“श्री गणेश अवतार स्तोत्रम्” एक अद्भुत और गूढ़ स्तोत्र है जो भगवान श्री गणेश जी के विभिन्न अवतारों का वर्णन करता है। इसे “आङ्गिरस ऋषि” द्वारा कहा गया है और इसमें गणपति के आठ प्रमुख अवतारों — जैसे वक्रतुण्ड, एकदन्त, महोदर, गजानन, लम्बोदर, विकट, विघ्नराज और धूम्रवर्ण — की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है।
हर अवतार किसी विशेष असुर (दुर्गुण) का संहार करता है, जैसे — मत्सर, मद, मोह, लोभ, क्रोध, काम, ममता और अभिमान। ये अवतार आत्मिक विकास की यात्रा में मनुष्य के आंतरिक विघ्नों का प्रतीकात्मक रूप से नाश करते हैं।
यह स्तोत्र यह भी बताता है कि भगवान गणेश केवल विघ्नहर्ता ही नहीं, अपितु ब्रह्मज्ञान के धारक, योग के आधार और भक्ति मार्ग के पथप्रदर्शक भी हैं।
जो भक्त इस स्तोत्र का श्रवण और पाठ श्रद्धा से करता है, उसे पुत्र-पौत्र, धन-समृद्धि, शांति, योग-सिद्धि और परम ब्रह्म का साक्षात्कार मिलता है। यह स्तोत्र न केवल भक्त की सकल बाधाओं को दूर करता है, बल्कि उसे चारों पुरुषार्थ — धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — प्रदान करता है।
“श्री गणेश अवतार स्तोत्रम्” साधक के जीवन में ईश्वर साक्षात्कार की दिशा में एक अत्यंत प्रभावशाली और फलदायक स्तुति है
।। श्री गणेशाय नमः ।।
।। आङ्गिरस उवाच ।।
अनन्ता अवताराश्च गणेशस्य महात्मनः।
न शक्यते कथां वक्तुं मया वर्षशतैरपि॥ 1॥
संक्षेपेण प्रवक्ष्यामि मुख्यानां मुख्यतां गतान्।
अवतारांश्च तस्याष्टौ विख्यातान् ब्रह्मधारकान्॥ 2॥
वक्रतुण्डावतारश्च देहिनां ब्रह्मधारकः।
मत्सरासुरहन्ता स सिंहवाहनगः स्मृतः॥ 3॥
एकदन्तावतारो वै देहिनां ब्रह्मधारकः।
मदासुरस्य हन्ता स आखुवाहनगः स्मृतः॥ 4॥
महोदर इति ख्यातो ज्ञानब्रह्मप्रकाशकः।
मोहासुरस्य शत्रुर्वै आखुवाहनगः स्मृतः॥ 5॥
गजाननः स विज्ञेयः सांख्येभ्यः सिद्धिदायकः।
लोभासुरप्रहर्ता च मूषकगः प्रकीर्तितः॥ 6॥
लम्बोदरावतारो वै क्रोधसुरनिबर्हणः।
आखुगः शक्तिब्रह्मा सन् तस्य धारक उच्यते॥ 7॥
विकटो नाम विख्यातः कामासुरप्रदाहकः।
मयूरवाहनश्चायं सौरमात्मधरः स्मृतः॥ 8॥
विघ्नराजावतारश्च शेषवाहन उच्यते।
ममासुरप्रहन्ता स विष्णुब्रह्मेति वाचकः॥ 9॥
धूम्रवर्णावतारश्चाभिमानासुरनाशकः।
आखुवाहनतां प्राप्तः शिवात्मकः स उच्यते॥ 10॥
एतेऽष्टौ ते मया प्रोक्ता गणेशांशा विनायकाः।
एषां भजनमात्रेण स्वस्वब्रह्मप्रधारकाः॥ 11॥
स्वानन्दवासकारी स गणेशानः प्रकथ्यते।
स्वानन्दे योगिभिर्दृष्टो ब्रह्मणि नात्र संशयः॥ 12॥
तस्यावताररूपाश्चाष्टौ विघ्नहरणाः स्मृताः।
स्वानन्दभजनेनैव लीलास्तत्र भवन्ति हि॥ 13॥
माया तत्र स्वयं लीना भविष्यति सुपुत्रक।
संयोगे मौनभावश्च समाधिः प्राप्यते जनैः॥ 14॥
अयोगे गणराजस्य भजने नैव सिद्ध्यति।
मायाभेदमयं ब्रह्म निवृत्तिः प्राप्यते परा॥ 15॥
योगात्मकगणेशानो ब्रह्मणस्पतिवाचकः।
तत्र शान्तिः समाख्याता योगरूपा जनैः कृता॥ 16॥
नानाशान्तिप्रभेदश्च स्थाने स्थाने प्रकथ्यते।
शान्तीनां शान्तिरूपा सा योगशान्तिः प्रकीर्तिता॥ 17॥
योगस्य योगता दृष्टा सर्वब्रह्म सुपुत्रक।
न योगात्परमं ब्रह्म ब्रह्मभूतेन लभ्यते॥ 18॥
एतदेव परं गुह्यं कथितं वत्स तेऽलिखम्।
भज त्वं सर्वभावेन गणेशं ब्रह्मनायकम्॥ 19॥
पुत्रपौत्रादिप्रदं स्तोत्रमिदं शोकविनाशनम्।
धनधान्यसमृद्ध्यादिप्रदं भावि न संशयः॥ 20॥
धर्मार्थकाममोक्षाणां साधनं ब्रह्मदायकम्।
भक्तिदृढकरं चैव भविष्यति न संशयः॥ 21॥
॥ इति श्री गणेश अवतार स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
“श्री गणेश अवतार स्तोत्रम्” का हिंदी अनुवाद (Hindi translation of “Shri Ganesh Avtaar Stotram”)
।। श्री गणेशाय नमः ।।
।। आङ्गिरस उवाच ।।
- हे सुपुत्र! गणेश जी के अनंत अवतार हैं। उनकी कथाओं का वर्णन मैं सौ वर्षों तक भी नहीं कर सकता।
- अब मैं संक्षेप में उनके प्रमुख और मुख्य आठ अवतारों का वर्णन करूंगा, जो ब्रह्मज्ञान के धारक माने गए हैं।
- वक्रतुण्ड अवतार, जो मत्सर नामक असुर का संहारक है, सिंह की सवारी करता है और ब्रह्मविद्या का धारक है।
- एकदंत अवतार, जो मदासुर का संहार करता है, मूषक (चूहे) की सवारी करता है और आत्मज्ञान का प्रचार करता है।
- महोदर अवतार, जो ज्ञान और ब्रह्मप्रकाश से युक्त है, मोह नामक असुर का विनाश करता है और मूषक वाहन है।
- गजानन अवतार, जो सांख्य योगियों को सिद्धि प्रदान करता है, लोभासुर का विनाश करता है और मूषक की सवारी करता है।
- लम्बोदर अवतार, जो क्रोधासुर का नाश करता है, शक्ति और ब्रह्म का धारक है, मूषक वाहन है।
- विकट अवतार, जो कामासुर को जलाता है, मयूर (मोर) की सवारी करता है, और सौर शक्ति का प्रतीक है।
- विघ्नराज अवतार, जो शेषनाग की सवारी करता है, ममासुर का नाश करता है, और विष्णु-ब्रह्म स्वरूप माना जाता है।
- धूम्रवर्ण अवतार, जो अभिमानासुर का संहार करता है, मूषक वाहन है और शिव का अंश माना जाता है।
- ये आठ गणेश के अवतार मैंने बताए हैं। इनका स्मरण और भजन करने से हर व्यक्ति अपने आत्म-ब्रह्म को जान सकता है।
- ये गणेश स्वानंद (अंतःसुख) में वास करते हैं। योगीजन इन्हें साक्षात ब्रह्म के रूप में अनुभव करते हैं — इसमें कोई संदेह नहीं।
- इनके आठ अवतार विघ्नों का नाश करने वाले हैं और स्वानंद भजन के माध्यम से इनकी लीलाएं प्रकट होती हैं।
- जब योग और माया का मेल होता है, तब व्यक्ति मौन भाव में समाधि प्राप्त करता है।
- लेकिन गणराज का भजन न हो तो सिद्धि नहीं मिलती। माया के भेद से मुक्त होकर ही परम ब्रह्म की प्राप्ति होती है।
- योगरूप गणेश ब्रह्मणस्पति (ब्रह्म के अधिष्ठाता) हैं। वहां शांति का अनुभव होता है और लोग योग की अवस्था को प्राप्त करते हैं।
- अनेक प्रकार की शांतियाँ कही जाती हैं, लेकिन उनमें सर्वोत्तम “योगशांति” मानी गई है।
- हे वत्स! समस्त ब्रह्म तत्वों की सिद्धि योग से ही संभव है। योग के बिना ब्रह्म की प्राप्ति नहीं होती।
- यह जो परम रहस्य मैंने तुझसे कहा, तू श्रद्धा से गणेश का भजन कर — जो ब्रह्मस्वरूप के नायक हैं।
- यह स्तोत्र पुत्र-पौत्र, धन-धान्य और समृद्धि देने वाला है, और शोक का नाश करता है — इसमें कोई संदेह नहीं।
- यह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्रदान करने वाला है, और भक्ति को दृढ़ करने वाला है — इसमें कोई संशय नहीं।
॥ इति श्री गणेश अवतार स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
लाभ (Benefits):
- आंतरिक दोषों का नाश:
इस स्तोत्र में वर्णित आठ गणेश अवतार आठ प्रमुख दुर्गुणों — काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, ममता और अभिमान — को नष्ट करते हैं। - सभी प्रकार के विघ्नों से मुक्ति:
विघ्नराज स्वरूप गणेश जी सभी कार्यों में आने वाली बाधाओं को दूर करते हैं। - धन, संतति व समृद्धि की प्राप्ति:
यह स्तोत्र संतान सुख, धन-धान्य और सुख-शांति देने वाला है। - बुद्धि, विवेक और ज्ञान की वृद्धि:
गणेश जी ब्रह्मज्ञान के धारक हैं, अतः इसका पाठ करने से आत्मिक विकास होता है। - योग और भक्ति मार्ग में प्रगति:
गणेश जी योग एवं ब्रह्मसाक्षात्कार के आधार हैं — साधक की साधना में प्रगति होती है। - पापों का नाश एवं मोक्ष की प्राप्ति:
यह स्तोत्र शोक, पाप और सभी मानसिक कष्टों से मुक्ति दिलाता है।
विधि (Vidhi):
- स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- गणेश जी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं और चंदन, फूल अर्पित करें।
- “ॐ श्री गणेशाय नमः” का स्मरण कर स्तोत्र का पाठ करें।
- अगर संभव हो तो आठों अवतारों के नामों पर अलग-अलग दीप या पुष्प अर्पित करें।
- अंत में गणेश जी की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
जाप का समय (Jaap Time):
- प्रातःकाल (सुबह 4:00 से 6:00 बजे) ब्रह्ममुहूर्त में पाठ करना श्रेष्ठ होता है।
- शुक्रवार, चतुर्थी तिथि, और गणेश चतुर्थी के दिन इसका पाठ विशेष फलदायक होता है।
- यदि संभव हो, 21, 27 या 108 बार इस स्तोत्र का पाठ करना विशेष लाभदायक है।