“श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्रम्” एक अत्यंत दिव्य और प्रभावशाली स्तोत्र है जो भगवान विष्णु (नारायण) और माता लक्ष्मी की संयुक्त आराधना हेतु रचा गया है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान लक्ष्मी-नारायण के सौंदर्य, करुणा, दिव्यता और कल्याणकारी स्वरूप का ध्यान करने का अवसर प्रदान करता है।
इस स्तोत्र में लक्ष्मी-नारायण की महिमा, उनके अवतारों की महत्ता, उनकी कृपा से संसार के कष्टों का निवारण, भक्तों की रक्षा और मुक्ति प्रदान करने की शक्ति का सुंदर वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया है कि भगवान नारायण और माता लक्ष्मी ही सृष्टि के पालनकर्ता, समृद्धि और सुख के दाता हैं।
जो भक्त इस स्तोत्र का श्रद्धा और विश्वास से पाठ करते हैं, उन्हें सांसारिक सुख, आध्यात्मिक शांति और ईश्वर की अनुकंपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए कल्याणकारी है जो जीवन में आर्थिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन प्राप्त करना चाहते हैं।
यह स्तोत्र साधना के लिए एक अमूल्य रचना है, जो व्यक्ति को विष्णु-लक्ष्मी स्वरूप की उपासना के माध्यम से आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है।
श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्रम्
ध्यानम् –
चक्रं विद्या वर घट गदा दर्पणम् पद्मयुग्मं
दोर्भिर्बिभ्रत्सुरुचिरतनुं मेघविद्युन्निभाभम् ।
गाढोत्कण्ठं विवशमनिशं पुण्डरीकाक्षलक्ष्म्यो
रेकीभूतं वपुरवतु वः पीतकौशेयकान्तम् ॥ 1 ॥
शंखचक्रगदापद्मकुंभाऽऽदर्शाब्जपुस्तकम् ।
बिभ्रतं मेघचपलवर्णं लक्ष्मीहरिं भजे ॥ 2 ॥
विद्युत्प्रभाश्लिष्टघनोपमानौ
शुद्धाशयेबिंबितसुप्रकाशौ ।
चित्ते चिदाभौ कलयामि लक्ष्मी-
नारायणौ सत्त्वगुणप्रधानौ ॥ 3 ॥
लोकोद्भवस्थेमलयेश्वराभ्यां
शोकोरुदीनस्थितिनाशकाभ्याम् ।
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-
नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥ 4 ॥
सम्पत्सुखानन्दविधायकाभ्यां
भक्तावनाऽनारतदीक्षिताभ्याम् ।
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-
नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥ 5 ॥
दृष्ट्वोपकारे गुरुतां च पञ्च-
विंशावतारान् सरसं दधत्भ्याम् ।
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी
नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥ 6 ॥
क्षीरांबुराश्यादिविराट्भवाभ्यां
नारं सदा पालयितुं पराभ्याम् ।
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-
नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥ 7 ॥
दारिद्र्यदुःखस्थितिदारकाभ्यां
दयैवदूरीकृतदुर्गतिभ्याम् ।
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-
नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥ 8 ॥
भक्तव्रजाघौघविदारकाभ्यां
स्वीयाशयोद्धूतरजस्तमोभ्याम् ।
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-
नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥ 9 ॥
रक्तोत्पलाभ्राभवपुर्धराभ्यां
पद्मारिशंखाब्जगदाधराभ्याम् ।
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-
नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥ 10 ॥
अङ्घ्रिद्वयाभ्यर्चककल्पकाभ्यां
मोक्षप्रदप्राक्तनदंपतीभ्याम् ।
नित्यं युवाभ्यां नतिरस्तु लक्ष्मी-
नारायणाभ्यां जगतः पितृभ्याम् ॥ 11 ॥
इदं तु यः पठेत् स्तोत्रं लक्ष्मीनारयणाष्टकम् ।
ऐहिकामुष्मिकसुखं भुक्त्वा स लभतेऽमृतम् ॥ 12 ॥
।। इति श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्रम् संपूर्णम् ।।
श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्रम् (हिंदी अनुवाद)
ध्यानम् –
जो अपने चारों हाथों में चक्र, विद्या, वर, घट (कलश), गदा, दर्पण तथा दो कमल के फूल धारण करते हैं,
जिनका सुंदर शरीर मेघ और बिजली के समान चमकता है,
जो श्री लक्ष्मी के साथ अत्यंत प्रेम में लीन हैं,
ऐसे पीताम्बरधारी, कमलनयन भगवान का रूप आपकी रक्षा करे ॥ 1 ॥
जो शंख, चक्र, गदा, कमल, कलश, दर्पण, कमल और पुस्तक धारण करते हैं,
जो मेघ और बिजली के समान वर्ण वाले हैं,
ऐसे लक्ष्मी और हरि (नारायण) को मैं नमस्कार करता हूँ ॥ 2 ॥
जो विद्युत की प्रभा से युक्त मेघ के समान हैं,
जो शुद्ध मन में प्रतिबिंबित होकर प्रकट होते हैं,
ऐसे चेतन्यस्वरूप, सतोगुणप्रधान लक्ष्मी-
नारायण को मैं हृदय में अनुभव करता हूँ ॥ 3 ॥
जो सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के अधिपति हैं,
जो दुख और शोक का नाश करने वाले हैं,
ऐसे लक्ष्मी-नारायण, जो संसार के माता-पिता हैं,
उन्हें मैं नित्य प्रणाम करता हूँ ॥ 4 ॥
जो सुख, समृद्धि और आनंद प्रदान करते हैं,
जो भक्तों की निरंतर रक्षा के लिए संकल्पबद्ध हैं,
ऐसे लक्ष्मी-नारायण, जो संसार के माता-पिता हैं,
उन्हें मैं नित्य प्रणाम करता हूँ ॥ 5 ॥
जो लोगों के कल्याण हेतु 25 अवतारों में प्रकट हुए हैं,
जो उपकार करने में अग्रणी हैं,
ऐसे लक्ष्मी-नारायण, जो संसार के माता-पिता हैं,
उन्हें मैं नित्य प्रणाम करता हूँ ॥ 6 ॥
जो क्षीरसागर और विराट रूप से उत्पन्न हुए हैं,
जो नित्य नार (जीवों) की रक्षा करते हैं,
ऐसे लक्ष्मी-नारायण, जो संसार के माता-पिता हैं,
उन्हें मैं नित्य प्रणाम करता हूँ ॥ 7 ॥
जो दरिद्रता और दुखों को दूर करते हैं,
जो दया के द्वारा दुर्भाग्य को नष्ट कर देते हैं,
ऐसे लक्ष्मी-नारायण, जो संसार के माता-पिता हैं,
उन्हें मैं नित्य प्रणाम करता हूँ ॥ 8 ॥
जो भक्तों के पापों को नष्ट करते हैं,
जो अपने ज्ञान से रज और तम गुणों को हटाते हैं,
ऐसे लक्ष्मी-नारायण, जो संसार के माता-पिता हैं,
उन्हें मैं नित्य प्रणाम करता हूँ ॥ 9 ॥
जिनके शरीर रक्तकमल और बादल के रंग जैसे हैं,
जो कमल, सूर्य, शंख, गदा और कमल धारण करते हैं,
ऐसे लक्ष्मी-नारायण, जो संसार के माता-पिता हैं,
उन्हें मैं नित्य प्रणाम करता हूँ ॥ 10 ॥
जिनके चरणों की पूजा कल्पवृक्ष के समान फलदायी है,
जो पूर्व जन्मों में भी मोक्ष प्रदान करने वाले थे,
ऐसे लक्ष्मी-नारायण, जो संसार के माता-पिता हैं,
उन्हें मैं नित्य प्रणाम करता हूँ ॥ 11 ॥
जो कोई व्यक्ति इस लक्ष्मी-नारायण अष्टक स्तोत्र का पाठ करता है,
वह इस लोक और परलोक दोनों का सुख भोग कर अमृत पद को प्राप्त करता है ॥ 12 ॥
।। इति श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्रम् संपूर्णम् ।।
लाभ (Benefits):
- सौभाग्य और समृद्धि में वृद्धि – यह स्तोत्र लक्ष्मीजी की कृपा से घर में धन, वैभव और सुख-संपत्ति बढ़ाता है।
- रोग, शोक और दरिद्रता का नाश – निरंतर पाठ करने से मानसिक तनाव, रोग, और आर्थिक संकट समाप्त होते हैं।
- भक्ति और आध्यात्मिक उन्नति – भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की संयुक्त उपासना आत्मा को शुद्ध करती है और मोक्ष की ओर ले जाती है।
- परिवार में शांति – पारिवारिक कलह, असंतोष व अस्थिरता दूर होकर शांति और सामंजस्य बना रहता है।
- व्यापार और नौकरी में सफलता – जो व्यक्ति व्यवसाय में असफलता या कार्य में रुकावट का सामना कर रहे हों, उनके लिए यह स्तोत्र अत्यंत शुभ है।
विधि (Puja Vidhi):
- स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें और पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- अपने सामने लक्ष्मी-नारायण जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- दीपक जलाएं, धूप और पुष्प अर्पित करें।
- मानसिक रूप से स्वयं को भगवान के चरणों में समर्पित करें।
- शांत चित्त से श्री लक्ष्मी नारायण स्तोत्र का पाठ करें।
- पाठ के अंत में भगवान से प्रार्थना करें कि वे आपके जीवन को सुख-शांति से भरें।
- श्रद्धा अनुसार नैवेद्य (फल या मिष्ठान्न) अर्पित करें।
जाप का समय (Best Time to Chant):
- प्रातःकाल (सुबह 5–7 बजे) – जब वातावरण शुद्ध और ऊर्जा प्रबल होती है।
- शाम के समय (6–8 बजे) – दिनभर की थकावट के बाद ध्यान व शांति के लिए उपयुक्त समय।
- विशेष अवसरों पर – दीपावली, अक्षय तृतीया, व्रत-पूजन, एकादशी, शुक्रवार, लक्ष्मी पूजन आदि दिन श्रेष्ठ हैं।