“श्रीराधा नाम महात्म्य स्तोत्र” एक दिव्य स्तोत्र है जो श्रीराधा रानी के नाम की महिमा का गुणगान करता है। यह स्तोत्र बताता है कि “राधा” नाम का प्रत्येक अक्षर (रा + आ + धा) कितना शक्तिशाली, कल्याणकारी और मोक्षदायक है। श्रीराधा नाम का स्मरण, जप और कीर्तन न केवल संसारिक दुखों, रोगों और पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि भक्त को श्रीकृष्ण के चरणों की सेवा, शुद्ध भक्ति और दिव्य आनंद की ओर अग्रसर करता है।
यह स्तोत्र आध्यात्मिक साधकों के लिए एक अमूल्य रत्न है। यह बताता है कि “राधा” नाम का उच्चारण ही योग, ज्ञान, दान, भक्ति और वैकुण्ठ प्राप्ति का मार्ग बन जाता है।
विशेष रूप से “श्रवण-स्मरण-उच्चारण” के माध्यम से जब यह नाम हृदय में बसता है, तो मोह, अज्ञान और मृत्यु जैसे भय स्वतः समाप्त हो जाते हैं।
श्रीराधा नाम महात्म्य स्तोत्र न केवल भक्तों को श्रीराधा-कृष्ण भक्ति में स्थित करता है, बल्कि जीवन के समस्त दोषों का नाश कर जीवन को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
श्रीराधा नाम महात्म्य स्तोत्र
Shri Radha Naam-Mahatmya Stotram
रेफो हि कोटी जन्माघं कर्मभोगं शुभाशुभम् ।
आकारो गर्भवासं च मृत्युं च रोगमुत्सृजेत् ।
धकार आयुषो हानिमाकारो भवबन्धनम् ।
श्रवणस्मरणोक्तिभ्यः प्रणश्यति न संशयः ।
रेफो हि निश्चलां भक्तिं दास्यं कृष्णपदाम्बुजे ।।
सर्वेप्सितं सदानन्दं सर्वसिद्धौघमीश्वरम् ।
धकारः सहवासं च तत्तुल्यकालमेव च ।
ददाति सार्ष्टिसारूप्यं तत्त्वज्ञानं हरेः समम् ।
आकरस्तेजसां राशिं दानशक्तिं हरौ यथा ।
योगशक्तिं योगमतिं सर्वकालं हरिस्मृतिम् ।
श्रुत्युक्तिस्मरणाद्योगान्मोहजालं च किल्बिषम् ।
रोगशोक मृत्युयमा वेपन्ते नात्र संशयः ।
।। इति श्रीराधा नाम महात्म्य स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
श्रीराधा नाम महात्म्य स्तोत्र
Shri Radha Naam-Mahatmya Stotram (हिंदी अनुवाद सहित)
रेफो हि कोटी जन्माघं कर्मभोगं शुभाशुभम् ।
आकारो गर्भवासं च मृत्युं च रोगमुत्सृजेत् ।
– “र” वर्ण करोड़ों जन्मों के पापों व शुभ-अशुभ कर्मों के भोग को नष्ट कर देता है।
“आ” वर्ण गर्भवास, मृत्यु तथा रोग को दूर कर देता है।
धकार आयुषो हानिमाकारो भवबन्धनम् ।
श्रवणस्मरणोक्तिभ्यः प्रणश्यति न संशयः ।
रेफो हि निश्चलां भक्तिं दास्यं कृष्णपदाम्बुजे ।।
– “ध” वर्ण आयु की हानि और “आ” स्वर संसार के बंधन को नष्ट करता है।
श्रवण, स्मरण और उच्चारण से यह सब नष्ट हो जाता है — इसमें संदेह नहीं।
“र” वर्ण से श्रीकृष्ण के चरणकमलों में अचल भक्ति और दास्य भाव प्राप्त होता है।
सर्वेप्सितं सदानन्दं सर्वसिद्धौघमीश्वरम् ।
धकारः सहवासं च तत्तुल्यकालमेव च ।
– यह नाम सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला, नित्य आनंददायक और समस्त सिद्धियों का स्वामी है।
“ध” वर्ण भगवद्सायुज्य वास और तुल्य काल की प्राप्ति कराता है।
ददाति सार्ष्टिसारूप्यं तत्त्वज्ञानं हरेः समम् ।
आकरस्तेजसां राशिं दानशक्तिं हरौ यथा ।
– यह नाम वैकुण्ठ में ऐश्वर्य, रूप और तत्वज्ञान प्रदान करता है।
“आ” स्वर तेजस्विता का भंडार है और यह हरि के समान दानशक्ति प्रदान करता है।
योगशक्तिं योगमतिं सर्वकालं हरिस्मृतिम् ।
श्रुत्युक्तिस्मरणाद्योगान्मोहजालं च किल्बिषम् ।
रोगशोक मृत्युयमा वेपन्ते नात्र संशयः ।
– यह नाम योगशक्ति, योग की बुद्धि, हरि की स्मृति और श्रुतियों में वर्णित स्मरण की शक्ति देता है।
यह मोहजाल और पाप को नष्ट करता है।
रोग, शोक, मृत्यु और यमदूत भी इस नाम के प्रभाव से कांपते हैं — इसमें कोई संदेह नहीं।
।। इति श्रीराधा नाम महात्म्य स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
लाभ (Benefits):
1. पापों का नाश:
“राधा” नाम के उच्चारण मात्र से ही असंख्य जन्मों के शुभ-अशुभ कर्म भस्म हो जाते हैं।
2. रोग, शोक और मृत्यु से रक्षा:
इस स्तोत्र का पाठ रोग, मृत्यु, और यम के भय से रक्षा करता है।
3. भक्ति और वैकुण्ठ प्राप्ति:
यह स्तोत्र कृष्णचरणों में अचल भक्ति और सायुज्य, सालोक्य जैसे मोक्षदायक लाभ प्रदान करता है।
4. योग और तत्त्वज्ञान की प्राप्ति:
श्रीराधा नाम का स्मरण साधक में योगशक्ति, ज्ञानशक्ति और आत्मबोध जाग्रत करता है।
5. मन की शांति और आनंद:
नित्य स्मरण से हृदय में शुद्ध प्रेम, शांति और परमानंद की अनुभूति होती है।
पाठ विधि (Vidhi):
1. शुद्धता:
प्रातः स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और शांत मन से आसन लगाएं।
2. आसन:
कुशासन, चटाई या कम्बल पर बैठकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करें।
3. ध्यान:
श्री राधा-कृष्ण का ध्यान करें — विशेष रूप से श्रीराधारानी के चरणों में मन को अर्पित करें।
4. दीप एवं पुष्प:
सामने दीपक जलाएं, पुष्प अर्पण करें और फिर इस स्तोत्र का पाठ करें।
5. संख्या:
यदि संभव हो तो नित्य 1 से 3 बार स्तोत्र का पाठ करें।
6. अंत में प्रार्थना करें:
“हे राधे! मुझे शुद्ध भक्ति, शरणागति और श्रीकृष्ण सेवा का वरदान दो।”
जाप का श्रेष्ठ समय (Best Time to Chant):
समय | विशेषता |
---|---|
प्रातःकाल (4 AM – 6 AM) | ब्रह्ममुहूर्त में जप सर्वश्रेष्ठ होता है। मन एकाग्र रहता है। |
संध्याकाल (5 PM – 7 PM) | भक्ति और ध्यान के लिए उत्तम समय। दीप-प्रज्वलन के साथ प्रभावी। |
पूर्णिमा / एकादशी / राधाष्टमी | इन पवित्र तिथियों पर जप करने से हजारों गुना फल प्राप्त होता है। |