श्री महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र एक अत्यंत शक्तिशाली और भक्तिपूर्ण स्तुति है, जो भगवती महालक्ष्मी के हृदयस्वरूप की वंदना करती है। यह स्तोत्र देवी लक्ष्मी की करुणा, कृपा, ऐश्वर्य और दिव्य उपस्थिति को अपने जीवन में आमंत्रित करने का एक दिव्य माध्यम है।
इस स्तोत्र में भक्त वैकुण्ठ, क्षीरसागर, श्वेतद्वीप और रत्नगर्भ में निवास करने वाली लक्ष्मी से प्रार्थना करता है कि वे उसके जीवन में स्थायी रूप से वास करें, कृपादृष्टि प्रदान करें और उसे धन, वैभव, सौभाग्य, और सुख से परिपूर्ण करें।
यह स्तोत्र हमें यह स्मरण कराता है कि देवी लक्ष्मी केवल बाह्य धन की अधिष्ठात्री नहीं, बल्कि वे धार्मिक, मानसिक, पारिवारिक और आत्मिक समृद्धि की भी देवी हैं। जब भक्त सच्ची श्रद्धा और समर्पण से इस स्तोत्र का पाठ करता है, तो मां लक्ष्मी न केवल उसके कष्ट हरती हैं, बल्कि उसे समस्त इच्छाओं की पूर्ति का वरदान भी देती हैं।
“श्री महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र” न केवल स्तुति है, बल्कि एक साधना है – हृदय से देवी को आमंत्रित करने की।
श्री महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र
श्रीमत् सौभाग्यजननीं, स्तौमि लक्ष्मीं सनातनीं ।
सर्वकामफलावाप्ति साधनैक सुखावहां ॥ 1 ॥
श्री वैकुण्ठ स्थिते लक्ष्मि, समागच्छ मम अग्रतः ।
नारायणेन सह मां, कृपा दृष्ट्या अवलोकय ॥ 2 ॥
सत्यलोक स्थिते लक्ष्मि, त्वं समागच्छ सन्निधिम् ।
वासुदेवेन सहिताः, प्रसीद वरदा भव ॥ 3 ॥
श्वेतद्वीपस्थिते लक्ष्मि, शीघ्रम् आगच्छ सुव्रते ।
विष्णुना सहिते देवि, जगन्मातः प्रसीद मे ॥ 4 ॥
क्षीराब्धि संस्थिते लक्ष्मि, समागच्छ समाधवे ।
त्वत् कृपादृष्टि सुधया, सततं मां विलोकय ॥ 5 ॥
रत्नगर्भ स्थिते लक्ष्मि, परिपूर्ण हिरण्यमयी ।
समागच्छ समागच्छ, स्थित्वा सु पुरतो मम ॥ 6 ॥
स्थिरा भव महालक्ष्मि, निश्चला भव निर्मले ।
प्रसन्ने कमले देवि, प्रसन्ना वरदा भव ॥ 7 ॥
श्रीधरे श्रीमहाभूते, त्वदंतस्य महानिधिम् ।
शीघ्रम् उद्धृत्य पुरतः, प्रदर्शय समर्पय ॥ 8 ॥
वसुंधरे श्री वसुधे, वसुदोग्ध्रे कृपामयि ।
त्वत् कुक्षिगतं सर्वस्वं, शीघ्रं मे त्वं प्रदर्शय ॥ 9 ॥
विष्णुप्रिये, रत्नगर्भे, समस्त फलदे शिवे ।
त्वत् गर्भगत हेमादीन्, संप्रदर्शय दर्शय ॥ 10 ॥
अत्रोपविश्य लक्ष्मि, त्वं स्थिरा भव हिरण्यमयी ।
सुस्थिरा भव सुप्रीत्या, प्रसन्ना वरदा भव ॥ 11 ॥
सादरे मस्तकं हस्तं, मम तव कृपया अर्पय ।
सर्वराजगृहे लक्ष्मि, त्वत् कलामयि तिष्ठतु ॥ 12 ॥
यथा वैकुण्ठनगर, यथैव क्षीरसागरे ।
तथा मद्भवने तिष्ठ, स्थिरं श्रीविष्णुना सह ॥ 13 ॥
आद्यादि महालक्ष्मि, विष्णुवामांक संस्थिते ।
प्रत्यक्षं कुरु मे रूपं, रक्ष मां शरणागतं ॥ 14 ॥
समागच्छ महालक्ष्मि, धन्यधान्य समन्विते ।
प्रसीद पुरतः स्थित्वा, प्रणतं मां विलोकय ॥ 15 ॥
दया सुदृष्टिं कुरुतां मयि श्रीः ।
सुवर्णदृष्टिं कुरु मे गृहे श्रीः ॥ 16 ॥
॥ इति श्री महालक्ष्मी हृदय स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
श्री महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र — हिंदी अनुवाद
मैं सनातन, सौभाग्य प्रदान करने वाली, समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली और सुख देने वाली लक्ष्मी माता की स्तुति करता हूँ। ॥1॥
हे वैकुण्ठ में निवास करने वाली लक्ष्मी! कृपया मेरे सम्मुख पधारो और भगवान नारायण के साथ मुझ पर कृपा दृष्टि डालो। ॥2॥
हे सत्यलोक में निवास करने वाली लक्ष्मी! वासुदेव के साथ मेरे समीप आओ और प्रसन्न होकर वरदान दो। ॥3॥
हे श्वेतद्वीप में निवास करने वाली सुव्रता देवी! विष्णु भगवान के साथ शीघ्र आओ और हे जगत की माता! मुझ पर प्रसन्न हो जाओ। ॥4॥
हे क्षीरसागर में निवास करने वाली लक्ष्मी! भगवान मधुसूदन के पास आओ और अपनी अमृतमयी कृपादृष्टि से मुझे निरंतर देखो। ॥5॥
हे रत्नों से भरे गर्भ में स्थित लक्ष्मी! हे सुवर्णमयी देवी! शीघ्र आओ, आओ, और मेरे सामने स्थित हो जाओ। ॥6॥
हे महालक्ष्मी! तुम स्थिर बनो, अचल बनो, निर्मल बनो। हे प्रसन्न कमला देवी! प्रसन्न होकर वरदान प्रदान करो। ॥7॥
हे श्रीधर (विष्णु) के साथ रहने वाली महाभूतस्वरूपिणी देवी! अपने भीतर छुपे हुए महान खजाने को शीघ्र निकालकर मेरे सामने प्रकट करो और समर्पित करो। ॥8॥
हे वसुंधरा, हे श्रीवसुधा, हे कृपामयी जो सम्पत्ति का पोषण करती हो! अपने गर्भ में स्थित सम्पूर्ण ऐश्वर्य को मुझे शीघ्र प्रकट करो। ॥9॥
हे विष्णु प्रिय, हे रत्नगर्भा, हे सभी फलों की देने वाली कल्याणी! अपने गर्भ में स्थित स्वर्ण आदि पदार्थों को मुझे दिखाओ, प्रकट करो। ॥10॥
हे लक्ष्मी! इस स्थान पर विराजमान होओ, तुम सुवर्णमयी होकर स्थिर बनो। अत्यंत प्रसन्नता से स्थिर होकर वरदान प्रदान करो। ॥11॥
कृपा करके अपना हाथ मेरे सिर पर रखो। हे लक्ष्मी! सभी राजाओं के घरों में जैसे तुम्हारी कृपा है, वैसे ही मेरी भी हो। ॥12॥
जैसे वैकुण्ठ नगरी में और क्षीरसागर में तुम्हारा वास है, वैसे ही श्रीविष्णु के साथ मेरे घर में भी स्थिर होकर निवास करो। ॥13॥
हे आद्य महालक्ष्मी! जो विष्णु के वाम भाग में विराजती हो! अपना रूप प्रत्यक्ष रूप में दिखाओ और मेरी शरणागत की रक्षा करो। ॥14॥
हे महालक्ष्मी! जो धन-धान्य से युक्त हो! मेरे सम्मुख आओ, मेरे सामने खड़ी होकर प्रसन्न हो जाओ और मुझ प्रणाम करने वाले को देखो। ॥15॥
हे श्री! मुझ पर दया की दृष्टि करो। हे श्री! मेरे घर में सुवर्णमयी दृष्टि बरसाओ। ॥16॥
॥ इति श्री महालक्ष्मी हृदय स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
लाभ (Benefits):
श्री महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र के नियमित पाठ से भक्त को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं —
- धन, ऐश्वर्य और समृद्धि की प्राप्ति: घर में स्थिर लक्ष्मी का वास होता है, आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं।
- मानसिक शांति और सुख: चिंता, भय और अशांति समाप्त होकर संतोष और आनंद की अनुभूति होती है।
- घर-परिवार में शुभता और सुख-शांति: कलह, दरिद्रता और दुर्भाग्य दूर होता है।
- कृषि, व्यवसाय, नौकरी में उन्नति: मेहनत का फल शीघ्र प्राप्त होता है, बाधाएं दूर होती हैं।
- लक्ष्मीजी की कृपा दृष्टि से रक्षण: दरिद्रता, रोग, शोक और दोषों से बचाव होता है।
विधि (Vidhi) – पाठ कैसे करें:
- प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान में दीपक जलाएं, और श्री लक्ष्मीजी की मूर्ति या चित्र के समक्ष बैठें।
- उन्हें चंदन, फूल, अक्षत आदि अर्पित करें।
- शांत मन से “श्री महालक्ष्मी हृदय स्तोत्र” का पाठ करें।
- स्तोत्र के अंत में “श्री सूक्त” या “लक्ष्मी गायत्री मंत्र” का जाप करें तो विशेष फल प्राप्त होता है।
- अंत में नैवेद्य अर्पित कर आरती करें और क्षमा याचना करें।
जाप का श्रेष्ठ समय (Best Time):
अवसर / तिथि | प्रभाव / फल |
---|---|
प्रातः काल | दिन भर की शुभता और ऊर्जा प्राप्त होती है। |
शुक्रवार शाम | महालक्ष्मीजी का विशेष दिन, स्थिर लक्ष्मी का आगमन |
कोई भी अमावस्या | दरिद्रता और संकट नाशक |
पूर्णिमा | ऐश्वर्य वृद्धि और सुंदरता की प्राप्ति |
दीपावली की रात्रि | लक्ष्मी पूजन के साथ इसका पाठ चमत्कारी फलदायी |
विशेष: स्तोत्र को रोज़ाना 1 बार पढ़ना लाभकारी है। शुक्रवार को 3 बार पढ़ना विशेष फलदायक होता है।