निर्वाण षटकम् (Nirvana Shatakam) एक अत्यंत प्रसिद्ध आध्यात्मिक स्तोत्र है, जिसे आदि शंकराचार्य (8वीं शताब्दी) ने रचा था। यह छह श्लोकों का एक शक्तिशाली ग्रंथ है, जो अद्वैत वेदांत (Advaita Vedanta) की मूल शिक्षा को सरल शब्दों में प्रकट करता है। इस स्तोत्र में आत्मा की शुद्धता, अमरता और अनंतता का वर्णन किया गया है।
ॐ अन्तरिक्षाय नमः मंत्र (Om Antarikshaya Namah Mantra)
जब आदि शंकराचार्य जी मात्र 8 वर्ष के थे, तब वे अपने गुरु गोविंदपादाचार्य के पास गए और जब उनसे पूछा गया कि “तुम कौन हो?” तो शंकराचार्य ने उत्तर में यह छह श्लोक कहे। यह श्लोक आत्म-साक्षात्कार (Self-Realization) का मार्ग दिखाते हैं और बताते हैं कि व्यक्ति न तो शरीर, न मन, न इंद्रियां, न अहंकार, न धर्म-कर्म, और न ही सांसारिक बंधनों से बंधा हुआ है – बल्कि वह स्वयं शिवस्वरूप (शुद्ध चेतना) है।
स्वास्तिक मंत्र (Swastik Mantra)
निर्वाण षटकम् का भावार्थ (Meaning of Nirvana Shatakam):
इस स्तोत्र में बताया गया है कि –
✔ हम शरीर नहीं हैं, बल्कि शुद्ध आत्मा हैं।
✔ हम न सुख हैं, न दुख, क्योंकि आत्मा इनसे परे है।
✔ हमारा कोई जन्म नहीं, मृत्यु नहीं, जाति-पंथ नहीं।
✔ हमारे कोई माता-पिता, मित्र या शत्रु नहीं हैं।
✔ हम कर्मों से भी परे हैं – न पुण्य, न पाप।
✔ हम न मन हैं, न बुद्धि, न अहंकार, न चित्त।
✔ हम केवल शुद्ध चैतन्य (pure consciousness) हैं।
अंततः, शंकराचार्य कहते हैं:
“चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्” –
(मैं शुद्ध चेतना और आनंदस्वरूप शिव हूं, शिव हूं।)
गर्भ रक्षा महामंत्र (Garbha Raksha Mantra)
निर्वाण षटकम् (Nirvana Shatakam):
मनोबुद्ध्यहङ्कार चित्तानि नाहं
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥१॥
हिंदी अर्थ: मैं न तो मन हूं, न बुद्धि, न अहंकार और न ही चित्त।
न ही मैं कान, जीभ, नाक या आंख हूं।
मैं आकाश, धरती, अग्नि या वायु भी नहीं हूं।
मैं तो शुद्ध चेतना और आनंदस्वरूप शिव हूं।
न च प्राणसंज्ञो न वै पञ्चवायुः
न वा सप्तधातुः न वा पञ्चकोशः ।
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायु
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥२॥
हिंदी अर्थ: मैं न तो प्राण हूं, न पांच प्रकार की वायु (प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान)।
न ही मैं सात धातुएं (रस, रक्त, मांस आदि) हूं और न ही पांच शरीर कोश (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनंदमय)।
मैं न तो वाणी हूं, न हाथ, न पैर, न ही गुप्तांग और मलद्वार।
मैं तो शुद्ध चेतना और आनंदस्वरूप शिव हूं।
न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः ।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥३॥
हिंदी अर्थ: मुझे न ही राग-द्वेष (प्रेम और घृणा) हैं, न ही लोभ-मोह हैं।
न ही मुझे अहंकार (गर्व) है और न ही ईर्ष्या का भाव।
मैं न तो धर्म (सत्कर्म) हूं, न अर्थ (धन), न काम (इच्छाएं) और न ही मोक्ष (मुक्ति)।
मैं तो शुद्ध चेतना और आनंदस्वरूप शिव हूं।
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञाः ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥४॥
हिंदी अर्थ: मैं न तो पुण्य हूं, न ही पाप।
न सुख हूं और न ही दुख।
मैं न ही कोई मंत्र हूं, न कोई तीर्थ, न वेद, न ही यज्ञ।
मैं न भोजन हूं, न खाने योग्य वस्तु, और न ही भक्षक।
मैं तो शुद्ध चेतना और आनंदस्वरूप शिव हूं।
न मृत्युर्न शङ्का न मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्मः ।
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यं
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥५॥
हिंदी अर्थ: मुझे न मृत्यु का भय है, न ही कोई चिंता।
न ही मेरा कोई जातिगत भेदभाव है।
न ही मेरा कोई पिता है, न माता, और न ही जन्म।
न ही मेरा कोई बंधु (रिश्तेदार), मित्र, गुरु या शिष्य है।
मैं तो शुद्ध चेतना और आनंदस्वरूप शिव हूं।
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो
विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
न चासङ्गतं नैव मुक्तिर्न मेयः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥६॥
हिंदी अर्थ: मैं संकल्प-विकल्प (सोच-विचार) से परे हूं, निराकार हूं।
मैं सर्वव्यापी हूं, सब इंद्रियों से परे हूं।
मैं न तो किसी से जुड़ा हूं, न ही मेरी मुक्ति संभव है, क्योंकि मैं पहले से ही मुक्त हूं।
मैं तो शुद्ध चेतना और आनंदस्वरूप शिव हूं।
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