सरस्वती जी को प्रसन्न करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के अनेक उपाय हैं। माँ सरस्वती विद्या, संगीत, कला, बुद्धि और प्रकृति की देवी हैं। वे लक्ष्मी और पार्वती के साथ त्रिदेवी के रूप में जानी जाती हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव के कार्यों — सृष्टि, पालन और संहार — में सहायक होती हैं। जैन धर्म में भी पश्चिम और मध्य भारत के अनुयायी देवी सरस्वती की आराधना करते हैं।
माँ सरस्वती को ज्ञान और बुद्धिमत्ता की जननी माना गया है। उनके बिना कोई भी ज्ञान संभव नहीं है। वे वेदों की भी जननी मानी जाती हैं। मोक्ष की प्राप्ति भी ज्ञान के बिना नहीं हो सकती। सरस्वती माता को विशेष रूप से श्वेत वस्त्र और हंसवाहिनी के रूप में पूजा जाता है, जो पवित्रता और सत्वगुण का प्रतीक है।
सरस्वती शब्द का अर्थ:
संस्कृत में “सर” का अर्थ होता है “सार” और “स्वती” का अर्थ “स्वरूप”। इस प्रकार सरस्वती का अर्थ होता है — “स्वयं का सार”। जो व्यक्ति ज्ञान की खोज में होते हैं, विशेषकर विद्यार्थी, शिक्षक, विद्वान एवं वैज्ञानिक — वे सरस्वती की पूजा करते हैं।
स्तोत्र का महत्व:
जैसे माँ सरस्वती की उपासना बुद्धि और ज्ञान देती है, वैसे ही श्री सरस्वती स्तोत्र का पाठ भी निरंतर विद्या, वाणी और विवेक के विकास में सहायक होता है। यह स्तोत्र विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है, क्योंकि यह स्मरण शक्ति, वाणी दोष निवारण और संप्रेषण क्षमता को मजबूत करता है।
श्री सरस्वती स्तोत्रम् (Shri Saraswati Stotra)
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रान्विता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा॥ ॥1॥
आशासु राशीभवदंगवल्लीभासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम।
मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दुं वन्देsरविन्दासनसुन्दरि त्वाम॥ ॥2॥
शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे।
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात॥ ॥3॥
सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम।
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः॥ ॥4॥
पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती।
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या॥ ॥5॥
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं।
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम॥
हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम॥ ॥6॥
वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले,
भक्तार्तिनाशिनि विरिंचिहरीशवन्द्ये।
कीर्तिप्रदेsखिलमनोरथदे महार्हे,
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम॥ ॥7॥
श्वेताब्जपूर्णविमलासनसंस्थिते हे,
श्वेताम्बरावृतमनोहरमंजुगात्रे।
उद्यन्मनोज्ञसितपंकजमंजुलास्ये,
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम॥ ॥8॥
मातस्त्वदीयपदपंकजभक्तियुक्ता,
ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय।
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण,
भूवह्निवायुगगनाम्बुविनिर्मितेन॥ ॥9॥
मोहान्धकारभरिते ह्रदये मदीये,
मातः सदैव कुरु वासमुदारभावे।
स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रभाभिः,
शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम्॥ ॥10॥
ब्रह्मा जगत सृजति पालयतीन्दिरेशः,
शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावैः।
न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे,
न स्यु: कथंचिदपि ते निजकार्यदक्षाः॥ ॥11॥
लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टिः प्रभा धृतिः।
एताभिः पाहि तनुभिरष्टाभिर्मां सरस्वति॥ ॥12॥
सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः।
वेदवेदान्तवेदांगविद्यास्थानेभ्यः एव च॥ ॥13॥
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोsस्तु ते॥ ॥14॥
यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥ ॥15॥
श्री सरस्वती स्तोत्र का हिंदी अनुवाद (Hindi Translation of Shri Saraswati Stotra)
जो कुंद के फूल, चंद्रमा और हिम से भी अधिक उज्ज्वल हैं,
जो शुभ्र वस्त्रों से सुशोभित हैं,
जिनके हाथों में वीणा और वर मुद्रा है,
जो श्वेत कमल पर विराजमान हैं,
जो ब्रह्मा, विष्णु और शंकर आदि देवताओं द्वारा सदा पूजित हैं —
वह भगवती सरस्वती, समस्त मूढ़ता का नाश करने वाली, मुझे रक्षा प्रदान करें। ॥1॥
आपके अंगों की आभा से दिशाएं प्रकाशमान हो रही हैं,
आपने समुद्र को भी अपनी दासी बना लिया है।
आपके मंद मुस्कान की शोभा चंद्रमा की सुंदरता को भी लज्जित कर देती है।
हे कमलासन पर विराजमान सुंदरि! मैं आपको नमन करता हूँ। ॥2॥
हे शारदा! हे कमल के समान मुख वाली देवी!
आप सदा और हर समय हम सभी के समीप निवास करें। ॥3॥
मैं उस सरस्वती देवी को नमस्कार करता हूँ जो वाणी की अधिष्ठात्री हैं।
जिनके कृपा से साधारण लोग भी दिव्यता को प्राप्त करते हैं। ॥4॥
जो हमारी बुद्धि को कुशाग्र बनाकर हीरे जैसा मूल्यवान बना देती हैं,
जो केवल वाणी से ही अज्ञानी और ज्ञानी के बीच भेद कर देती हैं —
वह सरस्वती हमारी रक्षा करें। ॥5॥
जो शुक्ल वर्ण की हैं, ब्रह्मज्ञान और वैराग्य की परम स्वरूपा हैं,
जो संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हैं,
जो हाथों में वीणा, पुस्तक, अभय मुद्रा और स्फटिक की माला धारण करती हैं,
जो पद्मासन पर विराजमान हैं —
ऐसी परमेश्वरी, बुद्धि देने वाली भगवती शारदा को मैं नमस्कार करता हूँ।
॥6॥
जो वीणा धारण करती हैं, मंगलदायिनी हैं,
भक्तों के दुःखों का नाश करती हैं, ब्रह्मा, विष्णु और शिव द्वारा पूजित हैं,
जो कीर्ति देती हैं, सभी मनोरथों को पूर्ण करती हैं,
ऐसी सर्वश्रेष्ठ विद्या देने वाली सरस्वती को मैं नित्य प्रणाम करता हूँ।
॥7॥
जो श्वेत कमल से युक्त स्वच्छ आसन पर विराजमान हैं,
श्वेत वस्त्रों से ढकी हुईं, मनोहारी सुंदर शरीर वाली हैं,
जिनका चेहरा खिले हुए सुंदर सफेद कमल के समान है —
ऐसी विद्या देने वाली सरस्वती को मैं नित्य प्रणाम करता हूँ।
॥8॥
हे माता! जो व्यक्ति आपके चरणकमलों की भक्ति करते हैं
और अन्य सभी सांसारिक चीजों को त्यागकर केवल आपकी उपासना करते हैं,
वे इस भौतिक शरीर में रहते हुए भी अमरता प्राप्त कर लेते हैं।
॥9॥
हे माँ! मेरे मन में अज्ञान और मोह का अंधकार छाया हुआ है,
कृपा कर आप उसमें सदा वास करें।
अपने समस्त अंगों की दिव्य आभा से
मेरे हृदय के अंधकार को शीघ्र दूर करें।
॥10॥
ब्रह्मा संसार की सृष्टि करते हैं, इन्द्र इसकी रक्षा करते हैं,
शिव इसका संहार करते हैं — यह सब आपकी शक्ति से ही संभव है।
यदि आपकी कृपा और प्रभाव न हो,
तो वे तीनों देवता भी अपने-अपने कार्यों में अक्षम हो जाएँ।
॥11॥
हे सरस्वती! लक्ष्मी, मेधा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा और धृति —
इन आठ रूपों से आप मेरी रक्षा करें।
॥12॥
नित्य मैं सरस्वती को, भद्रकाली को बारम्बार नमस्कार करता हूँ,
जो वेद, वेदांत, वेदांग और समस्त विद्याओं की अधिष्ठात्री हैं।
॥13॥
हे सरस्वती! हे महाभाग्यशालिनी! हे कमल नेत्रों वाली!
हे विशाल नेत्रों वाली, विद्यारूपा देवी!
मुझे विद्या दीजिए, आपको मेरा नमस्कार है।
॥14॥
यदि इस स्तोत्र में कोई अक्षर या शब्द छूट गया हो,
कोई मात्रा या उच्चारण त्रुटि हो गई हो,
तो हे परमेश्वरी! कृपा कर वह सब क्षमा करें।
॥15॥
॥ इति श्री सरस्वती स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्री सरस्वती स्तोत्र के लाभ (Benefits of Shri Saraswati Stotra):
- इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति अत्यधिक विद्वान और प्रसिद्ध बनता है।
- वाणी दोष (Speech Disorder) से पीड़ित बच्चों को इसका नित्य जप करने से स्पष्ट और सही उच्चारण में सहायता मिलती है।
- यह स्तोत्र बोलने की शक्ति देता है और प्रभावशाली संवाद कौशल (communication skill) में वृद्धि करता है।
- आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति करने वालों के लिए भी यह स्तोत्र अत्यंत फलदायक है।
किन्हें करना चाहिए इस स्तोत्र का पाठ (Who should recite this stotra):
- वे सभी व्यक्ति जो ज्ञान, बुद्धि और वाणी की शक्ति प्राप्त करना चाहते हैं।
- विद्यार्थी, शिक्षक, शोधकर्ता और वक्ता इस स्तोत्र से विशेष लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
- जिन बच्चों को बोलने में देरी हो या जिनकी वाणी में रुकावट हो — उनके लिए यह स्तोत्र अत्यंत उपयोगी है।