“श्री वेङ्कटेश्वर शतनामावली स्तोत्रम्” भगवान विष्णु के दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले रूप श्री वेङ्कटेश्वर (बालाजी, श्रीनिवास, गोविंद) की स्तुति में रचा गया एक अत्यंत पवित्र और फलदायक स्तोत्र है। इसमें भगवान वेङ्कटेश्वर के 108 दिव्य नामों का उल्लेख किया गया है, जो उनके विभिन्न गुणों, स्वरूपों और लीलाओं का गुणगान करते हैं।
यह स्तोत्र वेद, पुराण और अगम शास्त्रों में वर्णित विष्णु के परम रूप का द्योतक है, जिसमें वे कभी दीनों के रक्षक, कभी ब्रह्मांड के स्वामी, तो कभी योगियों के ध्यान में स्थित आत्मा के रूप में प्रकट होते हैं। यह स्तोत्र भक्तों को श्री वेङ्कटेश्वर के प्रति अपार श्रद्धा, विश्वास और समर्पण की भावना से भर देता है।
जो साधक श्रद्धा और विश्वास से इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे भगवान विष्णु के आशीर्वाद से सकल सुख, आरोग्य, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से तिरुपति के वेङ्कटाचल पर्वत स्थित श्री बालाजी मंदिर में प्रचलित है और लाखों श्रद्धालुओं द्वारा श्रद्धापूर्वक जपा जाता है।
यह शतनामावली न केवल एक स्तुति है, बल्कि भक्त और भगवान के बीच आत्मिक संबंध को प्रगाढ़ करने का एक साधन भी है।
श्री वेङ्कटेश्वर शतनामावली स्तोत्रम्
श्री वेङ्कटेशः, श्रीनिवासो, लक्ष्मीपतिरनामयः,
अमृतांशो, जगद्वन्द्यः, गोविन्दः, शाश्वतः ।।
प्रभुं शेषाद्रिनिलयः, देवः, केशवः, मधुसूदनः,
अमृतो, माधवः, कृष्णं, श्रीहरिः, ज्ञानपञ्जर ॥ 1 ॥
श्रीवत्सवक्षः, सर्वेशः, गोपालः, पुरुषोत्तमः,
गोपीश्वरः, परं ज्योतिः, वैकुण्ठपतिरव्ययः ॥ 2 ॥
सुधातनुः, यादवेन्द्रः, नित्ययौवनरूपवान्,
चतुर्वेदात्मको, विष्णुः, अच्युतः, पद्मिनीप्रियः ॥ 3 ॥
धरापतिः, सुरपतिः, निर्मलः, देवपूजितः,
चतुर्भुजः, चक्रधरः, त्रिधामा, त्रिगुणाश्रयः ॥ 4 ॥
निर्विकल्पः, निष्कळङ्कः, निरान्तकः, निरञ्जनः,
निराभासः, नित्यतृप्तः, निर्गुणः, निरुपद्रवः ॥ 5 ॥
गदाधरः, शार्ङ्गपाणिः, नन्दकी, शङ्खधारकः,
अनेकमूर्तिः, अव्यक्तः, कटिहस्तः, वरप्रदः ॥ 6 ॥
अनेकात्मा, दीनबन्धुः, आर्तलोकाभयप्रदः,
आकाशराजवरदः, योगिहृत्पद्ममन्दिरः ॥ 7 ॥
दामोदरः, जगत्पालः, पापघ्नः, भक्तवत्सलः,
त्रिविक्रमः, शिंशुमारः, जटामकुटशोभितः ॥ 8 ॥
शङ्खमध्योल्लसन्मञ्जुः, किङ्किण्याध्यकरन्दकः,
नीलमेघश्यामतनुः, बिल्वपत्रार्चनप्रियः ॥ 9 ॥
जगद्व्यापी, जगत्कर्ता, जगत्साक्षी, जगत्पतिः,
चिन्तितार्थप्रदः, जिष्णुः, दाशरथिः, दशरूपवान् ॥ 10 ॥
देवकीनन्दनः, शौरिः, हयग्रीवः, जनार्दनः,
कन्याश्रवणतारेज्यः, पीताम्बरः, अनघः ॥ 11 ॥
वनमाली, पद्मनाभः, मृगयासक्तमानसः,
अश्वारूढः, खड्गधारी, धनार्जनसमुत्सुकः ॥ 12 ॥
घनसारसन्मध्यकः, कस्तूरीतिलकोज्ज्वलः,
सच्चिदानन्दरूपश्च, जगन्मङ्गळदायकः ॥ 13 ॥
यज्ञरूपः, यज्ञभोक्ता, चिन्मयः, परमेश्वरः,
परमार्थप्रदः, शान्तः, श्रीमान्, दोर्धण्डविक्रमः ॥ 14 ॥
परात्परः, परब्रह्मा, श्रीविभुः, जगदीश्वरः,
एवं श्री वेङ्कटेशस्य नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥ 15 ॥
पठ्यतां, शृण्वतां भक्त्या, सर्वाभीष्टप्रदं शुभम् ।।
॥ इति श्री वेङ्कटेश्वर शतनामावली स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्री वेङ्कटेश्वर शतनामावली स्तोत्रम् – हिंदी अनुवाद
वेङ्कटेश भगवान, श्रीनिवास, लक्ष्मीपति, रोगों से रहित,
अमृत के समान तेजस्वी, जगत् द्वारा पूजित, गोविंद, सनातन हैं।।
शेषाचल पर्वत पर निवास करने वाले प्रभु, देवों के देव,
केशव, मधुसूदन, अमृत स्वरूप, माधव, कृष्ण, श्रीहरि, ज्ञान से युक्त हैं॥ 1 ॥
श्रीवत्स चिह्न वाले, सभी के ईश्वर, ग्वालों के रक्षक, उत्तम पुरुष,
गोपियों के स्वामी, परम प्रकाशस्वरूप, वैकुण्ठ के स्वामी, अविनाशी हैं॥ 2 ॥
अमृतमय शरीर वाले, यदुकुल के राजा, नित्य यौवन युक्त रूपधारी,
चारों वेदों के आत्मस्वरूप, विष्णु, अच्युत, कमल पर विराजमान लक्ष्मी को प्रिय हैं॥ 3 ॥
धरती के स्वामी, देवताओं के स्वामी, निर्मल, देवताओं द्वारा पूजित,
चार भुजाओं वाले, चक्र धारण करने वाले, तीनों लोकों में व्याप्त, त्रिगुणों में स्थित हैं॥ 4 ॥
निर्विकारी, निष्कलंक, मृत्युहीन, पापरहित,
आभास रहित, नित्य संतुष्ट, निर्गुण, विघ्नरहित हैं॥ 5 ॥
गदा धारण करने वाले, शार्ङ्ग धनुष वाले, नंदक तलवारधारी, शंख धारण करने वाले,
अनेक रूपों वाले, अव्यक्त, कटि तक सशक्त, वरदान देने वाले हैं॥ 6 ॥
अनेक आत्माओं के अधिपति, दुखियों के मित्र, पीड़ितों को अभय देने वाले,
आकाश के राजा को वर देने वाले, योगियों के हृदय रूपी कमल में निवास करने वाले हैं॥ 7 ॥
दामोदर, जगत के रक्षक, पापों का नाश करने वाले, भक्तों को स्नेह करने वाले,
त्रिविक्रम, शिंशुमार (मत्स्यावतार), जटा-मुकुट से शोभायमान हैं॥ 8 ॥
शंख के बीच चमकने वाले, मनमोहक घुंघरू और करंडक वाले,
नील मेघ के समान श्याम वर्ण वाले, बेलपत्र से पूजित हैं॥ 9 ॥
संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त, सृष्टि के रचयिता, साक्षी, स्वामी,
मनोकामना पूर्ण करने वाले, विजयी, दशरथ पुत्र, दस रूपों वाले हैं॥ 10 ॥
देवकी पुत्र, शूरसेन कुल के, हयग्रीव, जनार्दन,
कन्याओं द्वारा पूजा योग्य, पीताम्बरधारी, पापरहित हैं॥ 11 ॥
वनमाला धारण करने वाले, कमल नाभि वाले, शिकार में रुचि रखने वाले,
घोड़े पर आरूढ़, खड्गधारी, धन की प्राप्ति के इच्छुक हैं॥ 12 ॥
घनसार (सुगंधित धूप) से सुशोभित, मस्तक पर चमकते कस्तूरी तिलक वाले,
सच्चिदानंद स्वरूप, समस्त जगत् को मंगल देने वाले हैं॥ 13 ॥
यज्ञ स्वरूप, यज्ञ के भक्षक, चैतन्य स्वरूप, परमेश्वर,
परम तत्व प्रदान करने वाले, शांत, श्रीमान, दीर्घ भुजाओं से युक्त हैं॥ 14 ॥
सभी से श्रेष्ठ, परब्रह्म, श्री स्वरूप, जगत के ईश्वर,
इस प्रकार श्री वेङ्कटेश्वर के ये 108 नाम हैं॥ 15 ॥
जो भक्तिभाव से इसका पाठ और श्रवण करता है, उसे सभी इच्छाओं की पूर्ति और शुभ फल प्राप्त होता है।।
॥ इस प्रकार श्री वेङ्कटेश्वर शतनामावली स्तोत्र पूर्ण हुआ ॥
लाभ (Benefits)
श्री वेङ्कटेश्वर शतनामावली स्तोत्रम् का नित्य श्रद्धापूर्वक पाठ करने से साधक को अनेक आध्यात्मिक और लौकिक लाभ प्राप्त होते हैं:
- कष्टों और बाधाओं का नाश – जीवन की हर प्रकार की समस्या, ग्रह बाधा, दरिद्रता, रोग आदि से मुक्ति मिलती है।
- धन, वैभव और समृद्धि की प्राप्ति – भगवान श्रीनिवास लक्ष्मीपति हैं, इसलिए उनकी स्तुति करने से आर्थिक उन्नति होती है।
- भक्ति और आत्मिक शांति – हृदय में शुद्ध भक्ति का संचार होता है, मन शांत और स्थिर रहता है।
- संकटों से रक्षा – यह स्तोत्र रक्षक कवच की तरह कार्य करता है, विशेषकर कालसर्प दोष, भय और अकाल मृत्यु से रक्षा करता है।
- मोक्ष प्राप्ति की दिशा में अग्रसरता – विष्णु के नामों का स्मरण करने से जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
विधि (Vidhi / पद्धति)
श्री वेङ्कटेश्वर शतनामावली स्तोत्रम् का पाठ करने के लिए निम्नलिखित विधि अपनाएं:
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजन स्थान पर श्री वेङ्कटेश्वर (या भगवान विष्णु) की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- दीप प्रज्वलित करें, पीले पुष्प, तुलसी पत्र, और अगरबत्ती अर्पित करें।
- प्रसाद स्वरूप फल या नैवेद्य रखें।
- अब शांत चित्त होकर श्रद्धा से इस स्तोत्र का पाठ करें।
- अंत में विष्णु गायत्री मंत्र या “ॐ नमो नारायणाय” का 11 बार जप करें।
- श्रीफल, तुलसी और चरणामृत से पूजा पूर्ण करें।
जप का उत्तम समय (Best Time for Recitation)
समय | विशेषता |
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ब्राह्म मुहूर्त (सुबह 4:00 से 6:00 बजे) | सर्वोत्तम समय – आध्यात्मिक उन्नति के लिए |
प्रातःकाल (6:00 से 8:00 बजे) | दैनिक पाठ के लिए श्रेष्ठ |
संध्या समय (6:00 से 8:00 बजे) | यदि सुबह संभव न हो तो यह समय भी उत्तम |
विशेष तिथियाँ | एकादशी, शनिवार, पुर्णिमा, तिरुपति बालाजी के पर्व जैसे ब्रह्मोत्सव आदि के दिन इसका पाठ विशेष फलदायक होता है। |