“दुर्गा आपदुद्धारक स्तोत्रम्” माँ दुर्गा का एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है, जो विशेष रूप से आपत्तियों (संकटों) से मुक्ति, शत्रु बाधा निवारण और विपत्तियों से सुरक्षा के लिए पढ़ा जाता है।
Shree Lalitha Sahasranama (श्रीललितासहस्रनामस्तोत्रम्)
पाठ के लाभ (Benefits of Durga Apaduddharaka Stotram)
✅ संकटों से मुक्ति – यह स्तोत्र जीवन में आने वाली आपदाओं (Accidents, Financial Crisis, Mental Stress) से बचाने में सहायक है।
✅ रोग एवं कष्ट निवारण – नियमित पाठ से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रोगों का नाश होता है।
✅ शत्रु बाधा से रक्षा – यह स्तोत्र शत्रुओं, ईर्ष्या करने वालों, तांत्रिक प्रभावों से सुरक्षा देता है।
✅ धन और सुख-समृद्धि – जिनके जीवन में आर्थिक समस्याएँ हों, वे इसे पढ़ें तो अकाल मृत्यु, दरिद्रता और कर्ज से मुक्ति मिलती है।
✅ कलियुग में शीघ्र फल देने वाला – अन्य स्तोत्रों की तुलना में यह स्तोत्र बहुत जल्दी फल देता है।
ॐ मोर्वाये नमः (Om Morvaye Namah)
पाठ विधि (How to Chant This Stotram for Maximum Benefits)
🔹 समय: प्रातःकाल, संध्याकाल या रात्रि में (विशेषकर नवरात्रि, अष्टमी, चतुर्दशी को)।
🔹 स्थान: किसी मंदिर, पूजा कक्ष, या पवित्र स्थान पर बैठकर पाठ करें।
🔹 संख्या: 11 बार, 21 बार, या 108 बार पाठ करने से विशेष लाभ होता है।
🔹 सावधानियाँ:
ॐ श्री श्याम देवाय नमः (Om Shree Shyam Devay Namah )
- पाठ से पहले स्नान करके साफ़ वस्त्र धारण करें।
- माँ दुर्गा के चित्र या मूर्ति के सामने दीप जलाएँ।
- नकारात्मक विचारों से बचें और श्रद्धा-भक्ति से पाठ करें।
ऋणविमोचन नृसिंह स्तोत्र (Rinmochan Narsingh Stotra)
दुर्गा आपदुद्धारक स्तोत्रम् Durga Apaduddharaka Stotram
नमस्ते शरण्ये शिवे सानुकम्पे
नमस्ते जगद्व्यापिके विश्वरूपे ।
नमस्ते जगद्वन्द्यपादारविन्दे
नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥१॥
नमस्ते जगच्चिन्त्यमानस्वरूपे
नमस्ते महायोगिविज्ञानरूपे ।
नमस्ते नमस्ते सदानन्द रूपे
नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥२॥
अनाथस्य दीनस्य तृष्णातुरस्य
भयार्तस्य भीतस्य बद्धस्य जन्तोः ।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारकर्त्री
नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥३॥
अरण्ये रणे दारुणे शत्रुमध्ये
जले सङ्कटे राजगेहे प्रवाते ।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तार हेतुर्
नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥४॥
अपारे महदुस्तरेऽत्यन्तघोरे
विपत् सागरे मज्जतां देहभाजाम् ।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारनौका
नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥५॥
नमश्चण्डिके चण्डोर्दण्डलीला
समुत्खण्डिता खण्डलाशेषशत्रोः ।
त्वमेका गतिर्विघ्नसन्दोहहर्त्री
नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥६॥
त्वमेका सदाराधिता सत्यवादि_
न्यनेकाखिलाऽक्रोधना क्रोधनिष्ठा ।
इडा पिङ्ला त्वं सुषुम्ना च नाडी
नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥७॥
नमो देवि दुर्गे शिवे भीमनादे
सदासर्वसिद्धिप्रदातृस्वरूपे ।
विभूतिः सतां कालरात्रिस्वरूपे
नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ॥८॥
शरणमसि सुराणां सिद्धविद्याधराणां
मुनिमनुजपशूनां दस्युभिस्त्रासितानाम् ।
नृपतिगृहगतानां व्याधिभिः पीडितानां
त्वमसि शरणमेका देवि दुर्गे प्रसीद ॥९॥
इदं स्तोत्रं मया प्रोक्तमापदुद्धारहेतुकम् ।
त्रिसन्ध्यमेकसन्ध्यं वा पठनाद्घोरसङ्कटात् ॥१०॥
मुच्यते नात्र सन्देहो भुवि स्वर्गे रसातले ।
सर्वं वा श्लोकमेकं वा यः पठेद्भक्तिमान् सदा ॥११॥
स सर्वं दुष्कृतं त्यक्त्वा प्राप्नोति परमं पदम् ।
पठनादस्य देवेशि किं न सिद्ध्यति भूतले ॥१२॥
स्तवराजमिदं देवि संक्षेपात्कथितं मया ॥१३॥
॥ इति श्रीसिद्धेश्वरीतन्त्रे उमामहेश्वरसंवादे श्रीदुर्गापदुद्धारस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
दुर्गा आपदुद्धारक स्तोत्र (हिंदी अर्थ सहित)
हे शरण देने वाली, शिवस्वरूपिणी और करुणामयी माता!
हे सम्पूर्ण जगत में व्यापक और विश्वरूपा देवी!
हे सम्पूर्ण जगत के वंदनीय चरण कमलों वाली माता!
हे संसार को तारने वाली दुर्गा, हमारी रक्षा करो ॥१॥
हे देवी! जो सम्पूर्ण संसार में चिंतन करने योग्य स्वरूप रखती हो, आपको नमन।
हे महायोगियों के विज्ञानस्वरूपिणी देवी, आपको नमन।
हे सदा आनंदस्वरूपिणी माता, बारंबार आपको नमन।
हे संसार को तारने वाली दुर्गा, हमारी रक्षा करो ॥२॥
जो अनाथ, दीन, तृष्णा से व्याकुल, भयग्रस्त,
भयभीत और बंधन में पड़े जीवों की एकमात्र गति हैं,
हे माता! आप ही उद्धार करने वाली हो।
हे संसार को तारने वाली दुर्गा, हमारी रक्षा करो ॥३॥
जंगल में, रणभूमि में, भयंकर शत्रुओं के मध्य,
जल में, संकट में, राजमहल में, और तूफान में,
आप ही हमारी एकमात्र गति हैं, उद्धार करने वाली हैं।
हे संसार को तारने वाली दुर्गा, हमारी रक्षा करो ॥४॥
जिस महादुस्तर और अत्यंत भयंकर
विपत्ति रूपी सागर में जीव डूबते हैं,
आप ही उन सबका उद्धार करने वाली नौका हो।
हे संसार को तारने वाली दुर्गा, हमारी रक्षा करो ॥५॥
हे चण्डिका! आपकी प्रचंड लीलाएँ
सम्पूर्ण शत्रुओं का संहार करने वाली हैं।
आप ही विघ्नों का नाश करने वाली एकमात्र देवी हैं।
हे संसार को तारने वाली दुर्गा, हमारी रक्षा करो ॥६॥
आप सदा पूजनीय, सत्य भाषिणी,
अनेक सिद्धियों की दात्री, क्रोध रहित और क्रोधित रूप वाली हैं।
आप ही इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों में स्थित हैं।
हे संसार को तारने वाली दुर्गा, हमारी रक्षा करो ॥७॥
हे देवी दुर्गा, शिवस्वरूपिणी, भयंकर नाद करने वाली माता!
आप सदा सभी सिद्धियाँ प्रदान करने वाली हैं।
हे सत्पुरुषों की विभूति, कालरात्रि स्वरूपिणी!
हे संसार को तारने वाली दुर्गा, हमारी रक्षा करो ॥८॥
आप ही देवताओं, सिद्धों, विद्याधरों,
मुनियों, मनुष्यों और पशुओं की शरण हो।
जो डाकुओं द्वारा त्रस्त हैं, रोगों से पीड़ित हैं,
राजमहलों में पीड़ा झेल रहे हैं – उनके लिए आप ही एकमात्र शरण हो।
हे दुर्गा माता! हम पर कृपा करें ॥९॥
यह स्तोत्र मैंने संकटों से उबारने के लिए कहा है।
जो इसे प्रातः, दोपहर और संध्या (तीन संध्याओं में) या कम से कम एक बार भी पढ़ता है,
वह भयंकर संकटों से मुक्त हो जाता है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि जो भक्त इसे श्रद्धा से पढ़ता है ॥१०॥
वह इस संसार, स्वर्ग और पाताललोक में भी सुरक्षित रहता है।
चाहे कोई सम्पूर्ण स्तोत्र का पाठ करे या केवल एक श्लोक भी पढ़े,
वह अपने सभी पापों को त्यागकर परमपद को प्राप्त कर लेता है।
हे देवी! इस स्तोत्र के पाठ से पृथ्वी पर क्या कुछ असाध्य है? ॥११॥
आपके इस स्तोत्र के पाठ से सब सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
हे देवी! यह स्तवराज (श्रेष्ठ स्तोत्र) मैंने संक्षेप में कहा है।॥१३॥
॥ इति श्री सिद्धेश्वरी तंत्रे उमामहेश्वर संवादे श्री दुर्गा आपदुद्धार स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
लिंगाष्टकम स्तोत्र (Lingashtakam Stotram)
ऋणमोचन अंगारक स्तोत्रम् (Rin Mochan Angaraka Stotram)
उपमन्यु कृता शिव स्तोत्रं (Upamanyu Krutha Shiva Stotram)