“श्रीकृष्ण कृतं दुर्गा स्तोत्रम्” एक दिव्य स्तोत्र है जो भगवान श्रीकृष्ण द्वारा देवी दुर्गा की स्तुति में रचा गया है। यह स्तोत्र देवी की महाशक्ति, करुणा, रक्षण और सृष्टि-संहार की क्षमताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करता है। इसमें माँ दुर्गा को जगतजननी, मूलप्रकृति, त्रिगुणात्मिका, ज्ञान और शक्ति की अधिष्ठात्री बताया गया है।
यह स्तोत्र न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि साधकों को शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक और आध्यात्मिक संकटों से मुक्ति दिलाने वाला भी माना गया है। स्तोत्र में देवी की शक्ति, सौंदर्य, दया, बुद्धि, और सिद्धि देने वाली स्वरूपों का उल्लेख किया गया है, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हैं।
इस स्तोत्र का नित्य पाठ अथवा श्रवण करने से—
- स्त्रियों को संतान सुख मिलता है,
- बंदी मुक्त हो जाते हैं,
- असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है,
- पारिवारिक विघटन समाप्त होता है,
- और निर्धन व्यक्ति भी विद्वान और संपन्न हो जाता है।
श्रीकृष्ण कृतं दुर्गा स्तोत्रम्
त्वमेव सर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी ।
त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका ॥ 1
कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम् ।
परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी ॥ 2
तेज: स्वरूपा परमा भक्तानुग्रहविग्रहा ।
सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा ॥ 3
सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया ।
सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमङ्गलमङ्गला ॥ 4
सर्वबुद्धिस्वरूपा च सर्वशक्ति स्वरूपिणी ।
सर्वज्ञानप्रदा देवी सर्वज्ञा सर्वभाविनी ॥ 5
त्वं स्वाहा देवदाने च पितृदाने स्वधा स्वयम् ।
दक्षिणा सर्वदाने च सर्वशक्ति स्वरूपिणी ॥ 6
निद्रा त्वं च दया त्वं च तृष्णा त्वं चात्मन: प्रिया ।
क्षुत्क्षान्ति: शान्तिरीशा च कान्ति: सृष्टिश्च शाश्वती ॥ 7
श्रद्धा पुष्टिश्च तन्द्रा च लज्जा शोभा दया तथा ।
सतां सम्पत्स्वरूपा श्रीर्विपत्तिरसतामिह ॥ 8
प्रीतिरूपा पुण्यवतां पापिनां कलहाङ्कुरा ।
शश्वत्कर्ममयी शक्ति: सर्वदा सर्वजीविनाम् ॥ 9
देवेभ्य: स्वपदो दात्री धातुर्धात्री कृपामयी ।
हिताय सर्वदेवानां सर्वासुरविनाशिनी ॥ 10
योगनिद्रा योगरूपा योगदात्री च योगिनाम् ।
सिद्धिस्वरूपा सिद्धानां सिद्धिदाता सिद्धयोगिनी ॥ 11
माहेश्वरी च ब्रह्माणी विष्णुमाया च वैष्णवी ।
भद्रदा भद्रकाली च सर्वलोकभयंकरी ॥ 12
ग्रामे ग्रामे ग्रामदेवी गृहदेवी गृहे गृहे ।
सतां कीर्ति: प्रतिष्ठा च निन्दा त्वमसतां सदा ॥ 13
महायुद्धे महामारी दुष्टसंहाररूपिणी ।
रक्षास्वरूपा शिष्टानां मातेव हितकारिणी ॥ 14
वन्द्या पूज्या स्तुता त्वं च ब्रह्मादीनां च सर्वदा ।
ब्राह्मण्यरूपा विप्राणां तपस्या च तपस्विनाम् ॥ 15
विद्या विद्यावतां त्वं च बुद्धिर्बुद्धिमतां सताम् ।
मेधास्मृतिस्वरूपा च प्रतिभा प्रतिभावताम् ॥ 16
राज्ञां प्रतापरूपा च विशां वाणिज्यरूपिणी ।
सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा त्वं रक्षारूपा च पालने ॥ 17
तथान्ते त्वं महामारी विश्वस्य विश्वपूजिते ।
कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च मोहिनी ॥ 18
दुरत्यया मे माया त्वं यया सम्मोहितं जगत् ।
यया मुग्धो हि विद्वांश्च मोक्षमार्ग न पश्यति ॥ 19
इत्यात्मना कृतं स्तोत्रं दुर्गाया दुर्गनाशनम् ।
पूजाकाले पठेद् यो हि सिद्धिर्भवति वाञ्छिता ॥ 20
वन्ध्या च काकवन्ध्या च मृतवत्सा च दुर्भगा ।
श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सुपुत्रं लभते ध्रुवम् ॥ 21
कारागारे महाघोरे यो बद्धो दृढबन्धने ।
श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं बन्धनान्मुच्यते ध्रुवम् ॥ 22
यक्ष्मग्रस्तो गलत्कुष्ठी महाशूली महाज्वरी ।
श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सद्यो रोगात् प्रमुच्यते ॥ 23
पुत्रभेदे प्रजाभेदे पत्नीभेदे च दुर्गत: ।
श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं लभते नात्र संशय: ॥ 24
राजद्वारे श्मशाने च महारण्ये रणस्थले ।
हिंस्त्रजन्तुसमीपे च श्रुत्वा स्तोत्रं प्रमुच्यते ॥ 25
गृहदाहे च दावाग्नौ दस्युसैन्यसमन्विते ।
स्तोत्रश्रवणमात्रेण लभते नात्र संशय: ॥ 26
महादरिद्रो मूर्खश्च वर्षं स्तोत्रं पठेत्तु य: ।
विद्यावान धनवांश्चैव स भवेन्नात्र संशय: ॥ 27
॥ इति श्रीकृष्ण कृतं दुर्गा स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्रीकृष्ण कृतं दुर्गा स्तोत्रम् हिंदी अनुवाद
आप ही सभी प्राणियों की जननी, मूल प्रकृति और ईश्वरी हैं।
आप ही सृष्टि की आदि शक्ति हैं, जो अपनी इच्छा से त्रिगुणों वाली होकर कार्य करती हैं। ॥ 1
कर्मों के लिए आप सगुण रूप में हैं, पर वास्तव में आप निर्गुण हैं।
आप परम ब्रह्मस्वरूपा, सत्य, नित्य और सनातनी हैं। ॥ 2
आप तेजस्वी स्वरूप वाली, परम शक्ति और भक्तों पर कृपा करने वाली हैं।
आप सभी रूपों में विद्यमान, सभी की ईश्वरी, सबका आधार और सबसे श्रेष्ठ हैं। ॥ 3
आप ही सभी बीजों की मूल हैं, सभी की पूजनीय हैं और किसी पर आश्रित नहीं हैं।
आप सर्वज्ञा, सर्वत्र शुभकारी और समस्त मंगलों की जननी हैं। ॥ 4
आप ही सभी बुद्धियों की स्वरूपा हैं और समस्त शक्तियों की अधिष्ठात्री हैं।
आप ज्ञान प्रदान करने वाली देवी हैं, सर्वज्ञ और सभी भावों में स्थित हैं। ॥ 5
आप स्वाहा स्वरूपा हैं जो देवताओं को दी जाती है, और स्वधा स्वरूपा हैं जो पितरों को दी जाती है।
आप दक्षिणा स्वरूपा हैं जो दान में दी जाती है, और सभी दानों की शक्ति हैं। ॥ 6
आप निद्रा स्वरूपा हैं, करुणा की स्वरूपा हैं, तृष्णा भी आप ही हैं और आत्मा को प्रिय भी आप ही हैं।
आप भूख, क्षमा, शांति, ऐश्वर्य, सृष्टि और शाश्वतता की स्वरूपा हैं। ॥ 7
आप श्रद्धा हैं, पुष्टि हैं, तंद्रा हैं, लज्जा, शोभा और दया भी हैं।
सज्जनों के लिए आप संपत्ति की रूप में और दुर्जनों के लिए आप विपत्ति की रूप में हैं। ॥ 8
आप पुण्यात्माओं के लिए प्रीति हैं और पापियों के लिए कलह की जड़ हैं।
आप हमेशा कर्ममयी शक्ति हैं और सभी जीवों में विद्यमान हैं। ॥ 9
आप देवताओं को अपना स्थान देने वाली, धारण करने वाली और करुणामयी हैं।
सभी देवताओं के हित के लिए और समस्त दुष्टों के नाश के लिए आप विद्यमान हैं। ॥ 10
आप योगनिद्रा हैं, योगस्वरूपा हैं और योगियों को योग देने वाली हैं।
आप सिद्धियों की स्वरूपा हैं, सिद्धों को सिद्धि देने वाली और सिद्धयोगिनी हैं। ॥ 11
आप माहेश्वरी, ब्राह्मणी और विष्णुमाया वैष्णवी हैं।
आप शुभदायिनी, भद्रकाली और सभी लोकों के भय को नष्ट करने वाली हैं। ॥ 12
हर ग्राम में आप ग्रामदेवी हैं, हर घर में आप गृहदेवी हैं।
सज्जनों के लिए आप यश और प्रतिष्ठा हैं, और असज्जनों के लिए निंदा हैं। ॥ 13
महायुद्ध, महामारियों और दुष्टों के संहार के रूप में आप प्रकट होती हैं।
सज्जनों की रक्षक बनकर माता की तरह उनका हित करती हैं। ॥ 14
आप सदा ब्रह्मा आदि देवताओं द्वारा वंदनीय, पूजनीय और स्तुत्य हैं।
आप ब्राह्मणों में ब्राह्मण्य रूप में और तपस्वियों में तपस्या के रूप में स्थित हैं। ॥ 15
आप विद्वानों में विद्या हैं और बुद्धिमानों में बुद्धि हैं।
आप मेधा, स्मृति और प्रतिभाशाली व्यक्तियों में प्रतिभा की रूप में स्थित हैं। ॥ 16
आप राजाओं में प्रताप हैं और व्यापारियों में वाणिज्य की स्वरूपा हैं।
आप सृष्टि में सृजन की शक्ति और पालन में रक्षण की शक्ति हैं। ॥ 17
आप अंत में भी महामारिका हैं, समस्त विश्व की पूज्या हैं।
आप कालरात्रि, महारात्रि, मोह की रात्रि और मोहिनी स्वरूपा हैं। ॥ 18
आप मेरी अति कठिन माया हैं जिससे यह संपूर्ण जगत मोहित हो जाता है।
जिससे विद्वान भी मुग्ध होकर मोक्ष का मार्ग नहीं देख पाते। ॥ 19
इस प्रकार आत्मभाव से यह स्तोत्र दुर्गा देवी के लिए रचा गया है, जो समस्त दुःखों का नाश करने वाला है।
जो व्यक्ति इसे पूजा के समय पढ़ता है, उसे मनचाही सिद्धि प्राप्त होती है। ॥ 20
जो स्त्री बांझ है, बार-बार संतान का नाश होता है या दुर्भाग्यशाली है,
वह यदि एक वर्ष तक यह स्तोत्र सुनती है, तो निश्चय ही सुपुत्र को प्राप्त करती है। ॥ 21
जो व्यक्ति किसी भयंकर कारागार में बंद है और दृढ़ बंधनों में बंधा है,
वह यदि एक माह तक यह स्तोत्र सुनता है, तो निश्चित ही बंधनों से मुक्त हो जाता है। ॥ 22
जो व्यक्ति तपेदिक, गले के रोग, कोढ़, तीव्र पीड़ा और ज्वर से ग्रस्त है,
वह यदि एक वर्ष तक यह स्तोत्र सुनता है, तो तुरंत ही रोगों से मुक्त हो जाता है। ॥ 23
जिसके पुत्र, संतान या पत्नी से संबंध बिगड़े हों, वह यदि एक माह तक यह स्तोत्र सुने,
तो उसे निश्चित रूप से समाधान प्राप्त होता है। ॥ 24
राजमहल, श्मशान, गहन वन या युद्ध भूमि में,
या हिंसक जानवरों के समीप यह स्तोत्र सुनने मात्र से मुक्ति मिलती है। ॥ 25
घर में अग्निकांड, जंगल की आग या डाकुओं की सेना के बीच,
सिर्फ स्तोत्र के श्रवण मात्र से रक्षा प्राप्त होती है, इसमें कोई संशय नहीं। ॥ 26
जो अत्यंत गरीब और मूर्ख है, वह यदि एक वर्ष तक यह स्तोत्र पढ़े,
तो वह विद्वान और धनवान बन जाता है, इसमें कोई संदेह नहीं है। ॥ 27
॥ इस प्रकार श्रीकृष्ण कृत दुर्गा स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥
लाभ (Benefits):
- संतान प्राप्ति: जो स्त्रियाँ संतानहीन हैं, उन्हें इस स्तोत्र के नियमित श्रवण या पाठ से योग्य संतान की प्राप्ति होती है।
- बंधनों से मुक्ति: जो व्यक्ति कारावास, मानसिक बंधन या किसी बंधन में है, वह एक माह तक श्रवण या पाठ करे तो बंधन से मुक्त होता है।
- रोगों से मुक्ति: तपेदिक, कुष्ठ, ज्वर, शूल जैसे कठिन रोगों से ग्रस्त व्यक्ति एक वर्ष तक इसका श्रवण करे तो रोग दूर होते हैं।
- पारिवारिक समस्याओं का समाधान: यदि परिवार में कलह, पति-पत्नी में अनबन, संतान से मतभेद आदि हैं, तो यह स्तोत्र शांति और प्रेम लाता है।
- रक्षा कवच जैसा कार्य करता है: यह स्तोत्र युद्ध, महामारी, जंगल, अग्निकांड या डाकुओं के भय से रक्षा करता है।
- दरिद्रता और मूर्खता का नाश: निर्धन और अशिक्षित व्यक्ति यदि नियमित पाठ करे, तो वह विद्या और धन से समृद्ध हो जाता है।
- सिद्धि और इच्छाओं की पूर्ति: साधक को मनवांछित सिद्धियाँ, शांति और देवी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
विधान (पाठ / श्रवण की विधि):
- स्थान: शांत और स्वच्छ स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- स्नान आदि करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र के समक्ष दीपक और अगरबत्ती जलाएँ।
- पंचोपचार या षोडशोपचार पूजा करें (यदि समय हो तो)।
- ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे’ बीज मंत्र का 9 या 11 बार जाप करें।
- इसके बाद “श्रीकृष्ण कृतं दुर्गा स्तोत्रम्” का पाठ करें अथवा शुद्ध भाव से श्रवण करें।
- पाठ के अंत में देवी से अपनी मनोकामना कहें और आभार व्यक्त करें।
यदि संभव हो तो हर दिन पाठ करें, नहीं तो मंगलवार, शुक्रवार, या नवरात्रि के नौ दिन विशेष फलदायी माने गए हैं।
जाप का उपयुक्त समय (Best Time to Chant or Listen):
- प्रातः काल (सुबह 4 से 6 बजे के बीच) – सर्वोत्तम समय होता है जब वातावरण शांत होता है और मानसिक एकाग्रता अधिक होती है।
- संध्या काल (शाम 6 से 8 बजे के बीच) – विशेषतः दीप जलाकर पाठ या श्रवण करें, शुभ फल प्राप्त होते हैं।
- अवश्य करें – नवरात्रि, दुर्गा अष्टमी, पूर्णिमा, अमावस्या, या विशेष संकट के समय।
- विशेष परिस्थिति में – रोग, बंदी जीवन, संकट या दरिद्रता से मुक्ति हेतु, नित्य पाठ या एक वर्ष तक नियमित श्रवण अत्यंत प्रभावी माना गया है।