महामृत्युंजय स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली और दिव्य स्तुति है, जिसकी रचना ऋषि मार्कण्डेय द्वारा की गई है। यह स्तोत्र भगवान महादेव की स्तुति करते हुए उनके विभिन्न रूपों, शक्तियों और गुणों का गुणगान करता है। इसमें बार-बार यह दोहराया गया है – “किन्नो मृत्यु: करिष्यति” – अर्थात् मृत्यु हमारा क्या बिगाड़ सकती है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह स्तोत्र मृत्यु के भय को समाप्त करने, रोगों से मुक्ति पाने और जीवन में आरोग्यता, शांति व सुरक्षा प्रदान करने वाला है।
यह स्तोत्र भगवान शिव के रुद्र, नीलकण्ठ, शूलपाणि, शंकर, महेश्वर आदि 12 नामों की महिमा का भी वर्णन करता है। ऐसा कहा गया है कि जो भी भक्त इसे श्रद्धा एवं नियमितता से पढ़ता है, उसे मृत्यु का भय नहीं सताता और वह शिवलोक को प्राप्त करता है।
यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए अमोघ रक्षा कवच है, जो बीमारियों, शारीरिक कष्टों, या अकाल मृत्यु के भय से पीड़ित हैं। यह शिवभक्तों के लिए अमृत तुल्य है और इसकी नियमित साधना जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन ला सकती है।
महामृत्युंजय स्तोत्र (Mahamrityunjay Stotra)
ॐ अस्य श्री सदाशिवस्तोत्र मन्त्रस्य मार्कंडेय ऋषिः अनुष्टुप्छन्दः श्री साम्ब सदाशिवो देवता गौरी शक्ति: मम सर्वारिष्ट निवृत्ति पूर्वक शरीरारोग्य सिद्धयर्थे मृत्युंज्यप्रीत्यर्थे च पाठे विनियोग: ॥
ॐ रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम् ।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति ॥
नीलकण्ठं विरुपाक्षं निर्मलं निर्भयं प्रभुम् ।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति ॥
कालकण्ठं कालमूर्तिं कालज्ञं कालनाशनम् ।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति ॥
वामदेवं महादेवं शंकरं शूलपाणिनम् ।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति ॥
देव देवं जगन्नाथं देवेशं वृषभध्वजम् ।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति ॥
गंगाधरं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम् ।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति ॥
भस्म धूलित सर्वांगं नागाभरण भूषितम् ।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति ॥
आनन्दं परमानन्दं कैवल्य पद दायकम् ।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति ॥
स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टि स्थित्यंत कारणम् ।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति ॥
प्रलय स्थिति कर्तारमादि कर्तारमीश्वरम् ।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति ॥
मार्कण्डेय कृतंस्तोत्रं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
तस्य मृत्युभयं नास्ति सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥
सत्यं सत्यं पुन: सत्यं सत्यमेतदि होच्यते ।
प्रथमं तु महादेवं द्वितीयं तु महेश्वरम ॥
तृतीयं शंकरं देवं चतुर्थं वृषभध्वजम् ।
पंचमं शूलपाणिंच षष्ठं कामाग्निनाशनम् ॥
सप्तमं देवदेवेशं श्रीकण्ठं च तथाष्टमम् ।
नवममीश्वरं चैव दशमं पार्वतीश्वरम् ॥
रुद्रं एकादशं चैव द्वादशं शिवमेव च ।
एतद् द्वादश नामानि त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नरः ॥
ब्रह्मघ्नश्च कृतघ्नश्च भ्रूणहा गुरुतल्पग: ।
सुरापानं कृतघन्श्च आततायी च मुच्यते ॥
बालस्य घातकश्चैव स्तौति च वृषभ ध्वजम् ।
मुच्यते सर्व पापेभ्यो शिवलोकं च गच्छति ॥
॥ इति महामृत्युंजय स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
महामृत्युंजय स्तोत्र हिंदी अनुवाद
ॐ इस श्री सदाशिव स्तोत्र मंत्र का ऋषि हैं मार्कण्डेय, छंद है अनुष्टुप, देवता हैं श्री सांब सदाशिव, शक्ति हैं गौरी। इसका पाठ सभी प्रकार के संकटों की निवृत्ति, शरीर की आरोग्यता, और मृत्यु के भय को दूर करने हेतु तथा मृत्युंजय भगवान की कृपा पाने के लिए किया जाता है।
ॐ रुद्र, पशुपति, स्थाणु, नीलकण्ठ और उमा पति को
मैं सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ – मृत्यु हमारा क्या बिगाड़ सकेगी?
जो नीलकण्ठ हैं, विकट नेत्रों वाले हैं, शुद्ध हैं, निडर प्रभु हैं –
मैं सिर झुकाकर उस भगवान को प्रणाम करता हूँ – मृत्यु हमारा क्या कर सकेगी?
जो काले कण्ठ वाले हैं, कालस्वरूप हैं, काल को जानने वाले और काल का नाश करने वाले हैं –
मैं सिर झुकाकर उस भगवान को प्रणाम करता हूँ – मृत्यु हमारा क्या कर सकेगी?
जो वामदेव हैं, महादेव हैं, शंकर हैं और त्रिशूल धारण किए हुए हैं –
मैं सिर झुकाकर उस भगवान को प्रणाम करता हूँ – मृत्यु हमारा क्या कर सकेगी?
जो देवों के देव, जगन्नाथ, देवों के ईश्वर और वृषभ ध्वजधारी हैं –
मैं सिर झुकाकर उस भगवान को प्रणाम करता हूँ – मृत्यु हमारा क्या कर सकेगी?
जो गंगा को धारण करने वाले, महादेव, लोकों के स्वामी और जगद्गुरु हैं –
मैं सिर झुकाकर उस भगवान को प्रणाम करता हूँ – मृत्यु हमारा क्या कर सकेगी?
जिनका सम्पूर्ण शरीर भस्म से धूलित है और जो नागों के आभूषणों से सुशोभित हैं –
मैं सिर झुकाकर उस भगवान को प्रणाम करता हूँ – मृत्यु हमारा क्या कर सकेगी?
जो आनंद स्वरूप, परम आनंद स्वरूप और मोक्ष देने वाले हैं –
मैं सिर झुकाकर उस भगवान को प्रणाम करता हूँ – मृत्यु हमारा क्या कर सकेगी?
जो स्वर्ग और मोक्ष के दाता हैं तथा सृष्टि, स्थिति और विनाश के कारण हैं –
मैं सिर झुकाकर उस भगवान को प्रणाम करता हूँ – मृत्यु हमारा क्या कर सकेगी?
जो प्रलय और सृष्टि की क्रिया करने वाले, आदि कारण और ईश्वर हैं –
मैं सिर झुकाकर उस भगवान को प्रणाम करता हूँ – मृत्यु हमारा क्या कर सकेगी?
जो व्यक्ति मार्कण्डेय द्वारा रचित इस स्तोत्र को शिव के समीप पढ़ता है –
उसे मृत्यु का भय नहीं रहता, मैं सत्य कह रहा हूँ, सत्य, सत्य कह रहा हूँ।
सत्य, सत्य और पुनः सत्य – यह सत्य ही कहा जाता है –
प्रथम नाम महादेव, दूसरा महेश्वर का है।
तीसरा नाम शंकर देव का, चौथा वृषभ ध्वज का है,
पाँचवाँ नाम शूलपाणि, छठा कामदेव का संहारक है।
सातवाँ देवों के देव, आठवाँ श्रीकण्ठ,
नवाँ ईश्वर और दसवाँ पार्वतीश्वर का नाम है।
ग्यारहवाँ नाम रुद्र, बारहवाँ शिव है –
इन बारह नामों को जो मनुष्य तीनों संधियों में (प्रातः, मध्यान्ह, सायं) पढ़ता है,
वह ब्रह्म हत्या, विश्वासघात, भ्रूण हत्या, गुरु पत्नी के संग जैसे
महान पापों से भी मुक्त हो जाता है।
जो बालक का वध करता है और वृषभध्वज भगवान की स्तुति करता है,
वह सभी पापों से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त होता है।
॥ इस प्रकार महामृत्युंजय स्तोत्र पूर्ण हुआ ॥
महामृत्युंजय स्तोत्र के लाभ (Benefits)
- अकाल मृत्यु से रक्षा:
यह स्तोत्र भगवान महाकाल की उपासना का साधन है, जिससे मृत्यु का भय दूर होता है। - शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति:
इसे पढ़ने से लंबे समय से चली आ रही बीमारियाँ और मानसिक तनाव कम होते हैं। - जीवन में दीर्घायु और सुख-शांति:
नियमित पाठ से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। - नेगेटिव एनर्जी का नाश:
यह स्तोत्र ऊर्जा से भरपूर होता है और नकारात्मक शक्तियों को दूर करता है। - कष्टों और संकटों से मुक्ति:
जो व्यक्ति किसी कठिन समय या बाधा से गुजर रहा है, उसके लिए यह स्तोत्र रामबाण की तरह कार्य करता है। - शिव कृपा और मोक्ष की प्राप्ति:
यह स्तोत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और इसके माध्यम से भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महामृत्युंजय स्तोत्र पाठ की विधि (Vidhi)
- पवित्र स्थान चुनें:
सुबह स्नान करके किसी शांत और स्वच्छ स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। - शिवलिंग या शिव प्रतिमा के सामने दीप जलाएं:
धूप, दीप, पुष्प और जल अर्पण करें। रुद्राक्ष की माला सामने रखें (यदि उपलब्ध हो)। - शुद्ध मन से संकल्प लें:
“मैं अमुक उद्देश्य के लिए महामृत्युंजय स्तोत्र का पाठ कर रहा हूँ।” - स्तोत्र का श्रद्धा से पाठ करें:
पूरे मन, तन और भाव से स्तोत्र का पाठ करें। इसे धीरे-धीरे उच्चारण करें, जैसे कोई मंत्र हो। - पाठ के बाद प्रार्थना करें:
भगवान शिव से कृपा की प्रार्थना करें और अपने परिवार व जीवन की रक्षा की याचना करें। - यदि संभव हो तो जल से शिव अभिषेक करें:
महामृत्युंजय मंत्र बोलते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
महामृत्युंजय स्तोत्र का जाप समय (Best Time for Chanting)
- ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4:00 AM से 6:00 AM):
इस समय पाठ करने से अत्यधिक फल प्राप्त होता है। यह समय मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति के लिए श्रेष्ठ माना गया है। - प्रातः काल (6:00 AM से 8:00 AM):
यदि ब्रह्म मुहूर्त संभव न हो तो सुबह जल्दी उठकर पाठ करें। - त्रिसंध्या (सुबह, दोपहर, शाम):
जो व्यक्ति नियमित तीनों संधियों में इसका पाठ करता है, उसे शिव कृपा शीघ्र मिलती है। - सोमवार और प्रदोष तिथि:
विशेष फल की प्राप्ति के लिए सोमवार और त्रयोदशी (प्रदोष) के दिन पाठ करना उत्तम होता है।