“श्री नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्र” भगवान श्री लक्ष्मी नृसिंह के बारह दिव्य नामों से युक्त एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसकी रचना महर्षि वेदव्यास द्वारा की गई है। यह स्तोत्र नृसिंह भगवान के विविध रूपों और उनके शक्तिशाली स्वरूपों का वर्णन करता है, जिनके स्मरण से साधक सभी प्रकार के पापों, रोगों, भय और संकटों से मुक्त हो जाता है।
नृसिंह भगवान, भगवान विष्णु के चौथे अवतार हैं, जिन्होंने प्रह्लाद की रक्षा हेतु हिरण्यकशिपु का वध किया था। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन्हें समर्पित है, जिनका स्वरूप “उग्र” (भयानक), “करुणामय” (दयालु) और “रक्षक” (संकटमोचक) सभी रूपों को समाहित करता है।
इस स्तोत्र में वर्णित बारह नाम न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से उच्चतम हैं, बल्कि इनका नियमित जप साधक को रोग, भय, मृत्यु, युद्ध, जलदुर्घटना, वनभय, और तमाम विपत्तियों से सुरक्षित रखता है। यह मंत्रराज (मंत्रों का राजा) कहा गया है क्योंकि इसका प्रभाव तीव्र और सुनिश्चित माना गया है।
यह स्तोत्र नित्य जप योग्य है, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो जीवन में असुरक्षा, भय, बीमारी या मानसिक अशांति से जूझ रहे हों। भगवान नृसिंह के ये नाम उनके दिव्य तेज, अनंत बल, और अमोघ कृपा के प्रतीक हैं।
श्री नृसिंह की उपासना द्वारा साधक को न केवल सांसारिक संकटों से मुक्ति मिलती है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और परम शांति की भी प्राप्ति होती है।
श्रीलक्ष्मी नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम्
अस्य श्रीनृसिंह द्वादशनाम स्तोत्र महामन्त्रस्य वेदव्यासो भगवान् ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः श्रीलक्ष्मीनृसिंहो देवता श्रीलक्ष्मीनृसिंह प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।
प्रथमं तु महाज्वालो द्वितीयं तूग्रकेसरी ।
तृतीयं वज्रदंष्ट्रश्च चतुर्थं तु विशारदः ॥ १ ॥
पञ्चमं नारसिंहश्च षष्ठः कश्यपमर्दनः ।
सप्तमो यातुहन्ता च अष्टमो देववल्लभः ॥ २ ॥
ततः प्रह्लादवरदो दशमोऽनन्तहस्तकः । [नवं]
एकादशो महारुद्रः द्वादशो दारुणस्तथा ॥ ३ ॥
द्वादशैतानि नामानि नृसिंहस्य महात्मनः ।
मन्त्रराज इति प्रोक्तं सर्वपापविनाशनम् ॥ ४ ॥
क्षयापस्मार कुष्ठादि तापज्वर निवारणम् ।
राजद्वारे महाघोरे सङ्ग्रामे च जलान्तरे ॥ ५ ॥
गिरिगह्वारकारण्ये व्याघ्रचोरामयादिषु ।
रणे च मरणे चैव शमदं परमं शुभम् ॥ ६ ॥
शतमावर्तयेद्यस्तु मुच्यते व्याधिबन्धनात् ।
आवर्तयन् सहस्रं तु लभते वाञ्छितं फलम् ॥ ७ ॥
।। इति श्री नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ।।
श्री नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्र का हिंदी अनुवाद (Hindi translation of Shri Nrisimha Dwadashnam Stotra)
पहला नाम है – महाज्वाल (तेजस्वी अग्निरूप),
दूसरा – उग्रकेसरी (भीषण सिंह स्वरूप)
तीसरा – वज्रदंष्ट्र (वज्र जैसी दाढ़ों वाला),
चौथा – विशारद (सर्वज्ञ, महान विद्वान)
पाँचवां – नारसिंह (मानव-सिंह रूप),
छठा – कश्यपमर्दन (कश्यप वंश के दैत्यों का नाश करने वाले)
सातवां – यातुहंता (राक्षसों का नाशक),
आठवां – देववल्लभ (देवताओं के प्रिय)
नवां – प्रह्लादवरद (प्रह्लाद को वर देने वाले),
दसवां – अनंतहस्तक (अनगिनत हाथों वाले)
ग्यारहवां – महारुद्र (भीषण रुद्रस्वरूप),
बारहवां – दारुण (अत्यंत कठोर और भयानक)
ये द्वादश (बारह) नाम श्री नृसिंह भगवान के महात्म्य से युक्त हैं।
इन्हें मंत्रराज कहा गया है – यह सभी पापों का नाश करने वाला है।
यह क्षय, अपस्मार, कुष्ठ, ताप और ज्वर जैसे रोगों को दूर करता है।
राजद्वार पर, भयानक युद्ध में, या जल के अंदर भी यह रक्षा करता है।
पहाड़ की गुफाओं में, घने जंगलों में,
व्याघ्र (शेर), चोर और रोगों के भय से,
युद्ध या मृत्यु के समय में – यह शांति व कल्याण देता है।
जो व्यक्ति इसका सौ बार जप करता है, वह रोगों व बंधनों से मुक्त हो जाता है।
जो इसे हज़ार बार जपे, उसे इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
।। इस प्रकार श्री नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्र समाप्त होता है ।।
लाभ (Benefits)
1. समस्त भय और बाधाओं से रक्षा:
यह स्तोत्र साधक को रोग, शत्रु, भय, कष्ट, तांत्रिक प्रभाव और मृत्यु जैसे संकटों से सुरक्षित करता है।
2. रोग नाशक:
क्षय (टी.बी.), अपस्मार (मिर्गी), कुष्ठ (कोढ़), ताप (बुखार), ज्वर, आदि रोगों के निवारण में अत्यंत प्रभावी है।
3. जीवन की सुरक्षा:
राजद्वार (न्यायालय या शासन), रणक्षेत्र, जल यात्रा, जंगल, पर्वत आदि जैसे संकटपूर्ण स्थानों पर यह रक्षा कवच की तरह कार्य करता है।
4. इच्छापूर्ति:
इसका नियमित और श्रद्धा से जप करने पर साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
5. मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति:
भगवान नृसिंह के तेजस्वी और उग्र रूपों के स्मरण से साधक को साहस, आत्मबल और शांति प्राप्त होती है।
जप विधि (Method of Chanting)
- स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- भगवान नृसिंह की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
- श्री नृसिंह बीज मंत्र – “ॐ क्ष्रौं श्रीं नृसिंहाय नमः” – से ध्यान करके जप आरंभ करें।
- “श्री नृसिंह द्वादशनाम स्तोत्र” का पाठ शुद्ध उच्चारण और श्रद्धा से करें।
- माला का प्रयोग करें (रुद्राक्ष या तुलसी की माला)।
- पाठ के अंत में भगवान नृसिंह से रक्षा और आशीर्वाद की प्रार्थना करें।
जप का उत्तम समय (Best Time to Chant)
- प्रातःकाल (सुबह 4 बजे से 6 बजे के बीच) – ब्रह्ममुहूर्त का समय सर्वोत्तम माना जाता है।
- संध्या काल (शाम 6 से 8 बजे के बीच) – ऊर्जा संतुलन और रक्षात्मक शक्तियों को जागृत करता है।
- विशेष रूप से नृसिंह जयंती, पूर्णिमा, शनिवार और मंगलवार के दिन यह स्तोत्र अत्यधिक फलदायी होता है।
- यदि संकट हो, तो किसी भी समय श्रद्धा से इसका जप किया जा सकता है।