“श्री विंध्यवासिनी स्तोत्र” एक अत्यंत शक्तिशाली देवी स्तुति है जो माँ विंध्यवासिनी देवी की महिमा का गुणगान करती है। यह स्तोत्र देवी के विविध स्वरूपों, शक्तियों और गुणों का वर्णन करते हुए भक्त को उनकी शरण में आने का आह्वान करता है।
माँ विंध्यवासिनी, जिन्हें दुर्गा का अवतार माना जाता है, का निवास स्थान विंध्य पर्वत में स्थित है और वे दरिद्रता, दुख, शत्रु भय, वियोग, शोक आदि सभी कष्टों को हरने वाली मानी जाती हैं। इस स्तोत्र में उन्हें त्रिशूलधारिणी, मुण्डसंहारिणी, विभूति प्रदान करने वाली, शिवाशिव फल देने वाली और समस्त लोकों में निवास करने वाली शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है।
इस स्तोत्र का पाठ भक्त के जीवन में शांति, समृद्धि, निर्भयता और मानसिक संतुलन लाता है। यह स्तोत्र देवी के रौद्र और सौम्य दोनों रूपों का संतुलित रूप से वर्णन करता है और साधक को परम कल्याण की ओर अग्रसर करता है।
विंध्यवासिनी स्तोत्र (Vindhyvasini Stotra)
निशुम्भ शुम्भ गर्जनी, प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी।
बनेरणे प्रकाशिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ 1॥
त्रिशूल मुण्ड धारिणी, धरा विघात हारिणी।
गृहे-गृहे निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ 2॥
दरिद्र दुःख हारिणी, सदा विभूति कारिणी।
वियोग शोक हारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ 3॥
लसत्सुलोल लोचनं, लतासनं वरप्रदं।
कपाल-शूल धारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ 4॥
कराब्जदानदाधरां, शिवाशिवां प्रदायिनी।
वरा-वराननां शुभां, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ 5॥
कपीन्द्न जामिनीप्रदां, त्रिधा स्वरूप धारिणी।
जले-थले निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ 6॥
विशिष्ट शिष्ट कारिणी, विशाल रूप धारिणी।
महोदरे विलासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ 7॥
पुंरदरादि सेवितां, पुरादिवंशखण्डितम्।
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीं॥ 8॥
।। इति श्री विंध्यवासिनी स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
श्री विंध्यवासिनी स्तोत्र — हिंदी अनुवाद सहित (Shri Vindhyavasini Stotra – With Hindi Translation)
निशुम्भ शुम्भ गर्जनी, प्रचण्ड मुण्ड खण्डिनी।
बनेरणे प्रकाशिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ 1॥
👉 मैं विन्ध्यवासिनी देवी की वंदना करता हूँ, जो निशुम्भ और शुम्भ जैसे राक्षसों का नाश करने वाली, मुण्ड को काटने वाली और रणभूमि में तेजस्वी प्रकाश फैलाने वाली हैं।
त्रिशूल मुण्ड धारिणी, धरा विघात हारिणी।
गृहे-गृहे निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ 2॥
👉 जो अपने हाथों में त्रिशूल और मुण्ड धारण करती हैं, पृथ्वी के कष्टों को हरती हैं और हर घर में निवास करती हैं — ऐसी विन्ध्यवासिनी को मैं नमस्कार करता हूँ।
दरिद्र दुःख हारिणी, सदा विभूति कारिणी।
वियोग शोक हारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ 3॥
👉 जो दरिद्रता, दुःख और वियोग के शोक को दूर करती हैं, और हमेशा ऐश्वर्य प्रदान करती हैं — ऐसी माँ विंध्यवासिनी को मैं प्रणाम करता हूँ।
लसत्सुलोल लोचनं, लतासनं वरप्रदं।
कपाल-शूल धारिणी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ 4॥
👉 जिनकी चंचल आँखें चमकती हैं, जो लताओं के समान आसन पर विराजमान हैं, वर देने वाली हैं, और खोपड़ी व त्रिशूल धारण करती हैं — उन्हें मैं प्रणाम करता हूँ।
कराब्जदानदाधरां, शिवाशिवां प्रदायिनी।
वरा-वराननां शुभां, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ 5॥
👉 जिनके कमल जैसे हाथ वरदान देने में समर्थ हैं, जो शुभ-अशुभ दोनों का फल देने वाली हैं, सुंदर मुख वाली शुभ देवी हैं — उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ।
कपीन्द्न जामिनीप्रदां, त्रिधा स्वरूप धारिणी।
जले-थले निवासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ 6॥
👉 जो वानरों की रात्रि में रक्षक हैं, तीनों रूपों (सत्व, रज, तम) को धारण करती हैं, जल और स्थल दोनों में निवास करती हैं — उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ।
विशिष्ट शिष्ट कारिणी, विशाल रूप धारिणी।
महोदरे विलासिनी, भजामि विन्ध्यवासिनी॥ 7॥
👉 जो श्रेष्ठ और विनीत कार्यों की प्रेरक हैं, विशाल स्वरूप वाली हैं और विशाल उदर में आनंदपूर्वक निवास करती हैं — उन्हें मैं भजता हूँ।
पुंरदरादि सेवितां, पुरादिवंशखण्डितम्।
विशुद्ध बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीं॥ 8॥
👉 जिन्हें इन्द्र आदि देवता भी पूजते हैं, जिन्होंने प्राचीन दुष्ट वंशों का संहार किया, और जो शुद्ध बुद्धि देने वाली हैं — उन्हें मैं नमन करता हूँ।
।। इति श्री विंध्यवासिनी स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
श्री विंध्यवासिनी स्तोत्र के लाभ (Benefits):
- दरिद्रता और दुखों का नाश:
यह स्तोत्र माँ विंध्यवासिनी को प्रसन्न करता है, जिससे आर्थिक संकट, दुख, और वियोग जैसे कष्टों का नाश होता है। - शत्रुओं से रक्षा:
स्तोत्र में देवी को शुम्भ-निशुम्भ, मुण्ड, जैसे राक्षसों की संहारिका बताया गया है। इसका पाठ करने से शत्रु बाधा, भय और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा मिलती है। - सौभाग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति:
देवी को विभूति प्रदायिनी कहा गया है, इसलिए यह स्तोत्र धन-धान्य, यश और समृद्धि प्रदान करता है। - शारीरिक, मानसिक और पारिवारिक शांति:
माँ त्रिधा स्वरूपधारिणी हैं (सत्व, रज, तम)। यह स्तोत्र साधक के जीवन में संतुलन, विवेक और मानसिक स्थिरता लाता है। - सभी स्थानों में देवी की कृपा:
माँ विंध्यवासिनी जले-थले निवासिनी हैं — उनका आह्वान हर जगह किया जा सकता है। इससे यात्रा, गृह और कार्यस्थल में देवी की रक्षा प्राप्त होती है।
पाठ विधि (Vidhi):
- प्रातः या संध्या समय स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
लाल वस्त्र या पीले वस्त्र शुभ माने जाते हैं। - देवी विंध्यवासिनी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक, अगरबत्ती व पुष्प अर्पित करें।
- शुद्ध आसन पर बैठकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख रखें।
- संकल्प लें — “मैं अमुक लाभ हेतु माँ विंध्यवासिनी का यह स्तोत्र पाठ कर रहा हूँ।”
- श्री गणेशाय नमः कहकर स्तोत्र का आरंभ करें।
प्रत्येक श्लोक को ध्यानपूर्वक पढ़ें। - पाठ के बाद आरती करें और “भजामि विंध्यवासिनी” का कम से कम 11 बार जप करें।
- यदि संभव हो तो माता को लाल फूल, लाल चूड़ी या मिठाई अर्पित करें।
जाप का उपयुक्त समय (Best Time for Jaap):
🔹 प्रातः काल (सुबह 5 – 7 बजे):
मन शुद्ध और शांत होता है। देवी की कृपा शीघ्र मिलती है।
🔹 संध्याकाल (शाम 6 – 8 बजे):
यह समय शक्ति उपासना के लिए अत्यंत फलदायक माना गया है।
🔹 विशेष दिन:
- शुक्ल पक्ष की अष्टमी और नवमी
- नवरात्रि, चैत्र/आश्विन महीने
- मंगलवार और शुक्रवार


























































