श्री दधि वामन स्तोत्रम् एक अद्भुत स्तुति है जो भगवान विष्णु के वामन अवतार को समर्पित है। वामन भगवान विष्णु का पाँचवाँ अवतार माने जाते हैं, जो त्रेता युग में दैत्यराज बलि के अहंकार को शांत करने हेतु ब्रह्मचारी बालक के रूप में अवतरित हुए थे। यह स्तोत्र विशेष रूप से दधि (दही) और अन्न के रूप में अर्पित भोग तथा अमृतकलश को धारण करने वाले भगवान वामन की दिव्य छवि का गूढ़ वर्णन करता है।
इस स्तोत्र में भगवान वामन की सुंदर कांति, अलौकिक स्वरूप, दिव्य आभूषणों, तेजस्वी रूप, और उनकी कृपा से साधकों को प्राप्त होने वाले आयुष्य, आरोग्य, ऐश्वर्य और अन्नसम्पदा का विस्तारपूर्वक वर्णन है। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए उपयुक्त है, बल्कि दैनिक जीवन में सुख, शांति और समृद्धि के लिए भी अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।
ब्राह्ममुहूर्त में इसका पाठ करने से साधक को पुण्य, अन्न की सिद्धि, मानसिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वामन भगवान की कृपा से समस्त दुखों का नाश होता है और जीवन में संतुलन, बुद्धि और धर्म की स्थापना होती है।
श्री दधि वामन स्तोत्रम्
हेमाद्रिशिखराकारं शुद्धस्फटिकसन्निभम् ।
पूर्णचन्द्रनिभं देवं द्विभुजं वामनं स्मरेत् ॥ १ ॥
पद्मासनस्थं देवेशं चन्द्रमण्डलमध्यगम् ।
ज्वलत्कालानलप्रख्यं तडित्कॊटिसमप्रभम् ॥ २ ॥
सुर्यकॊटिप्रतीकाशं चन्द्रकोटिसुशीतलम् ।
चन्द्रमण्डलमध्यस्थं विष्णुमव्ययमच्युतम् ॥ ३ ॥
श्रीवत्सकौस्तुभोरस्कं दिव्यरत्नविभूषितम् ।
पीतांबरमुदाराङ्गं वनमालाविभूषितम् ॥ ४ ॥
सुन्दरं पुण्डरीकाक्षं किरीटेन विराजितम् ।
षोडशस्त्रीयुतं संयगप्सरोगणसेवितम् ॥ ५ ॥
ऋग्यजुस्सामाथर्वाद्यैः गीयमानं जनार्दनम् ।
चतुर्मुखाद्यैः देवेशैः स्तोत्राराधनतत्परैः ॥ ६ ॥
सनकाद्यैः मुनिगणैः स्तूयमानमहर्निशम् ।
त्रियंबको महादेवो नृत्यते यस्य सन्निधौ ॥ ७ ॥
दधिमिश्रान्नकवलं रुक्मपात्रं च दक्षिणे ।
करे तु चिन्तयेद्वामे पीयूषममलं सुधीः ॥ ८ ॥
साधकानाम् प्रयच्छन्तं अन्नपानमनुत्तमम् ।
ब्राह्मे मुहूर्तेचोत्थाय ध्यायेद्देवमधोक्षजम् ॥ ९ ॥
अतिसुविमलगात्रं रुक्मपात्रस्थमन्नम्
सुललितदधिभाण्डं पाणिना दक्षिणेन ।
कलशममृतपूर्णं वामहस्ते दधानं तरति
सकलदुःखान् वामनं भावयेद्यः ॥ १० ॥
क्षीरमन्नमन्नदाता लभेदन्नाद एव च ।
पुरस्तादन्नमाप्नोति पुनरावर्तिवर्जितम् ॥ ११ ॥
आयुरारोग्यमैश्वर्यं लभते चान्नसंपदः ।
इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु प्रातःकाले द्विजोत्तमः ॥ १२ ॥
अक्लेशादन्नसिध्यर्थं ज्ञानसिध्यर्थमेव च ।
अभ्रश्यामः शुद्धयज्ञोपवीती सत्कौपीनः पीतकृष्णाजिनश्रीः
छ्त्री दण्डी पुण्डरीकायताक्षः पायाद्देवो वामनो ब्रह्मचारी ॥ १३ ॥
अजिनदण्डकमण्डलुमेखलारुचिरपावनवामनमूर्तये ।
मितजगत्त्रितयाय जितारये निगमवाक्पटवे वटवे नमः ॥ १४ ॥
श्रीभूमिसहितं दिव्यं मुक्तामणिविभूषितम् ।
नमामि वामनं विष्णुं भुक्तिमुक्तिफलप्रदम् ॥ १५ ॥
वामनो बुद्धिदाता च द्रव्यस्थो वामनः स्मृतः ।
वामनस्तारकोभाभ्यां वामनाय नमो नमः ॥ १६ ॥
॥ इति श्री दधि वामन स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्री दधि वामन स्तोत्रम् — हिंदी अनुवाद
जो भगवान हिमालय की चोटी के समान हैं, शुद्ध स्फटिक के समान उज्ज्वल हैं,
पूर्ण चन्द्र के समान शोभायमान हैं, दो भुजाओं वाले वामन भगवान का स्मरण करें ॥ १ ॥
जो कमलासन पर विराजमान हैं, देवताओं के स्वामी हैं, चन्द्रमण्डल के मध्य में स्थित हैं,
प्रज्वलित अग्नि के समान दीप्तिमान हैं, करोड़ों विद्युतों के समान तेजस्वी हैं ॥ २ ॥
जो करोड़ों सूर्यों के समान चमकते हैं, करोड़ों चन्द्रमाओं के समान शीतल हैं,
जो चन्द्रमण्डल के मध्य में स्थित अविनाशी, अच्युत विष्णु हैं ॥ ३ ॥
जिनके वक्षःस्थल पर श्रीवत्स और कौस्तुभ मणि सुशोभित हैं,
जो दिव्य रत्नों से विभूषित हैं, पीताम्बर धारण किए हैं, जिनका शरीर महान है,
जो वनमाला से अलंकृत हैं ॥ ४ ॥
जो सुंदर हैं, कमल जैसे नेत्रों वाले हैं, किरीट से शोभायमान हैं,
जो सोलह स्त्रियों से घिरे हैं और अप्सराओं की सेवा से पूजित हैं ॥ ५ ॥
जिनका यश ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के द्वारा गाया जाता है,
जिनकी स्तुति ब्रह्मा आदि देवता भक्ति भाव से करते हैं ॥ ६ ॥
जिनकी स्तुति सनक आदि ऋषिगण दिन-रात करते हैं,
जिनकी उपस्थिति में त्रिनेत्रधारी महादेव नृत्य करते हैं ॥ ७ ॥
जिनके दाहिने हाथ में दधि-मिश्रित अन्न से भरा हुआ स्वर्ण पात्र है,
और बुद्धिमान व्यक्ति उनके बाएँ हाथ में अमृत से भरे कलश का ध्यान करें ॥ ८ ॥
जो साधकों को उत्तम अन्न और पेय प्रदान करते हैं,
जो ब्राह्म मुहूर्त में उठकर अधोक्षज भगवान का ध्यान करता है ॥ ९ ॥
जिसका शरीर अत्यंत निर्मल है, जो अपने दाहिने हाथ में
दही और चावल से भरा सुंदर पात्र लिए हैं,
जो बाएँ हाथ में अमृत से भरा कलश धारण किए हैं,
जो वामन भगवान का ध्यान करता है वह समस्त दुखों से मुक्त हो जाता है ॥ १० ॥
जो दूध-चावल और अन्न के दाता हैं, वही उत्तम अन्न प्राप्त करता है,
वह अपने सामने श्रेष्ठ अन्न प्राप्त करता है, और पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है ॥ ११ ॥
जो प्रातःकाल इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह श्रेष्ठ ब्राह्मण आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य और
अन्न की संपन्नता प्राप्त करता है ॥ १२ ॥
अन्न की निष्कलंक प्राप्ति और ज्ञान की सिद्धि के लिए,
काले मेघ के समान वर्ण वाले, शुद्ध यज्ञोपवीतधारी,
श्रेष्ठ कौपीनधारी, पीले और कृष्ण मृगचर्म पहने हुए,
छत्र, दण्ड, और कमल के नेत्रों वाले वामन ब्रह्मचारी भगवान हमारी रक्षा करें ॥ १३ ॥
जो अजिन, दण्ड, कमण्डलु और मेखला से शोभायमान हैं,
जो तीनों लोकों को माप चुके हैं,
जो शास्त्रों के सार को जानते हैं, उन वटवृक्ष के समान वामन को नमस्कार है ॥ १४ ॥
जो श्रीभूमिदेवी के साथ दिव्य स्वरूप में हैं,
मोती-जड़ित आभूषणों से विभूषित हैं,
ऐसे विष्णु रूप वामन को नमस्कार है, जो भक्ति और मुक्ति दोनों फल प्रदान करते हैं ॥ १५ ॥
वामन बुद्धि के दाता हैं, और धन के अधिष्ठाता भी वामन ही माने जाते हैं,
जो तारक और उपास्य हैं — उन वामन भगवान को बारंबार नमस्कार ॥ १६ ॥
॥ इति श्री दधि वामन स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्री दधि वामन स्तोत्रम् के लाभ (Benefits):
- अन्न और धन की वृद्धि – यह स्तोत्र भगवान वामन को अर्पित है, जो अन्नदाता और धन-सम्पत्ति के संरक्षक माने जाते हैं। इसका पाठ करने से घर में अन्न, धन, और समृद्धि की कमी नहीं रहती।
- दुःखों का नाश – भगवान वामन के ध्यान से सभी प्रकार के मानसिक, शारीरिक और आर्थिक कष्ट दूर होते हैं।
- आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति – नियमित पाठ से दीर्घायु, अच्छा स्वास्थ्य और वैभव की प्राप्ति होती है।
- भक्ति और ज्ञान की सिद्धि – इस स्तोत्र में भगवान को ब्रह्मचारी, ज्ञानस्वरूप और वेदों से पूजित बताया गया है। इसका जाप साधक के भीतर भक्ति और विवेक का विकास करता है।
- मोक्ष (मुक्ति) की प्राप्ति – वामन भगवान विष्णु के अवतार हैं, जिनकी आराधना मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है।
श्री दधि वामन स्तोत्रम् पाठ विधि (Vidhi):
- स्थान चयन – शांत और पवित्र स्थान पर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- स्नान एवं शुद्ध वस्त्र – प्रातः स्नान कर स्वच्छ पीले या सफेद वस्त्र धारण करें।
- दीप-धूप प्रज्वलन – दीपक और धूप जलाकर भगवान वामन की प्रतिमा या चित्र के सामने रखें।
- अर्घ्य और नैवेद्य – जल, पुष्प, अक्षत, तुलसीदल और दधि मिश्रित अन्न अर्पित करें।
- ध्यान और स्तोत्र पाठ – पहले भगवान वामन का ध्यान करें, फिर पूरे श्रद्धा और मनोभाव से स्तोत्र का पाठ करें।
- अंत में प्रार्थना – भगवान से अपने दुखों की निवृत्ति, सुख, शांति और समृद्धि की प्रार्थना करें।
जाप का समय (Jaap Time):
- ✅ सर्वश्रेष्ठ समय – प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4:00 से 6:00 बजे के बीच)
- ✅ वैकल्पिक समय – सूर्योदय के समय (सुबह 6:00 से 7:30 बजे तक)
- ❌ रात्रिकाल या भोजन के बाद इसका पाठ अनुचित माना जाता है।