श्री हनुमत पञ्चरत्नं स्तोत्र एक दिव्य स्तोत्र है जो भगवान श्री हनुमान जी की महिमा, सौंदर्य, भक्ति, पराक्रम और उनके अमर योगदान की स्तुति करता है। “पञ्चरत्न” का अर्थ है “पाँच रत्न” – इस स्तोत्र में पाँच मुख्य श्लोक हैं जो हनुमान जी के पाँच अमूल्य गुणों को उजागर करते हैं, और अंत में एक फलश्रुति श्लोक है।
इस स्तोत्र की रचना जगद्गुरु श्री आदि शंकराचार्य द्वारा की गई मानी जाती है, जो स्वयं महान संत, अद्वैत वेदांत के प्रणेता और परम शिवभक्त थे। उन्होंने यह स्तोत्र अत्यंत श्रद्धा और भक्ति से हनुमान जी की स्तुति में रचा, जिससे साधक न केवल भक्ति से ओतप्रोत होते हैं, बल्कि श्रीराम भक्ति का मार्ग भी प्राप्त करते हैं।
हनुमान जी को भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त, महाशक्ति के प्रतीक, और संकट हरने वाले के रूप में पूजा जाता है। यह स्तोत्र उन्हें हृदय से स्मरण करने का एक सुंदर माध्यम है। इसका पाठ मन को शुद्ध करता है, भय दूर करता है और भगवान श्रीराम के चरणों में भक्ति प्रदान करता है।
श्री हनुमत पञ्चरत्नं स्तोत्र
Sri Hanumat Pancharatnam Stotram
वीताखिल-विषयेच्छं जातानन्दाश्र पुलकमत्यच्छम् ।
सीतापति दूताद्यं वातात्मजमद्य भावये हृद्यम् ॥ १ ॥
तरुणारुण मुख-कमलं करुणा-रसपूर-पूरितापाङ्गम् ।
सञ्जीवनमाशासे मञ्जुल-महिमानमञ्जना-भाग्यम् ॥ २ ॥
शम्बरवैरि-शरातिगमम्बुजदल-विपुल-लोचनोदारम् ।
कम्बुगलमनिलदिष्टम् बिम्ब-ज्वलितोष्ठमेकमवलम्बे ॥ ३ ॥
दूरीकृत-सीतार्तिः प्रकटीकृत-रामवैभव-स्फूर्तिः ।
दारित-दशमुख-कीर्तिः पुरतो मम भातु हनुमतो मूर्तिः ॥ ४ ॥
वानर-निकराध्यक्षं दानवकुल-कुमुद-रविकर-सदृशम् ।
दीन-जनावन-दीक्षं पवन तपः पाकपुञ्जमद्राक्षम् ॥ ५ ॥
एतत्-एतत्पवन-सुतस्य स्तोत्रं
यः पठति पञ्चरत्नाख्यम् ।
चिरमिह-निखिलान् भोगान् भुङ्क्त्वा
श्रीराम-भक्ति-भाग्-भवति ॥ ६ ॥
॥ इति श्री हनुमत पञ्चरत्नं स्तोत्र संपूर्णम् ॥
श्री हनुमत पञ्चरत्नं स्तोत्र का हिंदी अनुवाद
1.
जो समस्त विषय-वासना से रहित हैं,
जिनके शरीर में आनंदाश्रु और रोमांच प्रकट होता है,
जो सीता के पति भगवान श्रीराम के दूत हैं —
ऐसे वातात्मज (पवनपुत्र) श्रीहनुमान को मैं अपने हृदय में स्मरण करता हूँ।
2.
जिनका मुख नवोदित अरुण कमल के समान है,
जिनकी दृष्टि करुणा से परिपूर्ण है,
जो अमृत समान जीवनदायी हैं,
जिनकी कीर्ति अत्यंत सुंदर है और जो अंजना माता का सौभाग्य हैं —
ऐसे श्रीहनुमान को मैं स्मरण करता हूँ।
3.
जो शत्रुओं के लिए श्रीराम के तीव्र बाणों के समान हैं,
जिनकी विशाल आंखें कमल की पंखुड़ियों जैसी हैं,
जिनका गला शंख के समान है,
जिनके होंठ बिम्ब फल के समान लाल हैं —
ऐसे एकमात्र श्रीहनुमान को मैं शरण लेता हूँ।
4.
जिन्होंने माता सीता के दुःख को दूर किया,
जिन्होंने भगवान श्रीराम की महिमा को प्रकट किया,
जिन्होंने रावण की कीर्ति को नष्ट किया —
ऐसे श्रीहनुमान मेरे समक्ष प्रकट हों।
5.
जो वानर सेना के नेता हैं,
दानवों के कुल के लिए सूर्य किरण के समान प्रचंड हैं,
जो दुःखी जनों की रक्षा का व्रत लेकर जन्मे हैं,
और जिनका तप महान पावन है —
ऐसे पवनपुत्र श्रीहनुमान को मैंने देखा है।
6.
जो भी इस पवनपुत्र श्रीहनुमान का
यह “पञ्चरत्न” नामक स्तोत्र पढ़ता है,
वह इस संसार में समस्त सुख भोग कर
अंततः श्रीराम की भक्ति को प्राप्त करता है।
॥ इति श्री हनुमत पञ्चरत्नं स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्री हनुमत पञ्चरत्नं स्तोत्र के लाभ (Benefits)
- भय और संकट से रक्षा: यह स्तोत्र पाठ करने से जीवन में आने वाले भय, विघ्न, रोग और शत्रुओं से रक्षा होती है।
- श्रीराम भक्ति की प्राप्ति: जैसा कि फलश्रुति में कहा गया है, यह स्तोत्र पाठ करने वाला अंततः श्रीराम भक्ति का अधिकारी बनता है।
- मन को शक्ति और स्थिरता मिलती है: मानसिक तनाव, भ्रम, और नकारात्मक विचारों से मुक्ति मिलती है।
- संकट मोचन: विशेष रूप से जीवन के कठिन समय, परीक्षाओं, मुकदमों या कठिन कार्यों में सफलता हेतु अत्यंत प्रभावशाली।
- आत्मिक शांति और ऊर्जा: पाठ करने से आत्मा में सकारात्मक ऊर्जा और उत्साह का संचार होता है।
- हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है: साधक को हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे जीवन में स्थिरता, भक्ति और उद्देश्य मिलता है।
पाठ विधि (Path Vidhi)
- स्थान चयन: शांत, स्वच्छ और पवित्र स्थान पर बैठें। चाहें तो हनुमान जी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें।
- स्नान कर लें: पाठ से पूर्व स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- दीपक जलाएं: हनुमान जी के समक्ष दीपक और अगरबत्ती लगाएं।
- संकल्प लें: अपने मन में संकल्प करें कि आप श्रद्धापूर्वक यह स्तोत्र पाठ कर रहे हैं।
- श्रद्धा और ध्यान से पाठ करें: एकाग्रचित्त होकर, उच्चारण में शुद्धता और भावनाओं में भक्ति रखकर पाठ करें।
- अंत में प्रार्थना करें: हनुमान जी से अपनी मनोकामना पूर्ण करने और श्रीराम भक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करें।
- नैवेद्य अर्पण करें (वैकल्पिक): यदि संभव हो, तो गुड़, चना, केला, या बूंदी अर्पित करें।
जाप का उपयुक्त समय (Best Time for Jaap)
- सर्वश्रेष्ठ समय:
🔸 सुबह ब्रह्ममुहूर्त (4:00 AM – 6:00 AM) — यह समय अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली माना जाता है।
🔸 शाम के समय सूर्यास्त के बाद — विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार को। - विशेष दिन:
🔹 मंगलवार और शनिवार — हनुमान जी के प्रिय दिन हैं, इन दिनों पाठ करने से विशेष फल मिलता है।
🔹 अमावस्या या पूर्णिमा — इन दिनों किया गया पाठ भी अत्यंत फलदायक होता है।