गुरु न केवल एक अध्यापक होते हैं, बल्कि आत्मा को परमात्मा से जोड़ने वाले सेतु भी होते हैं। वे अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश प्रदान करते हैं। हिन्दू धर्म में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर बताया गया है। इसी दिव्यता को दर्शाने वाला यह गुरु स्तोत्र भगवान शिव द्वारा देवी त्रिपुरा को उपदेश रूप में प्रदान किया गया है, जो त्रिपुराशिवसंवाद नामक ग्रंथ से लिया गया है।
इस स्तोत्र में गुरु की महिमा का अद्भुत वर्णन है — जहाँ गुरु को वेद, तीर्थ, तप, योग, देवी-देवता, यहाँ तक कि स्वयं भगवान विष्णु और शिव से भी श्रेष्ठ बताया गया है। यह भाव दर्शाता है कि गुरु के बिना कोई साधना, उपासना या मोक्ष भी संभव नहीं है।
जो व्यक्ति नित्य इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे गुरु-कृपा प्राप्त होती है और वह सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर आध्यात्मिक ऊँचाइयों को प्राप्त करता है।
गुरु स्तोत्र
।। श्री महादेव्युवाच ।।
गुरुर्मन्त्रस्य देवस्य धर्मस्य तस्य एव वा ।
विशेषस्तु महादेव ! तद् वदस्व दयानिधे ।।
अनुवाद: श्री गुरु स्तोत्रम् श्री महादेवी (पार्वती) ने कहा : हे दयानिधि शंभु ! गुरुमंत्र के देवता अर्थात् श्री गुरुदेव एवं उनका आचारादि धर्म क्या है – इस बारे में वर्णन करें ।
श्री गुरु स्तोत्रम्
श्री महादेवी (पार्वती) ने कहा :
हे दयानिधि शंभु ! गुरुमंत्र के देवता अर्थात् श्री गुरुदेव एवं उनका आचारादि धर्म क्या है – इस बारे में वर्णन करें ।
।। श्री महादेव उवाच ।।
जीवात्मनं परमात्मनं दानं ध्यानं योगो ज्ञानम् ।
उत्कल काशीगंगामरणं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।। 1 ।।
अनुवाद: || श्री महादेव बोले: ||
जीवात्मा-परमात्मा का ज्ञान, दान, ध्यान, योग, पुरी, काशी या गंगा तट पर मृत्यु – इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ।
प्राणं देहं गेहं राज्यं स्वर्गं भोगं योगं मुक्तिम् ।
भार्यामिष्टं पुत्रं मित्रं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।। 2 ।।
अनुवाद: प्राण, शरीर, गृह, राज्य, स्वर्ग, भोग, योग, मुक्ति, पत्नी, इष्ट, पुत्र, मित्र – इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ।
वानप्रस्थं यतिविधधर्मं पारमहंस्यं भिक्षुकचरितम् ।
साधोः सेवां बहुसुखभुक्तिं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।। 3 ।।
अनुवाद: वानप्रस्थ धर्म, यति धर्म, परमहंस धर्म, भिक्षुक धर्म – इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ।
विष्णो भक्तिं पूजनरक्तिं वैष्णवसेवां मातरि भक्तिम् ।
विष्णोरिव पितृसेवनयोगं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।। 4 ।।
अनुवाद: विष्णु भक्ति, पूजन में अनुरक्ति, विष्णु भक्तों की सेवा, माता की भक्ति, पिता सेवा – इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ।
प्रत्याहारं चेन्द्रिययजनं प्राणायां न्यासविधानम् ।
इष्टे पूजा जप तपभक्तिर्न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।। 5 ।।
अनुवाद: प्रत्याहार, इन्द्रिय-नियमन, प्राणायाम, न्यास-विन्यास, इष्टदेव पूजा, जप, तपस्या, भक्ति – इन सबमें से कुछ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ।
काली दुर्गा कमला भुवना त्रिपुरा भीमा बगला पूर्णा ।
श्रीमातंगी धूमा तारा न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।। 6 ।।
अनुवाद: काली, दुर्गा, लक्ष्मी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरा, भीमा, बगलामुखी, मातंगी, धूमावती, तारा – ये सभी मातृशक्तियाँ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं हैं ।
मात्स्यं कौर्मं श्रीवाराहं नरहरिरूपं वामनचरितम् ।
नरनारायण चरितं योगं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।। 7 ।।
अनुवाद: मत्स्य, कूर्म, वाराह, नरसिंह, वामन, नरनारायण आदि अवतार और उनकी लीलाएँ भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं हैं ।
श्रीभृगुदेवं श्रीरघुनाथं श्रीयदुनाथं बौद्धं कल्क्यम् ।
अवतारा दश वेदविधानं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।। 8 ।।
अनुवाद: भृगु, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि आदि वेदों में वर्णित दस अवतार – इन सबसे भी गुरुदेव बढ़कर हैं ।
गंगा काशी कान्ची द्वारा मायाऽयोध्याऽवन्ती मथुरा ।
यमुना रेवा पुष्करतीर्थ न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।। 9 ।।
अनुवाद: गंगा, यमुना, रेवा जैसी नदियाँ, काशी, कांची, द्वारिका, अयोध्या, उज्जैन, मथुरा जैसे तीर्थ – इनमें से भी कुछ श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं हैं ।
गोकुलगमनं गोपुररमणं श्रीवृन्दावन-मधुपुर-रटनम् ।
एतत् सर्वं सुन्दरि ! मातर्न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।। 10 ।।
अनुवाद: गोकुल यात्रा, गोशालाओं में भ्रमण, वृन्दावन व मधुपुर का स्मरण – ये सब भी श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं हैं ।
तुलसीसेवा हरिहरभक्तिः गंगासागर-संगममुक्तिः ।
किमपरमधिकं कृष्णेभक्तिर्न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।। 11 ।।
अनुवाद: तुलसी सेवा, हरि-हर भक्ति, गंगा-सागर संगम पर मुक्ति – इनमें से भी कुछ श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है, श्री कृष्ण की भक्ति भी नहीं ।
एतत् स्तोत्रम् पठति च नित्यं मोक्षज्ञानी सोऽपि च धन्यम् ।
ब्रह्माण्डान्तर्यद्-यद् ध्येयं न गुरोरधिकं न गुरोरधिकं ।। 12 ।।
अनुवाद: जो इस स्तोत्र का नित्य पाठ करता है, वह आत्मज्ञान और मोक्ष पाता है, और समस्त ब्रह्माण्ड में ध्यान योग्य कोई भी वस्तु श्री गुरुदेव से बढ़कर नहीं है ।
।। वृहदविज्ञान परमेश्वरतंत्रे त्रिपुराशिवसंवादे श्रीगुरोःस्तोत्रम् ।।
गुरु स्तोत्र के लाभ
- ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति: गुरु स्तोत्र का नियमित पाठ करने से ज्ञान, विवेक और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
- गुरु दोष का निवारण: यदि किसी की कुंडली में गुरु ग्रह अशुभ हो, तो गुरु स्तोत्र का जाप करने से गुरु दोष का निवारण होता है और जीवन में शुभता आती है।
- स्वास्थ्य और दीर्घायु: गुरु का संबंध अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु से होता है। गुरु स्तोत्र का पाठ करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
- आर्थिक समृद्धि: गुरु स्तोत्र का जाप करने से आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है और समृद्धि प्राप्त होती है।
- आध्यात्मिक विकास: गुरु स्तोत्र का पाठ आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है।
जाप की विधि
- समय: गुरु स्तोत्र का जाप गुरुवार के दिन करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
- स्थान: शांत और पवित्र स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- वस्त्र: साफ और पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
- माला: पीले चंदन, तुलसी या रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें।
- जाप संख्या: नित्य 108 बार गुरु स्तोत्र का जाप करें।
- भावना: श्रद्धा और समर्पण भाव से गुरु का ध्यान करते हुए जाप करें।
जाप का उपयुक्त समय
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4 से 6 बजे के बीच का समय, जिसे ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं, गुरु स्तोत्र के जाप के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
- गुरुवार का दिन: गुरु ग्रह के अधिपति बृहस्पति देव को समर्पित गुरुवार का दिन गुरु स्तोत्र के जाप के लिए विशेष रूप से शुभ होता है।