“श्री मंगलाचरण स्तोत्र” एक पवित्र स्तुति है, जो परमात्मा और गुरु की वंदना से आरंभ होती है। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम है, बल्कि यह मन, वाणी और आत्मा को भी शुद्ध करता है। इसे वैष्णव परंपरा में विशेष स्थान प्राप्त है, और यह भक्त को श्री चैतन्य महाप्रभु, राधा-कृष्ण और उनके दिव्य सेवकों की भक्ति में लीन करता है। यह स्तोत्र जीवन में मंगल, शांति और दिव्यता का प्रवेश कराता है।
श्री मंगलचरण स्तोत्र
Shri Mangla Charan Stotra
ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले ।
स्वयं रूपः कदा मह्यं ददाति स्वपदान्तिकम् ॥
वन्देऽहं श्रीगुरोः श्रीयुतपद-कमलं श्रीगुरुन् वैष्णवांश्च
श्रीरूपं साग्रजातं सहगण-रघुनाथान्वितं तं सजीवम् ।
साद्वैतं सावधूतं परिजन सहितं कृष्ण-चैतन्य-देवम्
श्रीराधा-कृष्ण-पादान् सहगण-ललिता-श्रीविशाखान्विताश्च ॥
हे कृष्ण करुणासिन्धो दीनबन्धो जगत्पते ।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोऽस्तु ते ॥
तप्तकाञ्चनगौराङ्गी राधेवृन्दावनेश्वरी ।
वृषभानुसुते देवी प्रणमामी हरिप्रिये ॥
वाञ्छा-कल्पतरुभ्यश्च कृपा-सिन्धुभ्य एव च ।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः ॥
श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानन्द ।
श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि-गौरभक्तवृन्द ॥
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥
नम ॐ विष्णु पादाय कृष्ण प्रेष्ठाय भूतले ।
श्रीमते भक्तिवेदान्त स्वामिन् इति नामिने ।।
नमस्ते सारस्वते देवे गौर वाणी प्रचारिणे ।
निर्विशेष शून्यवादी पाश्चात्य देश तारिणे। ।
।। इति श्री मंगलचरण स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
श्री मंगलचरण स्तोत्र हिंदी अनुवाद
Shri Mangla Charan Stotra in Hindi Translation
ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया ।
जो अज्ञान के अंधकार से अंधा हो गया है, उसकी आँखों को ज्ञान रूपी अंजन से खोलने वाले गुरु को मैं नमस्कार करता हूँ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
जिन्होंने मेरी नेत्र-ज्योति को खोला, उन श्रीगुरु को बारम्बार नमस्कार है।
श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले ।
जिन्होंने श्री चैतन्य महाप्रभु के मन की इच्छा को पृथ्वी पर स्थापित किया,
स्वयं रूपः कदा मह्यं ददाति स्वपदान्तिकम् ॥
वह श्रीरूप (गोस्वामी) कब मुझे अपने चरणों के पास स्थान देंगे?
वन्देऽहं श्रीगुरोः श्रीयुतपद-कमलं श्रीगुरुन् वैष्णवांश्च
मैं श्रीगुरु के पवित्र चरणकमलों तथा अन्य वैष्णव गुरुजनों की वंदना करता हूँ।
श्रीरूपं साग्रजातं सहगण-रघुनाथान्वितं तं सजीवम् ।
जो श्रीरूप, उनके भाइयों और शिष्यगणों सहित जीवित परंपरा में स्थित हैं।
साद्वैतं सावधूतं परिजन सहितं कृष्ण-चैतन्य-देवम्
जो साद्वैत के साथ हैं, जो साधुओं एवं सेवकों से घिरे हुए श्रीकृष्ण-चैतन्य देव हैं।
श्रीराधा-कृष्ण-पादान् सहगण-ललिता-श्रीविशाखान्विताश्च ॥
जो श्रीराधा-कृष्ण के चरणों की उपासना करते हैं, साथ में ललिता और विशाखा सखियाँ हैं।
हे कृष्ण करुणासिन्धो दीनबन्धो जगत्पते ।
हे कृष्ण! आप करुणा के सागर हैं, दीनों के बन्धु हैं और सम्पूर्ण जगत के स्वामी हैं।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोऽस्तु ते ॥
हे गोपों के नायक! हे गोपिकाओं के प्रिय! हे राधा के प्रिय! आपको बारम्बार नमस्कार है।
तप्तकाञ्चनगौराङ्गी राधेवृन्दावनेश्वरी ।
जो तप्त स्वर्ण जैसी गौरवर्णा हैं, वे राधा वृन्दावन की रानी हैं।
वृषभानुसुते देवी प्रणमामी हरिप्रिये ॥
हे वृषभानु नन्दिनी! हे हरि की प्रियतम! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
वाञ्छा-कल्पतरुभ्यश्च कृपा-सिन्धुभ्य एव च ।
जो इच्छाओं को पूर्ण करने वाले कल्पवृक्ष हैं और करुणा के सागर हैं,
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः ॥
ऐसे पतितों को पावन करने वाले वैष्णवों को बारंबार नमस्कार।
श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानन्द ।
श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु एवं नित्यानंद प्रभु को नमस्कार।
श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि-गौरभक्तवृन्द ॥
श्रीअद्वैत, गदाधर, श्रीवास और अन्य गौर भक्तों को भी मेरा प्रणाम।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥
(यह महामंत्र है जो श्रीकृष्ण और श्रीराम के नामों का जप है)
नम ॐ विष्णु पादाय कृष्ण प्रेष्ठाय भूतले ।
मैं श्रीविष्णुपाद, श्रीकृष्ण के परम प्रिय प्रतिनिधि को नमस्कार करता हूँ, जो पृथ्वी पर प्रकट हुए।
श्रीमते भक्तिवेदान्त स्वामिन् इति नामिने ।।
जिन्हें भक्तिवेदान्त स्वामी (प्रभुपाद) के नाम से जाना जाता है।
नमस्ते सारस्वते देवे गौर वाणी प्रचारिणे ।
हे सारस्वत देव! गौर वाणी (गौरांग महाप्रभु के उपदेशों) के प्रचारक को प्रणाम।
निर्विशेष शून्यवादी पाश्चात्य देश तारिणे। ।
जो पाश्चात्य देशों को निर्गुण एवं शून्यवाद से उबारने वाले हैं।
।। इति श्री मंगलचरण स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
लाभ (Benefits)
- मन को शांति, स्थिरता और दिव्यता प्रदान करता है।
- भक्ति मार्ग में गति और प्रभु चरणों में प्रेम उत्पन्न करता है।
- गुरु, भगवान, और वैष्णवों के प्रति समर्पण की भावना जाग्रत करता है।
- आध्यात्मिक साधना में सफलता मिलती है।
- नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पाठ विधि (Vidhi)
- प्रातःकाल स्नान कर शांत स्थान पर बैठें।
- दीपक जलाकर भगवान श्रीकृष्ण या गुरु की मूर्ति अथवा चित्र के सामने बैठें।
- एकाग्र मन से शुद्ध उच्चारण में स्तोत्र का पाठ करें।
- पाठ के बाद प्रार्थना करें – “हे प्रभु! मुझे भक्ति, ज्ञान और शांति प्रदान करें।”
जप का समय (Jaap Time)
- प्रातः काल (5 से 8 बजे तक) – सर्वोत्तम समय
- शाम को आरती के समय भी इसका पाठ लाभदायक है।
- विशेष तिथियाँ: गुरुवार, पूर्णिमा, एकादशी और नवरात्रि के दिन विशेष फलदायी।