“कैलासराणा शिवचंद्र मोळी” एक लोकप्रिय मराठी शिव स्तुति है जिसमें भगवान शिव की महिमा का वर्णन भावपूर्ण शब्दों में किया गया है। इस स्तुति में शिवजी के विभिन्न रूपों, अलंकारों और उनकी करुणा से जुड़ी विशेषताओं का गान किया गया है।
🔹 प्रमुख पंक्तियाँ और भावार्थ (Key lines and meanings:):
- कैलासराणा शिवचंद्र मोळी – जो कैलास पर्वत पर वास करते हैं और जिनके सिर पर चंद्रमा सुशोभित है।
- फणींद्र माथा मुकुटीं झळाळी – जिनके मस्तक पर सर्प मुकुट के रूप में शोभा बढ़ा रहे हैं।
- कारुण्यसिंधू भवदुःखहारी – जो करुणा के सागर हैं और जीवों के दुखों का हरण करने वाले हैं।
🔹 भावार्थ:
इस स्तुति में भक्त भगवान शिव से प्रार्थना करता है कि वे संसार के बंधनों, पापों और दुखों से मुक्ति दिलाएं। स्तुति शिवजी की शक्ति, सौंदर्य, करुणा और तपस्वी स्वरूप को समर्पित है।
🔹 उपयोग और प्रभाव (Uses and Effects):
यह स्तुति शिवभक्ति के भाव को गहराई से जगाती है और आत्मा को स्थिरता देती है।
इस स्तुति का पाठ विशेष रूप से सोमवार, महाशिवरात्रि, और श्रावण मास में किया जाता है।
श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मानसिक शांति मिलती है और शिव कृपा का अनुभव होता है।
श्री शिवस्तुति (Sri Shivastuti Lyrics in Hindi) –
कैलासराणा शिवचंद्रमौळी ।
फणींद्र माथां मुकुटी झळाळी ।
कारुण्यसिंधू भवदुःखहारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || १ ||
रवींदु दावानल पूर्ण भाळी ।
स्वतेज नेत्रीं तिमिरौघ जाळी ।
ब्रह्मांडधीशा मदनांतकारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || २ ||
जटा विभूति उटि चंदनाची ।
कपालमाला प्रित गौतमीची ।
पंचानना विश्वनिवांतकारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || ३ ||
वैराग्ययोगी शिव शूलपाणी ।
सदा समाधी निजबोधवाणी ।
उमानिवासा त्रिपुरांतकारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || ४ ||
उदार मेरु पति शैलजेचा ।
श्रीविश्र्वनाथ म्हणती सुरांचा ।
दयानिधीचा गजचर्मधारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || ५ ||
ब्रह्मादि वंदी अमरादिनाथ ।
भुजंगमाला धरि सोमकांत ।
गंगा शिरीं दोष महा विदारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || ६ ||
कर्पूरगौरी गिरिजा विराजे ।
हळाहळें कंठ निळाचि साजे ।
दारिद्र्यदुःखे स्मरणें निवारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || ७ ||
स्मशानक्रीडा करितां सुखावे ।
तो देव चूडामणि कोण आहे ।
उदासमूर्ती जटाभस्मधारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || ८ ||
भूतादिनाथ अरि अंतकाचा ।
तो स्वामी माझा ध्वज शांभवाचा ।
राजा महेश बहुबाहुधारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || ९ ||
नंदी हराचा हर नंदिकेश ।
श्रीविश्वनाथ म्हणती सुरेश ।
सदाशिव व्यापक तापहारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || १० ||
भयानक भीम विक्राळ नग्न ।
लीलाविनोदें करि काम भग्न ।
तो रुद्र विश्वंभर दक्ष मारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || ११ ||
इच्छा हराची जग हे विशाळ ।
पाळी रची तो करि ब्रह्मगोळ ।
उमापति भैरव विघ्नहारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || १२ ||
भागीरथीतीर सदा पवित्र ।
जेथें असे तारक ब्रह्ममंत्र ।
विश्वेश विश्वंभर त्रिनेत्रधारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || १३ ||
प्रयाग वेणी सकळा हराच्या ।
पादारविंदी वाहाती हरीच्या ।
मंदाकिनी मंगल मोक्षकारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || १४ ||
कीर्ती हराची स्तुति बोलवेना ।
कैवल्यदाता मनुजा कळेना ।
एकाग्रनाथ विष अंगिकारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || १५ ||
सर्वांतरी व्यापक जो नियंता ।
तो प्राणलिंगाजवळी महंता ।
अंकी उमा ते गिरिरुपधारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || १६ ||
सदा तपस्वी असे कामधेनू ।
सदा सतेज शशिकोटिभानू ।
गौरीपती जो सदा भस्मधारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || १७ ||
कर्पूरगौर स्मरल्या विसांवा ।
चिंता हरी जो भजकां सदैवा ।
अंती स्वहीत सुवना विचारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || १८ ||
विरामकाळीं विकळ शरीर ।
उदास चित्तीं न धरीच धीर ।
चिंतामणी चिंतनें चित्तहारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || १९ ||
सुखावसाने सकळ सुखाची ।
दुःखावसाने टळती जगाचीं ।
देहावसाने धरणी थरारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || २० ||
अनुहात शब्द गगनी न माय ।
त्याने निनादें भव शून्य होय ।
कथा निजांगे करुणा कुमारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || २१ ||
शांति स्वलीला वदनीं विलासे ।
ब्रह्मांडगोळी असुनी न दिसे ।
भिल्ली भवानी शिव ब्रह्मचारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || २२ ||
पीतांबरे मंडित नाभि ज्याची ।
शोभा जडीत वरि किंकिणीची ।
श्रीदेवदत्त दुरितांतकारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || २३ ||
जिवाशिवांची जडली समाधी ।
विटला प्रपंची तुटली उपाधी ।
शुद्धस्वरें गर्जति वेद चारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || २४ ||
निधानकुंभ भरला अभंग ।
पाहा निजांगें शिव ज्योतिर्लिंग ।
गंभीर धीर सुर चक्रधारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || २५ ||
मंदार बिल्वें बकुलें सुवासी ।
माला पवित्र वहा शंकरासी ।
काशीपुरी भैरव विश्व तारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || २६ ||
जाई जुई चंपक पुष्पजाती ।
शोभे गळां मालतिमाळ हातीं ।
प्रताप सूर्यशरचापधारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || २७ ||
अलक्ष्यमुद्रा श्रवणीं प्रकाशे ।
संपूर्ण शोभा वदनीं विकसे ।
नेई सुपंथे भवपैलतीरीं ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || २८ ||
नागेशनामा सकळा जिव्हाळा ।
मना जपें रे शिवमंत्रमाळा ।
पंचाक्षरी घ्यान गुहाविहारीं ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || २९ ||
एकांति ये रे गुरुराज स्वामीं ।
चैतन्यरुपीं शिवसौख्य नामीं ।
शिणलों दयाळा बहुसाल भारी ।
तुजवीण शंभो मज कोण तारी || ३० ||
शास्त्राभ्यास नको श्रुति पढुं नको तीर्थासि जाऊं नको ।
योगाभ्यास नको व्रतें मख नको तीव्रें तपें तीं नको ।
काळाचे भय मानसीं धरुं नको दुष्टांस शंकूं नको ।
ज्याचीया स्मरणें पतीत तरती तो शंभु सोडू नको || ३१ ||
कैलास राणा शिव चंद्रमौळी हिंदी अनुवाद (Kailasrana Shivchandra Mauli in Hindi)
यह मराठी स्तुति भगवान शिव की महिमा का वर्णन करती है। नीचे प्रत्येक श्लोक का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत है:
- कैलासराणा शिवचंद्रमौळी । फणींद्र माथां मुकुटी झळाळी ।
कारुण्यसिंधू भवदुःखहारी । तुजवीण शंभो मज कोण तारी ॥ हे कैलास के स्वामी, जिनके मस्तक पर चंद्रमा और सर्पराज का मुकुट शोभायमान है। आप करुणा के सागर हैं और संसार के दुखों का नाश करने वाले हैं। हे शंभो, आपके बिना मुझे और कौन तार सकता है? - रवींदु दावानल पूर्ण भाळी । स्वतेज नेत्रीं तिमिरौघ जाळी ।
ब्रह्मांडधीशा मदनांतकारी । तुजवीण शंभो मज कोण तारी ॥ आपके मस्तक पर सूर्य, चंद्रमा और अग्नि का तेज है। आपकी आंखों की ज्योति से अंधकार नष्ट होता है। आप ब्रह्मांड के स्वामी और कामदेव का नाश करने वाले हैं। हे शंभो, आपके बिना मुझे और कौन तार सकता है? - जटा विभूति उटि चंदनाची । कपालमाला प्रीत गौतमीची ।
पंचानना विश्वनिवांतकारी । तुजवीण शंभो मज कोण तारी ॥ आपकी जटाओं में विभूति और चंदन का लेप है। आप कपालों की माला और गंगा नदी को धारण करते हैं। पंचमुखी होकर आप विश्व को शांति प्रदान करते हैं। हे शंभो, आपके बिना मुझे और कौन तार सकता है? - वैराग्ययोगी शिव शूलपाणी । सदा समाधी निजबोधवाणी ।
उमानिवासा त्रिपुरांतकारी । तुजवीण शंभो मज कोण तारी ॥ आप वैराग्ययुक्त योगी हैं, हाथ में त्रिशूल धारण करते हैं। सदा समाधि में लीन रहते हैं और आत्मज्ञान का उपदेश देते हैं। माता उमा के स्वामी और त्रिपुरासुर का नाश करने वाले हैं। हे शंभो, आपके बिना मुझे और कौन तार सकता है? - उदार मेरु पति शैलजेचा । श्रीविश्वनाथ म्हणती सुरांचा ।
दयानिधीचा गजचर्मधारी । तुजवीण शंभो मज कोण तारी ॥ आप मेरु पर्वत के समान उदार हैं, पार्वती के पति हैं। देवता आपको श्री विश्वनाथ कहते हैं। आप दया के सागर और गजचर्म (हाथी की खाल) धारण करने वाले हैं। हे शंभो, आपके बिना मुझे और कौन तार सकता है? - ब्रह्मादि वंदी अमरादिनाथ । भुजंगमाला धरि सोमकांत ।
गंगा शिरीं दोष महा विदारी । तुजवीण शंभो मज कोण तारी ॥ ब्रह्मा आदि देवता आपकी वंदना करते हैं, आप देवताओं के स्वामी हैं। सर्पों की माला और चंद्रमा को धारण करते हैं। सिर पर गंगा को धारण कर महापापों का नाश करते हैं। हे शंभो, आपके बिना मुझे और कौन तार सकता है? - कर्पूरगौरी गिरिजा विराजे । हळाहळें कंठ निळाचि साजे ।
दारिद्र्यदुःखे स्मरणें निवारी । तुजवीण शंभो मज कोण तारी ॥ आपके साथ कर्पूरगौर वर्ण वाली देवी गिरिजा विराजमान हैं। आपके कंठ में हलाहल विष से नीलिमा शोभायमान है। स्मरण मात्र से आप दरिद्रता और दुखों का नाश करते हैं। हे शंभो, आपके बिना मुझे और कौन तार सकता है? - स्मशानक्रीडा करितां सुखावे । तो देव चूडामणि कोण आहे ।
उदासमूर्ती जटाभस्मधारी । तुजवीण शंभो मज कोण तारी ॥ आप श्मशान में क्रीड़ा करके आनंदित होते हैं। देवों में श्रेष्ठ, उदासीन मूर्ति, जटाजूट और भस्म धारण करने वाले हैं। हे शंभो, आपके बिना मुझे और कौन तार सकता है? - भूतादिनाथ अरि अंतकाचा । तो स्वामी माझा ध्वज शांभवाचा ।
राजा महेश बहुबाहुधारी । तुजवीण शंभो मज कोण तारी ॥ आप भूतों के स्वामी और यमराज के भी अंत करने वाले हैं। शंभु ध्वज वाले मेरे स्वामी, महेश्वर और अनेक भुजाओं वाले हैं। हे शंभो, आपके बिना मुझे और कौन तार सकता है? - नंदी हराचा हर नंदिकेश । श्रीविश्वनाथ म्हणती सुरेश ।
सदाशिव व्यापक तापहारी । तुजवीण शंभो मज कोण तारी ॥ आप नंदी के स्वामी, नंदिकेश्वर हैं। देवता आपको श्री विश्वनाथ कहते हैं। सदाशिव, सर्वव्यापक और तापों का हरण करने वाले हैं। हे शंभो, आपके बिना मुझे और कौन तार सकता है? - भयानक भीम विक्राळ नग्न । लीलाविनोदें करि काम भग्न ।
तो रुद्र विश्वंभर दक्ष मारी । तुजवीण शंभो मज कोण तारी ॥ आप भयानक, भीषण, विकराल और नग्न रूपधारी हैं। लीलापूर्वक कामदेव का नाश करने वाले, रुद्र, विश्वंभर और दक्ष प्रजापति का विनाश करने वाले हैं। हे शंभो, आपके बिना मुझे और कौन तार सकता है? - इच्छा हराची जग हे विशाळ । पाळी रची तो करि ब्रह्मगोळ ।
उमापति भैरव विघ्नहारी । तुजवीण शंभो मज कोण तारी ॥ आपकी इच्छा से यह विशाल संसार उत्पन्न होता है और आप ही इसे संहार करते हैं। उमापति, भैरव और विघ्नों का नाश करने वाले हैं। हे शंभो, आपके बिना मुझे और कौन तार सकता है? - **भागीरथीतीर सदा पवित्र । जेथें असे तारक ब्रह्ममंत्र ।
विश्वेश विश्वंभर त्रिनेत्रधारी । तुजवीण शंभो