“श्रीगणेश प्रातः स्मरणम् स्तोत्र” एक अत्यंत मंगलकारी स्तोत्र है जिसकी रचना प्राचीन काल में श्री गणेश जी के गुणगान के लिए की गई थी। इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से प्रातःकाल किया जाता है, जब मन शांत और पवित्र होता है। यह स्तोत्र केवल तीन श्लोकों का है, परंतु इसका प्रभाव अत्यंत व्यापक और दिव्य माना जाता है।
गणेश जी को संकटों का नाश करने वाले, सिद्धियों के दाता और सर्वप्रथम पूजनीय देवता माना गया है। इस स्तोत्र में उनके करुणामय, सर्वज्ञ, विद्यादाता, और विघ्नहर्ता स्वरूप का ध्यान किया गया है।
इस स्तोत्र में भक्त गणेश जी के सुशोभित स्वरूप, उनके दिव्य गुणों और अनुकंपा का वर्णन करते हुए उनसे जीवन की बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना करता है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रातःकाल इस स्तोत्र का श्रद्धा सहित पाठ करता है, उसे संपत्ति, सुख, विवेक, निर्भयता और सफलता प्राप्त होती है।
श्रीगणेश प्रातः स्मरणम् स्तोत्र सरल शब्दों में भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने का प्रभावी मार्ग है, जो हर उम्र और परिस्थिति के भक्त के लिए उपयुक्त है।
श्रीगणेश प्रातः स्मरणम् स्तोत्र
प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं
सिंदूरपूरपरिशोभित गण्डयुग्मम् ।
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्डं
आखण्डलादि सुरनायक वृन्दवन्द्यम् ॥ 1 ॥
प्रातर्नमामि चतुरानन वन्द्यमानं
इच्छानुकूलमखिलंच फलं ददानम् ।
तं तुंदिलं द्विरसनाधिप यज्ञसूत्रं
पुत्रं विलासचतुरं शिवयोः शिवाय ॥ 2 ॥
प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्तशोक
दावानलं गणविभुं वरकुंजरास्यम् ।
अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाहं
उत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्य ॥ 3 ॥
श्लोकत्रयमिदं पुण्यं सदा साम्राज्यदायकम् ।
प्रातरुत्थाय सततं यः पठेत्प्रयतः पुमान् ॥ 4 ॥
॥ इति श्रीगणेश प्रातः स्मरणम् स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
“श्रीगणेश प्रातः स्मरणम् स्तोत्र” का हिंदी अनुवाद (Hindi translation of “Shri Ganesh Pratah Smaranam Stotra”)
प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं
सिंदूरपूरपरिशोभित गण्डयुग्मम्
उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्डं
आखण्डलादि सुरनायक वृन्दवन्द्यम् ॥ 1 ॥
अनुवाद:
प्रातःकाल मैं श्री गणेश जी का स्मरण करता हूँ, जो अनाथों के सच्चे सहायक हैं।
जिनके गाल सिंदूर से सुशोभित हैं।
जो समस्त विघ्नों का उग्र दंड से विनाश करते हैं,
और इन्द्र आदि देवताओं द्वारा वंदनीय हैं।
प्रातर्नमामि चतुरानन वन्द्यमानं
इच्छानुकूलमखिलं च फलं ददानम्
तं तुंदिलं द्विरसनाधिप यज्ञसूत्रं
पुत्रं विलासचतुरं शिवयोः शिवाय ॥ 2 ॥
अनुवाद:
प्रातःकाल मैं उन गणेश जी को नमस्कार करता हूँ,
जिन्हें ब्रह्मा जी भी नमस्कार करते हैं,
जो भक्तों को इच्छानुसार फल प्रदान करते हैं।
जो विशाल पेट वाले, दो दांतों वाले, यज्ञसूत्र धारण करने वाले,
और शिव–पार्वती के चतुर पुत्र हैं।
प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्तशोक
दावानलं गणविभुं वरकुंजरास्यम्
अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाहं
उत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्य ॥ 3 ॥
अनुवाद:
प्रातःकाल मैं उस गणपति का भजन करता हूँ
जो भय को दूर करते हैं,
जो भक्तों के शोक रूपी अग्नि को शांत करते हैं,
जिनका मुख हाथी के समान है,
जो अज्ञान के वन को जलाने वाली अग्नि हैं
और जो शिव जी के उत्साहवर्धक पुत्र हैं।
श्लोकत्रयमिदं पुण्यं सदा साम्राज्यदायकम्
प्रातरुत्थाय सततं यः पठेत्प्रयतः पुमान् ॥ 4 ॥
अनुवाद:
यह तीन श्लोकों वाला पुण्यदायक स्तोत्र
सदैव राज्य और वैभव देने वाला है।
जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर इसे श्रद्धा से पढ़ता है,
वह गणेश जी की कृपा से सुख, शांति और सफलता को प्राप्त करता है।
॥ इति श्रीगणेश प्रातः स्मरणम् स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
श्रीगणेश प्रातः स्मरणम् स्तोत्र के लाभ (Benefits):
- विघ्नों का नाश होता है:
यह स्तोत्र भगवान गणेश के विघ्नहर्ता स्वरूप को स्मरण करता है, जिससे जीवन की बाधाएँ और संकट दूर होते हैं। - प्रातःकाल की सकारात्मक ऊर्जा:
इसका पाठ सुबह करने से दिनभर सकारात्मकता, मानसिक शांति और ऊर्जा बनी रहती है। - विद्या और बुद्धि की वृद्धि:
विद्यार्थियों और ज्ञान की seekers के लिए यह स्तोत्र अत्यंत फलदायी है। गणेश जी बुद्धि और विवेक के देवता हैं। - आत्मिक बल और निर्भयता:
इसका पाठ भक्त को निर्भयता, आत्मविश्वास और प्रेरणा प्रदान करता है। - आध्यात्मिक उन्नति:
प्रातःकाल श्री गणेश जी का स्मरण साधक को आध्यात्मिक रूप से उन्नत करता है और भगवान से संबंध मजबूत करता है।
पाठ विधि (Vidhi):
- प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- घर या पूजा स्थल में भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने आसन लगाकर बैठें।
- दीपक (घी या तेल का) और अगरबत्ती जलाकर पूजा आरंभ करें।
- श्री गणेश जी को सिंदूर, दूर्वा, फूल, और मोदक अर्पित करें।
- हाथ जोड़कर स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करें — यदि संभव हो तो उच्च स्वर में पढ़ें।
- पाठ के अंत में प्रार्थना करें और प्रसाद चढ़ाएं।
- अंत में भगवान से दिनभर की रक्षा और शुभता की प्रार्थना करें।