श्री शनैश्चर स्तवराज स्तोत्र की महिमा भविष्य पुराण में वर्णित है। यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली एवं चमत्कारी माना गया है। जो भी साधक इस स्तोत्र का श्रद्धा और नियमपूर्वक पाठ करता है, उसे शारीरिक, मानसिक और ग्रहजन्य सभी प्रकार की पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है।
यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयोगी है जो शनि की साढ़ेसाती, ढैया, महादशा या शनि के किसी भी अशुभ प्रभाव से पीड़ित हैं। इसे “रामबाण उपाय” के रूप में भी माना गया है, विशेषतः उन लोगों के लिए जो लंबे समय से असाध्य रोगों से जूझ रहे हैं।
यदि कोई व्यक्ति स्वयं पाठ करने में असमर्थ हो तो वह संस्कृत जानने वाले ब्राह्मण या किसी ज्ञानी व्यक्ति से इसका पाठ करवा सकता है। यदि पूर्ण 1100 बार पाठ संभव न हो तो कम से कम 125 बार पाठ अवश्य करना चाहिए।
श्री शनैश्चर स्तवराज स्तोत्र (Shanishchar Stavraj Stotra)
नारद उवाच –
ध्यात्वा गणपतिं राजा धर्मराजो युधिष्ठिरः ।
धीरः शनैश्चरस्येमं चकार स्तवमुत्तमम ।। 1 ।।
शिरो में भास्करिः पातु भालं छायासुतोऽवतु ।
कोटराक्षो दृशौ पातु शिखिकण्ठनिभः श्रुती ।। 2 ।।
घ्राणं मे भीषणः पातु मुखं बलिमुखोऽवतु ।
स्कन्धौ संवर्तकः पातु भुजौ मे भयदोऽवतु ।। 3 ।।
सौरिर्मे हृदयं पातु नाभिं शनैश्चरोऽवतु ।
ग्रहराजः कटिं पातु सर्वतो रविनन्दनः।। 4 ।।
पादौ मन्दगतिः पातु कृष्णः पात्वखिलं वपुः ।
रक्षामेतां पठेन्नित्यं सौरेर्नामबलैर्युताम् ।। 5 ।।
सुखी पुत्री चिरायुश्च स भवेन्नात्र संशयः ।
सौरिः शनैश्चरः कृष्णो नीलोत्पलनिभः शनिः ।। 6 ।।
शुष्कोदरो विशालाक्षो र्दुनिरीक्ष्यो विभीषणः ।
शिखिकण्ठनिभो नीलश्छायाहृदयनन्दनः ।। 7 ।।
कालदृष्टिः कोटराक्षः स्थूलरोमावलीमुखः ।
दीर्घो निर्मांसगात्रस्तु शुष्को घोरो भयानकः।। 8 ।।
नीलांशुः क्रोधनो रौद्रो दीर्घश्मश्रुर्जटाधरः ।
मन्दो मन्दगतिः खंजो तृप्तः संवर्तको यमः ।। 9 ।।
ग्रहराजः कराली च सूर्यपुत्रो रविः शशी ।
कुजो बुधो गुरूः काव्यो भानुजः सिंहिकासुतः ।। 10 ।।
केतुर्देवपतिर्बाहुः कृतान्तो नैऋतस्तथा ।
शशी मरूत्कुबेरश्च ईशानः सुर आत्मभूः ।। 11 ।।
विष्णुर्हरो गणपतिः कुमारः काम ईश्वरः ।
कर्त्ता-हर्ता पालयिता राज्येशो राज्यदायकः ।। 12 ।।
छायासुतः श्यामलाङ्गो धनहर्ता धनप्रदः ।
क्रूरकर्मविधाता च सर्वकर्मावरोधकः ।। 13 ।।
तुष्टो रूष्टः कामरूपः कामदो रविनन्दनः ।
ग्रहपीडाहरः शान्तो नक्षत्रेशो ग्रहेश्वरः ।। 14 ।।
स्थिरासनः स्थिरगतिर्महाकायो महाबलः ।
महाप्रभो महाकालः कालात्मा कालकालकः ।। 15 ।।
आदित्यभयदाता च मृत्युरादित्यनंदनः ।
शतभिद्रुक्षदयिता त्रयोदशितिथिप्रियः ।। 16 ।।
तिथात्मा तिथिगणो नक्षत्रगणनायकः ।
योगराशिर्मुहूर्तात्मा कर्ता दिनपतिः प्रभुः ।। 17 ।।
शमीपुष्पप्रियः श्यामस्त्रैलोक्याभयदायकः ।
नीलवासाः क्रियासिन्धुर्नीलाञ्जनचयच्छविः ।। 18 ।।
सर्वरोगहरो देवः सिद्धो देवगणस्तुतः ।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां सौरेश्छायासुतस्य यः ।। 19 ।।
पठेन्नित्यं तस्य पीडा समस्ता नश्यति ध्रुवम् ।
कृत्वा पूजां पठेन्मर्त्यो भक्तिमान्यः स्तवं सदा ।। 20 ।।
विशेषतः शनिदिने पीडा तस्य विनश्यति ।
जन्मलग्ने स्थितिर्वापि गोचरे क्रूरराशिगे ।। 21 ।।
दशासु च गते सौरे तदा स्तवमिमं पठेत् ।
पूजयेद्यः शनिं भक्त्या शमीपुष्पाक्षताम्बरैः ।। 22 ।।
विधाय लोहप्रतिमां नरो दुःखाद्विमुच्यते ।
वाधा याऽन्यग्रहाणां च यः पठेत्तस्य नश्यति ।। 23 ।।
भीतो भयाद्विमुच्येत बद्धो मुच्येत बन्धनात् ।
रोगी रोगाद्विमुच्येत नरः स्तवमिमं पठेत् ।। 24 ।।
पुत्रवान्धनवान् श्रीमान् जायते नात्र संशयः ।। 25 ।।
स्तवं निशम्य पार्थस्य प्रत्यक्षोऽभूच्छनैश्चरः ।
दत्त्वा राज्ञे वरः कामं शनिश्चान्तर्दधे तदा ।। 26 ।।
॥ इति श्री श्री शनैश्चर स्तवराज स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
शनिश्चर स्तवराज स्तोत्र (Shanishchar Stavraj Stotra)
(हिंदी अनुवाद)
नारद बोले –
राजा युधिष्ठिर ने गणपति का ध्यान करके धैर्यपूर्वक शनैश्चर (शनि देव) की यह उत्तम स्तुति की।
।। 1 ।।
सूर्यदेव मेरे मस्तक की रक्षा करें, और छाया के पुत्र (शनि) मेरे ललाट की रक्षा करें।
गड्ढेदार नेत्रों वाले शनिदेव मेरी दोनों आँखों की रक्षा करें, और शिखि-कंठ (नीले गले) के समान स्वरूप वाले मेरे कानों की रक्षा करें।
।। 2 ।।
भीषण स्वरूपधारी मेरी नाक की रक्षा करें, बलशाली मुख वाले मेरे मुख की रक्षा करें।
संवर्तक रूपी शनि मेरे दोनों कंधों की रक्षा करें और भय उत्पन्न करने वाले मेरी भुजाओं की रक्षा करें।
।। 3 ।।
सौरि (शनि) मेरे हृदय की रक्षा करें, शनैश्चर मेरी नाभि की रक्षा करें।
ग्रहों के राजा मेरी कमर की रक्षा करें, और रवि-पुत्र (सूर्य पुत्र) मेरी सर्वांग रक्षा करें।
।। 4 ।।
मंद गति से चलने वाले मेरे पैरों की रक्षा करें, कृष्णवर्णीय मेरी सम्पूर्ण काया की रक्षा करें।
जो व्यक्ति इस रक्षा स्तोत्र का नित्य पाठ करता है, वह सौरि (शनि) के नामों के बल से सुरक्षित रहता है।
।। 5 ।।
वह व्यक्ति निःसंदेह सुखी, पुत्रवान और दीर्घायु होता है।
शनि देव का स्वरूप कृष्ण वर्ण है, जो नील कमल के समान रंग वाले हैं।
।। 6 ।।
जिनका पेट अंदर धंसा हुआ है, नेत्र विशाल हैं, जिन्हें देखना कठिन है, जो अत्यंत भयानक हैं।
जो शिखि-कंठ (नील गले) के समान हैं, नीले हैं और छाया के हृदय के आनंद हैं।
।। 7 ।।
जिनकी दृष्टि काल जैसी है, नेत्र गड्ढेदार हैं, जिनका मुख मोटे बालों से युक्त है।
जो लम्बे, मांस रहित शरीर वाले, सूखे, भयानक और डरावने हैं।
।। 8 ।।
जिनका रंग नील है, जो क्रोधित और रौद्र रूपधारी हैं, लम्बी मूंछ और जटाएं हैं।
जो मंद, मंद गति से चलने वाले, लंगड़े, संतुष्ट और यम के समान विनाशकारी हैं।
।। 9 ।।
ग्रहों के राजा हैं, विकराल हैं, सूर्य पुत्र हैं, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, राहु, केतु, भानुज (सूर्य के पुत्र) और सिंहिका के पुत्र (राहु) भी हैं।
।। 10 ।।
केतु, देवों के स्वामी, बाहु (इंद्र), कृतांत (यमराज), नैऋत (दक्षिण दिशा का स्वामी),
चंद्रमा, वायु, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा — ये सब उनके साथ हैं।
।। 11 ।।
विष्णु, शिव, गणपति, कार्तिकेय, कामदेव, ईश्वर,
कर्त्ता, संहारक, रक्षक, राज्य का स्वामी और देने वाले हैं।
।। 12 ।।
छाया के पुत्र, श्याम वर्ण वाले, धन छीनने वाले और धन देने वाले,
क्रूर कर्म करने वाले और सभी कर्मों में बाधा डालने वाले हैं।
।। 13 ।।
प्रसन्न होने पर वर देने वाले, रुष्ट होने पर पीड़ा देने वाले, इच्छित रूप धारण करने वाले, काम फल देने वाले,
रविपुत्र, ग्रह पीड़ा का नाश करने वाले, शांत, नक्षत्रों और ग्रहों के अधिपति हैं।
।। 14 ।।
जो स्थिर आसन में रहते हैं, स्थिर गति वाले, विशालकाय, बलशाली,
अत्यंत प्रभुता वाले, महाकाल स्वरूप, कालस्वरूप और कालों के भी काल हैं।
।। 15 ।।
आदित्यों से भी भय उत्पन्न करने वाले, मृत्यु स्वरूप, आदित्यनंदन हैं,
शतभिषा नक्षत्र के प्रिय हैं और त्रयोदशी तिथि को अत्यंत प्रिय मानते हैं।
।। 16 ।।
तिथियों के अधिपति, नक्षत्रों के स्वामी, योगों के ज्ञाता, मुहूर्तों के आत्मा,
दिन के अधिपति और श्रेष्ठ प्रभु हैं।
।। 17 ।।
शमी पुष्पों को प्रिय मानने वाले, श्यामवर्ण, तीनों लोकों को अभय देने वाले,
नीले वस्त्र धारण करने वाले, कर्मों के समुद्र और नील अंजन जैसे चमकने वाले हैं।
।। 18 ।।
जो सभी रोगों को हरने वाले हैं, सिद्ध और देवताओं द्वारा पूजित हैं,
जो व्यक्ति इन 108 नामों का नियमित रूप से पाठ करता है वह पीड़ाओं से मुक्त होता है।
।। 19 ।।
जो नित्य इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसकी सभी पीड़ाएँ निश्चित रूप से नष्ट होती हैं।
जो मनुष्य पूजा करके इस स्तव को श्रद्धा से पढ़ता है —
।। 20 ।।
विशेष रूप से शनिवार के दिन पाठ करने से उसकी पीड़ा समाप्त होती है।
यदि जन्म लग्न या गोचर में शनि क्रूर राशि में हो —
।। 21 ।।
और शनि की दशा चल रही हो — ऐसे समय में यदि यह स्तोत्र पढ़ा जाए,
और अगर व्यक्ति शमी पुष्प, अक्षत (चावल), वस्त्र आदि से शनि की पूजा करे —
।। 22 ।।
और लोहे की प्रतिमा बनाकर पूजन करे — तो वह सभी दुखों से मुक्त हो जाता है।
दूसरे ग्रहों की पीड़ा भी उस पर नहीं रहती।
।। 23 ।।
डरा हुआ व्यक्ति भय से मुक्त हो जाता है, बंदी को बंधन से मुक्ति मिलती है,
रोगी रोग से मुक्त होता है — यदि वह व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करे।
।। 24 ।।
वह व्यक्ति पुत्रवान, धनवान और ऐश्वर्यवान होता है — इसमें कोई संदेह नहीं है।
।। 25 ।।
जब पार्थ (अर्जुन) ने यह स्तोत्र सुना, तब शनि देव प्रत्यक्ष हुए,
राजा को इच्छित वरदान देकर वे वहीं अंतर्धान हो गए।
।। 26 ।।
॥ इति श्री श्री शनैश्चर स्तवराज स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
शनैश्चर स्तवराज स्तोत्र के लाभ (Benefits of Shanishchar Stavraj Stotra)
- यह स्तोत्र शनि की क्रूर दृष्टि को शांत करता है।
- यह मानसिक शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि प्रदान करता है।
- जिनके जीवन में रुकावटें, रोग, आर्थिक संकट या पारिवारिक क्लेश चल रहे हों, उन्हें यह स्तोत्र अवश्य पढ़ना चाहिए।
- नियमित पाठ करने से संतान प्राप्ति, धन की वृद्धि, और लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- शनिवार अथवा शनि जयंती के दिन इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
किसे करना चाहिए यह पाठ (Who should do this lesson)
- जिन व्यक्तियों की कुंडली में शनि दोष, साढ़ेसाती, या शनि की महादशा चल रही हो।
- जो व्यक्ति निरंतर दुर्भाग्य, विवाद, या रोगों से ग्रस्त हों।
- जो आध्यात्मिक साधना के मार्ग पर हैं और जीवन को संतुलित बनाना चाहते हैं।
- जिनके ऊपर अन्य ग्रहों का भी अशुभ प्रभाव हो — उनके लिए भी यह स्तोत्र लाभकारी है।
सावधानी:
- पाठ करते समय मन और वाणी को पवित्र रखें।
- शनि पूजन के साथ शमी के पत्ते, काले तिल, काले वस्त्र, तेल का दीपक, और लोहे की वस्तु का दान करना विशेष फल देता है।
- स्तोत्र का पाठ एकांत, शांत और श्रद्धा युक्त वातावरण में करें।