“गोपिका विरह गीतम्” भागवत पुराण के दशम स्कंध में वर्णित एक अत्यंत हृदयस्पर्शी श्लोक-समूह है, जो गोपियों द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के वियोग में गाया गया था। जब श्रीकृष्ण रासलीला के समय एक क्षण के लिए गोपियों से ओझल हो गए थे, तब उनके वियोग में व्याकुल होकर गोपियों ने यह भावपूर्ण गीत गाया। यह गीत न केवल उनकी भक्ति, प्रेम और आत्मसमर्पण को दर्शाता है, बल्कि श्रीकृष्ण के प्रति उनकी अद्वितीय विरह वेदना का भी गहन चित्रण करता है।
इस गीत में गोपियाँ श्रीकृष्ण को अनेक नामों से पुकारती हैं — मुरारी, माधव, मधुसूदन, गोवर्धनधारी, वंशीधर — और उनसे करुणा, दर्शन और पुनर्मिलन की विनती करती हैं। वृंदावन की वीरानता, यमुना की निस्तब्धता और कदंब वृक्षों की उदासी के माध्यम से गोपियों का विरह और उनका प्रेम भाव अत्यंत मार्मिक रूप में प्रकट होता है।
यह गीत भक्तों को भक्ति, प्रेम और पूर्ण समर्पण की भावना से भर देता है। यह दर्शाता है कि जब प्रेम ईश्वर से होता है, तो उसमें कोई स्वार्थ नहीं होता — केवल मिलन की आकांक्षा और दर्शन की विनती होती है।
गोपिका विरह गीत (Gopika Viraha Gitam)
एहि मुरारे कुंजविहरे एहि प्रणत जन बन्धो
हे माधव मधुमथन वरेण्य केशव करुणा सिंधो
रास निकुंजे गुन्जित नियतम भ्रमर शतम किल कांत
एहि निभ्रित पथ पंथ
त्वमहि याचे दर्शन दानम हे मधुसूदन शान्त
सुन्यम कुसूमासन मिह कुंजे सुन्यम केलि कदम्ब
दीनः केकि कदम्ब
मृदु कल ना दम किल सवि षदम रोदित यमुना स्वंभ
नवनीरजधर श्यामल सुंदर चंद्रा कुसुम रूचि वेश
गोपी गण ह्रिदेयेश
गोवर्धन धर वृंदावन चर वंशी धर परमेश
राधा रंजन कान्स निशुदन प्रणति सातवक चरने निखिल निराश्रये शरने
एहि जनार्दन पीतांबर धर कुंजे मन्थर पवने
गोपिका विरह गीत – हिंदी अनुवाद:
एहि मुरारे कुंजविहरे एहि प्रणत जन बन्धो
👉 हे मुरारी! हे कुंजों (वनों) में विहार करने वाले! कृपया आओ। हे शरणागतों के बंधु!
हे माधव मधुमथन वरेण्य केशव करुणा सिंधो
👉 हे माधव! हे मधु दैत्य का वध करने वाले! हे श्रेष्ठतम केशव! हे करुणा के सागर!
रास निकुंजे गुन्जित नियतम भ्रमर शतम किल कांत
👉 रास-निकुंज में जहाँ अनेक भौंरे गूंजते रहते हैं, वहाँ तुम हमारे प्रियतम हो।
एहि निभ्रित पथ पंथ
👉 कृपया इस एकांत पथ पर आ जाओ।
त्वमहि याचे दर्शन दानम हे मधुसूदन शान्त
👉 हे मधुसूदन! हे शांत स्वरूप! मैं तुमसे केवल दर्शन का दान माँगती हूँ।
सुन्यम कुसूमासन मिह कुंजे सुन्यम केलि कदम्ब
👉 फूलों की आसन-युक्त कुंज अब सूने हैं, खेलों से भरे कदंब वृक्ष अब वीरान हैं।
दीनः केकि कदम्ब
👉 मोर और कदंब वृक्ष भी अब दुखी और उदास हैं।
मृदु कल ना दम किल सवि षदम रोदित यमुना स्वंभ
👉 कोमल कलरव करने वाले पक्षी भी अब शांत हो गए हैं, और यमुना का जल जैसे रो रहा हो।
नवनीरजधर श्यामल सुंदर चंद्रा कुसुम रूचि वेश
👉 तुम नव कमल के समान श्याम वर्ण वाले, सुंदर चंद्रमा की शोभा लिए हुए, पुष्पवत मनोहर वस्त्र धारण करने वाले हो।
गोपी गण ह्रिदेयेश
👉 तुम गोपियों के हृदय के स्वामी हो।
गोवर्धन धर वृंदावन चर वंशी धर परमेश
👉 तुम गोवर्धन को धारण करने वाले, वृंदावन में विचरण करने वाले, बांसुरी धारण करने वाले परमेश्वर हो।
राधा रंजन कान्स निशुदन प्रणति सातवक चरने निखिल निराश्रये शरने
👉 हे राधा को प्रसन्न करने वाले! हे कंस का नाश करने वाले! हम आपकी चरणों में पूर्ण समर्पित हैं – हम सम्पूर्ण रूप से आश्रयहीन हैं, आपके ही शरणागत हैं।
एहि जनार्दन पीतांबर धर कुंजे मन्थर पवने
👉 हे जनार्दन! पीतांबर (पीले वस्त्र) धारण करने वाले! कुंजों में मन्द-मन्द पवन बह रहा है, कृपया वहाँ आ जाइए।
गोपिका विरह गीतम् के लाभ (Benefits)
- अद्वितीय कृष्ण प्रेम की प्राप्ति – यह गीत गोपियों के उस निष्कलंक प्रेम को दर्शाता है, जिससे पाठक के भीतर भी राधा-कृष्ण के प्रति गहन भक्ति उत्पन्न होती है।
- विरह की अग्नि को शांत करता है – जिन लोगों को किसी प्रिय व्यक्ति के वियोग की पीड़ा हो, यह गीत उन्हें भावनात्मक शांति प्रदान करता है।
- भक्ति में दृढ़ता – यह पाठ भक्त को भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में पूर्ण समर्पण की ओर ले जाता है।
- मन की एकाग्रता व शुद्धि – यह भावपूर्ण पाठ मन को शुद्ध करता है और आत्मा को सच्चे प्रेम से जोड़ता है।
- कृष्ण कृपा व दर्शन की भावना जाग्रत होती है – गोपियों की तरह ही पाठक के भीतर श्रीकृष्ण के दर्शन की उत्कंठा पैदा होती है।
पाठ विधि (Vidhi)
- स्थान – शांत, स्वच्छ और पवित्र स्थान पर बैठे। यह स्थान घर का मंदिर, वृंदावन, या कोई कृष्ण मंदिर हो सकता है।
- स्नान आदि करके शुद्ध वस्त्र पहनें।
- भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें और दीप प्रज्वलित करें।
- मुरलीधर श्रीकृष्ण के चित्र या मूर्ति के सामने बैठकर भावना सहित पाठ करें।
- पाठ करते समय मन में गोपियों की विरह व्यथा और उनका प्रेम अनुभव करने का प्रयास करें।
- पाठ के अंत में प्रार्थना करें कि भगवान श्रीकृष्ण आपके हृदय में प्रेम, करुणा और भक्ति का वास करें।
जप / पाठ का सर्वोत्तम समय (Best Time to Chant / Recite)
- प्रातःकाल (4 से 6 बजे – ब्रह्म मुहूर्त) – यह समय विशेष फलदायक होता है।
- संध्याकाल में भी शांत वातावरण में पाठ कर सकते हैं।
- शरद पूर्णिमा, रास पूर्णिमा, गोपाष्टमी, या एकादशी जैसे दिन विशेष फल देते हैं।
👉 जो भक्त प्रतिदिन करते हैं, वे इसे एक बार पूर्ण श्रद्धा से पढ़ें।