शनि स्वयं फल नहीं देते, वे केवल कर्मों का फल देते हैं। यदि कुंडली में शनि प्रतिकूल है, तो शिव की उपासना विशेष रूप से लाभकारी होती है। यह स्तोत्र अग्नि पुराण के 322वें अध्याय से लिया गया है और अत्यंत प्रभावशाली व शीघ्र फलदायी माना गया है। यह प्रयोग शनि दोष, विवाह में देरी, पारिवारिक संकट या अन्य बाधाओं के लिए अमोघ उपाय है।
मंत्र पाठ:
पशुपतास्त्रे का 21 दिन नियमित सुबह-शाम 21-21 पाठ प्रतिदिन करें।
साथ ही नीचे लिखे स्तोत्र का एक सौ आठ बार अवश्य जाप करें और सुबह या शाम को इस मंत्र की 51 आहुतियां काले तिल से हवन अवश्य करें।
विनियोग: सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग का पाठ करें:
अस्य श्री पाशुपताशान्तिस्तोत्रस्य भगवान् वेदव्यासगषि: अनुष्टुप छन्द: श्रीसदशिवपरमात्मा देवता सर्वविघ्नविनाशार्थे पाठे विनियोग: ।
पशुपतास्त्र मंत्र:
नमो भगवते महापाशुपताय, अतुलवीर्यपराक्रमाय, त्रिपंचनयनाय, नानारूपाय, नानाप्रहरणोद्यताय,
सर्वांगरंक्ताय, मनीसांजनचयप्रख्याय, श्मशानवेतालप्रियाय, सर्वविघ्न-निकृन्तनरताय,
सर्वसिद्धिप्रधान, भक्तानुकंपिनेऽसंख्यवक्त्रभुज-पादाय, तस्मिन् सिद्धाय,
वेतालवित्रासिने, शाकिनी क्षोभजनकाय, व्याधिनिग्रहकारिणे पापभंजनाय,
सूर्यसोमाग्निर्नत्राय, विष्णुकवचाय, खड्गवज्रहस्ताय, यमदंडवरुणपाशाय,
रुद्रशूलाय, ज्वलज्जिह्वाय, सर्वरोगविद्रावणाय, ग्रहनिग्रहकारिणे दुष्टनाशक्षयकारिणे।
कृष्णपिंगलाय फट्, हुंकाराय फट्, वज्रहस्ताय फट्, शक्तये फट्, दंडाय फट्, यमाय फट्, खड्गाय फट्, निर्गतये फट्, वरुणाय फट्, वज्राय फट्, पाशाय फट्, ध्वजाय फट्, अंकुशाय फट्, गदाय फट्, कुबेराय फट्, त्रिशूलाय फट्, मुद्गाय फट्, चक्राय फट्, पद्माय फट्, नागाय फट्, ईशानाय फट्, खेटकाय फट्, मुंडाय फट्, कंकालाख्याय फट्, पिबिछकाय फट्, क्षुरिकाय फट्, ब्रह्माय फट्, शक्त्याय फट्, गणाय फट्, सिद्धाय फट्, पिलिपिबछाय फट्, गंधर्वाय फट्, पूर्वाय फट्, दक्षिणाय फट्, वामाय फट्, पश्चिमाय फट्, मंत्राय फट्, शाकिन्यै फट्, योगिन्यै फट्, दंडाय फट्, महादंडाय फट्, नमोऽय फट्, शिवाय फट्, ईशानाय फट्, पुरुषाय फट्, आघोराय फट्, सद्योजाताय फट्, हृदयाय फट्, महायै फट्, गरुड़ाय फट्, राक्षसाय फट्, दानवाय फट्, क्षौंनरसिंहाय फट्, त्वष्ट्यै फट्, सर्वाय फट्, नः फट्, वः फट्, पः फट्, फः फट्, भः फट्, श्रीः फट्, पैः फट्, भूः फट्, भुवः फट्, स्वः फट्, महः फट्, जनः फट्, तपः फट्, सत्यं फट्, सर्वलोक फट्, सर्वपाताल फट्, सर्वतत्त्व फट्, सर्वप्राण फट्, सर्वनाड़ी फट्, सर्वकारण फट्, सर्वदेव फट्, द्रीं फट्, श्रीं फट्, हूं फट्, स्वां फट्, लां फट्, वैराग्याय फट्, कामाय फट्, क्षेत्रपालाय फट्, हुंकाराय फट्, भास्कराय फट्, चन्द्राय फट्, विघ्नेश्वराय फट्, गौः गा: फट्, भ्रामय भ्रामय फट्, संतापय संतापय फट्, छादय छादय फट्, उन्मूलय उन्मूलय फट्, त्रासय त्रासय फट्, संजीवय संजीवय फट्, विद्रावय विद्रावय फट्, सर्वदुरितं नाशय नाशय फट्॥
इन मंत्रों का 1008 बार पाठ करने के उपरांत दशांश हवन, तर्पण एवं मार्जन भी विधिपूर्वक करें।
लाभ (Benefits)
- अग्नि पुराण के 322वें अध्याय से लिया गया यह स्तोत्र समस्त विघ्नों को नष्ट करने में सक्षम माना जाता है, केवल एक बार जप से भी प्रारंभिक लाभ अनुभव होता है।
- नियमित पाठ करने से शत्रुओं पर विजय, युद्ध-संकटों में सफलता, और जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
- भगवान शिव और भगवान शनि इनकी कृपा से प्रसन्न होते हैं, जिससे विशेष रूप से असाध्य कार्य, बाधा, रोग और विवाह-विलंब संबंधी समस्याओं का समाधान होता है ।
- इसे “अमोघ रामबाण” कहा गया है – पूरा 1008 बार जप एवं हवन, तर्पण, मार्जन के साथ करने पर इच्छित लक्ष्यों की प्राप्ति निश्चित मानी जाती है।
पाशुपतास्त्र स्तोत्र पाठ की विधि
🔹 1. संकल्प लें (Sankalp)
- स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन लगाएं।
- सीधे हाथ में जल लेकर संकल्प लें – “मैं अमुक कार्य सिद्धि के लिए भगवान पाशुपत के इस स्तोत्र का विधिपूर्वक पाठ करता हूँ।”
2. विनियोग करें (Viniyog)
- जल लेकर विनियोग मंत्र का उच्चारण करें: “अस्य श्री पाशुपत शांति स्तोत्रस्य भगवान् वेदव्यास ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्री सदाशिव परमात्मा देवता, सर्वविघ्न विनाशार्थे पाठे विनियोगः।”
जप संख्या और समय (Count & Timing)
- 21-दिन का चक्र: हर दिन सुबह और शाम 21–21 बार पाठ।
- 108 जप प्रतिदिन: उपरोक्त विधि में शामिल प्रत्येक बार जाप से संतुलित दैनिक 108 जप किया जाता है।
- 51 हवन आहुतियाँ: हर दिन हवन के दौरान काले तिल की आहुतियाँ।
- पूर्ण प्रयोग:
- कुल 1008 जप हों, साथ में हवन, तर्पण, मार्जन, और ब्राह्मण भोजन सहित पूर्णाहुति हो।
3. नित्य पाठ विधि (Daily Paath Vidhi)
- 21 दिनों तक प्रतिदिन निम्नलिखित प्रकार से पाठ करें:
- सुबह : 21 बार पाठ
- शाम : 21 बार पाठ
- कुल मिलाकर प्रतिदिन : 42 बार पाठ
4. मंत्र जाप विधि (Mantra Jaap Vidhi)
- प्रतिदिन “पाशुपतास्त्र मंत्र” का 108 बार जाप करें।
- यदि संभव हो, जाप के समय रुद्राक्ष की माला का प्रयोग करें।
- मंत्र ध्यान सहित पढ़ें।
5. हवन विधि (Havan Vidhi)
- प्रतिदिन संध्या के समय हवन करें:
- सामग्री: काले तिल, गाय का घी, हवन कुंड, कपूर, गुग्गल
- आहुतियाँ: 51 बार निम्न मंत्र से दें:
6. पूर्णाहुति, तर्पण और मार्जन (Purnahuti, Tarpan, Marjan)
- जब 1008 मंत्र जाप पूर्ण हो जाएं, तब एक बार में यज्ञ कर:
- हवन करें (1/10 भाग की आहुतियाँ)
- तर्पण करें (जल द्वारा देवों का तृप्तिकरण)
- मार्जन करें (अपने ऊपर जल छिड़कना)
- ब्राह्मण को भोजन और दक्षिणा दें।
7. विशेष निर्देश (Important Notes)
- पाठ के समय शिवलिंग, रुद्राक्ष या महाकाल का ध्यान करें।
- एकांत, शांत और पवित्र स्थान पर यह साधना करें।
- ब्रह्मचर्य और सात्विक आहार का पालन करें।
- स्तोत्र पाठ रात्रि में भी किया जा सकता है, लेकिन संयम और नियम आवश्यक हैं।