भगवान शिव, जिन्हें देवताओं का सर्वोच्च अधिपति माना गया है, की पूजा के लिए अनेक स्तोत्रों की रचना की गई है। इनमें से एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्तोत्र शिव पंचाक्षर स्तोत्र है।
यह स्तोत्र प्राचीनतम स्तोत्रों में से एक माना जाता है, जिसे भक्ति और श्रद्धा के साथ पाठ करने का विशेष महत्व है। यहां आपको अर्थ सहित शिव पंचाक्षर स्तोत्र के बारे में विस्तृत जानकारी मिलेगी।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र की विधि (Method of reciting Shiva Panchakshar Stotra:):
प्रात: समय में स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले शिवलिंग पर दूध और जल से अभिषेक करना चाहिए। इसके बाद विधिपूर्वक भगवान शिव की पूजा करें, और अंत में शिव पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ शुरू करें।
शिव पंचाक्षर स्तोत्र पाठ का लाभ (Benefits of reciting Shiv Panchakshar Stotra:):
भगवान शिव के इस पंचाक्षर स्तोत्र के जाप से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और मनुष्य की सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं। इसका जाप करने से विभिन्न प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त की जा सकती हैं।
श्री शिव पंचाक्षर स्तोत्र (Shiva Panchakshara Stotra):
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय,
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय,
तस्मै न काराय नमः शिवाय ॥१॥
मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय,
नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।
मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय,
तस्मै म काराय नमः शिवाय ॥२॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द,
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय,
तस्मै शि काराय नमः शिवाय ॥३॥
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य,
मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय,
तस्मै व काराय नमः शिवाय ॥४॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय,
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय,
तस्मै य काराय नमः शिवाय ॥५॥
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥
श्लोक का हिंदी में अर्थ (Meaning of Shloka in hindi)
वे जिनके गले में नागों का हार है, जिनकी तीन आँखें हैं, जिनके शरीर पर भस्म का लेप है, जो महान ईश्वर हैं, जो नित्य और शुद्ध हैं, और जो आकाश को ही वस्त्र के रूप में धारण करते हैं – उन शिव को “न” अक्षर से नमन।
वे जिनकी पूजा मंदाकिनी नदी के जल और चंदन से होती है, जो नंदी और भूतों के स्वामी हैं, जिन्हें मंदार और कई अन्य पुष्पों से पूजा जाता है – उन शिव को “म” अक्षर से नमन।
वे जो शुभ हैं और जिनसे गौरी का मुखकमल खिल उठता है, जिन्होंने दक्ष के यज्ञ का विनाश किया, जिनका कंठ नील है, और जिनके प्रतीक वृषभ (बैल) है – उन शिव को “शि” अक्षर से नमन।
वे जो वशिष्ठ, अगस्त्य, गौतम ऋषियों और देवताओं द्वारा पूजित हैं, और जो ब्रह्मांड के शिखर हैं, जिनकी तीन आँखें चंद्रमा, सूर्य, और अग्नि हैं – उन शिव को “वा” अक्षर से नमन।
वे जो यज्ञस्वरूप हैं, जिनकी जटाएँ हैं, जिनके हाथ में पिनाक (त्रिशूल) है, और जो सनातन, दिव्य और दिगम्बर (चारों दिशाओं को वस्त्र के रूप में धारण करने वाले) हैं – उन शिव को “य” अक्षर से नमन।
जो व्यक्ति शिव के समीप इस पवित्र पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता है और शिव के साथ आनंद का अनुभव करता है।
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