सल भैरव्या नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥ १ ॥
॥ श्रीशिव उवाच ॥
न श्रुतं देवदेवेश वद मां दीनवत्सल ।
शृणु प्रिये महागोप्यं नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥ २ ॥
भैरव्याः शुभदं सेव्यं सर्वसम्पत्प्रदायकम् ।
यस्यानुष्ठानमात्रेण किं न सिद्ध्यति भूतले ॥ ३ ॥
ॐ भैरवी भैरवाराध्या भूतिदा भूतभावना ।
कार्य्या ब्राह्मी कामधेनुः सर्वसम्पत्प्रदायिनी ॥ ४ ॥
त्रैलोक्यवन्दिता देवी महिषासुरमर्द्दिनी ।
मोहघ्नी मालतीमाला महापातकनाशिनी ॥ ५ ॥
क्रोधिनी क्रोधनिलया क्रोधरक्तेक्षणा कुहूः ।
त्रिपुरा त्रिपुराधारा त्रिनेत्रा भीमभैरवी ॥ ६ ॥
देवकी देवमाता च देवदुष्टविनाशिनी ।
दामोदरप्रिया दीर्घा दुर्गा दुर्गतिनाशिनी ॥ ७ ॥
लम्बोदरी लम्बकर्णा प्रलम्बितपयोधरा ।
प्रत्यङ्गिरा प्रतिपदा प्रणतक्लेशनाशिनी ॥ ८ ॥
प्रभावती गुणवती गणमाता गुहेश्वरी ।
क्षीराब्धितनया क्षेम्या जगत्त्राणविधायिनी ॥ ९ ॥
महामारी महामोहा महाक्रोधा महानदी ।
महापातकसंहर्त्री महामोहप्रदायिनी ॥ १० ॥
विकराला महाकाला कालरूपा कलावती ।
कपालखट्वाङ्गधरा खड्गखर्प्परधारिणी ॥ ११ ॥
कुमारी कुङ्कुमप्रीता कुङ्कुमारुणरञ्जिता ।
कौमोदकी कुमुदिनी कीर्त्या कीर्तिप्रदायिनी ॥ १२ ॥
नवीना नीरदा नित्या नन्दिकेश्वरपालिनी ।
घर्घरा घर्घरारावा घोरा घोरस्वरूपिणी ॥ १३ ॥
कलिघ्नी कलिधर्मघ्नी कलिकौतुकनाशिनी ।
किशोरी केशवप्रीता क्लेशसङ्घनिवारिणी ॥ १४ ॥
महोत्तमा महामत्ता महाविद्या महीमयी ।
महायज्ञा महावाणी महामन्दरधारिणी ॥ १५ ॥
मोक्षदा मोहदा मोहा भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी ।
अट्टाट्टहासनिरता कङ्कणन्नूपुरधारिणी ॥ १६ ॥
दीर्घदंष्ट्रा दीर्घमुखी दीर्घघोणा च दीर्घिका ।
दनुजान्तकरी दुष्टा दुःखदारिद्र्यभञ्जिनी ॥ १७ ॥
दुराचारा च दोषघ्नी दमपत्नी दयापरा ।
मनोभवा मनुमयी मनुवंशप्रवर्द्धिनी ॥ १८ ॥
श्यामा श्यामतनुः शोभा सौम्या शम्भुविलासिनी ।
इति ते कथितं दिव्यं नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥ १९ ॥
भैरव्या देवदेवेश्यास्तव प्रीत्यै सुरेश्वरि ।
अप्रकाश्यमिदं गोप्यं पठनीयं प्रयत्नतः ॥ २० ॥
देवीं ध्यात्वा सुरां पीत्वा मकारपञ्चकैः प्रिये ।
पूजयेत्सततं भक्त्या पठेत्स्तोत्रमिदं शुभम् ॥ २१ ॥
षण्मासाभ्यंतरे सोऽपि गणनाथसमो भवेत् ।
किमत्र बहुनोक्तेन त्वदग्रे प्राणवल्लभे ॥ २२ ॥
सर्वं जानासि सर्वज्ञे पुनर्मां परिपृच्छसि ।
न देयं परशिष्येभ्यो निन्दकेभ्यो विशेषतः ॥ २३ ॥
॥ इति त्रिपुर भैरवी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
त्रिपुर भैरवी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् का हिंदी अनुवाद (Hindi translation of Tripura Bhairavi Ashtottara Shatnam Stotram)
॥ श्री देवी ने कहा ॥
हे कैलास में रहने वाले प्रभु, प्राणों के स्वामी, करुणा के सागर!
भक्तवत्सल! कृपया त्रिपुर भैरवी के 108 नामों को बताइए। ॥१॥
॥ श्री शिव ने कहा ॥
हे देवेश्वरी! हे दीनों पर दया करने वाली!
मैंने यह नहीं सुना है, कृपया मुझे बताइए। यह अत्यंत गोपनीय नामावली सुनो। ॥२॥
यह भैरवी के शुभदायक, पूज्य, और सम्पूर्ण ऐश्वर्य देने वाले नाम हैं।
इनका केवल जप या अनुष्ठान करने मात्र से इस धरती पर कौन सा सिद्धि कार्य असंभव है? ॥३॥
108 नामों की माला (हिंदी में अर्थ सहित)
- भैरवी – भयानक रूप वाली देवी
- भैरव की आराध्य – भैरव द्वारा पूजित
- भूतिदा – समृद्धि देने वाली
- भूतभावना – समस्त जीवों की भावना करने वाली
- कार्य्या – उद्देश्य देने वाली
- ब्राह्मी – ब्रह्मविद्या वाली
- कामधेनु – सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाली
- सर्वसम्पत्प्रदायिनी – सभी प्रकार की सम्पत्ति प्रदान करने वाली
- त्रैलोक्यवन्दिता – तीनों लोकों द्वारा पूजित
- महिषासुरमर्दिनी – महिषासुर का वध करने वाली
- मोहघ्नी – मोह को नष्ट करने वाली
- मालतीमाला – मालती पुष्पों की माला पहनने वाली
- महापातकनाशिनी – महान पापों को नष्ट करने वाली
- क्रोधिनी – क्रोधित रूप वाली
- क्रोधनिलया – क्रोध में स्थिर रहने वाली
- क्रोधरक्तेक्षणा – क्रोध में रक्तवर्ण नेत्रों वाली
- कुहूः – अमावस्या की देवी
- त्रिपुरा – तीन लोकों में व्याप्त
- त्रिपुराधारा – त्रिपुरा को धारण करने वाली
- त्रिनेत्रा – तीन नेत्रों वाली
- भीमभैरवी – भयंकर भैरवी
- देवकी – देवताओं की उत्पत्ति करने वाली
- देवमाता – देवताओं की माता
- देवदुष्टविनाशिनी – देवताओं के शत्रुओं का नाश करने वाली
- दामोदरप्रिया – भगवान दामोदर (कृष्ण) को प्रिय
- दीर्घा – विशाल रूप वाली
- दुर्गा – दुर्गम को पार करने वाली
- दुर्गतिनाशिनी – दुःख व संकट का नाश करने वाली
- लम्बोदरी – विशाल उदर वाली
- लम्बकर्णा – लम्बे कानों वाली
- प्रलम्बितपयोधरा – लंबे स्तनों वाली
- प्रत्यङ्गिरा – रक्षात्मक रूप की देवी
- प्रतिपदा – प्रथम तिथि की अधिष्ठात्री
- प्रणतक्लेशनाशिनी – शरणागत के कष्ट को हरने वाली
- प्रभावती – प्रभावशाली
- गुणवती – गुणों से युक्त
- गणमाता – गणों की माता
- गुहेश्वरी – गुप्त रहस्यों की अधिपति
- क्षीराब्धितनया – क्षीरसागर की कन्या
- क्षेम्या – कल्याण देने वाली
- जगत्त्राणविधायिनी – संसार की रक्षा करने वाली
- महामारी – महामारी के समान विनाशक
- महामोहा – महान मोह देने वाली
- महाक्रोधा – अत्यंत क्रोधित स्वरूप
- महानदी – महान शक्ति की धारा
- महापातकसंहर्त्री – महापापों का नाश करने वाली
- महामोहप्रदायिनी – महान मोह उत्पन्न करने वाली
- विकराला – विकराल रूप वाली
- महाकाला – समय का भी अंत करने वाली
- कालरूपा – काल स्वरूप वाली
- कलावती – कलाओं में पारंगत
- कपालखट्वाङ्गधरा – कपाल और खट्वांग धारण करने वाली
- खड्गखर्प्परधारिणी – तलवार और त्रिशूल धारण करने वाली
- कुमारी – कुंवारी कन्या
- कुंकुमप्रीता – कुंकुम से प्रसन्न होने वाली
- कुंकुमारुणरञ्जिता – कुंकुम के अरुण रंग से रंजित
- कौमोदकी – प्रसन्नता देने वाली
- कुमुदिनी – कमल के समान कोमल
- कीर्त्या – कीर्ति स्वरूपा
- कीर्तिप्रदायिनी – कीर्ति देने वाली
- नवीना – नवीनता से युक्त
- नीरदा – जल देने वाली
- नित्या – सदा विद्यमान
- नन्दिकेश्वरपालिनी – नन्दिकेश्वर की पालक
- घर्घरा – घर्घर ध्वनि करने वाली
- घर्घरारावा – घमकने वाली
- घोरा – भयंकर
- घोरस्वरूपिणी – भयानक स्वरूप वाली
- कलिघ्नी – कलियुग का विनाश करने वाली
- कलिधर्मघ्नी – कलियुग के दोषों को हरने वाली
- कलिकौतुकनाशिनी – कलियुग के तमाशों का नाश करने वाली
- किशोरी – युवती कन्या
- केशवप्रीता – भगवान केशव को प्रिय
- क्लेशसङ्घनिवारिणी – क्लेशों का निवारण करने वाली
- महोत्तमा – परम श्रेष्ठ
- महामत्ता – अत्यधिक उत्तेजित
- महाविद्या – महान ज्ञान देने वाली
- महीमयी – पृथ्वी रूपा
- महायज्ञा – महान यज्ञ रूप
- महावाणी – महान वाणी वाली
- महामन्दरधारिणी – महान मन्दराचल को धारण करने वाली
- मोक्षदा – मोक्ष देने वाली
- मोहदा – मोह उत्पन्न करने वाली
- मोहा – मोह का स्वरूप
- भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी – भोग और मुक्ति दोनों देने वाली
- अट्टाट्टहासनिरता – अट्टहास करने में रत
- कङ्कणन्नूपुरधारिणी – कंगन व नूपुर धारण करने वाली
- दीर्घदंष्ट्रा – लम्बे दांतों वाली
- दीर्घमुखी – लम्बा मुख वाली
- दीर्घघोणा – लम्बी नाक वाली
- दीर्घिका – विस्तृत रूप वाली
- दनुजान्तकरी – दानवों का अंत करने वाली
- दुष्टा – दुष्टों का विनाश करने वाली
- दुःखदारिद्र्यभञ्जिनी – दुःख व दरिद्रता को दूर करने वाली
- दुराचारा – दुष्टों का संहार करने वाली
- दोषघ्नी – दोषों का नाश करने वाली
- दमपत्नी – संयमित शक्ति
- दयापरा – अत्यंत दयालु
- मनोभवा – मन से उत्पन्न
- मनुमयी – मंत्र स्वरूप
- मनुवंशप्रवर्द्धिनी – मनु के वंश को बढ़ाने वाली
- श्यामा – श्याम वर्ण वाली
- श्यामतनु – श्याम शरीर वाली
- शोभा – शोभा स्वरूप
- सौम्या – शांत रूपा
- शम्भुविलासिनी – शम्भु (शिव) के साथ रमण करने वाली
शिवजी आगे कहते हैं:
यह जो मैंने तुम्हें भैरवी देवी के 108 दिव्य नाम बताए हैं,
ये देवी की प्रसन्नता हेतु, गोपनीय और अत्यंत शुभ हैं। इसे विशेष प्रयत्न से पढ़ना चाहिए। ॥२०॥
देवी का ध्यान करके, अमृतमयी सुरा पीकर,
मकार-पंचक मन्त्रों के साथ, भक्ति से इस स्तोत्र का पाठ करें। ॥२१॥
छह महीने में ही ऐसा साधक गणपति के समान हो जाता है।
इससे अधिक क्या कहूँ हे प्राणों से प्यारी? ॥२२॥
तुम तो सब जानती हो, सर्वज्ञ हो, फिर भी बार-बार पूछती हो।
यह स्तोत्र शिष्य को या निन्दकों को नहीं देना चाहिए। ॥२३॥
॥ त्रिपुर भैरवी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् समाप्त ॥
लाभ (Benefits):
त्रिपुर भैरवी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् के नियमित जप से साधक को निम्नलिखित दिव्य लाभ प्राप्त होते हैं:
🔹 सभी प्रकार के संकटों का नाश – रोग, शत्रु, दरिद्रता और भय दूर होते हैं।
🔹 सिद्धि और शक्ति की प्राप्ति – विशेष रूप से तांत्रिक, गुप्त और शाक्त साधनाओं में प्रगति होती है।
🔹 आत्मबल और चारित्रिक दृढ़ता – साधक मानसिक, आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से शक्तिशाली बनता है।
🔹 कामना पूर्ति – देवी की कृपा से धन, संतान, विवाह, पद, परीक्षा आदि में सफलता मिलती है।
🔹 भैरवी उपासना में उच्च स्तर की सिद्धि – दस महाविद्याओं में एक, त्रिपुर भैरवी की कृपा साधक को गुप्त रहस्यों और तांत्रिक ज्ञान की ओर ले जाती है।
🔹 भव-बन्धन से मुक्ति – मोक्ष की प्राप्ति में सहायक।
🔹 भैरवी साधना में सुरक्षा कवच – यह स्तोत्र साधक को बाहरी और आंतरिक नकारात्मक शक्तियों से बचाता है।
विधि (Puja Vidhi):
इस स्तोत्र का पाठ करते समय निम्नलिखित विधि का पालन करें:
🔸 स्थान: शांत, पवित्र और एकांत स्थान चुनें (यथासंभव त्रिकाल संधि या ब्रह्ममुहूर्त में)।
🔸 आसन: कुश या कंबल का आसन बिछाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
🔸 शुद्धि: स्नान कर लें, और स्थान, वस्त्र, मन – तीनों की शुद्धता रखें।
🔸 दीपक: देसी घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं।
मालाएं: रुद्राक्ष, चंपा, रक्त चंदन, या त्रिनेत्र रुद्राक्ष माला से जप करें।
🔸 अर्पण: लाल पुष्प, कुंकुम, सिंदूर, कमल आदि अर्पित करें।
🔸 आसन संख्या: कम से कम 11 बार स्तोत्र का पाठ करें (या 108 नामों की गिनती पूरी करें)।
🔸 नैवेद्य: गुड़, नारियल, या कोई भी लाल मिठाई भैरवी को अर्पण करें।
🔸 समापन: अंत में क्षमा प्रार्थना करें और भैरवी माँ से आशीर्वाद लें।
जाप का समय (Best Time for Jaap):
1. ब्रह्ममुहूर्त (प्रातः 4:00 – 5:00 बजे):
सभी तांत्रिक और महाविद्या उपासनाओं के लिए यह सर्वोत्तम समय माना गया है।
2. रात्रि का प्रथम प्रहर (रात 9:00 – 11:00 बजे):
भैरवी देवी की ऊर्जा इस समय विशेष रूप से प्रभावी होती है।
3. विशेष तिथि:
- अमावस्या, चतुर्दशी, नवरात्रि, और अश्विन मास में जप करना अत्यंत फलदायक होता है।
- शनि और मंगलवार को भी भैरवी उपासना शुभ मानी जाती है।