भगवान दत्तात्रेय त्रिदेव — ब्रह्मा, विष्णु और शिव — के संयुक्त अवतार हैं। वे ज्ञान, योग, भक्ति और तप की मूर्ति माने जाते हैं। “दत्तात्रेय” नाम दो भागों से बना है: “दत्त” यानी जिन्होंने स्वयं को समर्पित कर दिया, और “आत्रेय” यानी अत्रि ऋषि के पुत्र।
उनका स्वरूप तीन मुख और छह भुजाओं वाला होता है, जो त्रिदेवों के गुणों का प्रतिनिधित्व करता है। वे गुरुओं के भी गुरु माने जाते हैं। उनका पूजन जीवन में सभी प्रकार की बाधाओं और दोषों को दूर करता है।
“श्री दत्तात्रेय अपराध क्षमापन स्तोत्र” विशेष रूप से उन भक्तों के लिए है जो अपने जीवन में हुई गलतियों, पापों या कर्म दोषों से मुक्ति चाहते हैं। यह स्तोत्र भगवान दत्तात्रेय से क्षमा याचना करता है और उन्हें सच्चे हृदय से स्मरण करता है।
श्रीदत्तात्रेय अपराध क्षमापन स्तोत्र पाठ
Shri Dattatreya Apradh Kshamapan Stotra in Hindi
दत्तात्रेयं त्वां नमामि प्रसीद त्वं सर्वात्मा सर्वकर्ता न वेद ।
कोऽप्यन्तं ते सर्वदेवाधिदेव ज्ञाताज्ञातान्मेऽपराधान् क्षमस्व ॥ १ ॥
त्वदुद्भवत्वात्त्वदधीनधीत्वा-त्त्वमेव मे वन्द्य उपास्य आत्मन् ।
अथापि मौढ्यात् स्मरणं न ते मे कृतं क्षमस्व प्रियकृन्महात्मन् ॥ २ ॥
भोगापवर्गप्रदमार्तबन्धुं कारुण्यसिन्धुं परिहाय बन्धुम् ।
हिताय चान्यं परिमार्गयन्ति हा मादृशो नष्टदृशो विमूढाः ॥ ३ ॥
न मत्समो यद्यपि पापकर्ता न त्वत्समोऽथापि हि पापहर्ता ।
न मत्समोऽन्यो दयनीय आर्य न त्वत्समः क्वापि दयालुवर्यः ॥ ४ ॥
अनाथनाथोऽसि सुदीनबन्धो श्रीशाऽनुकम्पामृतपूर्णसिन्धो ।
त्वत्पादभक्तिं तव दासदास्यं त्वदीयमन्त्रार्थदृढैकनिष्ठाम् ॥ ५ ॥
गुरुस्मृतिं निर्मलबुद्धिमाधि-व्याधिक्षयं मे विजयं च देहि ।
इष्टार्थसिद्धिं वरलोकवश्यं धनान्नवृद्धिं वरगोसमृद्धिम् ॥ ६ ॥
पुत्रादिलब्धिं म उदारतां च देहीश मे चास्त्वभय हि सर्वतः ।
ब्रह्माग्निभूम्यो नम ओषधीभ्यो वाचे नमो वाक्पतये च विष्णवे ॥ ७ ॥
शान्ताऽस्तु भूर्नः शिवमन्तरिक्षं द्यौश्चाऽभयं नोऽस्तु दिशः शिवाश्च ।
आपश्च विद्युत्परिपान्तु देवाः शं सर्वतो मेऽभयमस्तु शान्तिः ॥ ८ ॥
।। इति श्रीदत्तात्रेय अपराध क्षमापन स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
श्री दत्तात्रेय अपराध क्षमापन स्तोत्र — हिंदी अनुवाद (Shri Dattatreya Crime Forgiveness Stotra – Hindi Translation)
हे दत्तात्रेय! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। आप सर्वात्मा हैं, सर्वकर्ता हैं, आपके अंत को कोई नहीं जानता।
हे सर्वदेवों के अधिदेव! मुझसे जाने-अनजाने में जो अपराध हुए हैं, कृपया उन्हें क्षमा करें। ॥ १ ॥
आप ही मेरे आदि हैं, आप ही में सब स्थित हैं — आप ही मेरे उपास्य हैं, वंदनीय हैं।
फिर भी मेरी मूर्खता के कारण मैं आपका स्मरण नहीं कर सका,
हे प्रिय कार्य करने वाले महान आत्मा! कृपया मुझे क्षमा करें। ॥ २ ॥
आप भोग और मोक्ष दोनों के दाता हैं, दुखी जीवों के बंधु हैं, करुणा के सागर हैं।
फिर भी मैं जैसे मूढ़ और अंधा व्यक्ति, आपके जैसे बंधु को छोड़कर औरों को खोजता रहा — यह मेरा दुर्भाग्य है। ॥ ३ ॥
यद्यपि मुझसे बड़ा पापी कोई नहीं, फिर भी आपसे बड़ा पापों का हरण करने वाला भी कोई नहीं।
मेरे जैसा दया का पात्र और कोई नहीं, और आपके जैसा दयालु भी इस संसार में कोई नहीं। ॥ ४ ॥
आप अनाथों के नाथ, दरिद्रों के बंधु, करुणा से पूर्ण, श्रीस्वरूप हैं।
मुझे आपके चरणों की भक्ति दें, आपका दास बनने का सौभाग्य दें,
और आपके मंत्रों में दृढ़ निष्ठा प्राप्त हो — ऐसी कृपा करें। ॥ ५ ॥
हे प्रभो! मुझे सद्गुरु का स्मरण करने की शक्ति दें, निर्मल बुद्धि दें,
मानसिक और शारीरिक रोगों का नाश करें, विजय प्रदान करें।
इच्छित कार्यों की सिद्धि दें, लोकवशीकरण की क्षमता दें,
धन, अन्न और गो-संपदा की वृद्धि करें। ॥ ६ ॥
मुझे पुत्र–पोत्र आदि की प्राप्ति हो, उदारता मिले,
और हर दिशा से भय दूर हो — यह मेरा आशीर्वाद हो।
मैं ब्रह्मा, अग्नि, पृथ्वी, औषधियों, वाणी, वाणी के अधिपति और भगवान विष्णु को नमस्कार करता हूँ। ॥ ७ ॥
हमारी पृथ्वी शांत हो, आकाश मंगलमय हो, दिशाएँ हमें भय से मुक्त रखें,
जल, विद्युत और देवगण हमारी रक्षा करें।
चारों ओर से मुझे शांति और अभय प्राप्त हो। ॥ ८ ॥
॥ इति श्रीदत्तात्रेय अपराध क्षमापन स्तोत्रम् समाप्तम् ॥
इस स्तोत्र का महत्व और लाभ (Importance and benefits of this hymn):
- यह स्तोत्र पूर्व जन्मों और वर्तमान जीवन में किए गए अपराधों के लिए क्षमा पाने में सहायक है।
- पितृदोष, विवाह में बाधा, गृह क्लेश, संतान संबंधी समस्याएं, तथा आकस्मिक दुख दूर होते हैं।
- जीवन में शांति, सद्बुद्धि, भक्ति, और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- यह स्तोत्र मन को शांत करता है और अंदर से व्यक्ति को सात्त्विक ऊर्जा प्रदान करता है।
पाठ विधि (How to Recite):
- प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- पूजा स्थान पर भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें।
- दीपक जलाएं और धूप अर्पित करें।
- शुद्ध मन और भाव से इस स्तोत्र का पाठ करें।
- पाठ के अंत में भगवान से क्षमा याचना करें और शांतिपूर्वक ध्यान करें।
पाठ का उपयुक्त समय (suitable time for lesson):
- प्रातःकाल (सूर्योदय के समय) या संध्या के समय पाठ करना सबसे उत्तम माना गया है।
- सोमवार, गुरुवार या पूर्णिमा के दिन इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
- यदि किसी विशेष कष्ट या दोष का समाधान करना हो तो 11, 21 या 40 दिनों का संकल्प लेकर पाठ करें।
किन्हें इसका पाठ करना चाहिए (Who should read it):
- जिनके विवाह में अनावश्यक देरी हो रही हो।
- जिनके परिवार में संतोष या संतति की समस्या हो।
- जिनके ऊपर पूर्वजों का कोई पितृदोष हो।
- जो अपने अज्ञात पापों से मुक्ति पाना चाहते हों।
- जो मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति की तलाश में हों।