“श्री विविध देव स्तोत्राणि” देवी-देवताओं के विभिन्न स्तोत्रों का एक दिव्य और प्रभावशाली संग्रह है, जो सनातन परंपरा में श्रद्धा और भक्ति से ओतप्रोत है। इस संग्रह में प्रमुख रूप से भगवान गणेश, भगवती पार्वती, भगवान विष्णु, भगवान शिव, और अन्य देवताओं की स्तुतियाँ संकलित हैं, जिन्हें शास्त्रों और पुराणों में अत्यंत पुण्यदायक माना गया है।
इन स्तोत्रों का पाठ करने से:
- मन को शांति एवं स्थिरता प्राप्त होती है,
- जीवन के कष्टों और विघ्नों का नाश होता है,
- आयु, आरोग्य, समृद्धि और सिद्धियों की प्राप्ति होती है,
- तथा साधक को ईश्वर की कृपा सहज ही प्राप्त होती है।
“श्री विविध देव स्तोत्राणि” केवल धार्मिक अनुष्ठानों का भाग नहीं, बल्कि आत्मिक जागरण और ईश्वर के प्रति प्रेम का प्रकट रूप भी है। इन स्तोत्रों को श्रद्धा और निष्ठा से प्रतिदिन पढ़ने पर जीवन के हर क्षेत्र में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
विशेष बात यह है कि यह संकलन न केवल भक्तों को अलग-अलग देवताओं के गुणों और लीलाओं से परिचित कराता है, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
श्री विविध देव स्तोत्राणि (Shree Vividh Dev Stotrani)
श्री गणपति स्तोत्रम्
जेतुं यस्त्रिपुरं हरेण हरिणा व्याजाद्वलिं बध्नता
स्त्रष्टुं वारिभवोद्भवेन भुवनं शेषेण धर्तुं धराम् ।
पार्वत्या महिषासुरप्रमथने सिद्धाधिपैः सिद्धये
ध्यातः पञ्चशरेण विश्वजितये पायात्स नागाननः ।। 1 ।।
विघ्नध्वान्तनिवारणैकतरणिर्विघ्नाटवीहव्यवाट्
विघ्नव्यालकुलाभिमानगरुडो विघ्नेभपञ्चाननः ।
विघ्नोत्तुंगगिरिप्रभेदनपविर्विघ्नाम्बुधेर्वाडवो
विघ्नाघौघघनप्रचण्डपवनो विघ्नेश्वरः पातु नः ।। 2 ।।
खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं
प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम् ।
दन्ताघातविदारितारिरुधिरैः सिन्दूरशोभाकरं
वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम् ।। 3 ।।
गजाननाय महसे प्रत्यूहतिमिरच्छिदे ।
अपारकरुणापूरतरंगितदृशे नमः ।। 4 ।।
अगजाननपद्मार्कं गजाननमहर्निशम् ।
अनेकदन्तं भक्तानामेकदंतमुपास्महे ।। 5 ।।
श्वेतांग श्वेतवस्त्रं सितकुसुमगणैः पूजितं श्वेतगन्धैः
क्षीराब्धौ रत्नदीपैः सुरनरतिलकं रत्नसिंहासनस्थम् ।
दोर्भिः पाशांकुशाब्जाभयवरमनसं चन्द्रमौलिं त्रिनेत्रं
ध्यायेच्छान्त्यर्थमीशं गणपतिममलं श्रीसमेतं प्रसन्नम् ।। 6 ।।
आवाहये तं गणराजदेवं रक्तोत्पलाभासमशेषवन्द्यम् ।
विघ्नान्तकं विघ्नहरं गणेशं भजामि रौद्रं सहितं च सिद्धया ।। 7 ।।
यं ब्रह्म वेदान्तविदो वदन्ति परं प्रधानं पुरुषं तथान्ये ।
विश्वोद्गतेः कारणमीश्वरं वा तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय ।। 8 ।।
विघ्नेश वीर्याणि विचित्रकाणि वंदीजनैर्मागधकैः स्मृतानि ।
श्रुत्वा समुत्तिष्ठ गजानन त्वं ब्राह्मो जगन्मंगलकं कुरुष्व ।। 9 ।।
गणेश हेरम्ब गजाननेति महोदर स्वानुभवप्रकाशिन् ।
वरिष्ठ सिद्धिप्रिय बुद्धिनाथ वदन्त एवम् त्यजत प्रभीतीः ।। 10 ।।
अनेकविघ्नान्तक वक्रतुंड स्वसंज्ञवासिंश्च चतुर्भुजेति ।
कवीश देवान्तकनाशकारिन् वदन्त एवम् त्यजत प्रभीतीः ।। 11 ।।
अनन्तचिद्रूपमयं गणेशं ह्राभेदभेदादिविहीनमाद्यम् ।
ह्रदि प्रकाशस्य धरं स्वधीस्थं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ।। 12 ।।
विश्वादिभूतं ह्रदि योगिनां वै प्रत्यक्षरूपेण विभान्तमेकम् ।
सदा निरालम्बसमाधिगम्यं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ।। 13 ।।
यदीयवीर्येण समर्थभूता माया तया संरचितं च विश्वम् ।
नागात्मकं ह्रात्मतया प्रतीतं तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ।। 14 ।।
सर्वान्तरे संस्थितमेकगूढं यदाज्ञया सर्वमिदं विभाति ।
अनन्तरूपं ह्रदि बोधकं वै तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ।। 15 ।।
यं योगिनी योगबलेन साध्यं कुर्वन्ति तं कः स्तवनेन नौति ।
अतः प्रणामेन सुसिद्धिदोऽस्तु तमेकदन्तं शरणं व्रजामः ।। 16 ।।
देवेन्द्रमौलिमन्दारमकरन्दकणारूणाः ।
विघ्नान् हरन्तु हेरम्बचरणाम्बुजरेणवः ।। 17 ।।
एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम् ।
विघ्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम् ।। 18 ।।
यदक्षरं पदं भ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् ।
तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर ।। 19 ।।
।। इति श्री विविध देव स्तोत्राणि सम्पूर्णम् ।।
हिंदी अनुवाद – श्री गणपति स्तोत्रम् (Hindi translation – Shri Ganpati Stotram)
जिसने त्रिपुर का नाश किया, बलि को छल से बाँधा, जल से उत्पन्न ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना की, और शेषनाग से पृथ्वी को धारण कराया —
जो पार्वती द्वारा महिषासुर के वध में स्मरण किए गए, सिद्धों के द्वारा पूजित हैं, और पंचबाण (कामदेव) द्वारा ध्यान किए जाते हैं — ऐसे नागमुखधारी गणपति हमारी रक्षा करें। ।। 1 ।।
जो विघ्नों के अंधकार को दूर करने वाले दीपक हैं, विघ्नरूपी जंगल में अग्नि हैं,
विघ्न रूपी सर्पों के ऊपर गरुड़ समान प्रभावशाली हैं, और जो पांच मुखों वाले विघ्नेश्वर हैं,
जो विघ्न रूपी पर्वत को चीरने वाले हैं, विघ्न सागर के लिए वाडवाग्नि के समान हैं,
विघ्नों के मेघों को उड़ाने वाले तूफान जैसे हैं — ऐसे विघ्नेश्वर हमें रक्षा करें। ।। 2 ।।
जो छोटे कद और विशाल शरीर वाले हैं, गजमुख हैं, सुंदर स्वरूप वाले हैं,
माथे से झरते मद के गंध को आकर्षित करती मधुमक्खियों से युक्त उनके गाल कंपन करते हैं,
जो शत्रुओं का दाँतों से संहार करके उनके रक्त से सिन्दूर जैसा तेज प्रदान करते हैं —
हम पर्वतराज की पुत्री के पुत्र, सिद्धियों के प्रदाता और कामनाओं को पूर्ण करने वाले गणपति को प्रणाम करते हैं। ।। 3 ।।
जो गजानन महान तेजस्वी हैं, जो विघ्न रूपी अंधकार को नष्ट करते हैं,
जिनकी दृष्टि करुणा के तरंगों से भरी हुई है — उन्हें हम नमस्कार करते हैं। ।। 4 ।।
हम प्रतिदिन उस गजानन को नमस्कार करते हैं, जो पार्वती के पुत्र हैं,
जो अनेक दाँतों वाले हैं और भक्तों द्वारा एकदन्त के रूप में पूजे जाते हैं। ।। 5 ।।
जो श्वेतवर्ण के, श्वेत वस्त्रधारी हैं, श्वेत पुष्पों और चंदन से पूजित हैं,
जो क्षीरसागर में रत्न दीपों से प्रकाशित रत्न सिंहासन पर विराजमान हैं,
जिनके हाथों में पाश, अंकुश, कमल और अभय वर मुद्राएं हैं, चन्द्रमौली और त्रिनेत्रधारी हैं —
ऐसे श्रीसमेत प्रसन्न चित्त वाले शांतिदायक ईश्वर गणपति का ध्यान करें। ।। 6 ।।
मैं उन गणराज देवता का आवाहन करता हूँ जो रक्तकमल के समान दीप्तिमान हैं,
जो सम्पूर्ण द्वारा वंदित हैं, विघ्नों का अंत करने वाले और विघ्नहर्ता हैं —
ऐसे रौद्र रूप में सिद्धियों सहित गणेश की मैं भक्ति करता हूँ। ।। 7 ।।
जिन्हें वेदांतज्ञ ब्रह्म, प्रधान, पुरुष या ईश्वर कहते हैं,
जो सम्पूर्ण सृष्टि के उत्पत्ति का कारण हैं —
ऐसे विघ्नविनाशक को मैं नमस्कार करता हूँ। ।। 8 ।।
हे गजानन! आपके बल के अद्भुत कार्यों को मागधों और वंदिजनों ने गाया है,
उन्हें सुनकर हे ब्रह्मस्वरूप! आप उठिए और संसार का मंगल कीजिए। ।। 9 ।।
हे गणेश, हे हेरम्ब, हे गजानन, हे महोदर, स्वानुभव के प्रकाशक!
हे श्रेष्ठ, सिद्धिप्रिय, बुद्धि के स्वामी! — आपको पुकारते हुए सब भय छोड़ दें। ।। 10 ।।
हे अनेक विघ्नों के अंत करने वाले, हे वक्रतुंड, स्वस्वरूप में स्थित, चतुर्भुज!
हे कवीश्वर, देवविनाशक — आपका नाम स्मरण कर सब भय दूर हो जाते हैं। ।। 11 ।।
जो अनन्त चैतन्यस्वरूप हैं, भेदाभेद से रहित हैं, आदि स्वरूप हैं,
जो हृदय में ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं — ऐसे एकदन्त को मैं शरणागत होता हूँ। ।। 12 ।।
जो समस्त योगियों के हृदय में प्रकाश रूप में विद्यमान हैं,
जो सदा निरालम्ब समाधि द्वारा प्राप्त होते हैं —
ऐसे एकदन्त को मैं शरणागत होता हूँ। ।। 13 ।।
जिनकी शक्ति से माया सक्षम हुई, जिसने सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की,
जो नाग रूप में प्रतीत होते हैं, आत्मरूप में अनुभव किए जाते हैं —
ऐसे एकदन्त को मैं शरणागत होता हूँ। ।। 14 ।।
जो सबके भीतर छिपे हैं, जिनकी आज्ञा से सब कुछ प्रकाशित होता है,
जो अनन्तरूप हैं और हृदय में बोध के रूप में विद्यमान हैं —
ऐसे एकदन्त को मैं शरणागत होता हूँ। ।। 15 ।।
जिन्हें योगिनियाँ योगबल से प्राप्त करती हैं,
ऐसे गणपति की स्तुति कौन कर सकता है?
इसलिए हम केवल प्रणाम द्वारा उन्हें सिद्धिदाता मानते हुए शरणागत होते हैं। ।। 16 ।।
देवेंद्र के मस्तक पर स्थित मंदार पुष्प के परागकणों के समान,
हेरम्ब (गणेश) के चरणकमलों की धूलि विघ्नों को हर ले। ।। 17 ।।
मैं उस एकदन्त, महाकाय, लम्बोदर, गजानन को प्रणाम करता हूँ,
जो विघ्नों का नाश करने वाले देव हैं — हेरम्ब को नमन। ।। 18 ।।
यदि किसी स्थान पर अक्षर, पद या मात्रा में त्रुटि हो गई हो,
तो हे परमेश्वर! कृपा करके उसे क्षमा करें और प्रसन्न हों। ।। 19 ।।
।। इति श्री विविध देव स्तोत्राणि सम्पूर्णम् ।।
स्तोत्र के लाभ (Benefits):
- विघ्नों का नाश:
यह स्तोत्र भगवान गणेश जी के विविध रूपों का स्तवन करता है, जिससे जीवन में आने वाले विघ्न, बाधाएं, और कष्ट दूर होते हैं। - सिद्धि और बुद्धि प्राप्ति:
इसके नियमित पाठ से सिद्धि (सफलता), बुद्धि (बुद्धिमत्ता) और प्रवचन में कुशलता प्राप्त होती है। - कार्य में सफलता:
किसी भी शुभ कार्य, परीक्षा, व्यापार, विवाह या यात्रा की शुरुआत से पहले इसका पाठ करने से सफलता मिलती है। - भय का नाश:
यह स्तोत्र मन में बैठे भय, संकोच और भ्रम को समाप्त कर आत्मबल प्रदान करता है। - ध्यान और साधना में सहायता:
यह स्तोत्र योगियों और साधकों के लिए विशेष लाभकारी है क्योंकि यह ध्यान को गहरा और मन को स्थिर करता है।
पाठ की विधि (Vidhi):
- स्थान और समय:
प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके शांत वातावरण में पाठ करें। - आसन:
कुश, कम्बल या ऊन के आसन पर बैठें। - दीप और अगरबत्ती:
गणेश जी की मूर्ति/चित्र के सामने घी का दीपक जलाकर अगरबत्ती अर्पित करें। - पूजन:
गणेश जी को दूर्वा, लाल पुष्प, मोदक या लड्डू, शुद्ध जल से अर्पण करें। - नियत संख्या में पाठ:
इसे आप रोज़ाना 1, 3, 11 या 21 बार पाठ कर सकते हैं, विशेष लाभ के लिए 21 दिनों तक नियमपूर्वक करें।
जाप का उचित समय (Best Time for Jaap):
- प्रातःकाल (सुबह 5 से 7 बजे): श्रेष्ठ समय माना जाता है।
- प्रथम बुधवार या चतुर्थी तिथि को आरंभ करें।
- संकट, परीक्षा, नई शुरुआत या विशेष काम के पहले दिन इसका पाठ करें।