शत्रु विन्ध्यवासिनी स्तोत्र माता विन्ध्यवासिनी को समर्पित एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जो विशेष रूप से शत्रुनाश, रक्षा और वशीकरण के उद्देश्यों से पाठ किया जाता है।
माता विन्ध्यवासिनी, देवी दुर्गा का एक उग्र और रक्षक रूप हैं, जिनकी उपासना विशेष रूप से विन्ध्याचल पर्वत के क्षेत्र में की जाती है। स्कन्द पुराण, देवी भागवत, और शिव पुराण जैसे ग्रंथों में माँ की महिमा का विशेष उल्लेख मिलता है। कहीं इन्हें नन्दा, कहीं कृष्णानुजा, और कहीं वनदुर्गा के रूप में पूजा जाता है।
इस स्तोत्र का जाप शत्रु बाधा, तंत्रिक आक्रमण, भूत-प्रेत बाधा, और काले जादू से सुरक्षा के लिए अचूक माना गया है। यह स्तोत्र साधक की सभी प्रकार की बाधाओं को समाप्त करके, उसे मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बनाता है।
शत्रु विंध्यवासिनी स्तोत्र हिंदी पाठ
Shatru Vindhyavasini Stotra in Hindi
विनियोगः
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़कर जल भूमि पर छोड़ दे ।
ॐ अस्य श्रीशत्रु-विध्वंसिनी-स्तोत्र-मन्त्रस्य ज्वाला-व्याप्तः ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवता, श्रीशत्रु-जयार्थे (उच्चाटनार्थे नाशार्थे वा) जपे विनियोगः ।
ऋष्यादि-न्यासः
शिरसि ज्वाला-व्याप्त-ऋषये नमः ।
मुखे अनुष्टुप छन्दसे नमः,
हृदि श्रीशत्रु-विध्वंसिनी देवतायै नमः,
अञ्जलौ श्रीशत्रु-जयार्थे (उच्चाटनार्थे नाशार्थे वा) जपे विनियोगाय नमः ।।
कर-न्यासः
ॐ श्रीशत्रु-विध्वंसिनी अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ त्रिशिरा तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ अग्नि-ज्वाला मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ घोर-दंष्ट्री अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ दिगम्बरी कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ रक्त-पाणि करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादि-न्यासः
ॐ रौद्री हृदयाय नमः ।
ॐ रक्त-लोचनी शिरसे स्वाहा ।
ॐ रौद्र-मुखी शिखायै वषट् ।
ॐ त्रि-शूलिनो कवचाय हुम् ।
ॐ मुक्त-केशी नेत्र-त्रयाय वौषट् ।
ॐ महोदरी अस्त्राय फट् ।
फट् से ताल-त्रय दें (तीन बार ताली बजाएँ) और “ॐ रौद्र-मुख्यै नमः” से दशों दिशाओं में चुटकी बजाकर दिग्बन्धन करें ।
स्तोत्रः
“ॐ शत्रु-विध्वंसिनी रौद्री, त्रिशिरा रक्त-लोचनी ।
अग्नि-ज्वाला रौद्र-मुखी, घोर-दंष्ट्री त्रि-शूलिनी ।। १ ।।
दिगम्बरी मुक्त-केशी, रक्त-पाणी महोदरी ।”
फल-श्रुतिः- एतैर्नाममभिर्घोरैश्च, शीघ्रमुच्चाटयेद्वशी,
इदं स्तोत्रं पठेनित्यं, विजयः शत्रु-नाशनम् ।
सगस्त्र-त्रितयं कुर्यात्, कार्य-सिद्धिर्न संशयः ।।
विशेषः
यह स्तोत्र अत्यन्त उग्र है। इसके विषय में निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान अवश्य देना चाहिए –
(क) स्तोत्र में ‘ध्यान’ नहीं दिया गया है, अतः ‘ध्यान’ स्तोत्र के बारह नामों के अनुरुप किया जायेगा। सारे नामों का मनन करने से ‘ध्यान’ स्पष्ट हो जाता है ।
(ख) प्रथम और अन्तिम आवृति में नामों के साथ फल-श्रुति मात्र पढ़ें। पाठ नहीं होगा ।
(ग) घर में पाठ कदापि न किया जाए, केवल शिवालय, नदी-तट, एकान्त, निर्जन-वन, श्मशान अथवा किसी मन्दिर के एकान्त में ही करें ।
(घ) पुरश्चरण की आवश्यकता नहीं है। सीधे ‘प्रयोग’ करें। प्रत्येक ‘प्रयोग’ में तीन हजार आवृत्तियाँ करनी होगी ।
शत्रु विन्ध्यवासिनी स्तोत्र – हिंदी अनुवाद (Shatru Vindhyavasini Stotra – Hindi translation)
विनियोगः
(संकल्प पूर्वक प्रयोग प्रारंभ)
सीधे हाथ में जल लेकर नीचे दिए गए विनियोग मंत्र को पढ़ें और फिर जल को भूमि पर छोड़ दें।
ॐ — इस “श्री शत्रु-विन्ध्यवासिनी स्तोत्र मंत्र” के ऋषि हैं: ज्वालाओं से घिरी हुई (ज्वाला-व्याप्त) शक्ति
छंद है: अनुष्टुप
देवी हैं: श्री शत्रु-विन्ध्यवासिनी
उद्देश्य: शत्रु पर विजय, शत्रु का नाश या उच्चाटन
इसी उद्देश्य से इस मंत्र का जाप करें
ऋष्यादि न्यासः
(देह पर देवत्व का आवाहन)
सिर पर: ज्वाला-व्याप्त ऋषये नमः
मुख पर: अनुष्टुप छंदसे नमः
हृदय में: श्री शत्रु-विन्ध्यवासिनी देवतायै नमः
अंजलि में (हाथ जोड़कर): शत्रु-विजय के लिए जपे विनियोगाय नमः
कर-न्यासः
(अंगुलियों पर मंत्र सिद्धि हेतु स्पर्श)
अँगूठे पर: ॐ श्री शत्रु-विन्ध्यवासिनी अंगुष्ठाभ्यां नमः
तर्जनी पर: ॐ त्रिशिरा तर्जनीभ्यां नमः
मध्यमा पर: ॐ अग्नि-ज्वाला मध्यमाभ्यां नमः
अनामिका पर: ॐ घोर-दंष्ट्रि अनामिकाभ्यां नमः
कनिष्ठिका पर: ॐ दिगम्बरी कनिष्ठिकाभ्यां नमः
हथेली और हाथ की पीठ पर: ॐ रक्त-पाणी करतल-करपृष्ठाभ्यां नमः
हृदयादि-न्यासः
(हृदय, मस्तक आदि पर विशेष मंत्रों का उच्चारण)
हृदय पर: ॐ रौद्री हृदयाय नमः
सिर पर: ॐ रक्त-लोचनी शिरसे स्वाहा
चोटी पर: ॐ रौद्र-मुखी शिखायै वषट्
कवच में: ॐ त्रिशूलिनी कवचाय हुम्
नेत्रत्रय में: ॐ मुक्त-केशी नेत्रत्रयाय वौषट्
अस्त्र में: ॐ महोदरी अस्त्राय फट्
फट् शब्द पर तीन बार ताली बजाएँ
फिर “ॐ रौद्र-मुख्यै नमः” कहते हुए दसों दिशाओं में चुटकी बजाकर दिग्बंधन करें
स्तोत्र
(मुख्य स्तुति भाग)
ॐ
शत्रु-विन्ध्यवासिनी, रौद्र रूप वाली
तीन सिरों वाली, रक्त नेत्रों से युक्त
अग्नि-ज्वाला के समान प्रज्वलित, रौद्र मुख वाली
भयंकर दाँतों वाली, त्रिशूलधारिणी हो ॥ 1 ॥
नग्न वेशधारिणी, खुले बालों वाली
रक्त से सनी हथेलियों वाली, विशाल उदर वाली देवी हो ॥ 2 ॥
फल-श्रुति (लाभ का वर्णन)
इन भयंकर नामों का ध्यान करते हुए
साधक शीघ्र ही शत्रु को वश में कर सकता है या उसे निष्क्रिय कर सकता है
यदि यह स्तोत्र प्रतिदिन पढ़ा जाए
तो शत्रुओं पर विजय और उनका नाश निश्चित है
यदि इसका पाठ तीन बार किया जाए
तो किसी भी कार्य में सिद्धि मिलती है — इसमें कोई संशय नहीं
विशेष सावधानियाँ (special precautions)
ध्यान: स्तोत्र में ध्यान-पाठ नहीं है, अतः बारह नामों का मानसिक ध्यान ही ध्यान के रूप में पर्याप्त है
पाठ विधि: प्रथम और अंतिम आवृत्ति में केवल फल-श्रुति पढ़ें, स्तोत्र का दोहराव नहीं करें
स्थान: इस स्तोत्र का पाठ कभी भी घर में न करें। केवल शिव मंदिर, नदी किनारा, एकांत स्थल, जंगल, या श्मशान आदि में करें
पुरश्चरण की आवश्यकता नहीं: सीधे प्रयोग करें। प्रत्येक प्रयोग में 3000 आवृत्तियाँ अनिवार्य हैं
शत्रु विन्ध्यवासिनी स्तोत्र के लाभ (Benefits of Shatru Vindhyavasini Stotra)
- शत्रु नाश – छिपे व प्रत्यक्ष शत्रुओं की शक्ति को समाप्त करता है।
- काले जादू / बुरी शक्तियों से सुरक्षा – तांत्रिक ‘क्रित्यावार’ जैसे तंत्र प्रयोगों को निष्क्रिय करता है।
- माँ दुर्गा की कृपा से जीवन में उन्नति और भयमुक्त जीवन प्रदान करता है।
- मन, बुद्धि, आत्मबल और साहस की वृद्धि करता है।
- तांत्रिक साधना में सफलता और अनिष्ट निवारण में समर्थ बनाता है।
पाठ विधि (lesson method)
- प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- एक साफ स्थान पर माता विन्ध्यवासिनी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- दीपक, धूप, पुष्प, और नैवेद्य अर्पित करें।
- 108 बार या 11 बार (अनुसार शक्ति और नियत) स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करें।
- यदि सिद्धि प्राप्त करनी हो तो 100,000 बार (एक लाख बार) पाठ करने की संकल्पपूर्वक साधना करें।
उत्तम जाप समय (best chanting time)
समय | लाभ |
---|---|
ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4–6 बजे) | विशेष प्रभावशाली |
अष्टमी / चतुर्दशी | तांत्रिक बाधा से मुक्ति हेतु शुभ |
नवरात्रि / गुप्त नवरात्र | सिद्धि प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ |
प्रतिदिन प्रातः या रात्रि | सामान्य शांति व रक्षा हेतु |
किसे करना चाहिए ये पाठ? (Who should do this lesson?)
- जिन्हें शत्रु बाधा, कोर्ट-कचहरी, मानसिक पीड़ा, या समाजिक विरोध का सामना करना पड़ रहा हो।
- जो भूत-प्रेत, काला जादू, या ऊपरी बाधाओं से पीड़ित हैं।
- जो तंत्र साधना, रक्षा कवच या शक्ति सिद्धि के इच्छुक हैं।
- जिनके जीवन में बार-बार रुकावटें, मानसिक अशांति या डर महसूस हो रहा हो।