“नारायण कवच” श्रीमद्भागवत महापुराण के षष्ठ स्कंध (छठे स्कंध) के आठवें अध्याय में वर्णित एक अत्यंत शक्तिशाली और पवित्र स्तोत्र है। यह कवच भगवान श्रीहरि विष्णु के दिव्य नामों और स्वरूपों से निर्मित एक आध्यात्मिक रक्षा कवच है, जो भक्त को हर प्रकार के भय, संकट, रोग, शत्रु और अदृश्य शक्तियों से सुरक्षित रखता है।
इस स्तोत्र का मूल प्रसंग देवताओं और असुरों के बीच हुए भीषण युद्ध से जुड़ा है। जब इंद्र देवता असुरों से पराजित होने लगे, तब उन्होंने अपने गुरु बृहस्पति के पुत्र विश्वरूप से रक्षा का उपाय पूछा। तब विश्वरूप ने उन्हें यह दिव्य “नारायण कवच” प्रदान किया, जिसकी शक्ति से इंद्र ने पुनः विजय प्राप्त की और तीनों लोकों पर अपना राज्य स्थापित किया।
“नारायण कवच” केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि भगवान विष्णु के अवतारों और शक्तियों का संरक्षण जाल है। इस कवच में मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि — इन सभी अवतारों को दिशाओं, लोकों और शरीर के अंगों के रक्षक के रूप में आह्वान किया गया है।
यह कवच श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़ने से साधक को दिव्य शक्ति प्रदान करता है।
जो व्यक्ति “नारायण कवच” का नित्य पाठ करता है, वह सदा भगवान विष्णु की कृपा और संरक्षण में रहता है।
श्री नारायण कवच स्तोत्र (Shree Narayan Kavach)
राजोवाच
यया गुप्तः सहस्त्राक्षः सवाहान् रिपुसैनिकान्।
क्रीडन्निव विनिर्जित्य त्रिलोक्या बुभुजे श्रियम् ।।1।।
भगवंस्तन्ममाख्याहि वर्म नारायणात्मकम्।
यथाssततायिनः शत्रून् येन गुप्तोsजयन्मृधे ।।2।।
श्रीशुक उवाच
वृतः पुरोहितोस्त्वाष्ट्रो महेन्द्रायानुपृच्छते।
नारायणाख्यं वर्माह तदिहैकमनाः शृणु।।3।।
विश्वरूप उवाचधौताङ्घ्रिपाणिराचम्य सपवित्र उदङ् मुखः।
कृतस्वाङ्गकरन्यासो मन्त्राभ्यां वाग्यतः शुचिः।।4।।
नारायणमयं वर्म संनह्येद् भय आगते।
पादयोर्जानुनोरूर्वोरूदरे हृद्यथोरसि।।5।।
मुखे शिरस्यानुपूर्व्यादोंकारादीनि विन्यसेत्।
ॐ नमो नारायणायेति विपर्ययमथापि वा।।6।।
करन्यासं ततः कुर्याद् द्वादशाक्षरविद्यया।
प्रणवादियकारन्तमङ्गुल्यङ्गुष्ठपर्वसु।।7।।
न्यसेद् हृदय ओङ्कारं विकारमनु मूर्धनि।
षकारं तु भ्रुवोर्मध्ये णकारं शिखया दिशेत्।।8।।
वेकारं नेत्रयोर्युञ्ज्यान्नकारं सर्वसन्धिषु।
मकारमस्त्रमुद्दिश्य मन्त्रमूर्तिर्भवेद् बुधः।।9।।
सविसर्गं फडन्तं तत् सर्वदिक्षु विनिर्दिशेत्।
ॐ विष्णवे नम इति।।10।।
आत्मानं परमं ध्यायेद ध्येयं षट्शक्तिभिर्युतम्।
विद्यातेजस्तपोमूर्तिमिमं मन्त्रमुदाहरेत।।11।।
ॐ हरिर्विदध्यान्मम सर्वरक्षां न्यस्ताङ्घ्रिपद्मः पतगेन्द्रपृष्ठे।
दरारिचर्मासिगदेषुचापाशान् दधानोsष्टगुणोsष्टबाहुः।।12।।
जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्तिर्यादोगणेभ्यो वरूणस्य पाशात्।
स्थलेषु मायावटुवामनोsव्यात् त्रिविक्रमः खेऽवतु विश्वरूपः।।13।।
दुर्गेष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः पायान्नृसिंहोऽसुरयुथपारिः।
विमुञ्चतो यस्य महाट्टहासं दिशो विनेदुर्न्यपतंश्च गर्भाः।।14।।
रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः।
रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे सलक्ष्मणोsव्याद् भरताग्रजोsस्मान्।।15।।
मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः पातु नरश्च हासात्।
दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद् गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात्।।16।।
सनत्कुमारो वतु कामदेवाद्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात्।
देवर्षिवर्यः पुरूषार्चनान्तरात् कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात्।।17।।
धन्वन्तरिर्भगवान् पात्वपथ्याद् द्वन्द्वाद् भयादृषभो निर्जितात्मा।
यज्ञश्च लोकादवताज्जनान्ताद् बलो गणात् क्रोधवशादहीन्द्रः।।18।।
द्वैपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु पाखण्डगणात् प्रमादात्।
कल्किः कले कालमलात् प्रपातु धर्मावनायोरूकृतावतारः।।19।।
मां केशवो गदया प्रातरव्याद् गोविन्द आसङ्गवमात्तवेणुः।
नारायण प्राह्ण उदात्तशक्तिर्मध्यन्दिने विष्णुररीन्द्रपाणिः।।20।।
देवोsपराह्णे मधुहोग्रधन्वा सायं त्रिधामावतु माधवो माम्।
दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रे निशीथ एकोsवतु पद्मनाभः।।21।।
श्रीवत्सधामापररात्र ईशः प्रत्यूष ईशोऽसिधरो जनार्दनः।
दामोदरोऽव्यादनुसन्ध्यं प्रभाते विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः।।22।।
चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि भ्रमत् समन्ताद् भगवत्प्रयुक्तम्।
दन्दग्धि दन्दग्ध्यरिसैन्यमासु कक्षं यथा वातसखो हुताशः।।23।।
गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिङ्गे निष्पिण्ढि निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि।
कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षोभूतग्रहांश्चूर्णय चूर्णयारीन्।।24।।
त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृपिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन्।
दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो भीमस्वनोऽरेर्हृदयानि कम्पयन्।।25।।
त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्यमीशप्रयुक्तो मम छिन्धि छिन्धि।
चर्मञ्छतचन्द्र छादय द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम्।।26।।
यन्नो भयं ग्रहेभ्यो भूत् केतुभ्यो नृभ्य एव च।
सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य एव वा।।27।।
सर्वाण्येतानि भगन्नामरूपास्त्रकीर्तनात्।
प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयः प्रतीपकाः।।28।।
गरूड़ो भगवान् स्तोत्रस्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः।
रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः।।29।।
सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः।
बुद्धिन्द्रियमनः प्राणान् पान्तु पार्षदभूषणाः।।30।।
यथा हि भगवानेव वस्तुतः सद्सच्च यत्।
सत्यनानेन नः सर्वे यान्तु नाशमुपाद्रवाः।।31।।
यथैकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम्।
भूषणायुद्धलिङ्गाख्या धत्ते शक्तीः स्वमायया।।32।।
तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो भगवान् हरिः।
पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः सदा सर्वत्र सर्वगः।।33।।
विदिक्षु दिक्षूर्ध्वमधः समन्तादन्तर्बहिर्भगवान् नारसिंहः।
प्रहापयँल्लोकभयं स्वनेन ग्रस्तसमस्ततेजाः।।34।।
मघवन्निदमाख्यातं वर्म नारयणात्मकम्।
विजेष्यस्यञ्जसा येन दंशितोऽसुरयूथपान्।।35।।
एतद् धारयमाणस्तु यं यं पश्यति चक्षुषा।
पदा वा संस्पृशेत् सद्यः साध्वसात् स विमुच्यते।।36।।
न कुतश्चित भयं तस्य विद्यां धारयतो भवेत्।
राजदस्युग्रहादिभ्यो व्याघ्रादिभ्यश्च कर्हिचित्।।37।।
इमां विद्यां पुरा कश्चित् कौशिको धारयन् द्विजः।
योगधारणया स्वाङ्गं जहौ स मरूधन्वनि।।38।।
तस्योपरि विमानेन गन्धर्वपतिरेकदा।
ययौ चित्ररथः स्त्रीर्भिवृतो यत्र द्विजक्षयः।।39।।
गगनान्न्यपतत् सद्यः सविमानो ह्यवाक् शिराः।
स वालखिल्यवचनादस्थीन्यादाय विस्मितः।
प्रास्य प्राचीसरस्वत्यां स्नात्वा धाम स्वमन्वगात्।।40।।
य इदं शृणुयात् काले यो धारयति चादृतः।
तं नमस्यन्ति भूतानि मुच्यते सर्वतो भयात्।।41।।
एतां विद्यामधिगतो विश्वरूपाच्छतक्रतुः।
त्रैलोक्यलक्ष्मीं बुभुजे विनिर्जित्यऽमृधेसुरान्।।42।।
नारायण कवच का महत्व
- दैवी कवच (Divine Armor):
यह कवच साधक के चारों ओर भगवान विष्णु के नाम, मंत्र और अवतारों से बनी एक दिव्य ऊर्जा बनाता है, जो उसे हर प्रकार की हानि से बचाती है। - भय और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा:
जो व्यक्ति इस कवच का नियमित जप करता है, उसके पास कोई भी भूत, प्रेत, ग्रहदोष, रोग, या शत्रु की शक्ति नहीं ठहरती। - आध्यात्मिक बल की वृद्धि:
इसका पाठ साधक के मन, बुद्धि और आत्मबल को दृढ़ करता है। यह भय, असुरक्षा और संशय को नष्ट कर आत्मविश्वास और शांति प्रदान करता है। - विष्णु अवतारों का आह्वान:
इसमें भगवान के विभिन्न अवतारों — मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, राम, कृष्ण आदि — को दिशाओं और शरीर के अंगों के रक्षक के रूप में स्थापित किया गया है। - युद्ध, यात्रा और संकट में सुरक्षा:
शास्त्रों में वर्णन है कि जब भी कोई व्यक्ति युद्ध, यात्रा, परीक्षा या संकट में हो, और वह “नारायण कवच” का स्मरण करता है, तो भगवान विष्णु उसकी रक्षा करते हैं।
नारायण कवच के लाभ
जो व्यक्ति इसका नियमित पाठ करता है, वह सर्वभयों से मुक्त रहता है।
- यह कवच साधक को दैहिक (शारीरिक), दैविक (अदृश्य) और भौतिक (भौतिक) कष्टों से बचाता है।
- नकारात्मक ग्रहों, पिशाच बाधा और अदृश्य शक्तियों से यह सुरक्षा कवच की तरह कार्य करता है।
- कौशिक ऋषि की कथा में वर्णन है कि जिन्होंने यह कवच धारण किया, उन्हें मृत्यु के बाद भी दिव्य लोकों की प्राप्ति हुई।
- इसे धारण करने वाला व्यक्ति हर स्थिति में भगवान की कृपा, शांति और विजय प्राप्त करता है।












































