“श्रीराम भुजङ्ग प्रयात स्तोत्रम्” भगवान श्रीराम की महिमा, स्वरूप और लीलाओं का मधुर एवं भावपूर्ण स्तोत्र है, जिसकी रचना भुजङ्ग प्रयात छंद में की गई है। इस छंद में प्रत्येक श्लोक लहराता हुआ, नाग के समान संगीतमय रूप में प्रवाहित होता है — इसी कारण इसे “भुजङ्ग प्रयात” कहा जाता है।
यह स्तोत्र प्रभु श्रीराम के अद्वितीय गुणों का वर्णन करते हुए, उन्हें ब्रह्म, तारक मंत्र, ज्ञान और भक्ति के परम आधार के रूप में स्थापित करता है। स्तोत्र में उनकी शक्ति, सौंदर्य, भव्यता, दया, करुणा, भक्तों के प्रति प्रेम, और उनके राक्षसों के संहार का विस्तृत चित्रण है। साथ ही, स्तोत्र यह भी बताता है कि श्रीराम का निरंतर स्मरण और नामजप मृत्यु जैसे सबसे बड़े भय से भी रक्षा करता है।
इस स्तोत्र में भक्तों के प्रति भगवान की करुणा, हनुमान जी की भक्ति, और रामनाम की महिमा विशेष रूप से उभरकर सामने आती है। इसके अंत में यह स्पष्ट किया गया है कि जो व्यक्ति इस स्तोत्र का नित्य पाठ और चिंतन करता है, वह स्वयं प्रभु श्रीराम के स्वरूप का भागी बनता है।
यह स्तोत्र श्रद्धा, भक्ति और आत्मसमर्पण का अद्भुत संगम है, और भक्त को भगवान श्रीराम के प्रति एकात्म भाव से जोड़ देता है।
श्रीराम भुजंग प्रयात स्तोत्रम्
विशुद्धं परं सच्चिदानंदरूपं
गुणाधारमाधारहीनं वरेण्यम् ।
महांतं विभांतं गुहांतं गुणांतं
सुखांतं स्वयं धाम रामं प्रपद्ये ॥ 1 ॥
शिवं नित्यमेकं विभुं तारकाख्यं
सुखाकारमाकारशून्यं सुमान्यम् ।
महेशं कलेशं सुरेशं परेशं
नरेशं निरीशं महीशं प्रपद्ये ॥ 2 ॥
यदावर्णयत्कर्णमूलेऽंतकाले
शिवो राम रामेति रामेति काश्याम् ।
तदेकं परं तारकब्रह्मरूपं
भजेऽहं भजेऽहं भजेऽहं भजेऽहम् ॥ 3 ॥
महारत्नपीठे शुभे कल्पमूले
सुखासीनमादित्यकोटिप्रकाशम् ।
सदा जानकीलक्ष्मणोपेतमेकं
सदा रामचंद्रं भजेऽहं भजेऽहम् ॥ 4 ॥
क्वणद्रत्नमंजीरपादारविंदं
लसन्मेखलाचारुपीतांबराढ्यम् ।
महारत्नहारोल्लसत्कौस्तुभांगं
नदच्चंचरीमंजरीलोलमालम् ॥ 5 ॥
लसच्चंद्रिकास्मेरशोणाधराभं
समुद्यत्पतंगेंदुकोटिप्रकाशम् ।
नमद्ब्रह्मरुद्रादिकोटीररत्न
स्फुरत्कांतिनीराजनाराधितांघ्रिम् ॥ 6 ॥
पुरः प्रांजलीनांजनेयादिभक्तान्
स्वचिन्मुद्रया भद्रया बोधयंतम् ।
भजेऽहं भजेऽहं सदा रामचंद्रं
त्वदन्यं न मन्ये न मन्ये न मन्ये ॥ 7 ॥
यदा मत्समीपं कृतांतः समेत्य
प्रचंडप्रकोपैर्भटैर्भीषयेन्माम् ।
तदाविष्करोषि त्वदीयं स्वरूपं
सदापत्प्रणाशं सकोदंडबाणम् ॥ 8 ॥
निजे मानसे मंदिरे सन्निधेहि
प्रसीद प्रसीद प्रभो रामचंद्र ।
ससौमित्रिणा कैकयीनंदनेन
स्वशक्त्यानुभक्त्या च संसेव्यमान ॥ 9 ॥
स्वभक्ताग्रगण्यैः कपीशैर्महीशै-
रनीकैरनेकैश्च राम प्रसीद ।
नमस्ते नमोऽस्त्वीश राम प्रसीद
प्रशाधि प्रशाधि प्रकाशं प्रभो माम् ॥ 10 ॥
त्वमेवासि दैवं परं मे यदेकं
सुचैतन्यमेतत्त्वदन्यं न मन्ये ।
यतोऽभूदमेयं वियद्वायुतेजो
जलोर्व्यादिकार्यं चरं चाचरं च ॥ 11 ॥
नमः सच्चिदानंदरूपाय तस्मै
नमो देवदेवाय रामाय तुभ्यम् ।
नमो जानकीजीवितेशाय तुभ्यं
नमः पुंडरीकायताक्षाय तुभ्यम् ॥ 12 ॥
नमो भक्तियुक्तानुरक्ताय तुभ्यं
नमः पुण्यपुंजैकलभ्याय तुभ्यम् ।
नमो वेदवेद्याय चाद्याय पुंसे
नमः सुंदरायेंदिरावल्लभाय ॥ 13 ॥
नमो विश्वकर्त्रे नमो विश्वहर्त्रे
नमो विश्वभोक्त्रे नमो विश्वमात्रे ।
नमो विश्वनेत्रे नमो विश्वजेत्रे
नमो विश्वपित्रे नमो विश्वमात्रे ॥ 14 ॥
नमस्ते नमस्ते समस्तप्रपंच-
प्रभोगप्रयोगप्रमाणप्रवीण ।
मदीयं मनस्त्वत्पदद्वंद्वसेवां
विधातुं प्रवृत्तं सुचैतन्यसिद्ध्यै ॥ 15 ॥
शिलापि त्वदंघ्रिक्षमासंगिरेणु
प्रसादाद्धि चैतन्यमाधत्त राम ।
नरस्त्वत्पदद्वंद्वसेवाविधाना-
त्सुचैतन्यमेतीति किं चित्रमत्र ॥ 16 ॥
पवित्रं चरित्रं विचित्रं त्वदीयं
नरा ये स्मरंत्यन्वहं रामचंद्र ।
भवंतं भवांतं भरंतं भजंतो
लभंते कृतांतं न पश्यंत्यतोऽंते ॥ 17 ॥
स पुण्यः स गण्यः शरण्यो ममायं
नरो वेद यो देवचूडामणिं त्वाम् ।
सदाकारमेकं चिदानंदरूपं
मनोवागगम्यं परं धाम राम ॥ 18 ॥
प्रचंडप्रतापप्रभावाभिभूत-
प्रभूतारिवीर प्रभो रामचंद्र ।
बलं ते कथं वर्ण्यतेऽतीव बाल्ये
यतोऽखंडि चंडीशकोदंडदंडम् ॥ 19 ॥
दशग्रीवमुग्रं सपुत्रं समित्रं
सरिद्दुर्गमध्यस्थरक्षोगणेशम् ।
भवंतं विना राम वीरो नरो वा
सुरो वाऽमरो वा जयेत्कस्त्रिलोक्याम् ॥ 20 ॥
सदा राम रामेति रामामृतं ते
सदाराममानंदनिष्यंदकंदम् ।
पिबंतं नमंतं सुदंतं हसंतं
हनूमंतमंतर्भजे तं नितांतम् ॥ 21 ॥
सदा राम रामेति रामामृतं ते
सदाराममानंदनिष्यंदकंदम् ।
पिबन्नन्वहं नन्वहं नैव मृत्यो-
र्बिभेमि प्रसादादसादात्तवैव ॥ 22 ॥
असीतासमेतैरकोदंडभूषै-
रसौमित्रिवंद्यैरचंडप्रतापैः ।
अलंकेशकालैरसुग्रीवमित्रै-
ररामाभिधेयैरलं दैवतैर्नः ॥ 23 ॥
अवीरासनस्थैरचिन्मुद्रिकाढ्यै-
रभक्तांजनेयादितत्त्वप्रकाशैः ।
अमंदारमूलैरमंदारमालै-
ररामाभिधेयैरलं दैवतैर्नः ॥ 24 ॥
असिंधुप्रकोपैरवंद्यप्रतापै-
रबंधुप्रयाणैरमंदस्मिताढ्यैः ।
अदंडप्रवासैरखंडप्रबोधै-
ररामाभिधेयैरलं दैवतैर्नः ॥ 25 ॥
हरे राम सीतापते रावणारे
खरारे मुरारेऽसुरारे परेति ।
लपंतं नयंतं सदाकालमेवं
समालोकयालोकयाशेषबंधो ॥ 26 ॥
नमस्ते सुमित्रासुपुत्राभिवंद्य
नमस्ते सदा कैकयीनंदनेड्य ।
नमस्ते सदा वानराधीशवंद्य
नमस्ते नमस्ते सदा रामचंद्र ॥ 27 ॥
प्रसीद प्रसीद प्रचंडप्रताप
प्रसीद प्रसीद प्रचंडारिकाल ।
प्रसीद प्रसीद प्रपन्नानुकंपिन्
प्रसीद प्रसीद प्रभो रामचंद्र ॥ 28 ॥
भुजंगप्रयातं परं वेदसारं
मुदा रामचंद्रस्य भक्त्या च नित्यम् ।
पठन्संततं चिंतयन्स्वांतरंगे
स एव स्वयं रामचंद्रः स धन्यः ॥ 29 ॥
॥ इति श्रीराम भुजंग प्रयात स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्रीराम भुजंग प्रयात स्तोत्रम् (हिंदी अनुवाद)
Shri Rama Bhujanga Prayata Stotram in Hindi Translation
शुद्ध, परम और सत-चित-आनंद स्वरूप प्रभु,
गुणों के आधार लेकिन स्वयं आधारहीन,
श्रेष्ठ, महान, तेजस्वी, अंतरात्मा में स्थित,
संपूर्ण सुखों के अंत, ऐसे राम को मैं शरण लेता हूँ ॥ 1 ॥
जो शिवस्वरूप, नित्य, अद्वितीय, व्यापक, तारक नाम वाले हैं,
सुख के स्वरूप, रूप से रहित, श्रेष्ठ और पूज्य,
महेश्वर, दुःखों का नाश करने वाले, देवों के देव,
संपूर्ण लोकों के अधिपति, उन राम को मैं शरण लेता हूँ ॥ 2 ॥
जिनके नाम “राम राम” का उच्चारण शिवजी ने मृत्यु के समय
काशी में जीव के कान में किया,
जो एकमात्र परम तारक ब्रह्मस्वरूप हैं,
उन्हीं को मैं बारम्बार भजता हूँ ॥ 3 ॥
कल्पवृक्ष की जड़ में, रत्नों के सिंहासन पर विराजमान,
जो सूर्य के करोड़ों प्रकाश की तरह तेजवान हैं,
हमेशा जानकी और लक्ष्मण से घिरे रहते हैं,
ऐसे श्रीरामचंद्र को मैं भजता हूँ ॥ 4 ॥
जिनके चरणों में रत्नजड़ित पायल की मधुर ध्वनि होती है,
जिन्होंने सुंदर कमरबंद और पीतांबर धारण किया है,
रत्नमालाओं से सजे हुए, कौस्तुभ मणि से शोभित शरीर,
और जिनकी फूलों की माला भ्रमरों से गूंजती है ॥ 5 ॥
जिनके होंठ चंद्रिका के समान लालिमा लिए हैं,
सूर्य और चंद्रमा से भी अधिक तेजस्वी हैं,
ब्रह्मा, रुद्र आदि देवताओं के मुकुट जिनके चरणों को छूते हैं,
ऐसे प्रभु के चरणों की आरती की जाती है ॥ 6 ॥
जो सामने अंजलि जोड़कर खड़े हनुमान आदि भक्तों को
अपनी ज्ञानमुद्रा से उपदेश देते हैं,
ऐसे श्रीरामचंद्र को मैं निरंतर भजता हूँ,
और उनके सिवा किसी को नहीं मानता ॥ 7 ॥
जब मृत्यु का देवता भयानक रूप में मेरे पास आए,
और अपने अनुचरों से मुझे डराए,
तब आप अपने असली स्वरूप में प्रकट होते हैं,
अपने धनुष और बाण से मेरे संकटों का नाश करते हैं ॥ 8 ॥
हे राम! मेरे हृदय-मंदिर में आप निवास करें,
कृपा करें, कृपा करें हे प्रभु रामचंद्र,
लक्ष्मण और भरत के साथ तथा अपनी शक्तिशाली भक्ति से
सेवित होवें ॥ 9 ॥
हे राम! आप अपने प्रिय भक्तों –
वानरराज, राजाओं और अनेक सेनाओं के साथ
मेरे ऊपर प्रसन्न हों,
हे प्रभो! मेरे अंत:करण को प्रकाश से भर दें ॥ 10 ॥
हे प्रभु! आप ही मेरे परम देव हैं,
यही शुद्ध चेतना है, और आप ही एकमात्र सत्य हैं,
आपसे ही आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी
और समस्त चल-अचल सृष्टि उत्पन्न हुई है ॥ 11 ॥
हे सत्-चित्-आनंद स्वरूप प्रभु! आपको नमन है,
हे देवों के देव श्रीराम! आपको नमस्कार है,
हे जानकी के जीवन, आपको नमस्कार है,
हे कमल-नेत्रों वाले प्रभु! आपको नमस्कार है ॥ 12 ॥
हे भक्ति से युक्त और प्रेम से बंधे प्रभु! आपको नमस्कार है,
हे पुण्य के भंडार, जो केवल पुण्य से ही प्राप्त होते हैं,
हे वेदों के ज्ञेय और आदिपुरुष,
हे सुंदर श्रीराम, हे लक्ष्मीपते! आपको नमन ॥ 13 ॥
हे विश्व के सृष्टिकर्ता, संहारकर्ता,
पालक और आधार,
हे विश्व के नेत्र, विजेता, पिता और माता,
आपको बारंबार नमस्कार है ॥ 14 ॥
हे सम्पूर्ण जगत के कार्य, भोग, प्रयोग,
प्रमाण में निपुण प्रभु! आपको बारम्बार नमस्कार,
मेरा मन आपके चरणों की सेवा में लग गया है
और वह चेतना की सिद्धि के लिए प्रवृत्त हो गया है ॥ 15 ॥
हे राम! पत्थर भी आपके चरणों की धूल के
स्पर्श मात्र से चेतन हो गया,
तो मनुष्य यदि आपके चरणों की सेवा करे
तो उसमें चेतना जागृत हो, इसमें क्या आश्चर्य है! ॥ 16 ॥
हे रामचंद्र! जो लोग आपके पवित्र, अद्भुत
चरित्र का नित्य स्मरण करते हैं,
वे इस संसार से पार होकर भवसागर को लांघ जाते हैं
और अंत समय में यमराज को नहीं देखते ॥ 17 ॥
वह मनुष्य पुण्यवान, योग्य और शरण लेने योग्य है
जो आपको, देवों के मुकुटमणि को जानता है,
जो एक रूप में चिदानंदस्वरूप हैं,
बुद्धि और वाणी से परे, परब्रह्मस्वरूप श्रीराम हैं ॥ 18 ॥
हे रामचंद्र! आपका प्रचंड तेज,
शक्तिशाली शत्रुओं को हराने वाला है,
आपकी शक्ति का वर्णन कैसे किया जाए
जब आपने बचपन में ही शिव का धनुष तोड़ दिया ॥ 19 ॥
हे राम! रावण जैसा शक्तिशाली राक्षस,
उसके पुत्र, मित्र, और दुर्गम लंका सहित
जो समस्त राक्षसों का अधिपति था –
उसे आपके सिवा कौन पराजित कर सकता था? ॥ 20 ॥
जो श्रीराम के अमृतस्वरूप नाम ‘राम राम’ का
नित्य पान करता है, नम्रता से झुकता है,
सुसंयमित जीवन जीता है,
उस हनुमान को मैं अंतर से भजता हूँ ॥ 21 ॥
जो श्रीराम के अमृत रूप नाम का नित्य पान करता है,
जो उस नाम में आनंद की धार को अनुभव करता है,
जो प्रतिदिन उसका जाप करता है —
उसे मृत्यु का भय नहीं होता, यह प्रभु की कृपा है ॥ 22 ॥
सीता जी सहित, धनुषधारी, लक्ष्मण-वंदित,
बलशाली, सुंदर तेजस्वी मित्रों से युक्त,
शत्रुनाशक, सुग्रीव के मित्र –
ऐसे श्रीराम के समान कोई देव नहीं ॥ 23 ॥
ज्ञानमुद्रा युक्त, वीरासन में स्थित,
हनुमान आदि भक्तों से सेवित,
अमंदार वृक्ष के नीचे विराजमान
ऐसे राम ही हमारे लिए पर्याप्त देव हैं ॥ 24 ॥
जो समुद्र के उग्र रूप को भी शांत कर देते हैं,
जिनका तेज अविनाशी है, जिनके भाई प्रिय हैं,
जिनका मुस्कान मंद है, जिनका ज्ञान अखंड है –
ऐसे श्रीराम ही हमारे इष्ट देव हैं ॥ 25 ॥
हे हर! हे राम! हे सीतापति! हे रावण के शत्रु!
हे खर के नाशक! हे मुर के मर्दनहार! हे असुरों के शत्रु!
आप जो सदा भक्तों को राह दिखाते हैं –
मुझे दर्शन दीजिए, हे सखा ॥ 26 ॥
हे सुमित्रा के पुत्र! आपको नमन,
हे कैकेयी के पुत्र! आपको नमन,
हे वानरराजों के पूज्य! आपको नमन,
हे रामचंद्र! आपको बारंबार नमस्कार ॥ 27 ॥
हे प्रचंड तेजस्वी प्रभु! कृपा करें, कृपा करें,
हे शत्रुओं के काल! कृपा करें, कृपा करें,
हे शरणागतों पर दया करने वाले! कृपा करें,
हे रामचंद्र! कृपा करें ॥ 28 ॥
जो यह भुजंग-छंद में रचा गया
शुद्ध वेदसारस्वरूप स्तोत्र श्रद्धा से
नित्य पढ़ता और चिंतन करता है –
वही व्यक्ति स्वयं रामचंद्र बन जाता है, वही धन्य है ॥ 29 ॥
॥ इस प्रकार श्रीराम भुजङ्ग प्रयात स्तोत्र का हिंदी अनुवाद पूर्ण हुआ ॥
श्रीराम भुजङ्ग प्रयात स्तोत्रम् के लाभ (Benefits):
- मृत्यु भय का नाश करता है:
इसका पाठ अंतिम समय में भी मोक्षदायी माना गया है। यह “तारक ब्रह्म” स्वरूप श्रीराम का स्तोत्र है, जो मृत्यु के भय को नष्ट करता है। - राम नाम की महिमा जाग्रत करता है:
स्तोत्र श्रीराम के नाम ‘राम राम’ के महत्व को स्थापित करता है, जिससे आत्मा को परम शांति और आनंद की अनुभूति होती है। - मन को एकाग्र और शांत करता है:
नियमित पाठ से चित्त की चंचलता दूर होती है और मन भक्ति से भरा रहता है। - आत्मबल, धैर्य और साहस प्रदान करता है:
श्रीराम के जीवन चरित्र का स्मरण करके व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य और बल प्राप्त करता है। - भक्ति एवं ज्ञान का विकास:
यह स्तोत्र व्यक्ति को आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर करता है और भगवान के प्रति अनन्य प्रेम उत्पन्न करता है। - रोग, भय और दोषों से रक्षा:
इसके पाठ से मानसिक तनाव, रोग, नकारात्मकता और भय दूर होते हैं।
पाठ विधि (Pāṭh Vidhi):
- स्थान चयन:
किसी शांत, पवित्र और स्वच्छ स्थान पर आसन लगाकर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठें। - स्नान व पवित्रता:
स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनें। स्तोत्र पाठ से पहले श्रीराम, सीता माता, लक्ष्मण और हनुमान जी का ध्यान करें। - दीपक व धूप:
श्रीरामजी के चित्र या मूर्ति के सामने दीपक व धूप जलाएं। - संकल्प लें:
मन में भगवान श्रीराम से प्रार्थना करें – “हे प्रभु! मैं आपकी भक्ति के लिए यह स्तोत्र पढ़ रहा/रही हूँ, कृपा करें।” - श्रद्धा और लय के साथ पाठ करें:
स्तोत्र को भावपूर्वक, स्पष्ट उच्चारण के साथ पढ़ें। चाहें तो शांत स्वर में गाकर भी पढ़ सकते हैं। - अंत में आरती या रामनाम का जप करें।
जप का उचित समय (Jaap Time):
- प्रातःकाल (4:30 AM से 6:30 AM):
ब्रह्म मुहूर्त में पाठ करने से अधिकतम लाभ मिलता है। मन एकाग्र होता है और वातावरण सात्विक होता है। - सायंकाल (6:00 PM से 8:00 PM):
दिनभर की थकान के बाद यह पाठ मानसिक शांति और दिव्य ऊर्जा देता है। - विशेष दिन:
राम नवमी, मंगलवार, शनिवार, या रामायण सप्ताह के दौरान इसका पाठ विशेष फलदायी होता है। - आप संकट में हों या मानसिक रूप से व्यथित हों:
तब कभी भी इस स्तोत्र का पाठ करें – यह तुरंत शांति और शक्ति देता है।