“श्री ललिता महालक्ष्मी स्तोत्र” वैष्णव संप्रदाय के प्रतिष्ठित ग्रंथ “लक्ष्मी-नारायण संहिता” से उद्धृत एक दिव्य स्तोत्र है, जिसमें देवी ललिता के 135 विशिष्ट नामों का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र शक्ति और लक्ष्मी तत्त्व का अद्भुत संगम है, जिसमें देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी को महालक्ष्मी के रूप में पूजा गया है।
देवी ललिता न केवल श्रीविद्या उपासना की अधिष्ठात्री हैं, बल्कि इस स्तोत्र में उन्हें लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, गायत्री, कामाक्षी, नारायणी, अन्नपूर्णा, और अनेक रूपों में स्मरण किया गया है। यह स्तोत्र दर्शाता है कि सम्पूर्ण देवी शक्ति एक ही परम स्वरूप की विविध अभिव्यक्तियाँ हैं।
इस स्तोत्र का पाठ साधक को सकल ऐश्वर्य, विजय, समृद्धि, पुण्य, और अंततः मोक्ष प्रदान करता है। जो व्यक्ति नित्य श्रद्धा से इसका पाठ करता है, उसके जीवन में स्थायी सुख, शांति और आध्यात्मिक उन्नति का वास होता है।
श्री ललिता महालक्ष्मी स्तोत्र
(Lalita Mahalakshmi Stotra)
“यह स्तोत्र वैष्णव-सम्प्रदाय के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘लक्ष्मी-नारायण-संहिता’ से लिया गया है, जो शक्ति-साधना से संबंधित है। चूंकि यह एक वैष्णव ग्रंथ है, इसलिए इसकी साधना-पद्धति वैष्णवाचार पर आधारित है।”
।। श्री नारायणी श्रीरुवाच ।।
ललिताख्य-महा-लक्ष्म्या, नामान्यसंख्यानि वै ।
तथाप्यष्टोत्तर-शतं, स-पादं श्रावय प्रभो ! ।।
(हे प्रभो ! ललिता महालक्ष्मी के असंख्य नाम हैं, तथापि उनके एक सौ पैंतीस नामों को सुनाइए।)
।। श्री पुरुषोत्तमोवाच ।।
मुख्य-नाम्नां प्रपाठेन, फलं सर्वाभिधानकम् ।
भवेदेवेति मुख्यानि, तत्र वक्ष्यामि संश्रृणु ।।
नामावली:
ललिता, श्री, महालक्ष्मी, लक्ष्मी, रमा, पद्मिनी,
कमला, सम्पदा, ईशा, पद्मालये, इन्दिरे, ईश्वरी,
परमेशी, सती, ब्राह्मी, नारायणी, वैष्णवी,
परमेश्वरी, महेशानी, शक्तीशा, पुरुषोत्तमी,
बिम्बी, माया, महा-माया, मूल-प्रकृति, अच्युती,
वासुदेवी, हिरण्या, हरिणी, हिरण्मयी,
कार्ष्णी, कामेश्वरी, कामाक्षी, भगमालिनी,
वह्निवासा, सुन्दरी, संवि, विजया, जया,
मंगला, मोहिनी, तापी, वाराही, सिद्धिरीशिता,
भुक्तिः, कौमारिकी, बुद्धिः, अमृता, दुःखहा, प्रसूः,
सुभाग्या, आनन्दिनी, संपद्, विमला, विंद्विका,
माता, मूर्ति, योगिनी, चक्रिका, अर्चा, रतिधृती,
श्यामा, मनोरमा, प्रीति, ऋद्धि, छाया, पूर्णिमा,
तुष्टिः, प्रज्ञा, पद्मावती, दुर्गा, लीला, माणिकी,
उद्यमा, भारती, विश्वा, विभूति, विनता, शुभा,
कीर्तिः, क्रिया, कल्याणी, विद्या, कला, कुंकुमा,
पुण्या, पुराणा, वागीशी, वरदा, विभवात्मिनी,
सरस्वती, शिवा, नादा, प्रतिष्ठा, संस्कृता, त्रयी,
आयुः, जीव, स्वर्णरेखा, दक्षा, वीरा, रागिनी,
चपला, पंडिता, काली, भद्राम्बिका, मानिनी,
विशालाक्षी, वल्लभा, गोपी, नारी, नारायणी,
संतुष्टा, सुषुम्ना, क्षमा, धात्री, वारुणी,
गुर्वी, साध्वी, गायत्री, दक्षिणा, अन्नपूर्णिका,
राजलक्ष्मी, सिद्धमाता, माधवी, भार्गवी, परा,
हारिती, राशियानी, प्राचीनी, गौरिका, श्रुतिः
।। फल-श्रुति ।।
इत्यष्टोत्तर-शतकं, सप्तविंशतिरित्यपि ।
ललिता-मुख्य-नामानि, कथितानि तव प्रिये ।।
नित्यं यः पठते तस्य, भुक्तिर्मुक्तिः करस्थिता ।
स्मृद्धिर्वंशस्य विस्तारः, सर्वानन्दा भवन्ति वै ।।
“हे प्रिये! मैंने तुम्हें ललिता देवी के मुख्य 135 नामों का वर्णन किया है। जो साधक नित्य श्रद्धा से इन नामों का पाठ करता है, उसके कुल में समृद्धि का विस्तार होता है, जीवन में सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं और भोग के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति भी सहज हो जाती है। अर्थात् वह संसारिक सुखों का आनंद लेते हुए अंततः मोक्ष को प्राप्त करता है।”
।। इति श्री ललिता महालक्ष्मी स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
श्री ललिता महालक्ष्मी स्तोत्र – हिंदी अनुवाद (Sri Lalita Mahalakshmi Stotra – Hindi Translation)
नारायणी देवी कहती हैं:
हे प्रभो! ललिता महालक्ष्मी के नाम तो असंख्य हैं, फिर भी कृपया उनके 135 प्रमुख नामों को मुझे सुनाइए।
भगवान पुरुषोत्तम उत्तर देते हैं:
मुख्य नामों के पाठ से ही सारे नामों का फल प्राप्त हो जाता है, इसलिए मैं अब तुम्हें उनके मुख्य नाम सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो।
ललिता महालक्ष्मी के नामों का भावार्थात्मक अनुवाद: (Meaningful translation of the names of Lalita Mahalakshmi:)
ललिता – जो सहज, कोमल और माधुर्य स्वरूपा हैं।
श्री, महालक्ष्मी, लक्ष्मी, रमा, पद्मिनी – समृद्धि, ऐश्वर्य और सौंदर्य की अधिष्ठात्री देवी।
कमला, सम्पदा, ईशा, पद्मालय, इन्दिरा, ईश्वरी – कमल की तरह खिली हुई, धन और शक्ति की स्रोत।
परमेशी, सती, ब्राह्मी, नारायणी, वैष्णवी – परमशक्ति, जो विष्णु की अर्धांगिनी और ब्रह्मा की चेतना हैं।
महेशानी, शक्तीशा, पुरुषोत्तमी – शिव की शक्ति, सर्वोच्च देवी।
बिम्बी, माया, महा-माया, मूल-प्रकृति, अच्युती – सम्पूर्ण सृष्टि की जननी, जो अविनाशी हैं।
वासुदेवी, हिरण्या, हरिणी, हिरण्मयी – भगवान वासुदेव की शक्ति, स्वर्ण-सी आभा वाली।
कार्ष्णी, कामेश्वरी, कामाक्षी, भगमालिनी – प्रेम और आकर्षण की अधिष्ठात्री देवी।
वह्निवासा, सुन्दरी, संवि, विजया, जया – अग्नि में वास करने वाली, सौंदर्य और विजय की देवी।
मंगला, मोहिनी, तापी, वाराही, सिद्धिरीशिता – मंगलकारी, मोहिनी रूप, योग और सिद्धि की देवी।
भुक्ति, कौमारिकी, बुद्धि, अमृता, दुःखहा, प्रसूः – भोग और मुक्ति देने वाली, बुद्धि की जननी, अमृतस्वरूपा, दुःख दूर करने वाली माता।
सुभाग्या, आनन्दिनी, सम्पद्, विमला, विंद्विका – सौभाग्य, आनंद, धन और निर्मलता की देवी।
माता, मूर्ति, योगिनी, चक्रिका, अर्चा, रतिधृती – आदिशक्ति, योग की अधिष्ठात्री, पूजन रूपा।
श्यामा, मनोरमा, प्रीति, ऋद्धि, छाया, पूर्णिमा – सौंदर्य, आकर्षण और तृप्ति की देवी।
तुष्टि, प्रज्ञा, पद्मावती, दुर्गा, लीला, माणिकी – संतोष, विवेक, शक्ति और रक्षण करने वाली देवी।
उद्यमा, भारती, विश्वा, विभूति, विनता, शुभा – प्रेरणा, वाणी, जगत्स्वरूपा, शक्तिशालिनी देवी।
कीर्ति, क्रिया, कल्याणी, विद्या, कला, कुंकुमा – यश, क्रियाशीलता, शुभता, ज्ञान और कला की देवी।
पुण्या, पुराणा, वागीशी, वरदा, विभवात्मिनी – पुण्य और ज्ञान की स्त्रोत, वरदान देने वाली देवी।
सरस्वती, शिवा, नादा, प्रतिष्ठा, संस्कृता, त्रयी – सरस्वती रूपा, शिवा, नाद स्वरूपा, वेद-त्रयी की अधिष्ठात्री।
आयुः, जीव, स्वर्णरेखा, दक्षा, वीरा, रागिनी – जीवन देने वाली, कुशल और वीरता व राग की देवी।
चपला, पंडिता, काली, भद्राम्बिका, मानिनी – तेजस्विनी, ज्ञानी, कालस्वरूपा, शुभाम्बा।
विशालाक्षी, वल्लभा, गोपी, नारी, नारायणी – विशाल नेत्रों वाली, प्रियतम, गोपियों जैसी, नारायण की शक्ति।
संतुष्टा, सुषुम्ना, क्षमा, धात्री, वारुणी – संतोष और क्षमा की देवी, ऊर्जा और पोषण की स्रोत।
गुर्वी, साध्वी, गायत्री, दक्षिणा, अन्नपूर्णिका – गुरु रूपा, तपस्विनी, गायत्री मंत्र स्वरूपा, अन्न देने वाली।
राजलक्ष्मी, सिद्धमाता, माधवी, भार्गवी, परा – राजसी वैभव देने वाली, सिद्धि की माता, उच्चतम शक्ति।
हारिती, राशियानी, प्राचीनी, गौरिका, श्रुतिः – संतति रक्षण करने वाली, वेदों की ध्वनि और ज्ञान की देवी।
फलश्रुति (पाठ का फल):
हे प्रिये! मैंने तुम्हें देवी ललिता के 135 प्रमुख नाम बताए।
जो भी साधक नित्य इन नामों का पाठ करता है, उसे भोग और मोक्ष, दोनों सहज प्राप्त होते हैं।
उसके वंश में समृद्धि, वैभव और सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
इति श्री ललिता महालक्ष्मी स्तोत्र सम्पूर्णम्।
श्री ललिता महालक्ष्मी स्तोत्र के लाभ (Benefits):
- भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि:
यह स्तोत्र देवी ललिता और महालक्ष्मी दोनों की महिमा को समर्पित है। इसका नित्य पाठ साधक को भौतिक सुख-संपत्ति और आध्यात्मिक बल प्रदान करता है। - भोग और मोक्ष की प्राप्ति:
फलश्रुति में स्पष्ट कहा गया है कि इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने वाले को भोग (सांसारिक सुख) और मोक्ष (आध्यात्मिक मुक्ति) दोनों प्राप्त होते हैं। - कुल/परिवार की उन्नति:
यह स्तोत्र व्यक्ति के कुल और वंश में समृद्धि, यश और सद्गुणों की वृद्धि करता है। - मन की शांति और संकट निवारण:
देवी के 135 नामों के उच्चारण से मन शांत होता है, नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव समाप्त होता है और बाधाएँ दूर होती हैं। - धन, सौभाग्य और विजय:
लक्ष्मी तत्व से युक्त होने के कारण यह स्तोत्र विशेष रूप से धन, सौभाग्य, विजय और प्रशंसा को आकर्षित करता है।
पाठ विधि (Vidhi):
- स्थान और स्वच्छता:
शांत और पवित्र स्थान पर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। - दीप व धूप प्रज्वलित करें:
देवी ललिता और महालक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक व अगरबत्ती जलाएं। - आसन:
कुशासन, ऊन का आसन या पीला वस्त्र बिछाकर बैठें। - संकल्प करें:
दोनों हाथ जोड़कर देवी से मनोकामना पूर्ति हेतु संकल्प लें। - पाठ प्रारंभ करें:
स्तोत्र का उच्चारण स्पष्ट, शुद्ध उच्चारण में करें। चाहें तो माला द्वारा भी जाप कर सकते हैं। - अंत में प्रार्थना करें:
फलश्रुति पढ़ें और देवी से कृपा की प्रार्थना करें। नैवेद्य अर्पण करें (फल, मिठाई या पान सुपारी आदि)।
जाप का समय (Best Jaap Time):
- प्रात:काल (सुबह 4 बजे से 8 बजे के बीच) – सर्वोत्तम समय माना जाता है, क्योंकि यह समय “ब्रह्ममुहूर्त” कहलाता है।
- संध्या काल (शाम 6 से 8 बजे) – देवी साधनाओं के लिए विशेष फलदायी होता है।
- शुक्रवार या पूर्णिमा तिथि – देवी ललिता और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं।
यदि नित्य पाठ संभव न हो, तो शुक्रवार या मासिक पूर्णिमा को अवश्य करें।