श्री गणेश स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली स्तुति है जो भगवान गणेश की महिमा का वर्णन करती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन भक्तों के लिए उपयोगी है जो जीवन में आने वाली बाधाओं, संकटों और विघ्नों को दूर करना चाहते हैं। इसका नियमित पाठ मानसिक शांति, समृद्धि और सफलता प्रदान करता है।
श्री गणेश स्तोत्र (Shree Ganesha Stotra)
मुदा करात्त मोदकं सदा विमुक्ति साधकम् ।
कलाधरावतंसकं विलासिलोक रक्षकम् ।
अनायकैक नायकं विनाशितेभ दैत्यकम् ।
नताशुभाशु नाशकं नमामि तं विनायकम् ॥ 1 ॥
नतेतराति भीकरं नवोदितार्क भास्वरम् ।
नमत्सुरारि निर्जरं नताधिकापदुद्ढरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरम् ।
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥ 2 ॥
समस्त लोक शङ्करं निरस्त दैत्य कुञ्जरम् ।
दरेतरोदरं वरं वरेभ वक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करम् ।
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥ 3 ॥
अकिञ्चनार्ति मार्जनं चिरन्तनोक्ति भाजनम् ।
पुरारि पूर्व नन्दनं सुरारि गर्व चर्वणम् ।
प्रपञ्च नाश भीषणं धनञ्जयादि भूषणम् ।
कपोल दानवारणं भजे पुराण वारणम् ॥ 4 ॥
नितान्त कान्ति दन्त कान्ति मन्त कान्ति कात्मजम् ।
अचिन्त्य रूपमन्त हीन मन्तराय कृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनाम् ।
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥ 5 ॥
महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहम् ।
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रताम् ।
समाहितायु रष्टभूति मभ्युपैति सोऽचिरात् ॥ 6 ॥
॥ इति श्री गणेश स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
श्री गणेश स्तोत्र का सरल हिंदी अनुवाद:
1.
जो सदा मोदक (एक मिठाई) को हाथ में लिए रहते हैं, जो सदा मोक्ष प्रदान करने वाले हैं,
जो चंद्रमा को मुकुट के रूप में धारण करते हैं, और संसार की रक्षा करते हैं,
जो बिना किसी स्वामी के स्वयं एकमात्र स्वामी हैं, जिन्होंने हाथी जैसे दैत्यों का नाश किया है,
जो अपने भक्तों के सभी अमंगलों को शीघ्र नष्ट कर देते हैं — मैं ऐसे श्री विनायक को नमस्कार करता हूँ।
2.
जो अपने विरोधियों के लिए भयावह हैं, और नवीन सूर्य के समान तेजस्वी हैं,
जो देवताओं के शत्रुओं को नष्ट करते हैं और भक्तों की कठिनाइयों को दूर करते हैं,
जो देवताओं के स्वामी, धन के स्वामी, हाथियों के स्वामी और गणों के स्वामी हैं,
जो महान शिव के भी आराध्य हैं — मैं उन निरंतर परम स्वरूप को शरण में लेता हूँ।
3.
जो समस्त लोकों के लिए कल्याणकारी हैं और दैत्यरूपी हाथियों का नाश करने वाले हैं,
जिनका बड़ा पेट और श्रेष्ठ मुख है जो अक्षर (शाश्वत) है,
जो कृपा के स्वरूप हैं, क्षमा के स्वरूप हैं, आनंद और यश प्रदान करने वाले हैं,
जो मन को प्रसन्न करने वाले हैं और जिनकी पूजा सभी करते हैं — मैं उन्हें नमस्कार करता हूँ।
4.
जो निर्धनों और दुखियों के कष्टों को दूर करते हैं और प्राचीन स्तुतियों के पात्र हैं,
जो शिव (पुरारि) के अग्रज पुत्र हैं और देवताओं के शत्रुओं के अहंकार का नाश करते हैं,
जो सृष्टि का संहार करने वाले हैं और अर्जुन जैसे वीरों के आभूषण हैं,
जिनके कपोल (गाल) पर हाथी का अंकन है — मैं उस प्राचीन गजराज को भजता हूँ।
5.
जिनके दाँतों की कान्ति अद्भुत है, जिनकी मनोहर आकृति है, जो मंत्रों के अधिपति हैं,
जिनका स्वरूप अचिंत्य (सोच से परे) है, जो हर बाधा को काटने में सक्षम हैं,
जो योगियों के हृदय में निरंतर निवास करते हैं,
मैं उसी एकदन्त (एक दाँत वाले) भगवान का सदा चिंतन करता हूँ।
6.
जो भी इस “महागणेश पंचरत्न” स्तोत्र का श्रद्धा से नित्य पाठ करता है,
जो प्रभात में गणेशजी का स्मरण करते हुए इसे जपता है,
वह रोगमुक्त, दोषमुक्त, सुंदर वाणी वाला, उत्तम संतान वाला होता है,
और उसे लंबी आयु, धन-संपत्ति और शुभता शीघ्र प्राप्त होती है।
॥ इस प्रकार श्री गणेश स्तोत्र पूर्ण हुआ ॥
श्री गणेश स्तोत्र के लाभ (Benefits of Shri Ganesh Stotra)
- संकटों का नाश: इस स्तोत्र का नियमित पाठ जीवन में आने वाले सभी प्रकार के संकटों और विघ्नों को दूर करता है।
- धन और समृद्धि: गणेश जी की कृपा से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और समृद्धि प्राप्त होती है।
- स्वास्थ्य लाभ: यह स्तोत्र मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
- विद्या और बुद्धि: विद्यार्थियों के लिए यह स्तोत्र विशेष रूप से लाभकारी है, जिससे उन्हें विद्या और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
- भय का नाश: यह स्तोत्र भय और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है, जिससे आत्मविश्वास बढ़ता है।
पाठ विधि (Lesson method)
- स्नान और शुद्धता: प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल की तैयारी: भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
- आसन: शुद्ध आसन पर बैठकर मन को एकाग्र करें।
- स्तोत्र पाठ: श्री गणेश स्तोत्र का पाठ श्रद्धा और भक्ति भाव से करें।
- प्रसाद अर्पण: पाठ के पश्चात भगवान गणेश को मोदक या अन्य मिठाई का भोग लगाएं।
जप का उपयुक्त समय (Suitable time for chanting)
- प्रातःकाल: सूर्योदय से पूर्व या सूर्योदय के समय पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- त्रिसंध्या: सुबह, दोपहर और शाम के समय पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
- विशेष दिन: बुधवार और चतुर्थी के दिन इस स्तोत्र का पाठ करने से विशेष लाभ होता है।