“श्री सुब्रह्मण्य करावलम्ब स्तोत्रम्” भगवान कार्तिकेय (सुब्रह्मण्य स्वामी) को समर्पित एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसकी रचना आदि शंकराचार्य जी ने की थी। इस स्तोत्र में भक्त भगवान सुब्रह्मण्य से करुणा, सुरक्षा और मार्गदर्शन की प्रार्थना करता है – ठीक वैसे ही जैसे कोई बालक अपनी माँ या पिता से सहायता माँगता है।
भगवान सुब्रह्मण्य, जिन्हें स्कंद, मुरुगन, कुमारस्वामी, षण्मुख आदि नामों से भी जाना जाता है, युद्ध, बुद्धि, शक्ति और दिव्य ज्ञान के देवता हैं। वे भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र तथा भगवान गणेश के भाई हैं। दक्षिण भारत में विशेष रूप से उनकी पूजा अत्यधिक श्रद्धा से की जाती है।
इस स्तोत्र में आठ मुख्य श्लोक (अष्टकम्) हैं, जिनमें भगवान के रूप, गुण, पराक्रम और करुणा का भावपूर्ण वर्णन है। प्रत्येक श्लोक के अंत में “वल्लीसनाथ मम देहि करावलंबम्” यह पंक्ति दोहराई जाती है, जिसका अर्थ है — “वल्ली के स्वामी, मुझे अपना सहारा दीजिए।” यह पंक्ति भक्त की पूर्ण समर्पण भावना को दर्शाती है।
श्री सुब्रह्मण्य करावलम्ब स्तोत्रम्
हे स्वामिनाथ करुणाकर दीनबंधो,
श्रीपार्वतीशमुखपंकज पद्मबंधो ।
श्रीशादिदेवगणपूजितपादपद्म,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलंबम् ॥
देवादिदेवनुत देवगणाधिनाथ,
देवेंद्रवंद्य मृदुपंकजमंजुपाद ।
देवर्षिनारदमुनींद्रसुगीतकीर्ते,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलंबम् ॥
नित्यान्नदान निरताखिल रोगहारिन्,
तस्मात्प्रदान परिपूरितभक्तकाम ।
शृत्यागमप्रणववाच्यनिजस्वरूप,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलंबम् ॥
क्रौंचासुरेंद्र परिखंडन शक्तिशूल,
पाशादिशस्त्रपरिमंडितदिव्यपाणे ।
श्रीकुंडलीश धृततुंड शिखींद्रवाह,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलंबम् ॥
देवादिदेव रथमंडल मध्य वेद्य,
देवेंद्र पीठनगरं दृढचापहस्तम् ।
शूरं निहत्य सुरकोटिभिरीड्यमान,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलंबम् ॥
हारादिरत्नमणियुक्तकिरीटहार,
केयूरकुंडललसत्कवचाभिराम ।
हे वीर तारक जयाऽमरबृंदवंद्य,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलंबम् ॥
पंचाक्षरादिमनुमंत्रित गांगतोयैः,
पंचामृतैः प्रमुदितेंद्रमुखैर्मुनींद्रैः ।
पट्टाभिषिक्त हरियुक्त परासनाथ,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलंबम् ॥
श्रीकार्तिकेय करुणामृतपूर्णदृष्ट्या,
कामादिरोगकलुषीकृतदुष्टचित्तम् ।
भक्त्वा तु मामवकलाधर कांतिकांत्या,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलंबम् ॥
फलश्रुति
सुब्रह्मण्य करावलंबं पुण्यं ये पठंति द्विजोत्तमाः ।
ते सर्वे मुक्ति मायांति सुब्रह्मण्य प्रसादतः ।
सुब्रह्मण्य करावलंबमिदं प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।
कोटिजन्मकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति ॥
॥ इति श्री सुब्रह्मण्य करावलम्ब स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्री सुब्रह्मण्य करावलम्ब स्तोत्रम् — हिंदी अनुवाद सहित (Sri Subrahmanya Karavalamba Stotram – with Hindi translation)
1.
हे स्वामिनाथ! करुणा के सागर, दीनों के बंधु,
श्री पार्वतीजी के मुखकमल के समान चरणों में बंधे हुए,
देवों के भी आदि देवों द्वारा पूजित आपके कमल समान चरणों वाले प्रभो,
वल्ली के स्वामी! कृपा करके मुझे अपना हाथ दीजिए, मुझे संभालिए।
2.
हे देवों के भी देव, जिनकी पूजा देवगण करते हैं,
जिनके कोमल चरणों की देवेंद्र भी वंदना करते हैं,
जिनकी कीर्ति देवर्षि नारद व अन्य ऋषिगण गाते हैं,
वल्ली के स्वामी! कृपा करके मुझे सहारा दीजिए।
3.
जो प्रतिदिन अन्नदान करते हैं और सभी रोगों को हरने वाले हैं,
जो तुष्ट भक्तों की समस्त इच्छाएं पूर्ण करते हैं,
जो वेदों, उपनिषदों व ओंकार के रूप में वर्णित हैं,
वल्ली के स्वामी! मुझे अपना सहारा दीजिए।
4.
जो क्रौंच नामक दैत्य का वध करने वाले हैं,
जिनके दिव्य हाथ शक्ति, शूल और पाश जैसे अस्त्रों से सुशोभित हैं,
जो श्री कुंडलीश्वर की तरह मयूर वाहन पर सवार रहते हैं,
वल्ली के स्वामी! मुझे सहारा दीजिए।
5.
जो देवों के देव, रथ मंडल के मध्य में पूजनीय हैं,
जो देवेंद्र द्वारा रचित नगर में, धनुषधारी रूप में स्थित हैं,
जिन्होंने शूरपद्म राक्षस का वध किया और करोड़ों देवताओं द्वारा स्तुत हैं,
वल्ली के स्वामी! मुझे कृपा कर संभालिए।
6.
जो रत्नमय मुकुट, हार, केयूर, कुंडल और कवच से सुशोभित हैं,
जो तारकासुर पर विजय प्राप्त करने वाले वीर हैं,
जो अमरगणों द्वारा पूजित हैं,
वल्ली के स्वामी! मुझे कृपा कर संभालिए।
7.
जो पंचाक्षरी मंत्र से पवित्र किए गए गंगाजल और
पंचामृत से, इंद्र आदि देवताओं व मुनियों द्वारा अभिषेकित हैं,
जो हरि (विष्णु) के साथ सिंहासन पर प्रतिष्ठित हैं,
वल्ली के स्वामी! मुझे कृपा कर संभालिए।
8.
हे कार्तिकेय! जो करुणा से भरी दृष्टि से देखते हैं,
जो काम, रोग और पाप से दूषित चित्त को भी शुद्ध करते हैं,
कृपा करके मुझे अपनी चंद्रमा जैसे कान्तिवान मुखमंडल से देखिए और बचाइए,
वल्ली के स्वामी! मुझे सहारा दीजिए।
फलश्रुति (स्तुति पढ़ने का फल)
9.
जो श्रेष्ठ ब्राह्मणगण इस पवित्र “सुब्रह्मण्य करावलम्ब स्तोत्र” का पाठ करते हैं,
वे सभी भगवान सुब्रह्मण्य की कृपा से मुक्ति प्राप्त करते हैं।
जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रातःकाल इसका पाठ करता है,
उसके करोड़ों जन्मों के पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं।
॥ इति श्री सुब्रह्मण्य करावलम्ब स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्री सुब्रह्मण्य करावलम्ब स्तोत्रम् के लाभ (Benefits)
- रोगों से मुक्ति:
यह स्तोत्र शरीर और मन के रोगों से मुक्ति देने वाला है। विशेष रूप से त्वचा, हड्डियों, रक्त आदि से संबंधित रोगों में यह अत्यंत प्रभावी माना गया है। - शत्रु बाधा एवं भय से रक्षा:
यह स्तोत्र शत्रुओं से रक्षा करता है और मन के भय, भ्रम, अशांति को शांत करता है। - बुद्धि, साहस और आत्मबल की वृद्धि:
भगवान सुब्रह्मण्य ज्ञान और वीरता के देवता हैं। इस स्तोत्र का नियमित पाठ आत्मबल, निर्भयता और निर्णय शक्ति को प्रबल बनाता है। - आध्यात्मिक उन्नति और कृपा की प्राप्ति:
यह स्तोत्र आत्म-शुद्धि एवं भगवान की कृपा प्राप्त करने हेतु अत्यंत उपयोगी है। इससे मोक्ष के मार्ग की प्राप्ति होती है। - कोटि जन्मों के पाप नष्ट:
स्तोत्र में उल्लेख है कि इसका प्रातःकाल पाठ करने से करोड़ों जन्मों के पाप तत्काल नष्ट हो जाते हैं।
पाठ विधि (Vidhi)
- स्थान:
शांत, स्वच्छ और पवित्र स्थान का चयन करें — घर का मंदिर, किसी देवालय का एकांत कोना, या ध्यान कक्ष उपयुक्त रहेगा। - स्नान एवं शुद्धि:
पाठ से पूर्व स्नान कर लें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मन और शरीर की शुद्धि अनिवार्य है। - भगवान सुब्रह्मण्य का ध्यान करें:
उनके समक्ष दीपक, धूप, पुष्प, फल, जल आदि अर्पित करें।
उन्हें मयूर वाहन, शक्ति और शूल धारण किए हुए, वल्ली और देवसेना के साथ ध्यान करें। - आसन:
सिद्धासन, पद्मासन या सुखासन में बैठें। पाठ करते समय स्थिरता और मन की एकाग्रता बनाए रखें। - संकल्प:
मानसिक रूप से संकल्प लें कि आप यह स्तोत्र भगवान सुब्रह्मण्य की कृपा प्राप्ति के लिए कर रहे हैं। - पाठ की संख्या:
आप इसे 1 बार, 3 बार, या श्रद्धानुसार 11 बार तक भी पढ़ सकते हैं। रविवार, मंगलवार और षष्ठी तिथि पर विशेष फल मिलता है।
जप या पाठ का उचित समय (Best Jaap Time)
- प्रातः काल (Brahma Muhurat):
सुबह 4 बजे से 6 बजे के बीच — यह सबसे उत्तम समय है। - सूर्योदय से पूर्व या तुरंत बाद:
जब वातावरण शांत हो और मन एकाग्र हो। - विशेष दिन:
- मंगलवार और रविवार
- षष्ठी तिथि (हर मास की)
- स्कंद षष्ठी, थाई पूसम, कार्तिक मास, और मुरुगन पर्व