
जब-जब संसार में अन्याय, अंधविश्वास और भेदभाव बढ़ता है, तब-तब कोई महापुरुष जन्म लेकर मानवता को सही दिशा दिखाता है। ऐसा ही एक तेजस्वी व्यक्तित्व था — गुरु नानक देव जी, जिन्होंने सत्य, प्रेम और एकता का ऐसा दीप जलाया जो आज भी संसार को प्रकाशमान कर रहा है।
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जन्म और प्रारंभिक जीवन — एक अद्भुत बालक की कहानी
15 अप्रैल 1469, कार्तिक पूर्णिमा के पावन दिन पर, पाकिस्तान के तलवंडी गाँव (अब ननकाना साहिब) में गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ। पिता का नाम था मेहता कालू जी और माता का नाम माता तृप्ता जी। बचपन से ही वे साधारण बच्चों से बिल्कुल अलग थे।
जहाँ दूसरे बच्चे खेलकूद में मग्न रहते, वहीं नानक देव जी गहरी बातें सोचते और ईश्वर के अस्तित्व पर ध्यान करते। एक बार उनके पिता ने उन्हें व्यापार के लिए कुछ पैसे दिए, पर गुरु नानक ने वह पैसा गरीबों को भोजन कराकर “सच्चा सौदा” बताया। जब पिता ने पूछा — “पैसा कहाँ गया?”, तो उन्होंने कहा —
“मैंने तो सच्चा सौदा किया है — भूखों को भोजन खिलाया और उनके चेहरे पर मुस्कान लाई।”
इस घटना ने दिखा दिया कि यह बालक साधारण नहीं, बल्कि एक दिव्य आत्मा है।
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दिव्य अनुभूति — तीन दिन की रहस्यमयी गुमशुदगी
कहा जाता है कि जब गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी में नौकरी कर रहे थे, एक दिन वे नदी में स्नान करने गए और तीन दिन तक वापस नहीं लौटे। लोग सोचने लगे कि वे डूब गए। तीन दिन बाद जब वे लौटे, तो उनके चेहरे पर अलौकिक तेज था। उन्होंने जो पहला वाक्य कहा, उसने इतिहास बदल दिया —
“ना कोई हिंदू, ना कोई मुसलमान – सब एक ही परमात्मा की संतान हैं।”
उस दिन से उन्होंने अपना जीवन मानवता की सेवा और ईश्वर के सत्य संदेश को फैलाने में लगा दिया।
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चार उदासियाँ — ज्ञान यात्रा की अद्भुत कथा

गुरु नानक देव जी ने चार दिशाओं में यात्राएँ (उदासियाँ) कीं। उन्होंने भारत, नेपाल, तिब्बत, अरब, मक्का, बगदाद और श्रीलंका तक यात्रा की। हर जगह उन्होंने सिखाया —
“ईश्वर एक है, और वह हर जीव में विद्यमान है।”
वे राजा-महाराजाओं, पुजारियों और साधुओं से भी निर्भीक होकर सत्य कहा करते थे। मक्का में जब उन्होंने अपने पैर “काबा” की दिशा में रख दिए, तो किसी ने कहा —
“पैर हटा दो, यह अल्लाह का घर है।”
गुरु नानक ने मुस्कराकर कहा —
“मेरे पैर उस दिशा में घुमा दो जहाँ अल्लाह न हो।”
और जब उनके पैर घुमाए गए, तो कहा जाता है कि काबा स्वयं घूम गया। यह घटना बताती है कि ईश्वर सर्वत्र है।
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ — जीवन का सार
गुरु नानक देव जी ने तीन मुख्य सिद्धांत दिए, जो आज भी सिख धर्म की नींव हैं:
- नाम जपो – सदा ईश्वर का स्मरण करो।
- किरत करो – ईमानदारी और मेहनत से जीवन यापन करो।
- वंड छको – जो कुछ तुम्हारे पास है, उसे दूसरों के साथ बाँटो।
उन्होंने कहा —
“ईश्वर का नाम लो, मेहनत करो, और बाँटकर खाओ – यही सच्चा धर्म है।”
उन्होंने जात-पात, ऊँच-नीच, और अंधविश्वास का विरोध किया। उनका संदेश था —
“सभी मनुष्य समान हैं; सच्चा धर्म वही है जो दूसरों के प्रति प्रेम सिखाए।”
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अमर वाणी — “इक ओंकार सतनाम”
गुरु नानक देव जी की वाणी को बाद में “गुरु ग्रंथ साहिब” में संगृहीत किया गया। उनका प्रसिद्ध मंत्र “इक ओंकार सतनाम करता पुरख निरभउ निरवैर अकाल मूरत” हर सिख प्रार्थना की शुरुआत है।
इसका अर्थ है —
“ईश्वर एक है, सत्य उसका नाम है, वह सृष्टि का रचयिता, निर्भय और निरवैर है।”
अंतिम दिन और अमर संदेश
22 सितंबर 1539 को कादरपुर साहिब में गुरु नानक देव जी ने अपना शरीर त्याग दिया। कहते हैं, उनके अनुयायियों में हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल थे — एक ने अंतिम संस्कार करना चाहा, तो दूसरे ने दफनाना। जब चादर हटाई गई, तो वहाँ केवल फूल थे — जिन्हें दोनों समुदायों ने अपने-अपने तरीके से श्रद्धांजलि दी। यह दृश्य स्वयं इस बात का प्रतीक था कि गुरु नानक देव जी ने जीवन भर जो “एकता” का संदेश दिया, वही उनके जाने के बाद भी जीवित रहा।
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आज का महत्व — मानवता का प्रकाश
आज जब दुनिया फिर से भेदभाव और स्वार्थ में उलझी है, गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। उनका संदेश हमें याद दिलाता है —
“मनुष्य वही महान है जो दूसरों की सेवा करे, और सबको एक समान दृष्टि से देखे।”
हर वर्ष गुरु नानक जयंती (गुरुपर्व) के दिन, देश-विदेश में प्रकाश पर्व मनाया जाता है। गुरुद्वारों में कीर्तन, लंगर और सेवा के माध्यम से उनकी शिक्षाओं को पुनः जीवित किया जाता है।
निष्कर्ष
गुरु नानक देव जी केवल सिखों के ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के गुरु थे। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची पूजा मंदिर या मस्जिद में नहीं, बल्कि दूसरों की सेवा में है। उनका हर वचन आज भी आत्मा को स्पर्श करता है और हमें सही राह दिखाता है।
“सच्चा मनुष्य वही है, जो दूसरों के सुख में अपना सुख देखे।”
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