“षोडशी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्” एक अत्यंत गोपनीय और शक्तिशाली स्तोत्र है, जिसमें देवी त्रिपुरा सुन्दरी (षोडशी) के 108 दिव्य नामों का उल्लेख है। यह स्तोत्र देवी उपासना की श्री विद्या परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। इसमें देवी की सौंदर्य, शक्ति, ज्ञान, करुणा, और ब्रह्म स्वरूपा होने की महिमा का सुंदर वर्णन किया गया है।
त्रिपुरा सुन्दरी, जिन्हें षोडशी कहा जाता है, दश महाविद्याओं में एक हैं और परमेश्वरी, ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। “षोडशी” नाम का अर्थ है “सोलहवर्षीया कन्या”, जो परम सौंदर्य और ऊर्जा की प्रतीक हैं। यह स्तोत्र ब्रह्मा और भृगु ऋषि के संवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें यह बताया गया है कि केवल इस स्तोत्र के पाठ से ही भक्त को भक्ति, सिद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
यह स्तोत्र देवी के रूप, स्वरूप, शक्तियों, कार्यों और उनके विभिन्न रूपों का अत्यंत सरस और भक्तिपूर्ण वर्णन करता है। यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति का साधन है, बल्कि यह गृहस्थ जीवन में सुख, सौंदर्य, समृद्धि और मन की शुद्धि का भी मार्ग प्रशस्त करता है।
संक्षेप में, यह स्तोत्र साधक को देवी षोडशी के तत्व से जोड़ता है और श्रीविद्या साधना में एक उच्च स्थान रखता है। श्रद्धा और नियमपूर्वक इसका पाठ करने से साधक को समस्त सांसारिक कष्टों से मुक्ति और परम आनंद की प्राप्ति होती है।
षोडशी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्
॥ भृगुरुवाच ॥
चतुर्वक्त्र जगन्नाथ स्तोत्रं वद मयि प्रभो ।
यस्यानुष्ठानमात्रेण नरो भक्तिमवाप्नुयात् ॥ 1 ॥
॥ ब्रह्मोवाच ॥
सहस्रनाम्नामाकृष्य नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।
गुह्याद्गुह्यतरं गुह्यं सुन्दर्याः परिकीर्तितम् ॥ 2 ॥
॥ विनियोगः ॥
अस्य श्रीषोडश्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रस्य शम्भुरृषिः, अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीषोडशी देवता, धर्मार्थकाममोक्षसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।
॥ स्तोत्रम् प्रारंभ ॥
त्रिपुरा षोडशी माता त्र्यक्षरा त्रितया त्रयी ।
सुन्दरी सुमुखी सेव्या सामवेदपरायणा ॥ 3 ॥
शारदा शब्दनिलया सागरा सरिदम्बरा ।
शुद्धा शुद्धतनुः साध्वी शिवध्यानपरायणा ॥ 4 ॥
स्वामिनी शम्भुवनिता शाम्भवी च सरस्वती ।
समुद्रमथिनी शीघ्रगामिनी शीघ्रसिद्धिदा ॥ 5 ॥
साधुसेव्या साधुगम्या साधुसन्तुष्टमानसा ।
खट्वाङ्गधारिणी खर्वा खड्गखर्परधारिणी ॥ 6 ॥
षड्वर्गभावरहिता षड्वर्गपरिचारिका ।
षड्वर्गा च षडङ्गा च षोढा षोडशवार्षिकी ॥ 7 ॥
क्रतुरूपा क्रतुमती ऋभुक्षक्रतुमण्डिता ।
कवर्गादिपवर्गान्ता अन्तस्थाऽनन्तरूपिणी ॥ 8 ॥
अकाराकाररहिता कालमृत्युजरापहा ।
तन्वी तत्त्वेश्वरी तारा त्रिवर्षा ज्ञानरूपिणी ॥ 9 ॥
काली कराली कामेशी छाया सञ्ज्ञाप्यरुन्धती ।
निर्विकल्पा महावेगा महोत्साहा महोदरी ॥ 10 ॥
मेघा बलाका विमला विमलज्ञानदायिनी ।
गौरी वसुन्धरा गोप्त्री गवां पतिनिषेविता ॥ 11 ॥
भगाङ्गा भगरूपा च भक्तिभावपरायणा ।
छिन्नमस्ता महाधूमा तथा धूम्रविभूषणा ॥ 12 ॥
धर्मकर्मादिरहिता धर्मकर्मपरायणा ।
सीता मातङ्गिनी मेधा मधुदैत्यविनाशिनी ॥ 13 ॥
भैरवी भुवना माता अभयदा भवसुन्दरी ।
भावुका बगला कृत्या बाला त्रिपुरसुन्दरी ॥ 14 ॥
रोहिणी रेवती रम्या रम्भा रावणवन्दिता ।
शतयज्ञमयी सत्त्वा शतक्रतुवरप्रदा ॥ 15 ॥
शतचन्द्रानना देवी सहस्रादित्यसन्निभा ।
सोमसूर्याग्निनयना व्याघ्रचर्माम्बरावृता ॥ 16 ॥
अर्धेन्दुधारिणी मत्ता मदिरा मदिरेक्षणा ।
इति ते कथितं गोप्यं नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥ 17 ॥
सुन्दर्याः सर्वदं सेव्यं महापातकनाशनम् ।
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं कलौ युगे ॥ 18 ॥
सहस्रनामपाठस्य फलं यद्वै प्रकीर्तितम् ।
तस्मात्कोटिगुणं पुण्यं स्तवस्यास्य प्रकीर्तनात् ॥ 19 ॥
पठेत्सदा भक्तियुतो नरो यो
निशीथकालेऽप्यरुणोदये वा ।
प्रदोषकाले नवमीदिनेऽथवा
लभेत भोगान्परमाद्भुतान्प्रियान् ॥ 20 ॥
॥ इति षोडशी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
“षोडशी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्” का हिंदी अनुवाद
षोडशी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्
Shodashi Ashtottar Shatnam Stotram (Hindi Translation)
॥ भृगु बोले ॥
हे चतुर्मुख जगन्नाथ! मुझ पर कृपा कर यह स्तोत्र कहिए,
जिसका केवल अनुष्ठान करने मात्र से मनुष्य भक्ति प्राप्त कर लेता है ॥1॥
॥ ब्रह्मा बोले ॥
मैंने सहस्रनामों से निकालकर ये 108 नाम प्रस्तुत किए हैं,
जो अत्यंत गोपनीय, सबसे सुंदर और श्री सुन्दरी देवी से संबंधित हैं ॥2॥
॥ विनियोगः ॥
इस श्री षोडशी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का ऋषि शंभु हैं, छंद अनुष्टुप है,
देवी षोडशी ही देवता हैं, और इसका जप धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की सिद्धि हेतु किया जाता है।
॥ स्तोत्र प्रारंभ ॥
त्रिपुरा, षोडशी माता, तीन अक्षरों वाली, तीनों गुणों से युक्त, तीन वेदों की ज्ञाता,
सुन्दरी, सुंदर मुख वाली, सेवा योग्य, और सामवेद में लीन रहने वाली हैं ॥3॥
शारदा, शब्द की अधिष्ठात्री, महासागर समान, दिशाओं में व्याप्त,
शुद्ध, शुद्ध शरीर वाली, साध्वी, शिव ध्यान में लीन रहने वाली हैं ॥4॥
स्वामिनी, शंभु की वंदिता, शाम्भवी और सरस्वती,
समुद्र मथन करने वाली, शीघ्र गति वाली और शीघ्र सिद्धि देने वाली हैं ॥5॥
संतों की सेवा करने वाली, संतों को प्राप्त होने वाली, संतों को संतुष्ट रखने वाली,
खट्वांग धारण करने वाली, बौनी, खड्ग और खप्पर धारण करने वाली हैं ॥6॥
षड्वर्ग (काम, क्रोध, लोभ आदि) से रहित, षड्वर्ग की परिचारिका,
षड्वर्ग युक्त, षडंग वाली, षोडशी और सोलह वर्षीय कन्या रूप में हैं ॥7॥
यज्ञ रूप वाली, यज्ञों की स्वामिनी, ऋभुओं और यज्ञों द्वारा पूजिता,
कवर्ग से लेकर पवर्ग तक व्याप्त, अंतःस्थित और अनंत रूपिणी हैं ॥8॥
‘अ’ और ‘कार’ रूप से रहित, समय, मृत्यु और बुढ़ापे का नाश करने वाली,
कृशकाय, तत्त्वों की अधिष्ठात्री, तारा, तीन वर्ष की, और ज्ञान रूपी हैं ॥9॥
काली, कराली, कामेश्वरी, छाया, अरुंधती जैसी,
निर्विकल्प, महान गति वाली, महान उत्साह वाली और विशाल उदर वाली हैं ॥10॥
मेघ के समान, बगुले जैसी, निर्मल, निर्मल ज्ञान देने वाली,
गौरी, वसुंधरा, रक्षक, और गौपालकों द्वारा पूजित हैं ॥11॥
भगाङ्गा (भग की शक्ति), भग स्वरूपा, भक्ति में रत रहने वाली,
छिन्नमस्ता, महान धूमवती, और धूम से विभूषित हैं ॥12॥
धर्म-कर्म से परे रहने वाली, फिर भी धर्म-कर्म में रत,
सीता, मातंगी, मेधा और मधु दैत्य का नाश करने वाली हैं ॥13॥
भैरवी, जगत की माता, अभय देने वाली, सौंदर्य स्वरूपा,
भावुक, बगलामुखी, कृत्या (क्रिया), बाला, और त्रिपुर सुन्दरी हैं ॥14॥
रोहिणी, रेवती, रम्या, रंभा और रावण द्वारा पूजिता,
शतयज्ञ रूपी, सात्त्विक, और इन्द्र को वर प्रदान करने वाली हैं ॥15॥
सौ चंद्रमाओं के समान मुख वाली, हजार सूर्य जैसी दीप्तिमान,
चंद्र, सूर्य और अग्नि नेत्रों वाली, व्याघ्र चर्म धारण करने वाली हैं ॥16॥
अर्धचंद्र धारण करने वाली, मतवाली, मदिरा रूपी, और मदिरा जैसी आँखों वाली,
हे प्रभु! ये 108 गोपनीय नाम मैंने कहे, जो केवल विशेष भक्ति से ही जाने जाते हैं ॥17॥
ये सुंदर स्तोत्र सबको सब कुछ देने वाला, सेवा योग्य और महापापों का नाश करने वाला है,
कलियुग में इसे अत्यंत गोपनीय माना गया है ॥18॥
सहस्रनाम का जो फल बताया गया है,
उससे करोड़ों गुना पुण्य इस स्तोत्र के पाठ से प्राप्त होता है ॥19॥
जो व्यक्ति सदा भक्ति सहित इसका पाठ करता है—
रात्रि के मध्य, प्रातः काल, प्रदोष काल, या नवमी तिथि को—
वह महान प्रिय और अद्भुत भोगों को प्राप्त करता है ॥20॥
॥ इति षोडशी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
लाभ (Benefits):
- परम शक्ति की कृपा: इस स्तोत्र का पाठ साधक को त्रिपुरा सुन्दरी देवी की कृपा से दिव्य शक्तियों की प्राप्ति कराता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: यह स्तोत्र साधक की चित्तशुद्धि करता है और उसे आत्मसाक्षात्कार की ओर ले जाता है।
- सौंदर्य और तेज की वृद्धि: देवी षोडशी सौंदर्य और तेज की अधिष्ठात्री हैं; उनका स्तुति करने से व्यक्ति में आकर्षण, तेज और आत्मविश्वास बढ़ता है।
- गृहस्थ जीवन में सुख: यह स्तोत्र दांपत्य जीवन, परिवारिक शांति और समृद्धि को बढ़ाता है।
- मंत्र सिद्धि में सहायक: जो साधक श्रीविद्या या त्रिपुरा सुन्दरी की साधना करते हैं, उनके लिए यह स्तोत्र अत्यंत फलदायी है और मंत्र सिद्धि का मार्ग खोलता है।
- कष्टों से मुक्ति: यह स्तोत्र मानसिक, आर्थिक, पारिवारिक और शारीरिक संकटों को दूर करता है।
- मुक्ति की प्राप्ति: नियमपूर्वक और श्रद्धा से इसका जप साधक को मोक्ष (मुक्ति) की ओर ले जाता है।
पाठ / जप विधि (Vidhi):
- स्थान चयन: शांत और पवित्र स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- स्नान और शुद्ध वस्त्र: स्नान करके साफ और preferably सफेद या लाल वस्त्र पहनें।
- आसन: कुशासन, ऊनासन या कंबल पर बैठना उचित माना गया है।
- दीप और धूप: माँ षोडशी के सामने दीपक, धूप और चंदन अर्पित करें।
- नैवेद्य: फल, मिठाई या पंचामृत का भोग अर्पित करें।
- मंत्र आरंभ: ‘ॐ ऐं ह्रीं श्रीं षोडशी देव्यै नमः’ से प्रारंभ करें।
- 108 नामों का पाठ: स्तोत्र के सभी 108 नाम एकाग्रता और श्रद्धा से पढ़ें। चाहें तो माला की सहायता लें।
- अंत में प्रार्थना: सभी नामों के पाठ के पश्चात देवी से प्रार्थना करें कि वे साधक के जीवन से सभी दोष और कष्ट दूर करें।
जप / पाठ का उचित समय (Best Time for Chanting):
- प्रातः काल (Brahma Muhurta): सूर्योदय से पहले का समय – लगभग 4:00 AM से 6:00 AM – सबसे श्रेष्ठ माना गया है।
- प्रदोष काल: शाम के समय (सूर्यास्त से लगभग 1 घंटा पूर्व और बाद) – देवी पूजन के लिए उपयुक्त है।
- नवमी तिथि: नवरात्रि की नवमी तिथि पर इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
- शुक्रवार (Friday): देवी षोडशी के पूजन का विशेष दिन है, इसलिए इस दिन पाठ करना अत्यंत शुभ माना गया है।
- नित्य पाठ: नियमित रूप से प्रतिदिन या शुक्रवार को इसका पाठ करने से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है।