“श्रीमद् दिव्य-परशुराम अष्टक स्तोत्र” भगवान परशुराम को समर्पित एक अद्भुत स्तुति है, जिसमें उनके दिव्य स्वरूप, पराक्रम, करुणा और भक्तवत्सल स्वभाव का गहन वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र आठ श्लोकों (अष्टक) में विभाजित है, और प्रत्येक श्लोक में भगवान परशुराम की महानता, उनके अवतारी स्वरूप तथा राक्षसों और अधर्मियों के विनाश के लिए उनके प्रयत्नों का स्तवन किया गया है।
भगवान परशुराम विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं, जिन्होंने धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करने के लिए अपने परशु (फरसा) से धरती को दुष्ट क्षत्रियों से मुक्त किया था। वे चिरंजीवी (अमरतुल्य) माने जाते हैं और कलियुग में भगवान कल्कि को शस्त्रविद्या प्रदान करने वाले गुरु होंगे।
इस अष्टक का पाठ करने से साधक को न केवल भगवान परशुराम की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि जीवन की बाधाएँ, शत्रु, भय और पापों से भी रक्षा मिलती है। यह स्तोत्र शक्ति, साहस, ज्ञान और धर्म की प्रेरणा देने वाला है।
श्रीमद् दिव्य-परशुराम अष्टक स्तोत्र
ब्रह्मविष्णुमहेशसन्नुतपावनाङ्घृसरोरुहं,
नीलनीरजलोचनं हरिमाश्रितमर्भुरुहम् ।
केशवं जगदीश्वरं त्रिगुणात्मकं परपुरुषं,
परशुराममुपास्महे मम किङ्कृष्यति योऽपि वै ॥ 1
अक्षयं कलुषपहं निरुद्रवं करुणानिधिं,
वेदरूपमनामयं विभुमच्युतं भगवानम् ।
हर्षदं जमदग्निपुत्रकमार्यजुष्टपदम्बुजं,
परशुराममुपास्महे मम किङक्रिष्यति योऽपि वै ॥ 2
रेनुकेयामहीनसत्वकमव्ययं सुजानार्चितं,
विक्रमाद्यमिनाबजनेत्रकमब्जशार्ङ्गगदाधरम् ।
छत्रिताहिमशेषविद्यागमष्टमूर्तिमनाश्रयं,
परशुराममुपास्महे मम किङकृष्यति योऽपि वै ॥ 3
बहुजान्वयवर्णङकुशमर्वकण्ठमनुत्तमं,
सर्वभूतदयापरं शिवमबधिशायिनमौरवजम् ।
भक्तशत्रुजनार्दनं निरयार्दनं कुजनार्दनं,
परशुराममुपासमहे मम किङक्रिष्यति योऽपि वै ॥ 4
जम्भयज्ञविनायकञ्च त्रिविक्रमं दनुजन्तकं,
निर्विकर्मगोचरं नरसिंहरूपमनार्धम् ।
वेदभद्रपद तैतिनमिन्दिराधिमिष्टदं,
परशुराममुपासमहे मम किङ्कृष्यति योऽपि वै ॥ 5
निर्जरां गरुड़ध्वजं धरणीश्वरं परमोददं,
सर्वदेवमहर्षिभूशुरगीतरूपमरूपकम् ।
भूमतापसवेशधारिणमदृश्च महमहं,
परशुराममुपासमहे मम किङकृष्यति योऽपि वै ॥ 6
समलोलमभद्रानायकमादिमूर्तिमिलासुरं,
सर्वतोमुखमक्षिकर्षकमर्यदुःखहरकालौ ।
वेङ्कटेश्वररूपकं निजभक्तपालनदीक्षितं,
परशुराममुपासमहे मम किङकृष्यति योऽपि वै ॥ 7
दिव्यविग्रहधारिणं निखिलाधिपं परमं महा-,
वैरिसूदनपंडितं गिरिजात्पूजितरूपकम् ।
बहुलेयकुर्गर्वहारकमाश्रितावळितरकं,
परशुराममुपास्महे मम किङकृष्यति योऽपि वै ॥ 8
फलश्रुति
परशुरामाष्टकमिदं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः,
परशुरामकृपासारं सत्यं प्राप्नोति सत्वरम् ॥
॥ इति श्रीमद् दिव्य-परशुराम अष्टक स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
श्रीमद् दिव्य-परशुराम अष्टक स्तोत्र (हिंदी अनुवाद) (Srimad Divya-Parashuram Ashtak Stotram (Hindi Translation))
जिसके चरण कमल ब्रह्मा, विष्णु और शिव जैसे देवताओं द्वारा पूजित हैं,
जिसकी आँखें नीले जल के समान हैं, जो श्रीहरि का आश्रय लेने वाले हैं,
जो केशव, त्रिगुणात्मक और परम पुरुष हैं —
ऐसे परशुराम जी की मैं उपासना करता हूँ; फिर मुझे और कौन कष्ट दे सकता है? ॥ 1
जो अविनाशी हैं, पापों को हरने वाले हैं, दुःखों को नष्ट करने वाले हैं,
जो करुणा के सागर, वेदस्वरूप और रोग-शोक से रहित भगवान हैं,
जिनके चरण कमल में आर्यजन अनुरक्त हैं, जो जमदग्नि ऋषि के पुत्र हैं —
ऐसे परशुराम जी की मैं उपासना करता हूँ; फिर मुझे और कौन पीड़ा देगा? ॥ 2
जो रेणुका पुत्र, महान तेजस्वी, अविनाशी और सज्जनों द्वारा पूजित हैं,
जिनकी आंखें कमल समान, हाथों में शार्ङ्ग धनुष और गदा है,
जो समस्त विद्याओं के ज्ञाता और अनेक रूपों वाले हैं —
ऐसे परशुराम जी की मैं उपासना करता हूँ; फिर मुझे और कौन हानि पहुँचा सकता है? ॥ 3
जो उच्च कुल में जन्मे, सुंदर कंठ और श्रेष्ठ हैं,
सभी प्राणियों पर दया करने वाले, शिवस्वरूप और महासागर के समान शांत हैं,
जो भक्तों की रक्षा करते हैं और दुष्टों का नाश करते हैं —
ऐसे परशुराम जी की मैं उपासना करता हूँ; फिर मुझे और कौन बाधा देगा? ॥ 4
जो यज्ञों को सफल करने वाले, विघ्नों को दूर करने वाले और त्रिविक्रम के समान हैं,
जो राक्षसों का संहार करने वाले, निष्कलंक और नरसिंह रूपधारी हैं,
जो वेद और देवी लक्ष्मी को प्रिय हैं —
ऐसे परशुराम जी की मैं उपासना करता हूँ; फिर मुझे और क्या भय हो सकता है? ॥ 5
जो अमर देवताओं के समान हैं, जिनका ध्वज गरुड़ है, जो पृथ्वी के स्वामी हैं,
जिनका रूप देवता, ऋषि और महान आत्माओं द्वारा गाया गया है,
जो तपस्वी वेशधारी और अतुलनीय तेजस्वी हैं —
ऐसे परशुराम जी की मैं उपासना करता हूँ; फिर मुझे और कौन पराजित कर सकता है? ॥ 6
जो दुष्टों के स्वामी को वश में करने वाले, आदिमूर्तियों में श्रेष्ठ और देवों से पूजित हैं,
जो सब ओर से दृष्टि रखते हैं, भक्तों के कष्ट हरने वाले हैं,
जो श्रीवेंकटेश्वर के रूप में हैं और भक्तों की रक्षा के लिए कटिबद्ध हैं —
ऐसे परशुराम जी की मैं उपासना करता हूँ; फिर मुझे और क्या शंका हो सकती है? ॥ 7
जो दिव्य स्वरूपधारी, सम्पूर्ण जगत के स्वामी और परम ज्ञानी हैं,
जो शत्रुओं के संहारक, विद्वानों के आदर्श और माता पार्वती द्वारा पूजित हैं,
जो दंभियों के घमंड को चूर करने वाले और शरणागतों की रक्षा करने वाले हैं —
ऐसे परशुराम जी की मैं उपासना करता हूँ; फिर मुझे और कौन पराजित करेगा? ॥ 8
फलश्रुति (फल देने वाला श्लोक)
जो मनुष्य इस परशुराम अष्टक स्तोत्र का त्रिसंध्या (प्रातः, मध्यान्ह, संध्या) में पाठ करता है,
वह परशुराम जी की कृपा का सागर प्राप्त करता है और शीघ्र ही सत्य, शांति और कल्याण को प्राप्त करता है।
॥ श्रीमद् दिव्य-परशुराम अष्टक स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
लाभ (Benefits):
- शत्रु एवं संकट से रक्षा:
यह स्तोत्र पढ़ने से जीवन के सभी शत्रु, विघ्न-बाधाएं और संकट दूर होते हैं। - धैर्य, पराक्रम और आत्मबल की वृद्धि:
भगवान परशुराम वीरता और तप के प्रतीक हैं। उनके स्तोत्र का जप करने से साहस, शक्ति और आत्मबल बढ़ता है। - दुष्टों पर विजय:
जो व्यक्ति अन्याय, शोषण या अत्याचार का शिकार हो, उसे यह स्तोत्र अवश्य पढ़ना चाहिए। इससे अन्यायी शक्तियों पर विजय मिलती है। - रोग और दोषों से मुक्ति:
यह स्तोत्र मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि के साथ-साथ कई प्रकार के रोगों एवं दोषों से मुक्ति दिलाता है। - गुरुकृपा एवं विद्या की प्राप्ति:
भगवान परशुराम को शस्त्र एवं शास्त्र दोनों के आचार्य माना गया है। इस स्तोत्र का जप करने से गुरुकृपा और विद्या में सफलता मिलती है।
पाठ विधि (Vidhi):
- स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल पर भगवान परशुराम जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- दीपक, धूप, पुष्प, चंदन आदि से पूजन करें।
- “ॐ परशुरामाय नमः” मंत्र से भगवान का ध्यान करें।
- इसके बाद श्रद्धा व भक्ति से “श्रीमद् दिव्य-परशुराम अष्टक स्तोत्र” का पाठ करें।
- अंत में भगवान से प्रार्थना करें और आरती करें।
विशेष: यदि प्रतिदिन संभव न हो, तो विशेष रूप से मंगलवार, गुरुवार या अक्षय तृतीया पर इसका पाठ अत्यंत फलदायक माना जाता है।
जप का उपयुक्त समय (Best Time for Jaap):
- प्रातःकाल (सुबह 5 से 7 बजे के बीच) – यह समय मन को एकाग्र और शांत करता है।
- सायंकाल (शाम 6 से 8 बजे के बीच) – कार्यों के बाद मानसिक शुद्धि के लिए उपयुक्त।
- त्रिसंध्या (प्रातः, दोपहर, संध्या तीनों समय) – यदि कोई त्रिकाल संध्या में इस स्तोत्र का जप करे तो विशेष पुण्य और कृपा प्राप्त होती है।