श्री मातंगी स्तोत्रम् एक अत्यंत प्रभावशाली और रहस्यात्मक स्तुति है जो देवी मातंगी को समर्पित है। मातंगी देवी दस महाविद्याओं में नवम स्थान पर विराजमान हैं और उन्हें वाणी, संगीत, विद्या, कला, तंत्र, आकर्षण तथा गूढ़ विद्याओं की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। वे विशेष रूप से उन साधकों की आराध्या हैं जो वाणी में सिद्धि, लोक में प्रतिष्ठा, तांत्रिक साधनाओं में सफलता और मानसिक संतुलन चाहते हैं।
यह स्तोत्र भगवान शिव द्वारा देवी मातंगी की स्तुति में कहा गया है, जिसमें उनके सौंदर्य, गुण, करुणा, और भक्तों को वरदान देने वाली महाशक्ति स्वरूप का वर्णन किया गया है। इसमें देवी की दिव्य रूप-माधुरी, लीला, आभूषण, भाव-संवेदन और ब्रह्मज्ञान प्रदान करने की क्षमता का भावपूर्ण वर्णन है।
श्री मातंगी स्तोत्र का पाठ करने से साधक की वाणी में आकर्षण बढ़ता है, कंठसिद्धि प्राप्त होती है, मानसिक अस्थिरता समाप्त होती है और तांत्रिक बाधाएं नष्ट होती हैं। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए अमोघ उपाय है जो संगीत, साहित्य, संवाद कला या आध्यात्मिक साधना से जुड़े हैं।
यह स्तोत्र केवल देवी की स्तुति नहीं, बल्कि एक आंतरिक साधना का माध्यम भी है, जो साधक को आत्मज्ञान, वाणी पर नियंत्रण और दिव्य चेतना के उच्चतर स्तर तक पहुंचाने में सहायक होता है।
श्री मातंगी स्तोत्रम्
॥ ईश्वर उवाच ॥
आराध्य मातश्चरणाम्बुजे ते ब्रह्मादयो विस्तृतकीर्तिमापुः ।
अन्ये परं वा विभवं मुनीन्द्राः परां श्रियं भक्तिभरेण चान्ये ॥ १ ॥
नमामि देवीं नवचन्द्रमौले-र्मातङ्गिनीं चन्द्रकलावतंसाम् ।
आम्नायप्राप्तिप्रतिपादितार्थं प्रबोधयन्तीं प्रियमादरेण ॥ २ ॥
विनम्रदेवासुरमौलिरत्नै-र्नीराजितं ते चरणारविन्दम् ।
भजन्ति ये देवि महीपतीनां व्रजन्ति ते सम्पदमादरेण ॥ ३ ॥
कृतार्थयन्तीं पदवीं पदाभ्या-मास्फालयन्तीं कृतवल्लकीं ताम् ।
मातङ्गिनीं सद्धृदयां धिनोमि लीलांशुकां शुद्धनितम्बबिम्बाम् ॥ ४ ॥
तालीदलेनार्पितकर्णभूषां माध्वीमदोद्घूर्णितनेत्रपद्माम् ।
घनस्तनीं शम्भुवधूं नमामि तटिल्लताकान्तिमनर्घ्यभूषाम् ॥ ५ ॥
चिरेण लक्ष्यं नवलोमराज्या स्मरामि भक्त्या जगतामधीशे ।
वलित्रयाढ्यं तम मध्यमम्ब नीलोत्पलांशुश्रियमावहन्त्याः ॥ ६ ॥
कान्त्या कटाक्षैः कमलाकराणां कदम्बमालाञ्चितकेशपाशम् ।
मातङ्गकन्यां हृदि भावयामि ध्यायेयमारक्तकपोलबिम्बम् ॥ ७ ॥
बिम्बाधरन्यस्तललामवश्य-मालीललीलालकमायताक्षम् ।
मन्दस्मितं ते वदनं महेशि स्तुत्यानया शङ्करधर्मपत्नीम् ॥ ८ ॥
मातङ्गिनीं वागधिदेवतां तां स्तुवन्ति ये भक्तियुता मनुष्याः ।
परां श्रियं नित्यमुपाश्रयन्ति परत्र कैलासतले वसन्ति ॥ ९ ॥
उद्यद्भानुमरीचिवीचिविलसद्वासो वसानां परां
गौरीं सङ्गतिपानकर्परकरामानन्दकन्दोद्भवाम् ।
गुञ्जाहारचलद्विहारहृदयामापीनतुङ्गस्तनीं
मत्तस्मेरमुखीं नमामि सुमुखीं शावासनासेदुषीम् ॥ १० ॥
॥ इति श्री मातंगी स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्री मातंगी स्तोत्रम् हिंदी अनुवाद
॥ ईश्वर उवाच ॥
हे माता! आपके चरणकमलों की आराधना करके ब्रह्मादि देवता भी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके हैं।
महान ऋषिगण तथा अन्य भक्तजन भक्ति के भार से प्रेरित होकर आपकी परम संपत्ति की आराधना करते हैं॥ १ ॥
मैं उस चंद्रकलाओं से अलंकृत, नवचंद्रमौलि धारण करने वाली, वेदों के रहस्यों को प्रकाशित करने वाली देवी मातंगी को नमस्कार करता हूँ,
जो भक्तों को प्रेमपूर्वक उपदेश देती हैं॥ २ ॥
हे देवी! आपके चरणकमलों को देवताओं और असुरों के झुके हुए मुकुटों से दीपित किया जाता है।
जो भी आपके इन चरणों की भक्ति करता है, वे राजाओं के समान सम्पत्तियों को प्राप्त करते हैं॥ ३ ॥
जो भक्तों को मोक्षमार्ग की प्राप्ति कराती हैं, पद्मासन से चरणों की ध्वनि करती हैं, और वीणा वादन में कुशल हैं,
उन पवित्र नितम्बवाली, मधुर हास्यवाली, मातंगी देवी को मैं श्रद्धापूर्वक वंदन करता हूँ॥ ४ ॥
जो तालपत्र के आभूषण धारण करती हैं, जिनकी आँखें माधवी मद से ललचाई हुई हैं,
जो घने स्तनों वाली, शिवजी की वधू हैं, बिजली जैसी चमकती कान्ति वाली हैं,
ऐसी अनमोल आभूषणों से युक्त देवी को मैं प्रणाम करता हूँ॥ ५ ॥
मैं अत्यंत श्रद्धा से उस जगत के स्वामिनी के मध्य भाग में तीन रेखाओं से युक्त,
नव कोमल रोमावली को स्मरण करता हूँ, जो नीलकमल के समान सौंदर्य प्रदान करती हैं॥ ६ ॥
जो अपनी कान्ति और कटाक्षों से कमलों के समूहों को आकर्षित करती हैं,
कदंब पुष्पों की माला से अलंकृत जटाजूटधारी हैं,
उस मातंग कन्या को मैं हृदय में स्मरण करता हूँ और उनके अरुण कपोलों का ध्यान करता हूँ॥ ७ ॥
जिनके अधरों पर बिंबफल की लालिमा है, जिनके केश लहराते हैं,
जिनकी आँखें विशाल हैं, जो मंद-मंद मुस्कराती हैं,
उन महेश्वरी का वंदन इस स्तुति द्वारा करता हूँ, जो भगवान शंकर की धर्मपत्नी हैं॥ ८ ॥
जो मनुष्य भक्ति भाव से वाणी की अधिष्ठात्री देवी मातंगी की स्तुति करते हैं,
वे नित्य ही परम लक्ष्मी को प्राप्त करते हैं और परलोक में कैलास पर वास करते हैं॥ ९ ॥
जो उदय होते सूर्य की किरणों के समान प्रकाशमान वस्त्र धारण करती हैं,
जो गौरी हैं, जिनके हाथ में मधु से भरा कटोरा है, जो आनंद स्वरूपा हैं,
जिनका हृदय गुंजार करती भौंरों से युक्त है, जिनके उरोज उन्नत हैं,
जो मदभरी मुस्कानवाली हैं, जिनका मुख चंद्रमुखी है,
जो शवासन पर विराजमान हैं – ऐसी देवी को मैं प्रणाम करता हूँ॥ १० ॥
॥ इति श्री मातंगी स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
लाभ (Benefits of Shri Matangi Stotram):
- वाणी में सिद्धि (Vāk Siddhi):
देवी मातंगी वाणी की अधिष्ठात्री हैं। उनका स्तोत्र पढ़ने से वाणी में आकर्षण और प्रभाव बढ़ता है। - कला एवं संगीत में निपुणता:
जो लोग संगीत, नृत्य, लेखन, वक्तृत्व आदि से जुड़े हैं, उनके लिए यह स्तोत्र विशेष रूप से लाभकारी है। - आकर्षण शक्ति की प्राप्ति:
स्तोत्र का नियमित पाठ वशीकरण, सम्मोहन और प्रभावशाली व्यक्तित्व निर्माण में सहायक होता है। - तांत्रिक बाधाओं का नाश:
यह स्तोत्र तांत्रिक दोषों, ऊपरी बाधाओं और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है। - मानसिक शांति और ध्यान में स्थिरता:
इसका पाठ मानसिक चंचलता को दूर कर एकाग्रता और आंतरिक शांति प्रदान करता है। - विद्या, बुद्धि और स्मरणशक्ति में वृद्धि:
विद्यार्थियों और शोधार्थियों को यह स्तोत्र विशेष फल देता है।
विधि (Pāṭh Vidhi / Method of Chanting):
- स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- शुद्ध और शांत स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- देवी मातंगी की प्रतिमा, चित्र या यंत्र के समक्ष दीपक, धूप, पुष्प, नैवेद्य अर्पित करें।
- “ॐ ह्रीं मातंग्यै नमः” मंत्र से पूजन करें।
- श्री मातंगी स्तोत्रम् का श्रद्धा और भावपूर्वक पाठ करें।
- अंत में देवी की आरती करें और क्षमा प्रार्थना करें।
जाप/पाठ का समय (Best Time to Chant):
- प्रातःकाल (सुबह 5 से 7 बजे के बीच):
सबसे शुभ समय माना जाता है। दिन की शुरुआत देवी मातंगी के स्मरण से शुभ होती है। - रात्रिकाल (रात 9 से 11 बजे के बीच):
यह समय तांत्रिक साधना के लिए उपयुक्त है, विशेष रूप से गुरुवार, रविवार या पूर्णिमा के दिन। - विशेष दिन:
नवरात्रि, गुरुपुष्य योग, वसंत पंचमी, गुरुवार, पूर्णिमा, और मातंगी जयंती के दिन पाठ करना अति फलदायी होता है।